For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Samar kabeer's Blog (106)

ग़ज़ल

आशिक़ों की आँखो का रुख़ बदलने लगता है

जब किसी जवानी का चाँद ढलने लगता है



इब्तिदा ख़ुशामद से इल्तिजा से होती है

और फिर ये होता है,नाम चलने लगता है



सब्र की नसीहत भी काम कुछ नहीं करती

जब किसी की चाहत में दिल मचलने लगता है



हमने दिल को ले जाकर उस जगह पे रख्खा है

जिस जगह पे ख़्वाहिश का दम निकलने लगता है



जब भी मैं अंधेरों से हमकलाम होता हूँ

इक चराग़ सा मेरे दिल में जलने लगता है



आख़िरत के बारे में जब भी सोचता हूँ मैं

रूह… Continue

Added by Samar kabeer on February 15, 2015 at 10:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल

इक ग़रीब औरत की बेबसी का क़िस्सा है

सादगी समझते हो, सादगी का क़िस्सा है



मैं सुना रहा हूँ और आप मुस्कुराते हैं

थोड़ा सोचकर देखें आप ही का क़िस्सा है



एक था सख़ी हातिम ये वही रिवायत है

मेरे मोहतरम महमाँ ये उसी का क़िस्सा है



एटमी धमाकों का इन पे क्या असर होगा

अब भी इनके मकतब में जलपरी का क़िस्सा है



बुलबुलों के होटों पर गुलशनों की बातें हैं

आदमी के होटों पर आदमी का क़िस्सा है



रोज़ ही वो सुनते थे, पूछ ही लिया इक दिन

किस हसीं… Continue

Added by Samar kabeer on February 10, 2015 at 10:42pm — 11 Comments

ग़ज़ल

समझ कर भी ये कुछ समझा नहीं है

ख़ुदा से आदमी डरता नहीं है



हमें हक़ के लिये लड़ना पड़ेगा

ये मौक़ा हाथ मलने का नहीं है



शराफ़त की दुहाई देने वालों

मुक़ाबिल इतना शाइस्ता नहीं है



ये आवाज़ों का जंगल है यहाँ पर

कोई फ़न्कार की सुनता नहीं है



नज़र के सामने रहता है लेकिन

कभी हमने उसे देखा नहीं है



ये दुनिया है संभल कर पाँव रखना

तुम्हारे घर का बाग़ीचा नहीं है



मैं अपनी क़ब्र में लेटा हुवा हूँ

मुझे अब कोई अन्देशा नहीं… Continue

Added by Samar kabeer on February 7, 2015 at 3:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल

सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी औस के क़तरों से बुझा लते हैं

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं

------ समर कबीर

मौलिक / अप्रकशित

Added by Samar kabeer on February 2, 2015 at 4:04pm — 17 Comments

ग़ज़ल

फंस गया चुंगल में जब शैतान के
हौसले बढने लगे इंसान के

तुमसे ये लग़ज़िश न हो जाए कहीं
हम बहुत पछताए दिल की मान के

उन से कह दो छोड़ दें भारत मिरा
लोग जो हामी हैं पाकिस्तान के

आप क्यूं ज़हमत उठाते हैं जनाब
ख़ुद ही दुश्मन हैं हम अपनी जान के

फ़िक्र उक़्बा की न दुनिया का ख़याल
सो गए ग़फ़लत की चादर तान के

बरकतें होने लगीं नाज़िल "समर"
पाँव घर में क्या पड़े महमान के

समर कबीर /मौलिक रचना अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on January 25, 2015 at 6:12pm — 19 Comments

ग़ज़ल

कर नहीं सकता मैं करतब क्या करूं

हो गई ताज़ा ग़ज़ल अब क्या करूं

कोई न पूछे तो लब ख़ामोश हैं

ओर जो कोई पूछ ले तब क्या करूं

तेरी ना एहली पे जब उठठे सवाल

मेरे कहने का है मतलब क्या करूं

फिर जिहालत का अंधेरा छा गया

तू ही बतलादे मिरे रब क्या करूं

अपनी मरज़ी से तो जी सकता नहीं

मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करूं

आख़िरत में सुर्ख़रू करना मुझे

लेके इस दुनिया का मनसब क्या…

Continue

Added by Samar kabeer on January 21, 2015 at 2:00pm — 21 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
21 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service