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मिथिलेश वामनकर's Blog – February 2015 Archive (6)

ग़ज़ल :: इक परिन्दा पागल-सा (मिथिलेश वामनकर)

212 / 1222 / 212 / 1222

 

वाकिया हुआ  कैसे   बाद   ये  जमानों  के

मस्ज़िदी भजन  गाये  मंदिरी अजानों के

 

हौसला  चराग़ों  का  यूं चला  तबीयत…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 11:30pm — 31 Comments

रिश्तें है बेतार..... (मिथिलेश वामनकर)

22  / 22  / 22  / 22 / 22  /  2

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बादल  जब  बेज़ार  किसी  से  क्या कहना

फिर  कैसी  बौछार किसी  से  क्या कहना

 

ख़ामोशी,…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 10:30am — 32 Comments

जवां परिंदे .... (मिथिलेश वामनकर)

121--22--121--22--121--22--121—22

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हमें  इज़ाज़त  मिले  ज़रा  हम  नई  सदी  को  निकल  रहे है

जवाँ परिंदे  उड़ानों की अब,   हर  इक  इबारत  बदल  रहे हैं।*

 

गुलाबी  सपने  उफ़क  में  कितने  मुहब्बतों  से  बिखर गए है

नया  सवेरा  अज़ीम करने,  किसी  के  अरमां  मचल  रहे  है।

 

मिले  थे  ऐसे  वो  ज़िन्दगी  से,  मिले  कोई जैसे अजनबी से

हयात से जो  मिली  है  ठोकर  जरा - जरा  हम  संभल…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 2:30pm — 31 Comments

आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ ..... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

22--22--22--22--22--22--22--2

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हँसते - हँसते  रो  लेता  हूँ,   रोते - रोते  हँसता  हूँ

कोई मुझसे  ये मत पूछो आखिर क्यों  मैं  ऐसा हूँ

 

आईने-सी…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 11:00pm — 45 Comments

बाजरे की बालियाँ...... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

खेत की, खलिहान की औ गाँव की ये मस्तियाँ

कितनी  दिलकश हो गई है  बाजरे की बालियाँ

 

वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 5, 2015 at 11:00pm — 27 Comments

एक मुट्ठी गालियाँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

रात  भर  संघर्ष  कर  जब  थक  गई ये  आँधियाँ

एक दस्तक दी हवा ने, खुल  गई सब  खिड़कियाँ

 

जो गया ,  जाना उसे  था , कौन  जो  ठहरा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2015 at 3:00am — 41 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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