सम्मान हम किसी का करें कुछ बुरा नहीं
पर आदमी को आदमी समझें, ख़ुदा नहीं।।1
ये सोच कर ही ख़ुद को तसल्ली दिया करें
दुनिया में ऐसा कौन है जो ग़म ज़दा नहीं।।2
बस मौत ही तो आख़री मंज़िल है दोस्तो
इससे बड़ा जहान में सच दूसरा नहीं।।3
हमको तमाम उम्र यही इक़ गिला रहा
चाहा था हमने जिसको हमें वो मिला नहीं।।4
इसको सुनो दिमाग़ से तब आएगा मज़ा
ये शाइरी है यार कोई चुटकुला नहीं।।5
लेती है हर क़दम पे नया इम्तिहान ये…
Added by नाथ सोनांचली on January 20, 2020 at 2:30pm — 10 Comments
वैभव औ सुख साधन थे उनको पर चैन नही मिल पाया
कारण और निवारण का हर प्रश्न तथागत ने दुहराया
घोष हुआ दिवि घोष हुआ भ्रम का लघु बंधन भी अकुलाया
गौतम से फिर बुद्ध बने जग विप्लव शंशय पास न आया।।1
गौतम बुद्ध जहाँ तप से हिय दिव्य अलौकिक दीप जलाए
मध्यम मार्ग चुना अनुशीलन राह यहीं जग को बतलाये
रीति कुरीति सही न लगे यदि क्यों फिर मानव वो अपनाए
तर्क वितर्क करो निज से, धर जीवन संयम को समझाये।।2
गाँव जहाँ ब्रज गोकुल से हिय में अपने जन प्रेम…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 7, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
जन्म लिया जिस देश धरा पर वो हमको लगता अति प्यारा
वैर न आपस में रखते वसुधैव कुटुम्ब लगे जग सारा
पूजन कीर्तन साथ जहाँ सम मन्दिर मस्जिद या गुरुद्वारा
लोग निरोग रहे जग में नित पावन सा इक ध्येय हमारा।।1
पूरब में जिसके नित बारिश, हो हर दृश्य मनोरम वाला
लेकर व्योम चले रथ को रवि वो अरुणाचल राज्य निराला
गूढ़ रहस्य अनन्त छिपा पहने उर पादप औषधि माला
जो मकरन्द बहे घन पुष्पित कानन को कर दे मधुशाला।।2
उत्तर में जिसके प्रहरी सम पर्वत राज हिमालय…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 3, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
स्वागत हेतु सजी धरती उर में बहु सौख्य-समृद्धि पसारे
राग विराग हुआ सुर सज्जित हर्षित अम्बर चाँद सितारे
भव्य करो अभिनन्दन वन्दन लेकर चन्दन अक्षत प्यारे
स्नेह लिए नव अंकुर का अब द्वार खड़ा नव वर्ष तुम्हारे।।1
नूतन भाव विचार पले जड़ चेतन में निरखे छवि प्यारी
एक नया दिन जीवन का यह, हो जग स्वप्निल मंगलकारी
ओज अनन्त बसे सबके हिय राह नई निरखें नर नारी
दैविक दैहिक कष्ट न हो वरदान सुमंगल दें त्रिपुरारी।।2
प्यार दुलार करें सबसे नित, दुश्मन को हम…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 31, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
नशाख़ोरी
करते हैं जन जो नशा, होता उनका नाश
तिल-तिल गिरते पंक में, बनते हैं अय्याश
बनते हैं अय्याश, नष्ट कर कंचन काया
रिश्तों को कर ख़ाक बनें लगभग चौपाया
छपती खबरें रोज न जाने कितने मरते
युवा वर्ग गुमराह नशा जो हर दिन करते।।1
जरदा गुटखा पान सँग, बीड़ी औ' सिगरेट
अब यह कैसे बन्द हो, इस पर करें डिबेट
इस पर करें डिबेट, किया क्या हमने अब तक
आसानी से नित्य पहुँचता क्यों यह सब तक
बालक, वृद्ध, जवान न करते इनसे…
Added by नाथ सोनांचली on November 28, 2019 at 7:30pm — 8 Comments
घर में किसी बुजुर्ग ने, दिया आप को नाम
नाम बड़ा अब कीजिये, करके अच्छे काम
करके अच्छे काम, बढ़े कद जिससे अपना
जग हित हो हर श्वांस, बड़ा ही देखें सपना
पद वैभव सम्मान, ख्याति हो दुनिया भर में
उत्तम जन कुलश्रेष्ठ, आप ही हों हर घर में।।
जह्र फिजा में है घुला, नगर शहर या गाँव
बाग बगीचे काट कर, खोजे मानव छाँव
खोजे मानव छाँव, भला अब कैसे पाए
जब खुद गड्ढा खोद, उसी में गिरता जाए
धुन्ध धुँआ बारूद, बहें मिल खूब हवा में
कैसे लें अब साँस, घुला जब…
Added by नाथ सोनांचली on November 7, 2019 at 10:30pm — 8 Comments
अर्चन करने सूर्य का, चले व्रती सब घाट
छठ माँ के वरदान से, दमके खूब ललाट
दमके खूब ललाट, प्रकृति से ऊर्जा मिलती
हो निर्जल उपवास, मगर मुख आभा खिलती
शाम सुबह देें अर्घ्य, करें यश बल का अर्जन
चार दिनों का पर्व, करें सब मन से अर्चन।।
पूजा दीनानाथ की, डाला छठ के नाम
अस्त-उदय जब सूर्य हों, करते सभी प्रणाम
करते सभी प्रणाम, पहुँच कर नदी किनारे
भरकर दउरा सूप, अर्घ्य दें हर्षित सारे
प्रकृति प्रेम का पर्व, नहीं है जग में दूजा
अन्न…
Added by नाथ सोनांचली on November 2, 2019 at 10:00pm — 6 Comments
आता है जब न्यूज़ में, होता कष्ट अपार
रख आश्रम माँ बाप को, बेटा हुआ फरार
बेटा हुआ फरार, तनिक भी क्षोभ न जिसका
होगा वह भी वृद्ध, कभी पर भान न इसका
रिश्तों का इतिहास, स्वयम् को दुहराता है
ख़ुद पे गिरती गाज़, समझ में तब आता है।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by नाथ सोनांचली on November 1, 2019 at 11:11am — 9 Comments
गरीबी मिटे औ कटे विघ्न बाधा, तमन्ना! बने स्वर्ग सा देश प्यारा
पले विश्व बंधुत्व की भावना औ, बने आदमी आदमी का सहारा
यहाँ सत्य का ही रहे बोलबाला, सदा के लिये झूठ से हो किनारा
निरोगी प्रतापी प्रभावी सभी हों, बने स्वाभिमानी लगे एक नारा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 10, 2019 at 6:30pm — 5 Comments
करे वोट से चोट जो हैं लुटेरे, खरे मानकों पे चुनें आप नेता
खड़ा सामने भ्रात हो या भतीजा, भले जो लगे आपको वो चहेता
नहीं वोट देना उसे ज़िन्दगी में, कभी आपको जो नहीं मान देता
सदा जो करे पूर्ण निःस्वार्थ सेवा, उसे ही यहाँ पे बनाएँ विजेता।1।
कहीं जाति की है लड़ाई बड़ी तो, कहीं सिर्फ है धर्म का बोलबाला
इसे मुल्क में भूल जाएं सभी तो, चुनावी लड़ाई बने यज्ञशाला
अकर्मी विधर्मी तथा भ्रष्ट जो है, वही देश का है निकाले दिवाला
चुनें वोट दे के उसी आदमी को, दिखे जो प्रतापी…
Added by नाथ सोनांचली on May 4, 2019 at 9:41pm — 7 Comments
खड़ा आपके सामने हाथ जोड़े, लिए स्नेह आशीष की कामना को
करूँ शिल्पकारी सदा छंद की मैं, न छोड़ूँ नवाचार की साधना को
लिखूँ फूल को भी लिखूँ शूल को भी, लिखूँ पूर्ण निष्पक्ष हो भावना को
कभी भूल से भी नहीं राह भूलूँ, लिखूँ मैं सदा राष्ट्र की वेदना को
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 1, 2019 at 6:38pm — 6 Comments
धरें वेशभूषा तपस्वी सरीखा, जियें किन्तु जो ऐश की जिंदगानी
सने हाथ हैं खून से भी उन्हीं के, सदा बोलते जो यहाँ छद्म बानी
पता ही नहीं मूल क्या ज़िन्दगी का, लगे एक सा जिन्हें आग पानी
उन्हें आप यूँ ही मनस्वी न बोलो, जुबाँ से भले वे लगें आत्म ज्ञानी।।
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 28, 2019 at 2:36pm — 6 Comments
नहीं वक़्त है ज़िन्दगी में किसी की, सदा भागते ही कटे जिन्दगानी
कभी डाल पे तो कभी आसमां में, परिंदों सरीखी सभी की कहानी
ख़ुशी से भरे चंद लम्हे मिले तो, गमों की मिले बाद में राजधानी
सदा चैन की खोज में नाथ बीते, किसी का बुढ़ापा किसी की जवानी।।
शिल्प-लघु-गुरु-गुरु (यगण)×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2019 at 6:47am — 8 Comments
अरकान-1222 1222 122
किनारा हूँ तेरा तू इक नदी है
बसी तुझ में ही मेरी ज़िंदगी है।।
हमारे गाँव की यह बानगी है
पड़ोसी मुर्तुज़ा का राम जी है।।
ख़यालों का अजब है हाल यारो
गमों के साथ ही रहती ख़ुशी है।।
घटा गम की डराए तो न डरना
अँधेरे में ही दिखती चाँदनी है।।
मुकम्मल कौन है दुनिया में यारो
यहाँ हर शख़्स में कोई कमी है।।
बनाता है महल वो दूसरों का
मगर खुद की टपकती झोपड़ी…
Added by नाथ सोनांचली on February 4, 2019 at 7:00am — 9 Comments
( १४ मात्राओं का सम मात्रिक छंद सात-सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
कर जोड़ के, है याचना, मेरी सुनो, प्रभु प्रार्थना।
बल बुद्धि औ, सदज्ञान दो, परहित जियूँ, वरदान दो।।
निज पाँव पे, होऊं खड़ा, संकल्प लूँ, कुछ तो बड़ा।
मुझ से सदा, कल्याण हो, हर कर्म से, पर त्राण हो।।
अविवेक को, मैं त्याग दूँ, शुचि सत्य का, मैं राग दूँ।
किंचित न हो, डर काल का, विपदा भरे, जंजाल का।।
लेकर सदा, तव नाम को, करता रहूँ, शुभ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 30, 2019 at 11:01am — 4 Comments
(14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद, सात सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
जागो उठो, हे लाल तुम, बनके सदा, विकराल तुम ।
जो सोच लो, उसको करो, होगे सफल, धीरज धरो।।
भारत तुम्हें, प्यारा लगे, जाँ से अधिक, न्यारा लगे।
मन में रखो, बस हर्ष को, निज देश के, उत्कर्ष को।।
इस देश के, तुम वीर हो, पथ पे डटो, तुम धीर हो।
चिन्ता न हो, निज प्राण का, हर कर्म हो, कल्याण का।।
हो सिंह के, शावक तुम्हीं, भय हो तुम्हें,…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:00am — 8 Comments
कर जोड़ प्रभो विनती अपनी, तुम ध्यान रखो हम दीनन का।
हम बालक बृंद अबोध अभी, कुछ ज्ञान नहीं जड़ चेतन का
चहुओर निशा तम की दिखती, मुख ह्रास हुआ सच वाचन का
अब नाथ बसों हिय में सबके, प्रभु लाभ मिले तव दर्शन का ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by नाथ सोनांचली on January 6, 2019 at 1:06pm — 2 Comments
उस देश धरा पर जन्म लिया, मकरंद सुप्रीति जहाँ छलके।
वन पेड़ पहाड़ व फूल कली, हर वक़्त जहाँ चमके दमके।
वसुधा यह एक कुटुम्ब, जहाँ, सबके मन भाव यही झलके
सतरंग भरा नभ है जिसका, उड़ते खग खूब जहाँ खुलके।।1।।
अरि से न कभी हम हैं डरते, डरते जयचंद विभीषण से।
मुख से हम जो कहते करते, डिगते न कभी अपने प्रण से
गर लाल विलोचन को कर दें, तब दुश्मन भाग पड़े रण से
यदि आँख तरेर दिया अरि ने, हम नष्ट करें उनको गण से।।2।।
हम काल बनें विकराल बनें, निकलें जब…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 6, 2019 at 1:03pm — 6 Comments
नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया
प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया
विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना
प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना।।1।।
मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले
न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले
प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना
हँसी खुशी रहें सदा, यही 'सुरेन्द्र' कामना।।2।।
न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो
न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो
विवेकशीलता लिए,…
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:30pm — 8 Comments
कल घटना जो भी घटी, नभ थल जल में यार
उसे शब्द में बाँधकर, लाता है अखबार
लाता है अखबार, बहुत कुछ नया पुराना
अर्थ धर्म साहित्य, ज्ञान का बड़ा खजाना
पढ़के जिसे समाज, सजग रहता है हरपल
सबका है विश्वास, आज भी जैसे था कल।1।
जैसा कल था देश यह, वैसा ही कुछ आज
बदल रही तारीख पर, बदला नहीं समाज
बदला नहीं समाज, सुता को कहे अभागिन
लूटा गया हिज़ाब, कहीं जल गई सुहागिन
कचरे में नवजात, आह! जग निष्ठुर कैसा
समाचार सब आज, दिखे है कल ही…
Added by नाथ सोनांचली on November 11, 2018 at 5:00pm — 6 Comments
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