"माई, अपने घर में एक मोटी पुस्तक थी। रामायण । उसमें से तूने एक प्रसंग सुनाया था कि एक केवट था जो राम चंद्र जी को नाव में इसलिये नहीं बिठा रहा था कि उनके पैरों की धूल से उसकी नाव कहीं सुंदर स्त्री ना बन जाय अतः वह उनके पैर पखारने के बाद ही नाव में बैठाने की शर्त रखा था।"
"हाँ बेटा, रामायण में लिखा तो यही है। क्योंकि भगवान राम की चरण रज़ से एक पत्थर की शिला स्त्री बन गयी थी।"
"क्या सचमुच ऐसा संभव हुआ था?"
"हुआ तो ऐसा ही था मगर वह तो एक श्राप के कारण हुआ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 6, 2019 at 11:30am — 14 Comments
समाधान - लघुकथा -
युद्ध, युद्ध, युद्ध करो,
हमें केवल युद्ध चाहिये। दुश्मन को मसल दो। उसे कुचल दो। बरबाद कर दो।
ऐसी आवाज़ों से आसमान गूंज रहा था।
इन आवाजों को सुनकर नेता जी का मस्तिष्क फटा जा रहा था। इन आवाजों का स्वर और प्रवाह इतना तेज और उत्तेजित करने वाला था कि नेताजी अपने दैनिक क्रिया कलापों पर एकाग्र नहीं कर पा रहे थे।
दूसरी ओर उनकी आँखों के आगे पिछले युद्ध की विभीषिका स्पष्ट झलक रही थी।घायल सैनिकों की चीत्कार भरी पुकार और कराहने के दर्द भरे स्वर। उनके…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 1, 2019 at 5:00pm — 8 Comments
देहलीज़ - लघुकथा -
दिल्ली में जनवरी की कयामत की सर्दी वाली रात। रात के ग्यारह बजे के लगभग घर की डोर बेल बजी। घर में दो बुजुर्ग प्राणी। दोनों ही सत्तर पार। आमतौर पर नौ बजे तक रजाई में घुस जाते थे। गहरी नींद में थे। बार बार घंटी बजी तो शर्मा जी की आँख खुली तो उठकर द्वार खोलने चल दिये। खटर पटर की आवाज से तथा लाइट जलने से मिसेज शर्मा भी आँख मलते हुए उठ बैठी।
"सुनो जी, तुम रुको, मैं खोलती हूँ।"
वे थोड़ी मजबूत थीं। शर्मा जी दुबले पतले और बीमार भी थे। वे रुक गये। मिसेज शर्मा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 8, 2019 at 6:14pm — 10 Comments
कुंठा - लघुकथा -
आदरणीय मामाजी,
आपने मेरे लिये जो किया वह मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आपने अपना भविष्य दॉव पर लगा दिया| आपकी बी ई की पढ़ाई छूट गयी। वह घटना मेरे जीवन की भयंकर भूल थी।जिसके अपराध बोध से आज तक ग्रसित हूँ।
उस समय मैं केवल सात साल का था अतःइतना डर गया था कि सच नहीं बोल सका।
इतने साल बाद आज मैं आपको सच बताने का साहस जुटा पाया हूँ|
दिवाली की उस रात खाने के बाद आप जब पान खाने जाने लगे तो मैं भी जिद करके आपके साथ चल दिया था।
आपने पान वाले को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 8, 2018 at 7:28pm — 6 Comments
सन्नाटा - लघुकथा -
सोनू ने स्कूल से आते ही, स्कूल बैग पटक कर, सीधे दादा जी के कमरे का रुख किया, "दादा जी, ये ब्लफ मास्टर क्या होता है?"
दादाजी अपने दोस्तों के साथ वर्तमान राजनीति पर चर्चा में मशगूल थे।जिनमें कुछ लोकल लीडर भी थे| अतः सोनू को टालने के लिये कहा,"सोनू, अभी तुम स्कूल से आये हो। ड्रेस बदल कर कुछ खा पी लो। फिर बात करते हैं।"
"नहीं दादाजी, मुझे पहले यह जानना अधिक जरूरी है।"
"सोनू, अभी हम लोग देश के मौजूदा हालात के बारे में कुछ आवश्यक बात कर रहे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 20, 2018 at 10:34am — 15 Comments
पहल - लघुकथा -
सुखदेव जी का पांच साल का बेटा आइने के आगे खड़े होकर सिगरेट मुंह में लगाकर अपने पापा की सिगरेट पीने की स्टाइल की नक़ल कर रहा था।
सुखदेव जी की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, उनकी खोपड़ी भन्ना गयी।गुस्से में तमतमा गये।
"यह क्या कर रहा है बबलू?"
"पापा, देखो आप ऐसे ही पीते हो ना सिगरेट। मैं बिलकुल कॉपी कर लेता हूँ।"
"मगर इसमें धुआँ तो निकल ही नहीं रहा।" उसकी बहिन ने तंज कसा।
"वह भी निकलेगा, थोड़ा बड़ा हो जाने दो।"
"मैं अभी निकालता हूँ तेरा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 13, 2018 at 10:49am — 11 Comments
मेरी धरोहर - लघुकथा -
"सुधा, मेरा सफेद कुर्ता पाजामा निकाल दो। शीघ्रता से।"
"अरे विनोद, यह क्या सुन रहा हूँ? यहाँ सब लोग दिवाली की पूजा की तैयारी में व्यस्त हैं और तुम ये क्या सफेद कपड़ों की फरमाइश कर रहे हो?"
"जी दादाजी, आपने सही सुना। मुझे मेरे दोस्त अकबर के घर जाना है। उसके अब्बू का इंतकाल हो गया है।"
"तुम्हें पता है आज इस दीपावली के शुभ अवसर पर मैं अपनी वसीयत भी बनाने वाला हूँ। अभी हमारे परिवार के वक़ील आने ही वाले हैं। हो सकता है जो उस वक्त मौजूद ना हों, उन्हें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 5, 2018 at 4:58pm — 14 Comments
काल चक्र - लघुकथा -
"राघव, तुम यहाँ रेलवे प्लेटफार्म पर, इस हालत में?"
मुझे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बेंच पर बैठा शख्स मेरा मित्र राघव ही है। दाढ़ी , बाल बढ़े हुए। पैर में हवाई चप्पल। पाजामे के साथ ढीली सी टी शर्ट। मेरा हम उम्र था लेकिन अस्सी साल का बूढ़ा लग रहा था|
मैं जिस राघव का दोस्त था, वह तो सदैव आसमान में उड़ता था। शेर की तरह दहाड़ता था। कालेज के दिनों में वह अकेला बंदा था जो सूट बूट और टाई पहनकर कार में कॉलेज आता था। क्या शानदार व्यक्तित्व था। हर कोई उसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:04pm — 12 Comments
निर्जला व्रत -लघुकथा -
सूरज तीन महीने बाद अमेरिका से लौटा तो सामान पटक कर सीधा अपने बचपन के मित्र रघु को सरप्राइज़ देने उसके घर जा धमका। रघु की शादी में वह विदेश दौरे के कारण शामिल नहीं हो सका था। इसलिये माफ़ी भी माँगनी थी।बदले में दोनों को ढेर सारे उपहार भी देने थे।
लेकिन यह क्या सूरज तो खुद चकित हो गया जब रघु का लटका हुआ उदास चेहरा देखा।"क्या हुआ दोस्त, क्या शादी रास नहीं आई।"
"छोड़ यार तू सुना, कब आया, कैसा रहा टूर?"
"यार बात को घुमा मत। भाभी कहाँ है?"
"छोड़…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 29, 2018 at 11:08am — 14 Comments
परख - लघुकथा -
नीना जैसे ही चाय की ट्रे लेकर, उसे देखने आये लड़के वालों के परिवार की एक मात्र महिला को चाय देने बढ़ी, उस महिला को देख कर नीना के होश उड़ गये। उसे लगा वह अभी चक्कर खा कर गिर जायेगी। अब उसे निश्चित लग रहा था कि यह रिश्ता भी नहीं होने वाला। माँ बापू को आज फिर तगड़ा झटका लगेगा।
हालांकि नीना एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर थी। बस खूबसूरती में औसत थी। रंग भी थोड़ा दबा हुआ था। अतः रिश्ते होते होते रह जाते थे।
नीना के सामने कालेज की वह घटना चल चित्र की तरह घूम गयी। जब वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 25, 2018 at 3:20pm — 12 Comments
मुआवज़ा - लघुकथा -
देश भक्त पार्टी के एक नामी नेता रेल हादसे पर विरोध जताने अपने समर्थकों की भारी भीड़ लेकर डी एम साहब के दफ़्तर पहुंच गये और जम कर नारेबाज़ी शुरू कर दी। थोड़ी देर में साहब ने नेताजी को दफ़्तर में बुला लिया।
"क्या हुआ भैया जी, इतना शोरगुल किसलिये। हम लोग तो खुद ही रात दिन इसी काम में लगे हुए हैं।"
"जनाब, हम जन प्रतिनिधि हैं।लोगों को सब जानकारी देनी पड़ती है कि प्रशासन क्या कर रहा है। इतना समय हो गया, आप लोगों की ओर से कोई पुख्ता खबर नहीं आई मीडिया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 23, 2018 at 10:59am — 8 Comments
माँ - लघुकथा -
"माँ, बापू ने तुम्हें क्यों छोड़ दिया था ?"
"गुड्डो , जब छोटी पेट में थी। तेरे बापू गर्भ गिरवाना चाहते थे। मैंने मना किया तो मुझे धक्के मार कर घर से निकाल दिया ।"
"मैंने तो सुना कि वे तो माँ दुर्गा के कट्टर भक्त थे।फिर एक देवी उपासक भ्रूण हत्या जैसा पाप और एक औरत का ऐसा अपमान कैसे कर सकता है?"
"अधिकतर अंध भक्त दोगली ज़िंदगी जीते हैं। इनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है।"
"माँ, मौसी तो कह रही थी कि तुम काली थीं और सुंदर भी नहीं थी।इसलिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 20, 2018 at 11:13am — 5 Comments
यू टू (you too ) - लघुकथा -
मेरी छोटी बहिन कुसुम आठवीँ कक्षा में थी। उम्र चौदह साल होगी।
उस दिन वह छत पर कागज के जहाज बना कर उड़ा रही थी। उसी वक्त पिताजी का घर आना हुआ और कुसुम का उड़ाया हुआ जहाज पिताजी से टकराया। पिताजी ने उस कागज के जहाज को उठा लिया। खोल कर देखा तो वह एक प्रेम पत्र था।लेकिन उस पर किसी का नाम नहीं था, ना पाने वाले का ना भेजने वाले का। "प्रिय" से शुरू किया था और "तुम्हारी" से अंत किया था।
पिताजी ने छत पर कुसुम को देखा तो उनका गुस्सा सातवें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 17, 2018 at 11:52am — 4 Comments
अस्त व्यस्त -लघुकथा -
पैतीस वर्षीय गल्ला व्यापारी राजेश्वर को दिल का दौरा पड़ा।आनन फानन में चिकित्सालय पहुँचाया गया।
विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा गहन परीक्षण और उचित चिकित्सा के बाद घर भेज दिया मगर बहुत सारी हिदायतों के साथ।
उनके अनुसार दिल का दौरा हल्का था और समय पर चिकित्सा मिलने से खतरा टल गया है लेकिन जीवन भर सावधानी रखनी होगी।
सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले के लोग,मित्रों एवम व्यापारियों का ताँता लग गया।
हाल चाल जानने राजेश्वर के सत्तर वर्षीय नानाजी भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 11, 2018 at 1:26pm — 10 Comments
दोस्ती - लघुकथा -
श्रद्धा एक मध्यम वर्गीय परिवार की मेधावी छात्रा थी।वह इस साल एम एस सी जीव विज्ञान की फ़ाइनल में थी। शिक्षा का उसका पिछला रिकार्ड श्रेष्ठतम था।इस बार भी उसका इरादा यूनीवर्सिटी में अब्बल आने का था।
मगर इंसान की मेहनत और इरादे से भी ऊपर एक चीज़ होती है भाग्य।जिस पर ईश्वर के अलावा किसी अन्य का जोर नहीं चलता। श्रद्धा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
वह उस दिन क्लास रूम से बाहर निकल रही थी कि चक्कर खाकर गिर गयी।अफ़रा तफ़री मच गयी। सभी साथी सहपाठी चिंतित और परेशान हो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 9, 2018 at 8:06pm — 12 Comments
राजा चोर है - लघुकथा –
"आचार्य,इस चोर राजा के शासन से मुक्ति का कोई तो उपाय बताइये। प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है।"
"वत्स, सर्वप्रथम तो अपनी वाणी को नियंत्रित करो।"
"गुरू जी, आपका आशय क्या है।"
"जब तक राजा का अपराध प्रमाणित नहीं होता, उसे सम्मान देना अनिवार्य है।"
"राजा का अपराध कैसे प्रमाणित होगा?"
"यह जाँच द्वारा सुनिश्चित करना दंडाधिकारी का कार्य है, जो कि विधि द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली के तहत कार्य करता है।"
"दंडाधिकारी यह जाँच…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2018 at 8:30pm — 16 Comments
परवरिश - लघुकथा –
आज फिर शुभम और सुधा में गर्मागर्म बहस हो रही थी। मुद्दा वही था कि बाबूजी के कारण बिट्टू उदंड और जिद्दी होता जा रहा है।
"सुधा, बिट्टू उनकी संगत में जिद्दी नहीं तार्किक और जिज्ञासु हो गया है। हम इस विषय में कितनी बार बात कर चुके हैं कि अस्सी साल की उम्र में मैं अपने पिता को अलग नहीं रख सकता।"
"तो मैं बिट्टू के साथ कहीं और चली जाती हूँ। इतना तो कमा ही लेती हूँ कि दोनों का गुजारा हो सके।"
"सुधा तुम्हें पता है, मेरी माँ की मृत्यु के समय मैं केवल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 28, 2018 at 9:00am — 10 Comments
दुर्गा - लघुकथा –
शुरू में मैंने दुर्गा को एक महीने के लिये ट्रायल पर रखा था क्योंकि उसे देखकर लगता नहीं था कि काम वाली बाई है। खूबसूरत और जवान तो थी ही लेकिन साथ ही गज़ब की स्टाइलिश और फ़ैशनेबिल। चटकीली सुर्ख लिपस्टिक, गॉगल, मोबाइल, बड़ा सा लेडीज पर्स भी रखती थी।
मुझे बहुत तनाव रहता था जब वह पतिदेव की उपस्थिति में आती थी। ऐसे में मुझे अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ती थी। हालाँकि पतिदेव का इतिहास साफ सुथरा था। पर मर्द जात का क्या भरोसा। ऊपर से दुर्गा के लटके झटके। एक बार तो मैंने उसे कह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 22, 2018 at 12:07pm — 10 Comments
अंधा कानून - लघुकथा –
"सर, पिछले महिने मैंने आपकी कंपनी में इंटरव्यू दिया था। आपने खुद मुझे बधाई देकर बताया था कि इस पद के लिये मेरा चयन हो गया है। हफ़्ते दस दिन में नियुक्ति पत्र डाक द्वारा मिल जायेगा"।
"हाँ, यह सच है मिस ज्योति लेकिन...."।
"लेकिन क्या सर"?
"मुझे खेद है कि यह पद किसी और को दे दिया गया"।
"सर, क्या किसी मंत्री का फोन आगया था"?
"नहीं मिस ज्योति, हमारे यहाँ सिफ़ारिश नहीं चलती"।
"फिर सर, रातों रात इस परिवर्तन का कोई तो वाजिब…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 1:30pm — 10 Comments
औक़ात - लघुकथा –
"सलमा, यह किसके बच्चे को लेकर जा रही हो"।
"चचाजान, आप पहचान नहीं पाये इन्हें, अपने अर्जुन हैं"।
"अरे वाह, बहुत बड़े हो गये। पर इनको यह क्या पोशाक डाल रखी है"।
"इनको एक सीरियल में कान्हा का किरदार करना है। उसी के लिये लेकर जा रही हूँ"।
"बहुत खूब, संभल कर जाना"।
अभी सलमा चार क़दम ही चली थी कि एक कट्टरपंथी ग्रुप ने उसे घेर लिया। उसे बच्चा चोर बताकर पुलिस थाने ले गये।
"दरोगा जी,बड़ा तगड़ा केस लाये हैं,आज तो आपके दोनों हाथों में लड्डू…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 7:01pm — 14 Comments
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