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नाथ सोनांचली's Blog (117)

सपना (हास्य व्यंग्य)

क्या दिन थे आनन्द भरे वे, हरपल रहता था उल्लास|

आगे जीवन ऊबड़ खाबड़, तनिक न था इसका आभास||

बीबी बच्चों के चक्कर में, स्वप्न हुए अब तो इतिहास|

आफत आन पड़ी है मुझपर, दोस्त उड़ाते हैं उपहास||



कभी उड़ा था नील गगन में, मैं भी अपने पंख पसार|

पंख लगाकर समय उड़ा वो, हुआ बिना पर मैं लाचार||

जीवन अपना शुष्क धरा सा, मस्ती का उजड़ा संसार|

ऐसा चिर पतझड़ आएगा, कभी नहीं था किया विचार||



जाने कौन घड़ी थी वो भी, जब शादी का किया ख़याल|

किस्मत ऐसी फूटी भइया,… Continue

Added by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 7:30pm — 18 Comments

दबी हर बात जिंदा क्यूँ करें हम (ग़ज़ल)

बह्र -मुफाईलुन मुफाईलुन फ़ऊलुन



तुम्हारा राज़ इफ़शा क्यूँ करें हम|

दबी हर बात जिन्दा क्यूँ करें हम||



न हो जो भाग्य को यारों गवारा,

फिर उसकी ही तमन्ना क्यूँ करें हम||



जगाती दर्द हो जो बात दिल में,

उसी का रोज चर्चा क्यूँ करें हम||



लगा दे आग जो सारे जहाँ में ,

कोई भी ऐसी रचना क्यूँ करें हम||



जिसे करके रहे अफ़सोस मन में,

कोई भी काम ऐसा क्यूँ करें हम||



बहन माँ बेटियाँ तुहफ़ा ख़ुदा का,

उन्ही पे कोई हिंसा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 8:00am — 27 Comments

तरही ग़ज़ल (है अजब चीज मुहब्बत मुझे मालूम न था)

ख़ुद से हो जाएगी नफरत मुझे मालूम न था

है अजब चीज़ मुहब्बत, मुझे मालूम न था ||



गम से हो जायेगी उल्फ़त मुझे मालूम न था

ऐसी होगी मेरी क़िस्मत मुझे मालूम न था ||



दूध में कोई नहाये कोई भूखा ही रहे

ऐसे होती है सियासत मुझे मालूम न था ||



ख़्वाब में रोज़ ही मिलते थे मग़र, यार मेरे

ख़्वाब होगा ये हक़ीक़त मुझे मालूम न था ||



वहम इक पाल लिया था मेरे दिल ने यूँ ही

थी उसे हँसने की आदत मुझे मालूम न था ||



यार कहता था ग़ज़ल वक़्त… Continue

Added by नाथ सोनांचली on September 4, 2017 at 1:44pm — 20 Comments

गुरु (लघुकथा)

बस खचाखच भरी हुई थी। चुकि मैं पहले आ गया था, इसलिए मुझे सीट मिल गयी थी, बावजूद इसके भीड़ का असर मुझ पर भी हो रहा था।



यकायक मेरी नजर एक ऐसे शख्स पर गयी, जो मुझे बचपन के दिनों में गणित पढ़ाया करते थे। वे भी बस में खड़े खड़े भीड़ के दबाव को झेल रहे थे। लगभग 30 साल पहले, एक हृष्ट पुष्ट युवा को आज एक कमजोर असहाय बुजुर्ग के रूप में देखकर पहले पहचानने में थोड़ी असहजता हुई पर ध्यान से देखने पर मैं उन्हें भली भांति पहचान गया ।



मैं उठा और प्रणाम कर अपनी सीट पर उन्हें बैठने का आग्रह… Continue

Added by नाथ सोनांचली on September 3, 2017 at 2:00pm — 13 Comments

आल्हा (वीर छंद) पर प्रथम प्रयास

लाख करूँ मैं कोशिश फिर भी, कभी न लिख पाऊँ श्रृंगार|

कलम उठाऊँ लिखने को जब, शब्दो में बरसे अंगार||

गीत तराने जब जब सोचू, दिख जाते बेबस लाचार|

छन्द ग़ज़ल तब मुझे चिढ़ाते, हिय में उठता हाहाकार||



बोल चाल के शब्द चुनूँ मैं, उन शब्दो से करू धमाल|

नही जमीर बिकाऊँ मेरा सत्ता का मै नही दलाल||

निडर भाव से सत्य लिखू मैं, करूँ झूठ को सदा हलाल|

अगर किसी ने आँख दिखाई, पल में लू मैं आँख निकाल||



भावों में तब ज्वाला भड़के, जब देखूँ बेहाल किसान||

अन्न… Continue

Added by नाथ सोनांचली on August 28, 2017 at 5:29pm — 8 Comments

सियासत पर दो मुक्तक

सियासत मुल्क़ की यारों लहू पीने की आदी है
निवाला छीन भूखों का पहनती आज खादी है
किसे अच्छा कहूँ मैं अब सभी का हाल इक जैसा
बना है रहनुमा वो आज जो खुद ही फ़सादी है |1|

अगरचे दिल सियासत से बहुत नाशाद है अपना
नहीं लगता दयार-ए-हिन्द ये आबाद है अपना
उठेगी गर वतन में अब किसी निर्दोष की मय्यत
कहेगा कौन किस मुंह से वतन आज़ाद है अपना |2|

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by नाथ सोनांचली on August 18, 2017 at 5:00am — 9 Comments

राखी पर्व पर् कुण्डलिया

कच्चे धागे से जुड़ा, राखी का त्यौहार

मिले बहन जब भ्रात से, बरसे स्नेह अपार

बरसे स्नेह अपार, बहन जब बाँधे राखी

जगता सात्विक भाव, उड़े मन जैसे पाखी

रेशम की यह डोर, पहनते बूढ़े बच्चे

रिश्ते बने प्रगाढ़, भले हों धाँगे कच्चे



आये सावन मास में, रक्षाबंधन पर्व

बहना दे शुभकामना, भाई करता गर्व

भाई करता गर्व, बहन जो घर पर आती

हर बहना ऱक्षार्थ, वचन भाई से पाती

रहे बहन सुरक्षित, पर्व सबको बतलाये

बहे नेह की धार, यहाँ जब सावन आये



राखी के… Continue

Added by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 7:30am — 6 Comments

गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित मुक्तक

हमेशा शिष्य का गुरु ही यहाँ पतवार बनता है|

कृपा उसकी अगर बरसे सफ़ल संसार बनता है||

मृदा का रूप अनगढ़ ही लिये फिरते यहां सारे |

पड़े जब थाप उसकी तो कोई आकार बनता है ||



सदा आदर करें गुरु का जो जाने सार भवसागर |

बिना जिसके भटकता है जहाँ हर बार भवसागर||

जलाये ज्ञान का दीपक जगाकर चेतना मन मे |

मिटाकर दोष जीवन का कराये पार भवसागर ||



मनुष्यों का मिलन जगदीश से गुरुवर कराते हैं|

नहीं जब सूझता कुछ हो नजर गुरुदेव आते हैं||

सखा बनते कभी हैं वो… Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 9, 2017 at 6:11pm — 18 Comments

याद आता तब ख़ुदा जब आसरा कोई न हो

बह्र 2122 2122 2122 212



बे असर हों सब दुआएँ,और दवा कोई न हो

याद आता तब ख़ुदा जब आसरा कोई न हो ||



क्यूँ छुपाती हुस्न अपना हर घड़ी पर्दानशी

हुस्न वो किस काम का गर देखता कोई न हो ||



एक ख़्वाहिश है मेरी यारो ख़ुदा के फ़ज़्ल से

शैर इक ऐसा कहूँ, जैसा कहा कोई न हो ||



कौन आया है यहाँ पीकर,बता आब-ए-हयात

कौन सा घर है बता जिसमें मरा कोई न हो ||



दोष देना हो किसी को,देख लो ख़ुद आइना

ये भी तो सम्भव है कि तुमसे बुरा कोई न हो… Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 6, 2017 at 10:39pm — 24 Comments

तरही गजल (मुहब्बत में अगर कोई कभी बीमार हो जाये)

बह्र 1222 1222 1222 1222



कहीं जो खेत में कमबख्त खरपतवार हो जाये

जमीं हो लाख उपजाऊ मग़र बेकार हो जाये



ज़रा सच से अगर जो रूबरू अखबार हो जाये

जगे जनता वतन की और सज़ग सरकार हो जाये



कोई घर मे अगर जयचंद सा गद्दार हो जाये

इरादे हों भले मजबूत फिर भी हार हो जाये



दवा भी बेअसर हो वैद्य भी लाचार हो जाये

मुहब्बत में अगर कोई कभी बीमार हो जाये



करें सहयोग माँ के साथ जो सब घर के कामों में

तो फिर उसके लिये भी एक दिन इतवार हो… Continue

Added by नाथ सोनांचली on May 22, 2017 at 12:30pm — 20 Comments

तरही ग़ज़ल (कुछ नही है हाथ मे बस फ़लसफ़ा रोशन करें)

बह्र 2122 2122 2122 212



ज़िन्दगी की राह मुश्किल हौसला रोशन करें

हर गली हर रास्ते पर हम दिया रोशन करें ||



ऐ ख़ुदा बर्कत की ख़ातिर भेज दे महमाँ कोई

अपने दस्तर ख़्वान पर हम ये दुआ रोशन करें ||



हुस्न वाले भी निखर जायेंगे मोती की तरह

गर नुमाइश छोड़ कर शर्म-ओ-हया रोशन करें ||



दूसरों से पूछना क्या हर कमी दिख जाएगी

आप अपने दिल का बस ये आइना रोशन करें ||



हैं यहाँ तनहाइयाँ और वक़्त की मजबूरियाँ

कुछ नही है हाथ मे बस फ़लसफ़ा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 12:00pm — 24 Comments

शाइरी भी यार अब हम क्या करें

बह्र 2122 2122 212



हर जगह नफरत का आलम, क्या करें

ज़ह्र होता ही नही कम क्या करें ||



मौत का सामान ख़ुद इंसाँ हुआ

और जुबाँ उसकी हुई बम क्या करें ||



जो सहारे भाग्य के बैठा रहे

ऐसे का फिर राम गौतम क्या करें ||



कुछ नही अपना यहाँ यह जानकर

*जाने वाले चीज का ग़म क्या करें*



वक़्त से कोई बड़ा जब है नही

सर किसी के सामने ख़म क्या करें ||



इस हुनर पर हावी हैं मजबूरियाँ

शाइरी भी यार अब हम क्या करें… Continue

Added by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:30am — 11 Comments

निकलना एक दिन है इस मकाँ से

बह्र 1222 1222 122



करो उम्मीद मत यूँ आसमाँ से ||

बिना मिहनत न कुछ मिलता वहाँ से||



उठाते साथ थे छप्पर सभी जब

हटा विश्वास क्यूँ फिर दरमियाँ से ||



कफ़न सर से कहाँ वो बाँधते हैं

मुहब्बत है जिन्हें अपनी ही जाँ से ||



जहन्नम से नही कम होती दुनिया

कोई भी गर नही जाता जहाँ से ||



कमी क्या रह गई इस ज़िन्दगी में?

दुआएँ मिल गई गर बाप माँ से ||



निकल कर अश्क वो कहते हैं अक्सर

जिसे कोई न कह पाये जुबाँ से… Continue

Added by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 4:03pm — 21 Comments

नारी ( सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' )

नारी तुम! सुकुमार कुमुदुनी

सौम्य स्नेह औ प्रेम प्रदाता ||

धरती पर हो शक्ति स्वरूपा

तुम रण चंडी भाग्य विधाता ||



संस्कारों की शाला तुम हो

तुम लक्ष्मी सावित्री सीता |

निर्वाहिनी सत्कर्म की तुम

तुम्ही वेद कुरान औ गीता ||



सह कर असह्य प्रसव वेदना

तुम लाल धरा पर लाती हो |

तुम हो धात्री अखिल जगत की

तुम्ही सृष्टि सृजन बढाती हो ||



हे रूपवती हे कमनीया

ईश्वर की तुम अद्भुत रचना ||

तलवार धरो जब कर में तो

मुश्किल…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on March 8, 2017 at 8:30am — 12 Comments

कभी न होगी यहाँ नाभिकीय वार की बात (ग़ज़ल)

बह्र 1212 1122 1212 1121/112



अगर सभी के दिलो में हो सिर्फ प्यार की बात

नही कठिन है मिटाना जहाँ से खार की बात



हिरोशिमा से सबक लें सभी जो मुल्क अगर

कभी न होगी यहाँ नाभिकीय वार की बात



जुबाँ कभी मेरी खाली न जाये इसलिए तो

कभी किसी से न की भूलकर उधार की बात



हुआ चलन जो मो'बाइल का हर जगह गोया

कि अब नही यहाँ होंगी किसी से तार की बात



दिखा न आँख हमे इस कदर समझ बुजदिल

हैं शेर हम नही करते कभी सियार की बात



दिखा रही है… Continue

Added by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 3:30pm — 16 Comments

रिश्तों में गर रार करोगे (तरही गजल)

22 22 22 22



रिश्तों में जब रार करोगे

कुनबा अपना ख्वार करोगे ||



पैर तुम्हारा बच पायेगा?

राहें गर पुर खार करोगे ||



जाति धर्म पर वोट दिया तो

मत अपना बेकार करोगे ||



हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई

सब इक, कब स्वीकार करोगे? ||



लोकतंत्र के तुम प्रहरी हो

भ्रष्ट तंत्र पर वार करोगे? ||



राजनीति बूढों से बोली

*हमसे कितना प्यार करोगे?* ||



धन के साथ बँटेगा दिल भी

जो ऊंची दीवार करोगे ||



चीर हरण… Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 22, 2017 at 1:00pm — 13 Comments

मैं भी गलती करता हूँ (तरही गजल)

बह्र 22 22 22 2

हाड़ मास का पुतला हूँ
मैं भी गलती करता हूँ ||

बच्चों को फुसलाने में
दिल रोये पर हँसता हूँ ||

जाति धर्म के बीच फँसी
लोक तंत्र की जनता हूँ||

सीख न पाया मैं लहजा
यूँ तो ग़ज़लें कहता हूँ ||

जीवन नश्वर है फिर भी
आशाओं पर जीता हूँ ||

अंक गणित सा जीवन है
गुणा भाग में उलझा हूँ ||

साथ लिए  इक ख़ालीपन
"अपनी धुन में रहता हूँ ||"


(मौलिक व अप्रकाशित)'₹

Added by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 2:53pm — 26 Comments

अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ

क्या थे कल तुम आज हुए क्या यही बताने आया हूँ |

अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ ||

याद अतीत करो अपना जब तुम तूफान उठाते थे |

सुनकर बस इक तेरी आहट अरिदल हिय थर्राते थे ||1||



पत्थर भी साक्षी हैं तेरे, उन सच्चे बलिदानों के |

मातृभूमि पर मरने वाले, बांका वीर जवानों के ||

पूर्वज मुट्ठी भर थे लेकिन लाखों पर वे भारी थे |

पलभर में दुश्मन नष्ट किये जो बने महामारी थे ||2||



इसी धरा पर कोई बाला अग्नि चिता पर लेटी थी |

वक़्त पड़ा तब शीश कटाने…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 17, 2017 at 7:30am — 6 Comments

झुग्गियाँ

आज सुनो मैं तुमको यारों, सच्ची बात बताता हूँ |

झुग्गी में रहने वालों की, इक तस्वीर दिखाता हूँ ||

दूषित पानी हवा विषैली, जैसी कई निशानी है |

ये प्यासे नित कूँआ खोदें, इनकी यही कहानी है |1|



कोई बच्चा फेंका जूठन, जहाँ प्यार से खाता है |

कोई बचपन से ही घर का, सारा बोझ उठाता है ||

यहाँ घरों में हर बालक का, जन्म कर्ज में होता है |

उम्र कर्ज में ही कटती है, कर्ज लिए ही सोता है |2|



कोई नन्ही बुधिया मुनिया, नग्न बदन दिख जाती है |

कोई बुढ़िया बिन… Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 2:30pm — 12 Comments

जाड़ा

कुहरे की इक चादर ओढ़े, देखो जाड़ा आया है |

लगातार गिरते पारे ने, फिर कुहराम मचाया है||



इसके आगे आज सभी ने, अपना शीश नवाया है |

सूरज का तेज हुआ मद्धिम, चाँद खूब मुस्काया है ||



हर कोई यहाँ दिख रहा है, मख़मली दुशाला ओढ़े |

कपड़े सबके ऊनी फिर भी, साथ न यह जाड़ा छोड़े ||



कही ठिठुरते दादा दादी, कही काँपती नानी है |

कही रात भर गिरता पाला, कही बर्फ सा पानी है ||



सन-सन चलती हवा रात दिन, थर-थर हाड़ कपाती है |

जलता अलाव मिले जहाँ भी,… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 23, 2017 at 9:13am — 10 Comments

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