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Sarita Bhatia's Blog – March 2014 Archive (12)

खेला नया हर पल ही रचाती है जिन्दगी |

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पल में रुलाती पल में हँसाती है जिन्दगी

खेला नया हर पल ही रचाती है जिन्दगी |



ऐ नौजवानों देश के इतिहास अब रचो

हर रोज ही इक पाठ सिखाती है जिन्दगी | 



टूटे हैं जो विश्वास कहीं आइने से अब

फिर रोज क्यों विश्वास दिलाती है जिन्दगी ?



गुलशन कभी पतझड़ कभी मेरी है बगिया में

कैसे कहाँ क्या रंग दिखाती है जिन्दगी |



जब भी विचारों में घुली हैं रंजिशें यहाँ

ऐसे विचारों से जहर पिलाती है…

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Added by Sarita Bhatia on March 25, 2014 at 10:30am — 14 Comments

मौसमी दोहे

मौसम हुआ सुहावना ,उपवन उपवन नूर

ग्लोबल वार्मिंग का असर अब गर्मी है दूर |



समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात

सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |



पारा बढ़ता जा रहा लेकिन बढ़ी न प्यास

फागुन के अब मास में श्रावण का अहसास |



फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल

वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |



मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल

सेहत के खजाने को रखना सब संभाल…

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Added by Sarita Bhatia on March 24, 2014 at 10:23am — 10 Comments

रिश्ते [कुण्डलिया]

रिश्ते बनते प्यार से, मत करना तकरार
खुशियाँ बसती हैं यहाँ, चहक उठें परिवार /
चहक उठें परिवार, सभी जो मिलझुल रहते
मुश्किल करते दूर ,सुख दुःख मिलकर सहते
सुदृढ बने परिवार ,तो बसें वहाँ फरिश्ते
तनिक न रहे खटास ,बनाना ऐसे रिश्ते //

........................................................

.............मौलिक व अप्रकाशित................

Added by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 9:38am — 8 Comments

अपने [कुण्डलिया]

अपने आँसू दे गए ,किया हमें बेहाल
नया साल लाये नई खुशियाँ करें कमाल /
खुशियाँ करें कमाल, दूर हों उलझन सारी
छाए नया बसंत, खिले अब बगिया न्यारी
सरिता करे गुहार, पूरे हों सभी सपने
करना रक्षा ईश ,बिछुड़े नहीं अब अपने//

...................................................

...........मौलिक व अप्रकाशित.............

Added by Sarita Bhatia on March 20, 2014 at 10:30am — 12 Comments

अकेलापन [कुण्डलिया

बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात /
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //

.........................................................

..................मौलिक व अप्रकाशित .............

Added by Sarita Bhatia on March 18, 2014 at 10:03am — 9 Comments

चुनावी [कुण्डलिया]

वादे नेता कर रहे , चुनावी है पुलाव
बीते पाँचों साल के कौन भरेगा घाव
कौन भरेगा घाव समझना चालें इनकी
रोटी कपड़ा वास नहीं है बस में जिनकी
सरिता कहती भाँप नहीं हैं नेक इरादे
निर्वाचन कर सोच झूठ हैं इनके वादे

...........मौलिक व अप्रकाशित...........

Added by Sarita Bhatia on March 14, 2014 at 3:29pm — 4 Comments

महिला दिवस पर [कुण्डलिया]

सारी दुनिया कर रही अब तेरी पहचान
तू दुर्गा तू शक्ति है तेरा कर्म महान /
तेरा कर्म महान नहीं बनना तू अबला
खुद की कर पहचान हुई तू सक्षम सबला
पहचानो अधिकार करो शिक्षित हर नारी
होना कभी न मौन झुकेगी दुनिया सारी //

.........मौलिक व अप्रकाशित...........

Added by Sarita Bhatia on March 13, 2014 at 10:13am — 13 Comments

होली [कुण्डलिया]

होली के दिन सब मिलो लेकर सारे रंग
गाओ मिलकर फाग को सब यारों के संग /
सब यारों के संग धूम तुम खूब मचाओ
नीला पीला लाल हरा गुलाबी लगाओ
शिकवे सारे भूल चले आओ हमझोली

रंगों का त्योहार ,आ गया है अब होली //

.............मौलिक व अप्रकाशित............

Added by Sarita Bhatia on March 11, 2014 at 9:00am — 8 Comments

होली दोहावली



फाग मास की पूर्णिमा रंगों का त्योहार

सरसों खिलती खेत में फाल्गुन बाँटे प्यार /



पहला दिन है होलिका दूजा है धुरखेल

भारत औ' नेपाल में खेलें हैं यह खेल /

आओ यारो सब मिलो लेकर रंग गुलाल 

नीला पीला औ' हरा गुलाबी संग लाल /



सब करें होलिका दहन फिर लगाएं गुलाल

फाग से है धमार का मिला ताल से ताल /



काम महोत्सव तुम कहो या राग रंग पर्व

होली दिन है मेल का करते सारे गर्व /



आया है अब फाग जो रंगीन है फुहार

भूलो…

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Added by Sarita Bhatia on March 9, 2014 at 9:02pm — 10 Comments

अतुकांत

मुझे चिंता में डूबे देख

तुम दुहाई देते

जब तक मेरा हाथ है

तुम्हारे हाथ में

मेरी सांसें

तुम्हारी साँसों में महकती है

विश्वास है महत्वाकांक्षा के घोड़ों पर

जो हर बाधा पार कर लेंगे

जब तक हूँ मैं जीवित

तुम खुद को अकेला मत समझो

मैं हूँ ना हमेशा तुम्हारे साथ

तुम्हारा साया बनकर



वोही साया ढूढ़ती हूँ

चारों ओर

आठों पहर

शायद

साया खो गया है

मुझ में ही कहीं

जैसे दोपहर के सूर्य में

मेरी परिछाई

उसी से तो…

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Added by Sarita Bhatia on March 5, 2014 at 10:40am — 20 Comments

विधवा पेंशन

इन्दु अपने मंडल की पेंशन प्रमुख थी, किसी भी बुजुर्ग महिला या बहन को पेंशन लगवानी होती तो झट उससे संपर्क करतीं ....

अपने मोहल्ले की अपनी कॉलोनी की सभी महिलाओं की चाहे वो वृद्ध हो, विधवा हो या तलाकशुदा हो उसने बिना किसी अड़चन के पेंशन लगवा दी थी.

समय ने करवट ली, उसके पति का आकस्मिक देहांत हो गया ...

कुछ समय बीत जाने  पर उसकी एक ख़ास सहेली ने उसे सुझाव दिया ...

"भाभी आप ने पेंशन के लिए अपना फॉर्म भरवाया ?"

थोड़ा चुप रहकर फिर कहा ..

"यह तो सरकार दे रही है…

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Added by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:30pm — 19 Comments

पुष्प की पीड़ा

एक मासूम कली

भंवरे के स्पर्श से

खिल उठी

मुस्काई

हर्षाई

लिया पुष्प सा रूप

एक दिन

भंवरा उसका खो गया

पुष्प का हाल बुरा हो गया

उदास बेचैन पुष्प को चाहिए था

थोड़ा प्यार

थोड़ा दुलार

थोड़ी हंसी

थोड़ी हमदर्दी

जो ना मिल पाई



फिर एक दिन

आया एक भंवरा

जो उसके आसपास मंडराता

उसे तराने सुनाता

उसे खिलखिलाना सिखाता

पुष्प हुआ पुनर्जीवित

उसके प्यार से

दुलार से

पर

चिंतित…

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Added by Sarita Bhatia on March 1, 2014 at 9:30am — 16 Comments

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