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Samar kabeer's Blog (105)

ग़ज़ल :- जन्नत में हर इक चीज़ है,दुनिया तो नहीं है

इक बात है यारों कोई शिकवा तो नहीं है

जन्नत में हर इक चीज़ है दुनिया तो नहीं है



हूँ लाख गुनहगार मगर ऐ मेरे मौला

सर मैंने कहीं और झुकाया तो नहीं है



मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा

दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है



वो आज अयादत के लिये आए हैं मेरी

जो देख रहा हूँ कहीं सपना तो नहीं है



करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा

इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है



सर मैं भी झुकाता हूँ तेरे सामने लेकिन

सजदा मेरा,शब्बीर… Continue

Added by Samar kabeer on November 28, 2015 at 11:48pm — 16 Comments

विरह गीत (एक प्रयास)

बरसा है कैसे आँख का सावन,कैसे हुई बरसात रे साथी...........कैसे हुई बरसात

चिट्ठी में लिख दी है मैंने अपने मन की बात रे साथी..........अपने मन की बात





दिन भी गुज़रता गुमसुम गुमसुम,रात भी तारे गिनते

तेरे विरह में हम को मिले जो घाव वो सारे गिनते

तुझ को पुकारे आँख का कजरा,मेंहदी वाले हाथ रे साथी.........मेंहदी वाले हाथ





मेज़ पे रक्खी तेरी छाया,तेरी याद दिलाए

मैं जिस ओर भी देखूँ साथी,तेरी छवी लहराए

हर पल तेरी याद दिलाऐं,बीते हुए लम्हात रे… Continue

Added by Samar kabeer on November 10, 2015 at 10:13pm — 2 Comments

ग़ज़ल :- ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था

वो इक जुनून जो उस वक़्त मेरे सर में था



हर एक शख़्स खिंचा जा रहा था तेरी तरफ़

न जाने कौन सा जादू तिरी नज़र में था



कभी कभी मुझे उसकी भी याद आती है

सफ़ेद बिल्ली का बच्चा जो अपने घर में था



इसी सबब से परेशान थे मेरे दुश्मन

क़बीला सारा मेरी बात के असर में था



सुनाई देतीं भी कैसे ग़रीब की चीख़ें

तुम्हारा ध्यान तो उस वक़्त माल-ओ-ज़र में था



उड़ान भरते रहे… Continue

Added by Samar kabeer on October 25, 2015 at 10:53pm — 17 Comments

तरही ग़ज़ल नं-3 "मुसहफ़ी" की ज़मीन में

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



बयाँ कैसे करूँ क्या उसकी अंगड़ाई का आलम था

तसव्वुर में न आए ऐसा ज़ैबाई का आलम था



बस इक नुक्ते प आकर रुक गई थी ज़िन्दगी मेरी

न वो वहशत का आलम था न दानाई का आलम था



कोई सुनता भी कैसे एक शाइर की सदा भाई

वतन में हर तरफ़ हंगामा आराई का आलम था



अँधेरे में गिरी सुई भी हम तो ढूँढ लेते थे

जवानी में तो कुछ ऐसा ही बीनाई का आलम था



ग़ज़ल कहने का मौक़ा ख़ूब हम को मिल गया यारों

नहीं था घर में कोई सिर्फ़ तन्हाई… Continue

Added by Samar kabeer on October 16, 2015 at 11:25pm — 12 Comments

ग़ज़ल :- अब तो माँ भी नहीं दुआ के लिये

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान



तोड़ क्या लाऊँ इस बला के लिये

अब तो माँ भी नहीं दुआ के लिये



रह्म शैताँ के पास मिलता नहीं

ये सिफ़त है फ़क़त ख़ुदा के लिये



जान से हाथ धोना पड़ते हैं

बस ये इनआम है वफ़ा के लिये



हक़ अदा कर दिया मुहब्बत का

क्या सज़ा देंगे इस ख़ता के लिये



सब उसे तोता चश्म कहते हैं

है वो मशहूर इस अदा के लिये



मुश्किलें मेरी दूर कर देना

कोई मुश्किल नहीं ख़ुदा के लिये



क़त्ल का मेरे फ़ैसला ये… Continue

Added by Samar kabeer on October 3, 2015 at 11:41pm — 13 Comments

ग़ज़ल :- जान के दावेदार थे सदमे

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़ाइलुन/फ़ेलान



जान के दावेदार थे सदमे

मै अकेला, हज़ार थे सदमे



इस क़दर पाइदार थे सदमे

मेरे हमदम थे,यार थे सदमे



मेरे दिल में मुक़ीम हैं अब तो

कल तलक बे दियार थे सदमे



कोई भी बच नहीं सका इन से

सब के दिल पर सवार थे सदमे



कोई तामीरी काम , नामुम्किन

सारे तख़रीब कार थे सदमे



'मीर'-ओ-'ग़ालिब' के बाद दुनिया में

सिर्फ मेरे ही यार थे सदमे



सोच ने मेरी इनको जन्म दिया

ज़ह्न का ख़लफ़िशार… Continue

Added by Samar kabeer on September 27, 2015 at 2:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल :- मगर वो साज़िशें करता रहेगा

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

नज़र पे जब तलक पर्दा रहेगा
तुम्हारा अक्स भी धुंदला रहेगा

मैं ज़ख़्मों की तिजारत कर रहा हूँ
बताओ फ़ायदा कितना रहेगा

वो सरगोशी में बातें कर रहा है
जो देखेगा उसे ख़दशा रहेगा

मिलेंगे हम मगर ये शर्त होगी
हमारे दरमियाँ पर्दा रहेगा

वहाँ मेरी ख़मोशी काम देगी
वो अपनी आग में जलता रहेगा

"समर" ,मालूम है अंजाम उसको
मगर वो साज़िशें करता रहेगा

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on September 21, 2015 at 11:15pm — 21 Comments

ग़ज़ल :- थक गया मैं

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



समझा समझा कर हरजाई थक गया मैं

दुनिया फिर भी समझ न पाई थक गया मैं



मेरे घर में पाँव न रक्खा ख़ुशियों ने

बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं



पूरा करते करते सात सवालों को

कहता है अब हातिम ताई थक गया मैं



जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते

करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं



मेरी बुराई करते करते आज तलक

थक न पाई सारी ख़ुदाई थक गया मैं



मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया

दरवाज़े पर लिख दो भाई थक… Continue

Added by Samar kabeer on September 4, 2015 at 10:00pm — 23 Comments

ग़ज़ल :- अपनी बहना के नाम एक ग़ज़ल

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन


अपनी बहना के नाम एक ग़ज़ल
मेरी चाहत का है ये चेक ग़ज़ल

पाक जज़्बात इसमें शामिल हैं
इसलिये कह रहा हूँ नेक ग़ज़ल

एक शाइर की दोनों औलादें
एक व्हाइट है इक ब्लेक ग़ज़ल

इसके जादू से कौन बच पाया
सबके दिल पर करे अटेक ग़ज़ल

ग़म के मारों को मिल रहा है सुकूँ
दर्द पर कर रही है सेक ग़ज़ल

है गुज़ारिश, "समर" सुनाओ हमें
डायरी में करो न पेक ग़ज़ल

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on August 28, 2015 at 10:46pm — 9 Comments

ग़ज़ल :- महल के सामने मिट्टी का घर अच्छा नहीं लगता

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



सभी कहते हैं मुझको भी 'समर' अच्छा नहीं लगता

महल के सामने मिट्टी का घर अच्छा नहीं लगता



ख़ुदा का दीन सबको अम्न का पैग़ाम देता है

हो बे अमनी ख़ुदा के नाम पर अच्छा नहीं लगता



जो हैं नादान वो इसके लिये लड़ते हैं आपस में

जो दाना हैं उन्हें ये माल-ओ-ज़र अच्छा नहीं लगता



मेरी इस बात की यारों दलील-ए-मुस्तनद ये है

वो मेरे साथ क्यों होते अगर अच्छा नहीं लगता



शरारत और शौख़ी ही भली मालूम होती है

किसी भी… Continue

Added by Samar kabeer on August 25, 2015 at 5:18pm — 19 Comments

ग़ज़ल :- जो समझा आपने ऐसा नहीं मैं

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन



जो समझा आपने ऐसा नहीं मैं

मुसलमाँ हूँ ,मगर सच्चा नहीं मैं



मैं सच हूँ,और हमेशा सच रहूँगा

किसी भी झूट से डरता नहीं मैं



दुआओं से मुझे फ़ुर्सत नहीं थी

तुम्हारी याद में रोया नहीं मैं



कटी ऐसे ही सारी रात यारों

वो बहलाते रहे ,बहला नहीं मैं



मुझे तो आब-ए-कौसर की तलब है

तिरे दरियाओं का प्यासा नहीं मैं



मिरा "मसरूर" अक्सर बोलता है

बड़ा समझो मुझे बच्चा नहीं मैं



"समर… Continue

Added by Samar kabeer on August 17, 2015 at 10:48pm — 19 Comments

ग़ज़ल :- मैं शर्मिंदा नहीं अपने किये पर

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन



भले लिख दो,मिरा ग़म हाशिये पर

मैं शर्मिंदा नहीं अपने किये पर



अँधेरा इस क़दर फैला हुवा था

नज़र सबकी थी छोटे से दिये पर



मिरा कुछ बोझ हल्का हो गया है

मिरे बच्चों ने भी अब ले लिये पर



तुम्हारे हुस्न पर मिसरा लिखा था

कई शर्तें लगी थीं क़ाफ़िये पर



मिरी ग़ज़लो प सर धुंते हैं अपना

ये देंगे दाद मेरे मर्सिये पर



सभी शाइर समझ बैठे हैं उसको

किसी को शक नहीं बहरूपिये पर



"समर",ये लफ़्ज़ बे… Continue

Added by Samar kabeer on August 10, 2015 at 11:15pm — 15 Comments

तरही ग़ज़ल

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन



सब छोड़ छाड़ हम्द-ओ-सना में लगा रहा

आफ़त पड़ी जो सर प दुआ में लगा रहा



अब उससे नेकियों की तवक़्क़ो फ़ुज़ूल है

जो सारी उम्र जुर्म-ओ-सज़ा में लगा रहा



सीने में अपने झाँक के देखा नहीं कभी

हर सम्त वो तलाश-ए-ख़ुदा में लगा रहा



हिम्मत थी जिसमें ,छीन लिया बढ़ के अपना हक़

मजबूर था जो आह-ओ--बुका में लगा रहा



अच्छाई उसको छू के भी गुज़री नहीं कभी

उसका दिमाग़ सिर्फ़ ख़ता में लगा रहा



मैंने तो जान बूझ के धोया…

Continue

Added by Samar kabeer on August 5, 2015 at 11:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल :- "ग़ालिब" से माज़रत के साथ

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



इस तरफ़ भूल कर नहीं आती

ये ख़ुशी मेरे घर नहीं आती



आप रूठे हुए हैं जिस दिन से

"कोई उम्मीद बर नहीं आती"



बच निकलने की,ज़िन्दगी तुझसे

"कोई सूरत नज़र नहीं आती"



"मौत का एक दिन मुअय्यन है"

वक़्त से पैशतर नहीं आती



दिन में सोते हैं और पूछते हैं ?

"नींद क्यूँ रात भर नहीं आती"



देख लेती थी जो पस-ए-दीवार

वो नज़र,अब नज़र नहीं आती



"काबा किस मुंह से जाओगे",बोलो

शर्म तुमको "समर"… Continue

Added by Samar kabeer on July 29, 2015 at 9:38pm — 10 Comments

ग़ज़ल :- वाक़ई,ये ज़िन्दगी जंजाल है

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन



क्या कहूँ तुमसे,ये मेरा हाल है

ख़ाली तर्कश,हाथ में इक ढाल है



रिश्तेदारों का ये इक जम्मे ग़फ़ीर

वाक़ई, ये ज़िन्दगी जंजाल है



क्यूँ रहे,इतनी ख़बर भी आप को

क्या महीना,कौन सा ये साल है



लग गई है उसको बीमारी अजीब

पास दौलत है मगर कंगाल है



न कोई तालीम है,न तरबियत

ये तो बस तहज़ीब का नक़्क़ाल है



जानवर की खाल दे देते हैं बस

और फिर ख़ाली,ये बैतुलमाल है



कुछ का कुछ आने लगा इसमें… Continue

Added by Samar kabeer on July 26, 2015 at 11:34pm — 16 Comments

ग़ज़ल :- ईद उससे कोई मिला ही नहीं

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन /फ़ेलान





आके इसमें कोई रुका ही नहीं

दश्त-ए-दिल में कोई सदा ही नहीं



आँख कहती है दूर है वो बहुत

दिल ये कहता है फ़ासला ही नहीं



जिसमें ख़तरा हो हार जाने का

खेल मैं ऐसे खेलता ही नहीं



ये तो मैदान-ए-हश्र है भाई

याँ, कोई झूट बोलता ही नहीं



दर्द-ए-दिल का इलाज ढूँढते हो

दर्द-ए-दिल की कोई दवा ही नहीं





सबके मुंह देखता रहा वो ग़रीब

ईद उससे कोई मिला ही नहीं



मेरा अपना… Continue

Added by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:06pm — 17 Comments

एक ग़ज़ल ग़ालिब की ज़मीन में

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन



एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा

दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा



यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन

मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा



ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी

तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा



मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर

उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा



उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे

इस लिये मैंने मियाँ शैर…

Continue

Added by Samar kabeer on June 17, 2015 at 7:00pm — 31 Comments

ग़ज़ल :- आज जिस रंग में ढालोगे मैं ढल जाऊँगा

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन



आज जिस रंग में ढालोगे मैं ढल जाऊँगा

दैर कर दोगे तो हाथों से निकल जाऊँगा



एक हालत में यहाँ कौन रहा है,मैं भी

जैसे हर चीज़ बदलती है,बदल जाऊँगा



ऐसे ही बनते हैं,दुनिया में मिसाली किरदार

मैं भी फूलों की तरह काँटों में पल जाऊँगा



मोम या बर्फ़ के जैसा नहीं,पर जानता हूँ

मैं तिरे जिस्म की गर्मी से पिघल जाऊँगा



मैं तो इक ख़ाक का पुतला हूँ,तू मिस्ल-ए-ख़ुर्शीद

पास आऊँगा अगर तेरे तो जल… Continue

Added by Samar kabeer on June 14, 2015 at 10:57am — 32 Comments

मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन/फ़ाइलान





मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं



दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर

किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं



उर्यानियत के खेल इन्हें भी पसंद हैं

ख़ामोश हैं ये एहल-ए-नज़र देखते नहीं



वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कल

ये और बात है कि इधर देखते नहीं



अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा

अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं



कुछ देर… Continue

Added by Samar kabeer on June 8, 2015 at 11:09am — 36 Comments

ग़ज़ल :- तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन





तनाबें सब उखड़ गईं तुम्हारे एतबार की

हमें न अब सुनाइये कहानियाँ बहार की



फ़क़ीर की,न शाह की,न जोहरी ,सुनार की

यहाँ पे बात कर रहा हूँ मैं तो सिर्फ़ प्यार की



ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा

हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की



चढ़े दिमाग़ पर तो फिर कभी न वो उतर सके

मुझे तलाश है जनाब-ए-मन उसी ख़ुमार की



नदी किनारे झाड़ियों में छुप के बैठता है वो

सताए उसको भूक जब तलब लगे शिकार… Continue

Added by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:04pm — 25 Comments

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