For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाथ सोनांचली's Blog (117)

विधाता छंद में एक गीत

विधाता छंद वाचिक मापनी का छंद है जिसमे 14, 14 मात्राओं पर यति और दो-दो पदों की तुकांतता होती है। इसका मापनी

1222 1222 1222 1222

पड़े जब भी जरूरत तो, निभाना साथ प्रियतम रे

सुहानी हो डगर अपनी, मिले मुझको न फिर गम रे

बहे सद प्रेम की सरिता, रगों में आपके हरदम

नहाता मैं रहूँ जिसमें, मिटे सब क्लेश ऐ हमदम

बने दीपक अगर तुम जो, शलभ बनके रहूँगा मैं

मिलेगी ताप जो मुझको, वहीं जल के मरूँगा मैं

फकत इतनी इबादत है, जुड़े तन मन…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 8:46am — 3 Comments

देश भक्ति पर आधारित वीर रस की कविता (ताटंक छंद)

कलम उठाई है मैंने अब, सोयी रूह जगाने को

जिस मिट्टी में जन्म लिया है, उसका कर्ज चुकाने को

कलमकार का फर्ज निभाऊं, हलके में मत लेना जी

भुजा फड़कने अगर लगे तो, दोष न मुझको देना जी

सन सैतालिस हमसे यारो, कब का पीछे छूटा है

भारत के अरमानों को खुद, अपनो ने ही लूटा है

भूख गरीबी मिटी नही है, दिखती क्यो बेगारी है

झोपड़ियो के अंदर साहब दिखती क्यों लाचारी है

भारत माता की हालत को, देखों तुम अखबारों में

कैद…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 26, 2018 at 1:23pm — 8 Comments

मकर संक्रान्ति (दोहा छंन्द)

मकर राशि मे सूर्य का, ज्यों होता आगाज

बच्चे बूढ़े या युवा, बदलें सभी मिजाज।1।

भिन्न भिन्न हैं बोलियाँ, भिन्न भिन्न है प्रान्त

पर्व बिहू पोंगल कहीं, कहीं यहीं संक्रांत।2।

कहीं पर्व यह लोहड़ी, मने आग के पास

वैर भाव सब जल मिटे, झिलमिल दिखे उजास।3।

नदियों में डुबकी लगे, सब करें मकर स्नान

घर मे पूजा पाठ हो, सन्त लगाएं ध्यान।4।

उत्तरायणी पर्व पर, दान धर्म का योग

काले तिल में गुड़ मिले, लगे उसी का…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2018 at 11:47am — 4 Comments

मत्त सवैया (वीर रस की कविता)

क्षमाशीलता की इक सीमा, जब कोई उसको पार करे

शस्य श्यामला धरती का भी, पामर कोई प्रतिकार करे

काँप उठे धरती अम्बर तब, अरु महाप्रलय अवतार धरे

क़फ़न तिरंगे का पहने फिर, हर हाथ खड्ग तलवार धरे।1।



कुछ अधम उतारू करने को, भारत माँ के टुकड़े टुकड़े

ऐसी बातें सुनकर भी क्यों, हैं शस्त्र तुम्हारे मौन पड़े

जो देश धरा को गाली देते, उनके तुम क्यों हो साथ खड़े

रूप नहीं क्यों रौद्र दिखाते, शीश उड़ाते चिथड़े चिथड़े।2।



शत्रु सामने बलशाली हो, सम्मुख उसके तुम झुको… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 11:22am — 9 Comments

माँ के हाथों से जब खाया जाता है (ग़ज़ल)

अरकान-फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा

ऐसे रिश्ता यार निभाया जाता है

वक़्त पड़े तो ग़म भी खाया जाता है ।।

भूख लगी हो और न हो कुछ खाने को

बच्चे का फिर दिल बहलाया जाता है।।

लाख छुपाने से भी जब ये छुप न सके

फिर क्यों यारो इश्क़ छुपाया जाता है।।

तब होती है घर में बरकत ही बरकत

मुफ़लिस को महमान बनाया जाता है ।।

रुखा सूखा खाना लज़्ज़त दार लगे

माँ के हाथों से जब खाया जाता है ।।

चुंगल में सेठों के…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 2:03pm — 11 Comments

गुड़ खाये गुलगुले से परहेज

पहली जनवरी की सुबह कुहरे की चादर लपेटे, रोज से कुछ अलग थी। सामने कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, गौरव की दिनचर्या की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से ही होती है, सो आज भी निकल गया हाथ मे एक टार्च लिए।

गली के चौराहे पर रोज की तरह शर्मा जी मिल गए। गौरव ने उनको हैप्पी न्यू ईयर बोला। पर शर्मा जी शुभकामना देने के बजाय भड़कते हुए बोले-

"अरे गौरव भाई! कौन से नव वर्ष की बधाई दे रहे हैं आप? आज आपको कुछ भी नया लग रहा है। क्या?"

क्यों? आपके…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:30pm — 12 Comments

हिस्से की जमीन (लघुकथा)

कमरे में घुसकर उसने रूम हीटर ऑन किया। तभी उसे दोबारा कुतिया के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह हॉस्पिटल की भागमभाग से बहुत अधिक थका हुआ था जिसके कारण उसकी इच्छा तुरन्त सोने की हो रही थी लेकिन कुतिया की लगातार दर्द औऱ कराहती आवाज उसकी इच्छा पर भारी पड़ी।

सोहन बाहर आकर इधर-उधर देखा। बाहर घना कुहरा था जिसकी वजह से बहुत दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भी कुहरे के प्रभाव से अपना ही मुँह देख रहीं थी। बर्फीली हवा सर्दी की तीव्रता को और बढ़ा रही थी जिससे ठंडी बदन…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 2, 2018 at 2:30pm — 10 Comments

नव वर्ष पर कुछ कुण्डलिया

कहकर सबको अलविदा, चला गया वो साल

छोड़ गया यादें बहुत, अरु जीवन जंजाल

अरु जीवन जंजाल, रहेंगे उलझे जिसमें

जारी है संघर्ष, मिलेगा सद्फल इसमें

जीवन में सुख हाथ, लगेगा दुख को सहकर

लें हम नव संकल्प, गया गत संवत् कहकर।1।



मन से मन जोड़ें सभी, उत्तम हो सब काज

मंगलमय नव वर्ष की, करूँ कामना आज

करूँ कामना आज, सत्य का उगे सवेरा

हो नित नव निर्माण, मिटे घनघोर अँधेरा

देश प्रेम हो भाव, जुटें सब तन मन धन से

रहे न कोई क्लेश, जुड़ें हम सबसे मन… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2018 at 2:31pm — 11 Comments

ख़ुद से ये शर्मशार सा क्यों है (ग़ज़ल)

अरकान-: 2122  1212  22

ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है

आदमी बेक़रार सा क्यों है 

मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,

नेता हर इक गंवार सा क्यों है

आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,

फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है

मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर

तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है 

मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर

उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है 

उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,

'फिर हमें एतिबार सा…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 1:47pm — 21 Comments

आप अंदाज रखें हँसने हँसाने वाला (ग़ज़ल)

अरकान- फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन

आप अंदाज़ रखें हँसने हँसाने वाला

यही किरदार तो है साथ में जाने वाला।1।

आज क्या बात है, नफ़रत से मुझे देखता है

मेरी तस्वीर को सीने से लगाने वाला।2।

काटने वाले तो हर सिम्त नज़र आते हैं

पर न दिखता है कोई पेड़ लगाने वाला।3।

आख़िरी बार उसे देख ले तू जी भर के

फिर न आएगा कभी लौट के, जाने वाला।4।

आबरू की भी लगा देती है क़ीमत दुनिया

गर चला जाये किसी…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 19, 2017 at 6:27pm — 16 Comments

तुम्हारा मुस्कुराना और भी बीमार कर देगा

अरकान :1222  1222  1222  1222

अजब सी कश्मकश से यकबयक दो चार कर देगा

तुम्हे पहचानने से वो अगर इनकार कर देगा

ज़माने में जियो खुल के जवानी साथ है जब तक

करोगे क्या बुढ़ापा जब तुम्हे लाचार कर देगा

हक़ीक़त सामने है आज यह जो,  देख लेना कल

सही को भी ग़लत ये सुब्ह का अखबार कर देगा

रखें कुछ भी नहीं दिल में छुपा के आप भी मुझसे

नहीं तो शक खड़ी इक बीच में दीवार कर देगा

समझना मत कभी कमज़ोर, दुश्मन को…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 18, 2017 at 1:30pm — 20 Comments

कुण्डलिया

सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज

अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज

सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में

जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में

यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन

इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।

बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ

चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ

उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा

परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा

दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे

कच्चे घड़े…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:07am — 8 Comments

पेड़ उखड़ते तूफानों में, दूब हँसे हर बार (सरसी छःन्द)

अंधी दौड़ आधुनिकता की, गली नगर या गाँव

ना बरगद के पेड़ दिखें अब, ना पीपल की छाँव।।



संस्कार बिना इंसान यहाँ, चलती फिरती लाश

बिना नींव का हवामहल भी, गिरते जैसे ताश।।



अर्धनग्न अब देह बनी है, फैशन की पहचान

भूल गए सब जड़ें पुरातन, पढ़े लिखे नादान।।



सूर्य उदय पूरब से होता, पर पश्चिम में अस्त

उदय अस्त का सत्य जान लो, वरना होगे त्रस्त।।



दरक रहे हैं नित्य यहाँ पर, संस्कारो के दुर्ग

भूल रहे हैं बात पुरातन, बच्चे युवा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:30pm — 4 Comments

मज़ाहिया ग़ज़ल

गर कुँवारे ही मरे क्या ताज्रीबा ले जाएँगे

साथ बस मैरीज ब्योरो का पता ले जाएँगे



रोज ही मिलते रहे कपड़ो पे लम्बे बाल जो

इक न इक दिन आप तो घर से निकाले जाएँगे



बात दिल की कह न पाए वक़्त पर जो आप तो

दूसरे ही उनको फिर दुल्हन बना ले जाएँगे



करके गलती आँख से आँसू गिराना सीख लो

मार से बेगम की ये आँसू बचा ले जाएँगे



मेकअप से खा गए धोका अगर जो आप भी

फिर तो लैला की जगह मम्मी भगा ले जाएँगे



खटमलों को जाँच लो सोने से पहले नाथ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 5:40pm — 20 Comments

महिला सशक्तिकरण (कामरूप छःन्द)

नारी न अबला, आज सबला, हौसले की खान

हर गम सहे वो, बिन कहे वो, बिखेरे मुस्कान

ममतामयी वो, गुण क़ई जो, ईश का वरदान

सम्मान घर की, शक्ति नर की, देव गाते गान



शिशु साथ पाले, घर सँभाले, और बाहर नाम

उल्टी पवन हो, थल गगन हो, करे ना आराम

कंधा मिलाकर, पग बढ़ाकर, ख़डी है हर धाम

पीछे नहीं अब, वो करे सब, हर तरह के काम



घर से निकलती, साथ चलती, हर कदम अब नार

अपनी लगन से, नित सृजन से, रचे नव संसार

छोटा बड़ा हो, दुख खड़ा हो, वो न माने हार

देवी स्वरूपा,… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 7:43pm — 8 Comments

बशीर बद्र साहब की जमीन पर एक तरही ग़ज़ल

अरकान-: मफ़ाइलुन फ़्इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



नया ज़माना नया आफ़ताब दे जाओ

मिटा दे जुर्म जो वो इन्क़िलाब दे जाओ



हज़ार बार कहा है जवाब दे जाओ,

मैं कितनी बार लुटा हूँ हिसाब दे जाओ||



मुझे पसंद नही मरना इश्क़ में यारो,

मुझे है शौक़ नशे का शराब दे जाओ||



वो कह रहे हैं खड़े होके बाम पर मुझ से,

तमाशबीन बहुत हैं नक़ाब दे जाओ ||



करम करो ये मेरे हाल पर चले जाना

*उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ*||



अगर जगाना है सोए हुओं को ऐ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 25, 2017 at 1:31pm — 41 Comments

जिन्हें आदत पड़ी हर बात में आँसू बहाने क़ई (ग़ज़ल)

अरकान-: मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन



जिन्हें आदत पड़ी हर बात में आँसू बहाने की,

तमन्ना वो न पालें फिर किसी से दिल लगाने की



सर-ए-महफ़िल कभी पर्दा नहीं करता था वो ज़ालिम

तो फिर अब क्या ज़रूरत पड़ गई है मुँह छुपाने की



लिखूंगा बात जो सच हो बिना डर के ज़माने में,

यहीं इक शर्त थी ख़ुद से कलम अपनी उठाने की



ख़बर अपनी नहीं रहती मुझे, हालात ऐसे हैं

खबर क्यूँ पूछते हो फिर मियाँ सारे जमाने की



बना ख़ुद रास्ता अपना हुनर है तेरे हाथों… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 24, 2017 at 5:47am — 20 Comments

दीवाली (कामरूप छन्द, एक प्रयास)

दीपावली पर, ज्योत घर घर, अलौकिक सृंगार

वातावरण में, प्रभु चरण में, भक्ति का संचार

सब लोग पुलकित, बाल हर्षित, बाँटते उपहार

लड़ियाँ लगाते, सब सजाते, स्वर्ग सा घर द्वार



हर घर अटारी, खेत क्यारी, लौ दिखे चहुँओर

सारे नगर में, हर डगर में, पटाखों का शोर

दीपक जले जब, तब मिले सब, धरा औ आकाश

सद्भाव सुरभित, तन सुशोभित, हो कलुष का नाश



मौसम गुलाबी, दिल नवाबी, औ अमावस रात

अद्भुत समागम, दीप माध्यम, दे तमस को मात

जगमग सितारे, आज सारे, अचम्भित… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 23, 2017 at 5:42am — 9 Comments

कुछ यादें बचपन की

बीत गया जो बचपन अपना, वह भी एक जमाना था

पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था



बारिश में कागज की नैया, भैया रोज बनाते थे

बागों में तितली के पीछे, हमको वह दौड़ाते थे

रोने की थी वजह न कोई, हँसने के न बहाने थे

कमी नहीं थी किसी चीज की, सारे पास खजाने थे



चिन्ता फिक्र न कोई कल की, हर मौसम मस्ताना था

पल में हँसना पल में रोना, पल पल इक अफसाना था



जिधर निकलते थे हम यारों उधर दोस्त मिल जाते थे

गिल्ली डंडा और कबड्डी, फिर हम वहीं जमाते… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 9, 2017 at 1:00pm — 11 Comments

मैं हुआ बूढ़ा मगर अनुभव हुआ कुछ भी नहीं (तरही ग़ज़ल)

अरकान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन



हर तरफ शिक़वा गिला है औऱ क्या कुछ भी नहीं

रात दिन की दौड़ में आख़िर मिला कुछ भी नहीं ||



इक नियम बदलाव का यारों सनातन सत्य है,

कल मिला है आज से पर राब्ता कुछ भी नहीं



ज़ीस्त का सच देख गोया बन्द मुट्ठी खुल गयी,

साथ अपने अंत में वह ले गया कुछ भी नहीं



बचपना लिपटा रहा ता---उम्र मुझसे इस क़दर,

मैं हुआ बूढ़ा मगर अनुभव हुआ कुछ भी नहीं



दूर होगी मुफ़लिसी यह सोचना तू छोड़ दे,

ये सियासी ख़्वाब… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 5:04am — 21 Comments

Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service