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राजेश 'मृदु''s Blog – September 2012 Archive (5)

ये जिंदगानी

फूलों का सफर या

कांटों की कहानी

क्‍या कहूं कैसी है

ये जिंदगानी

कभी तो इसी ने

आंखों से पिलाया

बड़ी बेरूखी से

कभी मुंह फिराया

गम की इबारत या

जलवों की कहानी

क्‍या कहूं कैसी है

ये जिंदगानी

 

कभी सब्‍ज पत्‍तों पर

शबनम की लिखावट

कभी चांदनी में

काजल की मिलावट

 

कभी शोखियों की

गुलाबी शरारत

कभी तल्‍ख तेवर की

चुभती…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 28, 2012 at 12:46pm — 3 Comments

क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्‍हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

उजड़े उपवन के माली से
प्रस्‍तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

Added by राजेश 'मृदु' on September 26, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

जानूं नहीं

जानूं नहीं ये मेरी उलझन

कहां ठिकाना पाएगी

कबतक जीवन यूं ही मुझको

चौराहों तक लाएगी



जिसको भी आवाज लगाई

वही मिला घबराया सा

घनी धुंध की परत लपेटे

सुबह भी था कुम्‍हलाया सा



जाने कौन गढ़े जा रहा

दीवारों पर ठिगने साए

खोह-कन्‍‍दरा-तमस छुपाके

नीले पड़ गए हमसाए



स्‍वर्ण छुआ तो राख मिली

राई-रत्‍ती भी खाक मिली

बस कोहरे ही रह गए हमारे

फूलों में भी आग मिली



जो करीब थे दूर हुए

सुख के पल कर्पूर हुए

शेष बची जो थोड़ी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 13, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

चंद हाइकु

कई मोड़ हैं

मेरी हथेली पर

हांफते हुए

 

ख्‍वाब में डूबे

कुछ चश्‍में भी तो हैं

कांपते हुए

 

नीले पड़ाव

धुंध में फिसलते ...

सैलाब भी हैं

 

सुर्ख परियां

वजू करते हाथ

हुबाब भी हैं

 

कम भी नहीं

इतनी खामोशियां

जीने के लिए

 

बेदर्द जख्‍म

काफी है इतना ही

अभी के…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 12, 2012 at 3:30pm — 6 Comments

ताकि समझ सकूं

हे परमपिता
ना देना कभी
इतनी नजदीकी…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments

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