For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजेश 'मृदु''s Blog – January 2013 Archive (12)

झूठ का सच (व्‍यंग्‍य)

झूठ सुहाना होता प्रियवर

सबके ही मन भाता है

ऐसी है यह लिपि अनोखी

हर भाषा में चल जाता है

झूठ धर्म इतना समरस है

हर देश में रच-बस जाता है

समता का संदेश सुहावन

जन-जन में फैलाता है

झूठ जानती केवल अपनाना

नहीं किसी को ठगती है

सातों जन्‍म निभाती सुख से

वफा हमेशा करती है

झूठ तो एक भोली कन्‍या है

जो चाहे मन बहलाता है

जब चाहे जी अपनाता इसको

जब चाहे जी ठुकराता…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे/चौबारे क्‍यों हमें डराय

कहो दर्द के देव तुम्‍हारे

चौबारे क्‍यों हमें डराय.. .

उदयाचल का

कोई जादू

कंगूरों पर

चल ना पाय

**कल जोड़े

भयभीत किरण भी

पल-पल काया

खोती जाय

पड़े तीलियों

के भी टोंटे

झूठे दीपक कौन जलाय ?

कहो दर्द के.....................

रोटी-बेटी

पर चिनगारी

रोज पुरोहित

ही रख आय

उलटा लटका

सुआ समय का

बड़े नुकीले

सुर में गाय

हर फाटक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 12:30pm — 12 Comments

आओ दिल का दीया जला लो

सद्भावों की थोड़ी खूशबू

सरगम की आवाज बची है

आओ दिल का दीया जला लो

मुट्ठी में थोड़ी राख बची है

नई उमर के गर्म खून से

उठी हुई कुछ भाप बची है

श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से

बचपन की एक शाख बची है

आओ दिल का.................

तेरी आरजू मेरी शिकायत

की मीठी तकरार बची है

जग से जाने के कुछ लम्‍हें

जीवन की सौगात बची है

आओ दिल का.................

घुटी व्‍यथा जो…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 6:29pm — 15 Comments

शब्‍द

शब्‍द,

तेरी गंध

बड़ी सोंधी है

तेरी देह,

बड़ी मोहक है

अपनी उपत्‍यका में

एक मूरत गढ़ने दोगे ?

देखो न,

तेरे ही आंचल का

वह विस्मित फूल

मोह रहा है मुझे

और मेरे बालों में

अंगुली फिराती

बदन पर हाथ फेरती

मुझे सिहराती

सजाती, सींचती

वो तुम्‍हारी लाजवंती की साख

जब

चांद के दर्पण में

कैद

मेरी प्रतिच्‍छाया को

आलिंगन में भींच लेती है,

और मैं…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 23, 2013 at 12:00pm — 14 Comments

हर किसी को गम यहां पर (राजेश कुमार झा)

हर किसी को ग़म यहां पर

और तो ना दीजिए

हो सके तो मुस्‍कुराते

कारवां रच दीजिए

आ गई जो रात काली

तो नया है क्‍या हुआ

ये तो है किस्‍सा पुराना

राख इसपर दीजिए

लिख रहा जो लाल केंचुल

चीखते मज़हब नए

पोखराजी लेखनी ले

आप भी चल दीजिए

देखना क्‍या ये तमाशे

चार दिन का जब सफ़र

हर लहर को बस किनारे

का पता दे दीजिए

द़श्‍त सहरा खून पानी

लिख चुके कमसिन गज़ल

कुछ तराने अब ख़ुदा के

नाम भी कर दीजिए

दर्द के…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:30pm — 3 Comments

किसने रंग डाला है बोलो (राजेश कुमार झा)

किसने रंग डाला है ऐसा

मारी किसने पिचकारी

ऐसे ही रंग मोहे रंग दे

हे मुरलीधर बनवारी



बह गए मेरे रेत घरौंदे

टूट गए आशा के हौदे

चाहे जितनी जुगत लगा लूं

कमती ना है दुश्‍वारी



कैसे बिखरे तान सहेजूं

किस जल से ये प्राण पखेजूं

सांझ के अनुपद धूनी रमाए

कह जाओ मुरलीधारी



शेष पहर छाया है पीली

भीत भरी अंखियां हैं नीली

धिमिद धिमिद नव नाद जगाते

आओ हे…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 16, 2013 at 5:05pm — 8 Comments

अदना सा आदमी (राजेश कुमार झा)

एक फसली जमीन को

तीन फसली करने का हुनर.....

धर्म के अंकुश तले

आकुल उड़ान की कला......

अभिशप्त़ कामनाओं को

ममी बनाने का शिल्प.......

कहां जानता है

एक अदना सा आदमी ?



वह जानता है

ताप, पसीना, थकान

विषाद, उत्पीड़न

और उससे उपजी

तटस्थता

जिसको उसने नहीं चुना,



वह जानता है

टीस, चुभन, दर्द, मरण

और इन्हें समेटकर

हो जाता है एकदिन…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 15, 2013 at 6:00pm — 14 Comments

जाने कौन कहां से आकर

जाने कौन कहां से आकर

मुझको कुछ कर जाता है

मेरी गहरी रात चुराकर

तारों से भर जाता है

जाने कौन.........



देख नहीं मैं पाउं उसको

दबे पांव वह आता है

और न जाने कितने सपने

आंखों में बो जाता है

जाने कौन.......



एक दिन उसको चांद ने देखा

झरी लाज से उसकी रेखा

मारा-मारा फिरता है अब

दूर खड़ा घबराता है

जाने कौन....



चैताली वो रात थी भोली

नीम नजर भर नीम थी डोली

वही तराने सावन-भादो

उमड़-घुमड़ कर गाता है …

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 10, 2013 at 3:00pm — 6 Comments

भौंरों के गुंजार से भी उठ रहा गहरा धुआं

पिंजड़े होकर सजग
देखते हैं आड़ से
धातुमय आवेग ताने
बढ़ रहा क्‍या भार से
एकरंगी ताल-पोखर
सांवली परछाईयां…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:30am — 4 Comments

एक नवगीत का प्रयास

मिर्च बुझी तेजाबी आंखें

हांक रहे चीतल,मृग, बांके

बुदबुद करते मूड़ हिलाते

वेद अनोखे बांच रहे हैं



अर्ध्‍वयु हैं पड़े कुंड में

जातवेद भी खांस रहे हैं



चमक रही कैलाशी बातें

दमक रही तैमूरी रातें

सांकल की ठंडी मजबूरी

खाप जतन से जांच रहे हैं



विविध वर्ण के टोने-टोटके

कितने सूरज फांस रहे हैं



बागड़बिल्‍लों के कमान में

पंजे, नख मिलते बयान में

पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्‍ले

खिलजी जमकर नाच रहे हैं



मिनरल वाटर हलक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 5:06pm — 3 Comments

अब तो मेरी सांसे भी /तेरी जिद से हार गई

मेरी बिखरी सुबह ओंटकर

तुम्‍हीं खड़े थे बाट जोहकर

कभी रूठकर कभी मनाकर

भाव भंगिमा नए दिखाकर

हर फिसलन पर भीत उकेरे

तुम्‍हीं थाम उस पार गई



लिखकर पहला पत्र तुम्‍हीं को

कलम मेरी पथ हार गई



सदा सुहागन तेरी काया

जब समेटती मेरी छाया

और ठठाते हुल्‍लड़ दिन पर

दांत पीसता सूरज जी भर

तभी दमकते श्रृंग ओट…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 2:22pm — 12 Comments

इन बेखौफ लकीरों ने

हर अध्‍याय

अधूरे किस्‍से

कातर हर संघर्ष

प्रणय, त्‍याग

सब औंधे लेटे

सिहराते स्‍पर्श

कमजोर गवाही

देता हर दिन

झुठलाती हर शाम

आस की बडि़यां

खूब भिंगोई

पर ना आई काम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम

फलक बुहारे

पूनो आई

जागा कहां अघोर

मरा-मरा

आकाश पड़ा था

हुल्‍लड़ करते शोर

किसकी-किसकी

नजर उतारें

विधना सबकी वाम

हिम्‍मत भी

क्‍या खाकर मांगे

निष्‍ठुर दे ना दाम

इन बेखौफ…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:30pm — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी.मैं आपकी टिप्पणी को समझ पाने में असमर्थ हूँ.मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट…"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब,'नूर' साहब, सुन्दर  रचना है, मगर 'ग़ज़ल ' फार्मेट में…"
11 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"अश्रु का नेपथ्य में सत्कार भी करते रहेवाह वाह वाह ... इस मिसरे से बाहर निकल पाऊं तो ग़ज़ल पर टिप्पणी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं  जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं. . ये और बात कि कल जैसी…See More
yesterday
Ravi Shukla posted a blog post

तरही ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 मित्रवत प्रत्यक्ष सदव्यवहार भी करते रहेपीठ पीछे लोग मेरे वार भी करते रहेवो ग़लत…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागा अर्थ प्रेम का है इस जग में आँसू और जुदाई आह बुरा हो कृष्ण…See More
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service