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Nilesh Shevgaonkar's Blog (182)

ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल-नूर

२१२२/२१२२/२१२१२ 

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ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,

जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.

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काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,

लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े. 

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एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments

ग़ज़ल -नूर- ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है

१२२२/१२२२/१२२ 



ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,

किसी की याद दिल में चुभ रही है.

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मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,

मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.

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कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं

कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.

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कई जुगनू चमक उट्ठे हैं

लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.

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मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,

न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.

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रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,

समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.

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गुनाहों में गिनीं जाएगी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2016 at 8:23am — 8 Comments

ग़ज़ल-नूर-अश्क आँखों से फिर बहा जाये,

२१२२/१२१२/२२ (११२)

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अश्क आँखों से फिर बहा जाये,

अपना जाये, किसी का क्या जाये.

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तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ,

झील में चाँद झिलमिला जाये.
 

.

ढ़लती उम्रों के मोजज़े हैं मियाँ

इक बुझा जाए, इक जला जाये.

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याद माज़ी को कर के जी लूँगा, 

फिर जहाँ तक ये सिलसिला जाये.

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ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,

और दिल है कि बस…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 7:00am — 20 Comments

ग़ज़ल -नूर- नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,

१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)

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नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,

कई ख़ुदा से, कई ख़ुद से सरगिराँ हैं बहुत.

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किसी के मिलने मिलाने का पालिये न भरम,

ज़मीं-फ़लक में उफ़ुक़ पर भी दूरियाँ हैं बहुत.

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अभी ग़ज़ल में कई रँग और भरने हैं,

अभी ख़याल की शाख़ों पे तितलियाँ हैं बहुत.

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सियासी चाल है हिन्दी की जंग उर्दू से,

सहेलियाँ हैं ये बचपन की; हमज़बाँ हैं बहुत.

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परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर,

उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 5:42pm — 21 Comments

ग़ज़ल -नूर- कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो

१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)

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कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,

जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.

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ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,

शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.

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इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,

हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.

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शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,

है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.

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तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,

अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.  

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ज़बां…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments

ग़ज़ल-"नूर-ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

१२२/१२२/१२२/१२ 

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कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,

वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.

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चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,

सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.

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मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,

मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.  

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तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,

ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

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हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,

मगर आसमां ही झुका देर से.

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अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,

वो ख़त तो जला पर जला देर से.

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कई खेत…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2016 at 8:32pm — 23 Comments

ग़ज़ल-नूर --वक़्त यूँ आज़माता रहा

२१२/२१२/२१२

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वक़्त यूँ आज़माता रहा,

रोज़ ठोकर लगाता रहा.

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साहिलों पर समुन्दर ही ख़ुद,

नाम लिखता,, मिटाता रहा.

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वो मेरे ख़त जलाते रहे,  

और मैं दिल जलाता रहा.

.

वक़्त कम है, पता था मुझे

रोज़..फिर भी लुटाता रहा.   

.

डूबती नाव का नाख़ुदा,

बस उम्मीदें बँधाता रहा.

.

वो समझते रहे शेर हैं,

धडकनें मैं सुनाता रहा.

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कोई तो प्यास से मर गया,

कोई आँसू बहाता…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 5:04pm — 3 Comments

ग़ज़ल -फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.

221/2121/122/1212

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आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं, 

गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.

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क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार, 

यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.

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नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,  

ज़्यादा कुसूरवार  तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.

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ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र

हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.

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क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए

कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.

.

मिलते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments

ग़ज़ल -नूर- कहानी नहीं चली.

ग़ज़ल 

२२१/२१२/११२२/१२१२ 



कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,

मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.

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ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली

मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.  

.

कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,

धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.

.   

धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,   

चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.

.

होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’  

कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2016 at 7:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल-नूर ख़ुशबुओं का सफ़र

२१२२/१२१२/२२/

ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
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सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
.
देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
.  
चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.   
.
जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
.
‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments

ग़ज़ल- निलेश "नूर"

ग़ज़ल 

गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा

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झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,

आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.  

.

अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,

दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.

.

आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,

तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.

.

नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,

रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.

.

काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,

नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on February 7, 2016 at 9:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल- तमन्नाएँ

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

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कभी बदनाम गलियों में भटकती हैं तमन्नाएँ,

कभी खुद की निगाहों में खटकती हैं तमन्नाएँ.

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हवस की मकड़ियाँ बुनती है दिल में जाल हसरत के,

जहाँ मौका मिला, आकर, अटकती है तमन्नाएँ.

.

तमन्नाओं का अंधड़ रोक पाना है बहुत मुश्किल,

मगर दिल में बसा हो रब, ठिठकती हैं तमन्नाएँ.

.

कोई इंसान जब अपनी ख़ुदी को जीत लेता है,

तो फिर क़दमों में उस के, सर पटकती हैं तमन्नाएँ.

.

सफ़र जब जिस्म से बाहर का करने रूह चलती है,

चिता की…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 28, 2016 at 6:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -नूर-शायरों सा मिजाज़ रखता है.

२१२२/१२१२/२२ 



अपने दिल में वो राज़ रखता है,

शायरों सा मिजाज़ रखता है.

.

अब सियासत में आ गया है तो 

हर किसी को नवाज़ रखता है.

.

बात करता है गर्क़ होने की,

और कितने जहाज़ रखता है.

.

दिल से देता है वो दुआएँ जब

उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.

.

जानें कितनों से दिल लगा होगा

दिल में ढेरों दराज़ रखता है.     

.

ये सदी और ये  वफ़ादारी

जाहिलों से  रिवाज़ रखता है.

.

हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर

वो तख़य्युल…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 11:00am — 10 Comments

ग़ज़ल-नूर - माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 



माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते

अदलिया थी दिल बिछाए क़ातिलों के वास्ते.

.

रास्ते आपस में उलझे, मंजिलें पिन्हा हुईं,     

रास्ते गरचे बने थे मंज़िलों के वास्ते.

.

साहिलों पर कश्तियाँ महफूज़ रहती हैं मगर

कश्तियाँ कब थी बनाईं साहिलों के वास्ते.

.

इक निगाहे-शोख से हम ने लड़ाई थी नज़र

चंद क़िस्से छोड़ आए महफ़िलों के वास्ते.

.

कुछ तेरा ग़म और कुछ अग्यार की तंज़-ओ-निगाह  

और भी आसाँ हुए हम मुश्किलों के…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2016 at 7:30am — 12 Comments

ग़ज़ल-नूर --अपने अहसास दर-ब-दर रखते,

ग़ज़ल 

२१२२/१२१२/२२ (११२)

.

अपने अहसास दर-ब-दर रखते,

उन से उम्मीद हम अगर रखते.

.

कौन आता यहाँ, जो पूछता ‘वो’,

चाँद तारों में हम भी घर रखते.

.

नींद आती जो रात भर के लिए,

उन को ख़्वाबों में रात भर रखते.

.   

जंग से क़ब्ल हार जाते हम,  

दिल में ज़ालिम का हम जो डर रखते

.

वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,

जिस के क़दमों पे अपना सर रखते.

.

मुख़बिरी करते थे ज़माने की,

काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.

.

छोड़ देते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:20pm — 24 Comments

ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/

मंज़िलों का जो पता दे जाएगा

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.

.

और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा

ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.

.

दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा

फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.

.

ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा

बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.

.

आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया

फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.

.

जब वो सोचेगा हमारे वास्ते

फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

.    

“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन

मुश्किलों…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2015 at 10:54am — 31 Comments

ग़ज़ल -नूर: मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.

२१२२/१२१२/२२ (११२)

लोग समझे कि शाइरी होगी

बात तो सिर्फ़ आप की होगी

.  

रोज़ साहिल पे आ के रुकती है

शाम की कोई बे-बसी होगी

.

तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को

ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.

.

अपने जादू से जीत लेती है

ये कज़ा भी कोई परी होगी.

.

ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया

मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.

.

मेरे दर पे ख़ुशी है आने को

आती होगी!! कहीं रुकी होगी.

.

दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं

दिल में यादों की चाशनी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल-नूर - नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

१२१२/११२२/१२१२/११२

नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ
.

.

सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़

वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ. 

.

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ

वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.

.

ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ

बड़ा समझने से ख़ुद को…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:10am — 28 Comments

ग़ज़ल-नूर -अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.

२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
.
कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
.
यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.      
.
सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
.
मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
.
“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:30pm — 27 Comments

ग़ज़ल -नूर -सपने क्या क्या बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में

मात्रिक बहर 22/22/22/22/22/22/22/2 



क्या क्या सपनें बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में

क़िस्मत ने कुछ और लिखा था लेकिन अपने हाथों में.

.

कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था

मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.

.

कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे 

लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में.



एक ये मौसम, ख़ुश्क हवा ने दिल में डेरा डाला है

एक वो ऋत थी, साथ तुम्हारे भीगे थे बरसातों में.

.

एक समय तो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2015 at 10:00pm — 20 Comments

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