आज आंखें नम हुईंं तो क्या हुआ
रो न पाए हम कभी अर्सा हुआ
आपबीती क्या सुनाऊंगा उसे
आज भी तो है गला बैठा हुआ
ढूंढता हूँ इक सितारे को यहाँ
दूर तक है आसमां फैला हुआ
क्यों क़रीने से रखें सामान को
घर को रहने दीजिये बिखरा हुआ
नींद पलकों पर कहीं ठहरी हुई
ख़्वाब आंखों में वहीं सहमा हुआ
जी रहा हूँ बस इसी उम्मीद से
लौट आएगा समय बीता हुआ
हादसे ऐसे भी तो होते रहे…
Added by सालिक गणवीर on April 6, 2020 at 8:29pm — 4 Comments
सुन रहे हैं कि वो इक ऐसी दवाई देगा
जिससे अंधे को भी रातों में दिखाई देगा
प्यार से उसने बुलाया है मुझे मक़्तल में
जानता हूँ मैं जो दावत में क़साई देगा
ऐसे चिल्लाओ कि आवाज़ वहाँ तक जाए
एक दिन तो सभी बहरों को सुनाई देगा
पास रहता हूँ तो मुंह फेर के चल देता है
दूर जाऊँगा तो आने की दुहाई देगा
क़ैदख़ाने में उसी ने ही रखा सालों तक
जिसने उम्मीद जताई थी रिहाई देगा
घुप अंधेरे से …
Added by सालिक गणवीर on April 1, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
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