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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog – March 2013 Archive (3)

ग़ज़ल : सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे

बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

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जिस घड़ी बाजू मेरे चप्पू नज़र आने लगे

झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे

 

झुक गये हम क्या जरा सा जिंदगी के बोझ से

लाट साहब को निरा टट्टू नज़र आने…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 31, 2013 at 11:32am — 18 Comments

ग़ज़ल : अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

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भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

 

यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला

आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है

 

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है

 

तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ

लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है

 

थाम लेती है…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2013 at 12:14am — 8 Comments

ग़ज़ल : तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

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करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा

तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा

 

सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई

है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 6, 2013 at 11:52pm — 17 Comments

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