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Ravi Prakash's Blog – January 2014 Archive (3)

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

झील के पानी में गिर के चाँद मैला हो गया।

स्वाद मीठी नींद का कड़वा-कसैला हो गया॥

.

दो घड़ी भी चैन से मैं साँस ले पाता नहीं,

यूँ तुम्हारी याद का मौसम विषैला हो गया।

.

सभ्यता के औपचारिक आवरण से ऊब कर,

आदमी का आचरण फिर से बनैला हो गया।

.

आँख में मोती नहीं बस वासना की धूल है,

प्यार देखो किस क़दर मैला-कुचैला हो गया।

.

हर किसी को सादगी के नाम से नफ़रत हुई,

कल जिसे कहते थे मजनूँ,आज लैला हो गया।…

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Added by Ravi Prakash on January 24, 2014 at 5:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बह्र-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ

..

कभी मंज़िलों से शिकायतें,कभी रास्तों से गिला करूँ,

कहीं बदहवास चला चलूँ,कहीं बेसबब ही रुका करूँ।

..

ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,

मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।

..

ये चिराग़ तेरी निगाह के यूँ ही रोशनी दें डगर-डगर,

ये सफ़र मेरा है तेरी नज़र यही नक़्शे-पा से लिखा करूँ।

..

तेरी आरज़ू मेरा हौंसला,तेरी जुस्तजू मेरी शायरी,

तू हो दूर या मेरे रूबरू तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा… Continue

Added by Ravi Prakash on January 13, 2014 at 8:43pm — 13 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बहर-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ (प्रथम प्रयास)

..

कभी चाँदनी सी खिला करे,

कभी धूप बन के सजा करे।

..

सभी चाहतों से हों देखते,

तू नज़र-नज़र में बसा करे।

..

कोई ख़्वाब में हो सँवारता,

कोई राहतों की हवा करे।

..

जहाँ लड़खड़ाएँ क़दम वहीं,

कोई हाथ बढ़ के वफ़ा करे।

..

रहें मंज़िलें तेरे सामने,

हो कठिन डगर तो हुआ करे।

..

जिसे देखता हूँ मैं ख़्वाब में,

वही शख़्स तुझमें मिला करे।

..

मेरा फ़न रहे,तेरी सादगी,

मेरी हर…

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Added by Ravi Prakash on January 1, 2014 at 6:00pm — 12 Comments

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