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Sulabh Agnihotri's Blog – July 2016 Archive (23)

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 38

कल से आगे .............

‘‘आप यह कृपाण सदैव अपने साथ ही रखते हैं, कभी अलग नहीं करते ?’’ वेदवती ने ठिठोली करते हुये रावण से प्रश्न किया।

‘‘यह कोई साधारण कृपाण नहीं है। यह चन्द्रहास है, स्वयं भगवान शिव ने मुझे प्रदान की है। इसके साथ ठिठोली रावण को सह्य नहीं है।’’

‘‘ऐसा क्या ? तो इसे कुटिया में पूजा में सजा कर क्यों नहीं रख देते ?’’

‘‘चन्द्रहास रावण का आभूषण है। रावण आर्यों की तरह मूर्ति पूजक नहीं है। उसके शिव मूर्तियों में नहीं, उसके हृदय में निवास करते हैं और उनका…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 30, 2016 at 9:23am — 4 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 37

कल से आगे .................

अयोध्या में धोबियों के मुखिया धर्मदास के पिता का श्राद्ध था। श्राद्ध कर्म तो पुरोहित को करवाना था किंतु भोज के लिये वह नाक रगड़ कर जाबालि से भी निवेदन कर गया था। जाबालि ने स्वीकार भी कर लिया था। शूद्रों की बस्ती में उत्तर की ओर धोबियों के घर थे। अच्छी खासी बस्ती थी - करीब ढाई सौ घरों की। घर की औरतें प्रतिदिन सायंकाल द्विजों के घरों में जाकर वस्त्र ले आती थीं और दूसरे दिन पुरुष उन्हें सरयू तट पर बने धोबी घाट पर धो लाते थे। बदले में उन्हें जीवन यापन के…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 29, 2016 at 9:04am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 36

कल से आगे ..................

रावण की दुनियाँ जैसे वेदवती के ही चारों ओर केन्द्रित होकर रह गयी थी। अपनी सारी संकल्पशक्ति समेट कर वह अपने चिंतन को दूसरी ओर मोड़ने का प्रयास करता पर चिंतन था कि घूम-फिर कर वहीं आकर अटक जाता। वेदवती की छवि उसकी आँखों में रह-रह कर कौंध जाती थी। मन छटपटाने लगता था। बड़े प्रयास से वह कई दिन तक अपने को रोके रहा पर फिर एक दिन वह दिमाग को भटकाने की नीयत से जंगल में निकल गया। पता नहीं कब तक घूमता रहा।



‘‘अरे वैश्रवण ! इतने दिन तक दर्शन ही नहीं…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 28, 2016 at 8:48am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 35

कल से आगे .................

कैकेयी के प्रासाद में तीनों महारानियाँ उपस्थित थीं। दासियों को बाहर भेज दिया गया था अतः पूर्ण एकान्त था।

‘‘जीजी ! नारद मुनि ने तो पलट कर दर्शन ही नहीं दिये।’’ कैकेयी बोली।

‘‘हाँ बहन ! उत्कंठा तो मुझे भी हो रही है। आगे की क्या योजना है जाने !’’

‘‘अरे आप लोग व्यर्थ चिंतित हैं। कुमारों को बड़ा तो होने दीजिये। अभी चार बरस की वय में ही क्या रावण से युद्ध करने भेज देना चाहती हैं ?’’ यह सुमित्रा थी, सबसे छोटी महारानी।



सुमित्रा को…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 27, 2016 at 8:40am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 34

कल से आगे ..............................

रावण उल्लसित भी था और व्यथित भी। उसे शिव जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की अनुकंपा प्राप्त हो गयी थी पर वह अपनी मूेर्खता को कैसे भूल सकता था। शिव अगर चाहते तो उसे भुनगे की तरह मसल सकते थे पर उन्होंने उसे छोड़ दिया था। छोड़ ही नहीं दिया था अपना वात्सल्य भी प्रदान किया था। उसकी सारी अवज्ञा को क्षमा कर दिया था। कितना अद्भुत शौर्य है उनमें, शायद त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं होगा उनकी समता करने वाला फिर भी कितना शांत व्यक्तित्व है। अपनी शक्ति का कोई दंभ…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 26, 2016 at 8:43am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 33

कल से आगे .........

गुरुदेव वशिष्ठ और महामात्य जाबालि की आशंका अकारण नहीं थी। दोनों ही चिंतन प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे और दोनों का ही सामाजिक चरित्र पर विशद चिंदन था।



अगली बार जब वेद घर पहुँचा तो उसने मित्रों के साथ समय व्यतीत नहीं किया था। इस बार उसके पास कुछ विशेष था मंगला को बताने के लिये। अभी दोपहर नहीं हुई थी। वह घर पहुँचते ही सीधा अंदर गया। मंगला घर के आँगन में स्थित कुयें से पानी खींच रही थी। वेद ने सीधे उसकी चोटी में झटका मारते हुये सूचना दी…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 25, 2016 at 3:49pm — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 32

कल से आगे ..........

जैसा कि संभावित था, रावण ने अपने बड़े भाई कुबेर का मानमर्दन कर ही दिया। इस विजय ने उसके अहंकार का पोषण करने का कार्य भी किया। सत्ता के साथ सत्ता का मद आना स्वाभाविक ही है। इस मद के अतिरिक्त इस विजय से उसे जो कुछ भी प्राप्त हुआ था उसमें सबसे महत्वपूर्ण था कुबेर का पुष्पक विमान।



रावण ने कुबेर को परास्त करने के बाद अमरावती का राज्य हस्तगत नहीं किया। जैसे बहुत बाद में, ऐतिहासिक मध्य काल में इस्लामी आक्रमण कारी भारत आते थे और लूट का माल समेट कर लौट…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 24, 2016 at 8:46am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 31

कल से आगे ...............

वेद बड़े उहापोह में था। किस प्रकार बात करे वह गुरुजी से मंगला के विषय में। गुरुदेव क्रोधी स्वभाव के कदापि नहीं थे तो भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह नित्य प्रातः निश्चय करता कि आज मध्यान्ह में भोजन के समय अवश्य ही गुरुदेव से पूछेगा किंतु मध्यान्ह से साँझ पर टल जाता और साँझ से पुनः अगली प्रातः पर। अंततः एक दिन उसने निश्चय किया कि अब कोई सोच-विचार नहीं करेगा बस सीधे जाकर गुरुजी से पूछ लेगा, फिर जो होगा देखा जायेगा। नहीं पूछेगा तो फिर घर जाते ही मंगला…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 23, 2016 at 10:11pm — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 30

कल से आगे ...

सभाकक्ष में सुमाली के साथ एक अपरिचित व्यक्ति भी प्रतीक्षारत था। वज्रमुष्टि, प्रहस्त और अकंपन भी उपस्थित थे। रावण के प्रवेश करते ही सब उठ कर खड़े हो गये। रावण अपने सिंहासन पर आसीन हुआ। अभिवादन की औपचारिकताओं के बाद उसने सुमाली से पूछा -

‘‘यह अपरिचित सज्जन कौन हैं मातामह ?’’

‘‘लंकेश्वर ! ये तुम्हारे भ्राता कुबेर के दूत हैं। उनका संदेश लेकर आये हैं।’’

‘‘महाराज ! मैं श्वेतांक हूँ, लोकपाल, धनपति कुबेर का दूत !’’

‘‘कहिये भ्राता कुशल से तो हैं ? और…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 22, 2016 at 9:15am — 2 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 29

पूर्व से आगे ...........

चारों कुमार धीरे-धीरे बड़े होने लगे।

अयोध्या में राज-परिवार ही नहीं प्रजा के भी चहेते थे चारों बाल-कुमार।



विधाता ने उन्हें छवि भी तो अद्भुत प्रदान की थी। उनमें भी श्यामल होते हुये भी राम के सौन्दर्य की तो कोई उपमा ही नहीं थी। पुष्ट-गुदगुदा शरीर, अपनी वय के अनुसार श्रेष्ठ लम्बाई, सदैव आसपास की प्रत्येक वस्तु को पूरी तरह समझने को तत्पर्य आँखें। उसकी चंचलता में भी अद्भुत सौम्यता थी जो किसी ने और कहीं देखी ही नहीं थी। राम की सौम्यता के…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 21, 2016 at 10:57am — 2 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 27, 28

कल से आगे ...........

27

मंगला के वेद भइया आ गये थे।

उनके आते ही मंगला जुगत में लग गई कि कैसे अपना सवाल उनके सामने रखा जाये। उन्हें तो भीतर अंतःपुर में आने का अवकाश ही नहीं मिलता था। भाइयों से करने को अनेक बातें थीं, मित्रों से मिलना था, उनके साथ कभी न समाप्त होने वाले असंख्य संस्मरण साझा करने थे और भी जाने क्या-क्या था करने को। बस इसी सब में लगे रहते थे। उन्हें…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 21, 2016 at 10:30am — 2 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 26

कल से आगे ........

सुमाली और वज्रमुष्टि आज दक्षिण की ओर भ्रमण पर निकल पड़े थे। सुमाली अपने विशेष अभियानों में अधिकांशतः वज्रमुष्टि को ही अपने साथ लेकर निकलता था। वह उसके पुत्रों और भ्रातृजों में सबसे बड़ा भी था और उसकी सोच भी सुमाली से मिलती थी।



तीव्र अश्वों पर भी दक्षिण समुद्र तट तक पहुँचने में पूरा दिन लग गया था। इन लोगों ने मुँह अँधेरे यात्रा आरंभ की थी और अब दिन ढलने के करीब था। रावण प्रहस्त से सर्वाधिक संतुष्ट था इसलिये वह सदैव उसी के साथ रहता था। अक्सर…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 20, 2016 at 9:47am — 4 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 24, 25

कल से आगे ...........

-24-

‘‘प्रिये लंका में आपका स्वागत है।’’ रावण ने कक्ष में प्रवेश करते हुये कहा।

मंदोदरी पर्यंक से उठकर खड़ी हो गयी और उसने आगे बढ़कर झुककर रावण के चरणों में अपना मस्तक रख दिया।

‘‘अरे ! यह क्या करती हैं ? आपका स्थान तो रावण के हृदय में है।’’ कहते हुये रावण ने उसे उठा कर अपने सीने से लगा लिया।

मंदोदरी ने भी पूर्ण समर्पण के साथ अपना सिर उसके विशाल वक्ष पर रख दिया।

यह तय हुआ था कि कुबेर के प्रस्थान से…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 19, 2016 at 9:54am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 23

कल से आगे ...



‘‘महर्षि प्रणाम स्वीकार करें।’’ महर्षि अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश करते हुये इंद्र ने कहा।

‘‘देवेंद्र को क्या आशीर्वाद दूँ मैं ?’’ अगस्त्य ने हँसते हुये कहा ‘‘देवेन्द्र के सौभाग्य से तो सारा विश्व पहले ही ईष्र्या करता है।’’

‘‘क्या गजब करते हैं मुनिवर ! इस समय तो इंद्र को आपके आशीर्वाद की सर्वाधिक आवश्यकता है। इस समय यह कृपणता, दया करें, इस समय भरपूर आशीर्वाद दें।’’

‘‘ महर्षि गौतम के साथ ऐसा घात करने के बाद भी जो विश्व में पूजनीय है भला उसे अगस्त्य के…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 18, 2016 at 9:00am — 3 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 22

कल से आगे ........



समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा।



महाराज दशरथ पिता बन गये। बड़ी रानी कौशल्या ने पुत्र को जन्म दिया। दशरथ का मन खुशी से नाचने लगा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपना उल्लास कैसे व्यक्त करें। उनका बस चलता तो वे मुकुट आदि सारे राजकीय आडम्बरों को एक ओर रखकर नाचते, गाते, चिल्लाते अयोध्या की सड़कों पर निकल जाते और एक-एक आदमी को पकड़ कर उसे यह शुुभ समाचार सुनाते। पर हाय री पद की मर्यादा ! वे ऐसा नहीं कर सकते थे। फिर भी अयोध्या का कोष खोल दिया गया था। पूरी पुरी…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 17, 2016 at 10:26am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 21

कल से आगे ........



जैसी की सुमाली को अपेक्षा थी, पिता विश्रवा का निर्णय रावण के पक्ष में आया था।

दूसरे दिन प्रातः ही यह पूरा कुटुम्ब कुबेर के साथ पुष्पक में बैठकर विश्रवा के पास गया था। उन्होंने पूरी बात समझी और बोले- ‘‘मैं दोनों से पृथक-पृथक एकान्त में बात करना चाहता हूँ।’’

पहले रावण से बात हुई। विश्रवा ने उसे तभी देखा था जब वह दुधमुहाँ बच्चा था। आज उसको इस पूर्ण विकसित अवस्था में देख कर उन्हें प्रसन्नता हुई। उसे स्नेह से सीने से लगा लिया। फिर वे धीरे से विषय पर आये…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 16, 2016 at 10:23am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 20

कल से आगे .........



महाराज दशरथ राजसभा की औपचारिक परम्परा के बाद सभा कक्ष में बैठे हुये थे। सभा में कुछ नहीं हुआ था, बस सबने देवर्षि द्वारा किये गये भविष्य कथन पर हर्ष व्यक्त किया था, सदैव की भांति चाटुकारिता की थी। इसी में बहुत समय व्यतीत हो गया था। सारे सभासद यह दर्शाना चाहते थे कि वे ही सबसे अधिक शुभेच्छु है महाराज के, वे ही सबसे बड़े स्वामिभक्त हैं। यह किस्सा नित्य का था। चाटुकारिता सभासदों की नसों में लहू से अधिक बहती थी। महाराज भी इससे परिचित थे किंतु उन्हें इसमें आनन्द…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 15, 2016 at 8:58am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 19

कल से आगे .....

‘‘बाबा मैं भी गुरुकुल जाऊँगी।’’ आठ साल की मंगला पिता की पीठ पर लदी, उसके गले में हाथ पिरोये लड़िया कर बोली। मंगला का पिता मणिभद्र अवध का एक श्रेष्ठी (सेठ) है। उसकी अनाज की ठीक-ठाक सी आढ़त है। बहुत बढ़िया तो नहीं फिर भी अच्छा खासा चल रहा है उनका धंधा। मंगला उसकी दुलारी पुत्री है। दुलारी हो भी क्यों न, आखिर पाँच पुत्रों के बाद तमाम देवी-देवताओं की मनौती के बाद मंगला प्राप्त हुई है।



सेठ बाजार में अपनी गद्दी पर बैठे हिसाब-किताब में मगन थे। मंगला की बात…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 14, 2016 at 9:00am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 18

कल से आगे ...

देवर्षि नारद तो पर्यटन के पर्याय ही माने जाते हैं किंतु उनका यह पर्यटन निष्प्रयोजन कभी नहीं होता। प्रत्येक यात्रा के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है।



इस बार वे अयोध्या आये थे। उनके आते ही मंथरा को उनके आगमन की सूचना मिल गयी। वे महारानी कैकेयी के कक्ष में ही गये थे, जहाँ महाराज विश्राम कर रहे थे। देवर्षि का स्वभाव मंथरा जानती थी इसलिये उसके जिज्ञासु हृदय में उथल-पुथल मचने लगी। विवशता थी कि महाराज की उपस्थिति में वह बिना बुलाये कक्ष में प्रवेश…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 13, 2016 at 5:25pm — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 17

पूर्व से आगे ....

देवर्षि की योजना अंततः इंद्र की समझ में आ गयी।

देवों ने उसके अनुरूप कार्य करना भी आरंभ कर दिया।

योजना यह थी कि देव, लोकपाल, यक्ष, नाग आदि रावण का नाश नहीं कर सकते क्योंकि पितामह ब्रह्मा ने इनके विरुद्ध रावण को अभय दिया हुआ है। उसके नाश का कार्य मानवों द्वारा ही सम्पादित हो सकता है और आर्यावर्त के मानवों में उससे युद्ध के प्रति उत्साह नहीं है। अतः योजना यह थी कि बिना इस बात की प्रतीक्षा किये कि रावण कब स्वर्ग पर आक्रमण किये अभी से दक्षिणावर्त के वनवासियों को…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 12, 2016 at 10:33am — 1 Comment

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