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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog (69)

ग़ज़ल (किसी की याद में...)

1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22) 

किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं

निशान ज़ख्मों  के हम  मुस्कुरा के देखते हैं 

 

निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत 

भँवर हैं कितने ही  जो सर उठा के देखते हैं 

चले भी आओ कि अब  इंतज़ार  होता नहीं 

कि अब ये रस्ते हमें  मुँह चिढ़ा के  देखते हैं  

ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए 

वही  तो  हैं  जो   हमें  आज़मा के  देखते  हैं 

 

तेरी जफ़ा …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 3, 2021 at 6:11pm — 18 Comments

कोशिश करो ! आगे बढ़ो...

कोशिश करो   हिम्मत करो 

आगे    बढ़ो    बढ़ते    रहो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

गिरने  के  डर  से मत रुको 

गिर जाओ तो फिर से उठो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

मंज़िल तुम्हें  मिल  जाएगी

क़िस्मत भी ये खुल जाएगी  

मंज़िल के मिलने तक चलो

चलते    रहो    चलते   रहो   आगे बढ़ो... आगे बढ़ो... 

रुकने से कुछ हासिल नहीं

रुक जाए जो कामिल नहीं   

उठते  क़दम  पीछे  न  लो 

पूरा   करो   जो …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 1, 2021 at 8:26am — 2 Comments

ग़ज़ल (महबूब ज़िन्दगी)

2212 - 1212 -  2212 - 12 

.

मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी

रब  का हसीन  तुहफ़ा  है क्या  ख़ूब ज़िन्दगी

.

आजिज़  हैं  ज़िन्दगी  से जो वो भी  मुरीद हैं

तालिब  सभी  हैं  इसके  है  मतलूब ज़िन्दगी

.

हर  लम्हा  शादमाँ  है  तेरे  दम  से  दिल मेरा

जब  से  हुई  है  तुझसे  ये   मन्सूब   ज़िन्दगी

.

जिसने  नज़र  उठा  के  भी  देखा  नहीं  मुझे 

उस  पर  हुई   है   देखिए   मरग़ूब   ज़िन्दगी

.

लोगों के दिल…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments

ग़ज़ल (हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है)

122 - 122 - 122 - 122

हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है

तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है

जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते 

यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है 

किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी

तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है 

ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले 

ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है 

करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी 

महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है 

तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 28, 2021 at 12:10pm — 2 Comments

ग़ज़ल (तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है)

2122- 2122- 2122- 212

तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है

तेरी जुर्रत से  हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का

नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है 

हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा 

मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है

ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा 

मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है 

मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 26, 2021 at 3:45pm — 8 Comments

ग़ज़ल (जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा)

2212 - 1221 - 2212 - 12 

जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा

शिकवा भी कोई सुनने यहाँ पर न आयेगा 

उसका पयाम ये है कि आयेगा 'दफ़्न' पर 

ली थी क़सम जो उसने यहाँ पर न आयेगा 

वो साथ मेरे यूँ तो रहा है तमाम उम्र 

सुनता है मेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ, पर न आयेगा 

जलकर ये ख़ाक़ हो भी चुका है वजूद अब 

तुमको नज़र ज़रा भी धुआँ पर न आयेगा 

नज़रों के रास्ते जो उतर दिल में करले घर 

अब तीर ऐसा कोई कमाँ पर न…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 12:09am — 2 Comments

ग़ज़ल (इक जहाँ और बसाओ तो चलें)

2122 - 1122 - 22/112

इक जहाँ और बसाओ तो चलें   

फिर मुझे अपना बनाओ तो चलें 

उम्र भर साथ निबाहो तो चलें

फ़ासिले दिल के मिटाओ तो चलें

चन्द क़दमों की रिफ़ाक़त क्या है

हर क़दम साथ बढ़ाओ तो चलें

ज़िन्दगी हम ने गवाँ दी यूँ ही             

हासिल-ए-इश्क़ बताओ तो चलें

जितने पर्दे हैं उठा दो न सनम

राज़ उल्फ़त के सुनाओ तो चलें  

              

ज़िन्दगी ! ऐसी भी क्या उजलत…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 12:13am — 4 Comments

ग़ज़ल (हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं)

221 - 1222 - 221 - 1222

हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं

होते ही ख़फ़ा हमसे दुश्मन से जा मिलते हैं 

गुलशन में तेरे हर दिन नए ग़ुंचे चटकते हैं

गिर जाते हैं कुछ पत्ते कुछ फूल महकते हैं

माली है तू हम सबका हम भी हैं तेरी बुलबुल 

हमको ये शरफ़ हासिल हम यूँ  ही चहकते हैं

आँखों में मुहब्बत भर देखा जो हमें तुम ने 

छाया है सुरूर ऐसा हम ख़ुद ही बहकते हैं

कुछ ऐसी तपिश तेरे पैकर की हुई…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 11, 2021 at 3:53pm — 8 Comments

ग़ज़ल (निगाहों-निगाहों में क्या माजरा है)

122-122-122-122

निगाहों-निगाहों में क्या माजरा है

न उनको ख़बर है न हमको पता है

न  तुमने  कहा  कुछ न  मैंने  सुना है 

निगाहों  से  ही  सब  बयाँ  हो रहा है

ख़ुमारी फ़ज़ा में ये छाई है कैसी  

ख़िरामा ख़िरामा नशा छा रहा है 

मुहब्बत की  ऐसी  हवा चल  पड़ी ये

मुअत्तर  महब्बत  में सब  हो गया है 

मिलाकर निगाहें तेरा मुस्कुराना 

मेरे दिल पे जानाँ ग़ज़ब ढा गया है 

निगाहें …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 4, 2021 at 10:28pm — 2 Comments

नग़्मा (घटा ग़मों की वही....)

1212 - 1122 - 1212 - 22

घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से 

वो दास्तान ज़ुबाँ पर जो आ गई फिर से 

ये उम्र कैसे कटेगी कहाँ बसर होगी 

अँधेरी रात की जाने न कब सहर होगी 

शिकस्त सारी उमीदें मिटा गई फिर से 

घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से 

मुझे गुमाँ भी नहीं था हबीब बदलेगा 

बदल गया है मगर, यूँ नसीब बदलेगा? 

बहार बनके ख़िज़ाँ ही जला गई फिर से 

घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 22, 2021 at 8:30am — 6 Comments

ग़ज़ल (कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम)

2122 - 1122 - 112

कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम

अब तो हो जाए महरबान करम......1

ग़ैर समझो न हमें यार सुनो

हम तुम्हारे हैं तुम्हारे ही थे हम....... 2

बात चाहे न मेरी मानो, सुनो! 

कीलें राहों में उगाओ न सनम....... 3

देके हमको भी अज़ीयत ये सुनो

दर्द तुमको भी तो होगा नहीं कम... 4

हम भी इन्सान हैं समझो तो ज़रा

देखो अच्छे नहीं इतने भी सितम....5

जिस्म से जान जुदा होती…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 15, 2021 at 9:32pm — 5 Comments

ग़ज़ल (इक है ज़मीं हमारी इक आसमाँ हमारा)

2212 -  1222 -  212 -  122

इक है ज़मीं हमारी इक आसमाँ हमारा

इक है ये इक रहेगा भारत हमारा प्यारा

हिन्दू हों या कि मुस्लिम सारे हैं भाई-भाई 

होंगे न अब कभी भी तक़्सीम हम दुबारा 

यौम-ए-जम्हूरियत पर ख़ुशियाँ मना रहे हैं 

हासिल शरफ़ जो है ये, ख़ूँ भी बहा हमारा 

अपने शहीदों को तुम हरगिज़ न भूल जाना

यादों को दिल में उनकी रखना जवाँ…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 6, 2021 at 7:27pm — 5 Comments

ग़ज़ल (दामन बचा के हमने दिल पर उठाए ग़म भी)

2212 - 1222 - 212 - 122

दामन बचा के हमने दिल पर उठाए ग़म भी

बेदाग़ हो गये हैं सब कुछ लुटा के हम भी

कुछ ख़्वाब थे हसीं कुछ अरमाँ थे प्यारे प्यारे

अहल-ए-वफ़ा से तालिब थे तो वफ़ा के हम भी 

उस शख़्स-ए-बावफ़ा से सबने वफ़ा ही पाई

ये बात और है के हम को मिले हैं ग़म भी 

गर्दिश में हूँ अगरचे रौशन है दिल की महफ़िल 

लब ख़ुश्क़ हैं तो क्या है आँखे हैं मेरी नम भी 

ज़ुल्फ़ों की छाँव मिलती पलकों का साया…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 2, 2021 at 11:28pm — 6 Comments

नज़्म (कृषि बिल पर किसानों के शकूक-ओ-शुब्हात)

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

ज़मीं होगी तुम्हारी पर फ़सल बेचेंगे यारों हम

मिलेगी तुमको राॅयल्टी न देंगे खेत यारों हम

जो बोएगा वही काटेगा ये बातें पुरानी हैं

फ़सल तय्यार करना तुम मगर काटेंगे यारों हम

ये जोड़ी अब तुम्हारी और हमारी ख़ूब चमकेगी

करो मज़दूरी तुम डटकर करें व्यापार यारों हम 

ज़मीं पर बस हमारी ही हुकूमत होगी अब प्यारो 

मईशत 'उनके' हाथों में न जाने देंगे यारों हम 

रखेंगे हम ज़ख़ीरा कर…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 29, 2021 at 11:46pm — 14 Comments

ग़ज़ल (निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता)

1222-1222-1222-1222

निगलते  भी  नहीं  बनता  उगलते  भी  नहीं  बनता 

हुई  उनसे  ख़ता  ऐसी   सँभलते  भी   नहीं  बनता 

इजारा  बज़्म  पे ऐसा  हुआ  कुछ   बदज़बानों  का

यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता 

जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट

ज़बाँ  से शे'र  क्या  मिसरा निकलते भी नहीं बनता 

रक़ीबों को  ख़ुशी  ऐसी मिली हमको  तबाह करके

कि  चाहें  ऊँचा उड़ना  पर  उछलते भी नहीं बनता 

ख़ुद…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:13am — 10 Comments

ग़ज़ल (ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे...)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ज़िन्दगी   भर   हादसे   दर   हादसे   होते   रहे

और   हम   हालात   पर   हँसते   रहे  रोते  रहे

आए   हैं   बेदार  करने   देखिये   हमको   वही

उम्र  भर  जो  ग़फ़लतों  की  नींद  में  सोते  रहे

 

कर  दिए आबाद  गुलशन  हमने  जिनके वास्ते 

वो   हमारे   रास्तों    में    ख़ार    ही   बोते   रहे 

बोझ  बन  जाते  हैं  रिश्ते  बिन भरोसे  प्यार के

जाने  क्यूँ  हम नफ़रतों  की  गठरियाँ  ढोते …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments

ग़ज़ल (हर  ख़ुशी  हर मोड़ पर...)

2122 - 2122 - 2122 - 21- 21

हादिसात   ऐसे   हुए   हैं   ज़िन्दगी   में   बार-बार

हर  ख़ुशी  हर मोड़ पर  रोई  तड़प कर  ज़ार-ज़ार

दर्द  ने   अंँगडाईयाँ  लेकर  ज़बान-ए-तन्ज़  में  यूँ 

पूछा    मेरी   बेबसी   से   कौन   तेरा   ग़म-गुसार

अपनी-अपनी क़िस्मतें  हैं अपना-अपना इंतिख़ाब

दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार 

रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब

जिस जगह पर हम  किया करते  हैं तेरा…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments

ग़ज़ल (न यूँ दर-दर भटकते हम...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता

ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता 

बिछा  के राहों  में काँटे  पता देते  हैं  मंज़िल   का

कोई  तो  रहनुमा   होता  कोई   तो  मेह्रबाँ   होता

ख़ुदा या  फेर लेता रुख़  जो तू भी ग़म के मारों से

तो  मुझ-से  बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता

बने  तुम  हमसफ़र  मेरे  ख़ुदा  का   शुक्र  है वर्ना 

न  जाने  तुम  कहाँ  होते  न  जाने मैं  कहाँ …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments

ग़ज़ल (वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी)

फ़ाइलुन -फ़ाइलुन - फ़ाइलुन -फ़ाइलुन

2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2



वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी 

रोज़ मुझपे क़हर बनके गिरने लगी

रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा

तर-बतर ये ज़मीं रोज़ रहने लगी

जबसे तकिया उन्होंने किया हाथ पर

हमको ख़ुद से महब्बत सी रहने लगी

एक ख़ुशबू जिगर में गई है उतर

साँस लेता हूँ जब भी महकने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 27, 2020 at 10:31am — 41 Comments

ग़ज़ल (मैं जो कारवाँ से बिछड़ गया)

212-122-1212

मैं जो कारवाँ से बिछड़ गया

यूँ तुम्हारे दर पे ही पड़ गया

 

दिल गया ख़ुशी की तलाश में 

साथ उनके हम से बिछड़ गया 

ये गरेबाँ गुल-रू की चाह में 

क्या कहूँ के फिर से उधड़ गया 

वो दुआ थी तेरी या बद् दुआ 

ये नसीब अपना बिगड़ गया 

कोई ज़िन्दगी तो सँवर गई

ग़म नहीं मुझे मैं उजड़ गया

वो तुम्हारी आँखों में चुभ रहा

लो हमारा ख़ेमा उखड़ गया

 

मैं झुका…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 20, 2020 at 6:30pm — 10 Comments

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