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Baban pandey's Blog – June 2010 Archive (32)

हल निकालने के बेढब तरीके

अपने देश

भारत में .......



जूते पहनने वाले

नंगे पैरों का दर्द सुनाते है ॥



अंगूठा छाप मंत्री

शिक्छा का अलख जागते है ॥



जिनके नौ - दस बच्चे है

परिवार नियोजन का पाठ पढ़ते है ॥



जिन्होनें जंगल साफ़ कर दिए

वही वृक्छारोपन कार्य चलाते है ॥



दिखाते है जो कानून को ठेंगा

वही नया कानून बनाते है ॥



जो पैसे लेते ,चोर से खुद

फिर कैसे चोर पकड़ ले आते है ॥



ऐ ० सी० में रहने वाले

गर्मी की कथा सुनाते है… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 11:05pm — 3 Comments

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें भाग -4

(एक मजदूर की सोच )

ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु

जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥

ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू

माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥

जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू

जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥

आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके

चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 5:49pm — 3 Comments

गीत -2

सुनाएये कोई शोक -गीत

आज मन उदास है ॥

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



फूलों का रंग भी फीका

भौरे भी दहशतज़र्द है

सब जगह उजड़ा हुआ चमन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



चलो ,खोलता हू वे सभी परतें

जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें

किससे कहू , किससे वयां करूं

आज खोता हुआ हर बचपन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



कुछ चंदे दे दो भाई

महंगाई की मार से

मरने वालों के लिए

खरीदना आज कफ़न है

भरिये… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 12:53pm — 3 Comments

गीत -1

गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है





गीत -1

आज सजने की बेला है , सज लू सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं

गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं

गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें

जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 7:52am — 1 Comment

महगाई मारक यन्त्र

मेरे पास

एक महगाई यन्त्र है

यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥



बहू-बेटियों से कहें

भारतीय संस्कृति को धयान में रखें

सोमबार /मंगलवार /रविबार को

उपवास करे

भगवन भी खुश

पति भी खुश

और होनेवाले समधी भी खुश

स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥



फिर ,

महंगाई, हमलोगों की क्या

हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥



कुछ दिनों तक ऐसा करेगें

हमलोग

सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें

संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा

मुफ्त का गेहू… Continue

Added by baban pandey on June 26, 2010 at 9:04pm — 1 Comment

अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)

पहले

घर के आँगन में भी

बना लेती थी

गोरैया अपना घोसला ॥



दाने की खोज में

भूलकर/भटककर

पहुँच गयी एक गोरैया

महानगर में ॥



पेड़ नहीं थे वहां

कहां बनाती अपना घोसला ॥



बिजली का खम्भा ही

एकमात्र विकल्प था

तिनका -तिनका जोड़ कर

बनाया अपना घोसला ॥



फिर एक दिन

बिजली कर्मियों ने

नष्ट कर दिया उसका घोसला ....

अंडे फूट गए ॥

अब गोरैया कहां जायेगी… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

मैं खरगोश नहीं बनना चाहता

बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥

हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥

रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥

इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am — 5 Comments

मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...

तुम्हारी बातें

एक -एक शब्द जैसे ॥



श्वासों का आना -जाना

किताब के पन्ने

पलटने जैसा ॥



तुम्हारी मुस्कराहट

कविता पढने जैसी ॥



तुम्हारी हँसी

ग़ज़ल की पंग्तिया ॥



तुम्हारी उम्र का

हर गुजरा वक़्त

एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥



तुम्हें समझना

एक समझ न आने वाली

रहस्यमई कहानी जैसा ॥



सचमुच, तुम्हें पढना

एक किताब पढने जैसा ॥



हे ! प्रिय !!!

मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am — 4 Comments

एक मृत लड़की की चिठ्ठी

मेरे पापा ने

माँ का गर्भ जांच कराया

सांप सूंघ गया उन्हें

शुक्र हो डाक्टर का

उन्होंने कहा ...

"एक ही बार माँ बन सकती है

आपकी पत्नी "

भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥



मेरी माँ ने

सिल्क साडी पहननी छोड़ दी

शौक -मौज फुर्र्र

मेरे विवाह की चिंता में

जन्म से ही ॥



पढाई के दौरान

प्यार हो गया एक लड़के से

शादी का लालच दिया उसने

माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े

दहेज़ के लिए

यह सोच , भाग गयी उसके साथ… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

नदी की चाहत और हम

मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..



सर्पीली रूप में बहना

मेरी नियति है ॥

बाँधने की कोशिस में

उग्र हो जाती हू ॥

किनारे का बाँध तोड़

निकल जाना चाहती हू ...

फिर पूछो मत ...

कई सभ्यता /संस्कृतियों के

विनाश का कारण बन जाउगी ॥



बहना चाहती हू

जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है

पिंजरे का… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 10:48am — 1 Comment

मैं सब कुछ जानता हू

मुझे हसाना तो नहीं आता

मगर, रुलाना आता है ..दोस्त !



मुझे स्तुति -गान नहीं आता

मगर ,निंदा -गान आता है ...दोस्त !



मुझे तैरना नहीं आता

मगर , डुबाना आता है ....दोस्त !



मुझे धोती पहनाना नहीं आता

मगर , नंगा करना आता है ...दोस्त !



मैं गाली नहीं सुन सकता

मगर ,मगर गाली देना आता है ...दोस्त !



मुझे लिखना नहीं आता

मगर ,गलतियां निकाल लेता हू ...दोस्त !



सच में ,

मैं जानता कुछ नहीं ...मेरे दोस्त

फिर भी ,… Continue

Added by baban pandey on June 23, 2010 at 3:35pm — No Comments

भारतीय कुत्ते

भारत
कुत्तों के भौकने की
इधर -उधर सूघने की
एक अच्छी जगह ॥

गाहे -बगाहे
समय -कुसमय
चोर देखकर भौकना
और कभी -कभी
बिना चोर देखे
तेजी से भौकना ॥

गज़ब चरित्र है इनका ...
साधारण जनता
इनकी मानसिकता नहीं समझ सकते ॥

कुत्तों की सर्वोच्च संस्था
कहती है .....
भौकने की यह प्रवृति
परिपक्वता को दर्शाता है ॥

Added by baban pandey on June 21, 2010 at 1:59pm — 4 Comments

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें ( भाग -३)

तुम्हें दिखाउगा आइना, क्योकि वह केवल सच बोलता है

उनके लिए कौन लडेगा , जो केवल अपना हक मांगता है ॥



क्या मेरा इधर -उधर झाकना , तुम्हें नागबार लगता है

तो खुद ही बता दो वे बातें , जो हमें ख़राब लगता है ॥



सूरज तो निकलेगा एक दिन ,बादलों की उम्र ही क्या है

सच्चाई वय़ा करेंगे वे लोग , जिन्हें आज डर लगता है ॥



वो परेशां है इसलिए क़ि उनकी झूठ पकड़ ली गई है

इधर देखें ,उधर देंखें वे कही देखें , अब शर्म लगता है ॥



वे नंगे थे शुरू से ही ,नंगापन… Continue

Added by baban pandey on June 21, 2010 at 6:10am — 1 Comment

सीढिया

हर जगह
छलांग नहीं लगाया जा सकता ॥

मंजिल तक
पहुचने के लिए
सीढियों की ज़रूरत
तो पड़ती ही है ॥

इन सीढियों को
हम जितनी
मेहनत /श्रम /लगन से बनायेगें ....

ये सीढिया ...
उतनी जल्दी ही
हमें अपनी मंजिल तक
पंहुचा देगी ॥
----------बबन पाण्डेय

Added by baban pandey on June 20, 2010 at 9:56am — 3 Comments

माँ ! तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

Added by baban pandey on June 19, 2010 at 6:20am — 5 Comments

गर्म खबरों में अब दम कहां

गर्म हवा की तपिश से
उठे ववंडरों ने
उनकी आँखों में धूल झोंक दी
उनके कपडे भी उड़ा ले गयी
वे नंगा हो गए ॥

मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥

अब
गर्म खबरों में
गर्म हवा जैसी ताकत कहां ??

Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:56am — 4 Comments

रिश्तों की नई परिभाषा ( आज के सन्दर्भ मे )

(१)

शादी ....

समझौते की गाडी मे

स्नेह की सीट पर बैठकर

अंतिम स्टेशन तक

पहुचने की चाह रखने वाले

दो सहयात्री ॥



(२)

गर्लफ्रेंड -बॉय फ्रेंड का प्यार .....

कसमों - वादों की सिलवट पर

लुका -छिपी की नमक के साथ

पिसी गई

मुस्कराहट की चटनी ॥



(३)

पत्नी का प्यार ........

उबड़ -खाबड़ रास्तो पर

रातों को उगने वाला

गंध -विहीन

कैक्टस के फूल

सूघने जैसा ॥



(४)

शाली (पत्नी की छोटी बहन ) का… Continue

Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:54am — 3 Comments

समय पीछे से गंजा है

समय को पकड़ना
मानों ......
हाथो की हथेलियों से
बने बर्तन में
पानी को ज़मा करना ॥

समय को पकड़ना
मानो ....
समुद्र के किनारे आयी
लहरों को रोकना ॥

समय को पकड़ना
मानो ......
मुट्टी में रेत को
बाँध कर रखना ॥

समय रुकता नहीं
किसी ने सच कहा है
समय पीछे से गंजा होता है ॥
समय के आगे बाल है
चाहो तो , आगे से पकड़ सकते हो ॥
------------बबन पाण्डेय

Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:37am — 1 Comment

समाचार का बनाना

(खुशवंत सिंह का लेख पढने के बाद कि सिक्खों ने पंजाब के समराला शहर में १९४७ में गिरी मस्जिद बनाई ...पर मेंडिया वालो ने इसे समाचार नहीं बनाया .)



कुत्ता ...

जब आदमी को काटे

तो समाचार नहीं बनता

पर ...आदमी

जब कुत्ता को काटे

तो समाचार बन जाता है ॥



जब ..किसी से प्यार से बोलो

तो समाचार नहीं बनता

पर जब बे -अदब से पेश आओ

तो समाचार बन जाता है ॥



शादी की बातें

समाचार नहीं बनती

पर तलाक की हवा भी

समाचार बन जाती है… Continue

Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:30am — 5 Comments

सुविधाभोगी

(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )



न तो ---

मेरे पास

तुम्हारे पास

उसके पास

एक बोरसी है

न उपले है

न मिटटी का तेल

और न दियासलाई

ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥

और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।



सब इंतज़ार में है

कोई आएगा ?

और हुक्का भर कर देगा ।

आज !

हर कोई

पीना…
Continue

Added by baban pandey on June 12, 2010 at 5:53am — 2 Comments

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