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Gumnaam pithoragarhi's Blog (55)

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

2122 2122 212

जब हमें दिल का लगाना आ गया

राह में देखो ज़माना आ गया



ख़त तुम्हारा देखकर बोले सभी

खुशबू का झोंका सुहाना आ गया



इक पता लेके पता पूंछे चलो

बात करने का बहाना आ गया



नाम तेरा जपते जपते यूँ लगे

अब तुझे ही गुनगुनाना आ गया



ज़िन्दगी रफ़्तार में चलती रही

मौत बोली अब ठिकाना आ गया



बेरुखी ने ही दिखाया गई हमें

फूल पत्थर पर चढ़ाना आ गया



शख्स इक गुमनाम देखा बोले सब

शहर में…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on January 30, 2015 at 8:00am — 14 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २१२

वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं


फिर वही रोज जीने की जिद
जीस्त का पर पता ही नहीं


शहर है पागलों से भरा
इक दिवाना दिखा ही नहीं


पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं


खा गए थे सड़क हादसे
सारे घर को पता ही नहीं


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on January 26, 2015 at 8:30pm — 20 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

चादर झीनी देख कबीरा

मैली ओढ़ी देख कबीरा

जीना मरना सब साथ चले

काया साझी देख कबीरा

ईश भगत का रिश्ता ऐसा

भूखा रोटी देख कबीरा

ऊँच नीच का अंतर कैसा

काया माटी देख कबीरा

यम इक राजा मिलना चाहे

आत्मा रानी देख कबीरा

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

आपके सुझाओं व समालोचना की प्रतीक्षा में ......

Added by gumnaam pithoragarhi on January 23, 2015 at 7:29pm — 14 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २२


गम तुम्हारा नहीं होता
तो गुजारा नहीं होता


लूटते प्यासे ये सागर
गर ये खारा नहीं होता


मौत तेरे बुलावे से
अब किनारा नहीं होता


तेरी सौगात है वरना
जख्म प्यारा नहीं होता


है खुदा साथ जिसके वो
बेसहारा नहीं होता


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on January 19, 2015 at 8:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

212 212 22

ज़िन्दगी अपनी छोटी है

बस जरा सी ये खोटी है

हादसों को बुरा मत कह

यार  मेरा  लंगोटी  है

चाँद कहते महल वाले

झोपड़ी कहती रोटी है

इस सियासत की चौपड़ में

स्वार्थ की फैली गोटी है

झूठ की सत्य की देखो /p>

हो गई बोटी बोटी है

मौलिक व अप्रकाशित

 गुमनाम पिथौरागगढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on January 14, 2015 at 6:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२२१

ये अखबार

सच बीमार

कैसा धर्म

गो,तलवार

सच की राह

है दुश्वार

मरघट देगा

रिश्तेदार

आ ऐ मौत

कर उद्धार

जग गुमनाम

किसका यार

मौलिक व अप्रकाशित

आपकी समालोचना की प्रतीक्षा है

Added by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 11:53am — 12 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

2122

ज़िन्दगी है

बोझ सी है

इश्क तो अब

ख़ुदकुशी है

इक ग़ज़ल सी

तू हँसी है

अब ग़मों से

दोस्ती है

बुलबुले सी

ये ख़ुशी है

आफतों से

दोस्ती है

इक पहेली

ज़िन्दगी है

शोर गुमनाम

दिल में भी है

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on December 26, 2014 at 8:22am — 12 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२  २१२२ २१२

तुमने पुरखों की हवेली बेच दी

शान दुःख सुख की सहेली बेच दी

भूख दौलत की मिटाने के लिए

मौत को दुल्हन नवेली बेच दी

जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे

गाँव की राधा चमेली बेच दी

बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर

तुमने बच्चों  की हथेली बेच दी

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:57pm — 19 Comments

ग़ज़ल ................... गुमनाम पिथौरागढ़ी

१२२२  १२२२ १२

है उसकी याद बादल की तरह

भटकता हूँ मैं पागल की तरह

हवास व्यापार के नाले हैं यहाँ

मुहब्बत थी गंगाजल की तरह

ये जीवन हादसों का मलवा है

किसी बेवा के आँचल की तरह

हुई नाकाम कोशिश भूलने की

थी तेरी याद दल दल की तरह

है चुप का रूप गोया ताज हो

है उसकी बात कोयल की तरह

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on December 19, 2014 at 2:51pm — 8 Comments

ग़ज़ल ---------------------- गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२  २२ २२/१२१

रंगों की नादानी देखो

तेरी करें गुलामी देखो

चाँद धनुक गुलशन और हूर

तेरी रचें जवानी देखो

पहले आम की नई बौरें

यौवन से अनजानी देखो

जोग लगा दे जोग छुड़ा दे

सूरत एक सुहानी देखो

शेख बिरहमन करने लगे

रब से बेईमानी देखो

तुझको पूजूं या प्यार करू

ये अजब परेशानी देखो

तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा

कहके प्रेम कहानी…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on December 16, 2014 at 10:36am — 15 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२  २२  २२  २२

कैलेण्डर के सवालों से सहम जाता हूँ मैं

ईद दीवाली को जब नज़र मिलाता हूँ मैं

परदों से घर का हाल भला  लगता है

परदों से घर की मुफलिसी छुपाता  हूँ मैं

जीवन और गणित का हिसाब यार खरा है

जब आंसूं जुड़ता है हँसी घटाता हूँ मैं

मैं था काफिला था और सफ़र लम्बा

मन्जिल तक जाते तनहा रह जाता हूँ मैं

कोई मुझसे भी पूछे तू क्या चाहे गुमनाम

है प्यास  प्यार की ,प्यासा रह जाता हूँ…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 5:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं

कौन है जो नशे में चूर नहीं



लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम

हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं



आके मिल मुझसे बात भी कर अब

दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं



सब खुदा हो गए ये बाबा तो

संत जैसा किसी पे नूर नहीं



सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में

माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं



सब पुजारी हैं आज दौलत के

कोई तुलसी रहीम सूर नहीं



बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम

तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं



गुमनाम…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on December 5, 2014 at 6:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

22  22  22  22  2

टूटने लगे हैं घर शब्दों से

अब तो लगता है डर  शब्दों से



दैर हरम इक हो जाते लेकिन

पड़े दिलों पे पत्थर  शब्दों से



हैं मेरे हमराह ज़रा देखो

ग़ालिब ओ मीर ,ज़फ़र  शब्दों से



बनती बात बिगड़ने लगती है

ऐसे उठे बवण्डर  शब्दों से



फूल अमन के खिलते कैसे अब

दिल आज हुए बन्जर  शब्दों से



मेरी हस्ती गुमनाम -रहे पर 

छाऊँ सबके मन पर  शब्दों से



गुमनाम पिथौरागढ़ी



मौलिक व…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on November 19, 2014 at 8:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

ग़ज़ल

2122  1212  22

सब दुआ का असर है क्या कहिए

बेबसी दर ब दर है क्या कहिए



याद करके तुझे महकता हूँ

फूल का तू शज़र  है क्या कहिए



की जमा मैंने दौलतें ताउम्र

साथ आखिर सिफर है क्या कहिए



खत लिखे थे जिसे कभी तुमने

अब भी वो बेखबर है क्या कहिए



है सुकूं ये कि मैं भी जिन्दा हूँ

ज़िन्दगी मुख़्तसर है क्या कहिए



खार राहों के कह रहे गुमनाम

अब तेरा घर ही घर है क्या कहिए



गुमनाम पिथौरागढ़ी…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on November 14, 2014 at 6:43pm — 6 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

दिल ये मेरा फ़क़ीर होना चाहे

घर फूँके बिन कबीर होना चाहे

 

तकसीम मज़हबों में करके हमको

तू बस्ती का वज़ीर होना चाहे

 

किस्मत में न सही तू ,पर तेरे ही

हाथों की वो लकीर होना चाहे

 

माँ की बराबरी करना छोडो तुम

गो ,खिचड़ी आज खीर होना चाहे

 

शोख नज़र दिलनशी अदा ये रूखसार

देख तुझे दिल शरीर होना चाहे

 

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on November 10, 2014 at 7:00am — 5 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

बाप साँसे बस दो चार सँभाले हुए हैं

तब से बेटे बंगले कार सँभाले हुए हैं



जिसने रद्दी कुछ अखबार सँभाले हुए हैं

हाँ उन्ही बच्चों ने घरबार सँभाले हुए हैं



आशियाँ टूट चुका इश्क़ का फिर भी लेकिन

हम वफ़ा की इक दीवार सँभाले हुए हैं



शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो

आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं



मुल्क को लूट रहे जितने भी थे ख़ैरख़्वाह

मुल्क को कुछ ही वफादार सँभाले हुए हैं



आपदा के जितने पीड़ित थे उनको बस

सुर्ख़ियों में…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on November 6, 2014 at 1:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

याद तेरी है कोई दल दल क्या
डूबता जाता हूँ मैं ;पल पल क्या

हर क़दम पे मिले फ़ना आशिक़
है तुम्हारी गली भी मक़्तल क्या

हो गए चूर सपने बच्चों के
खा गई बाप को ये बोतल क्या

सच ओ ईमाँ की बात करता है
उसको कहता जहां ये पागल क्या

ढूंढ ही लेते हैं मुझे ये ज़ख़्म
ज़ख़्म भी बन गए है गूगल क्या

मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on October 27, 2014 at 8:20pm — 12 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२१ २१२१ १२२१ २१२

तुम मेरे नाम की पहचान बन गए
मेरे लिए ख़ुदा रब भगवान बन गए

दहशत के कारबार का सामान बन गए
लगता है सारे लोग ही हैवान बन गए

तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए

हालात आज शहर के अब देखिये ज़रा
हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए

ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए

मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on September 21, 2014 at 12:40pm — 8 Comments

ग़ज़ल,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२ २१२ २१२ २१२

हो रहा है मुझे ये वहम देखिये

आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये

आधुनिकता के ऐसे नशे में हैं गुम

नौजवानों के बहके क़दम देखिये

पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ

आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये

शहर लगता है शमशान सा इन दिनों

आस्तीनों में किसके है बम देखिये

नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार

महके उस रोज से ही क़लम देखिये

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on September 12, 2014 at 8:27am — 11 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

1222 1222

बुजुर्गों की कमाई में
थी बरकत पाई पाई में

न दुख है ना परेशानी
ख़ुदा से आशनाई में

दिवारों को बना दे घर
हुनर है वो लुगाई में

जहां में पाठ निकले झूठ
थे शामिल जो पढ़ाई में

हम आके शहर पछताए
लुटे हम तो दवाई में

रहे ना जिस्मो जां साबुत
उसूलों की लड़ाई में

ज़मी ज़र जोरू की खातिर
दिवारें भाई भाई में

तू भी गुमनाम दूरी रख
मिले ना कुछ भलाई में

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2014 at 4:27pm — 7 Comments

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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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