उसकी आँखें जो बोलती होतीं
कितने अफ़्साने कह रही होतीं
यूँ ख़ला में न ताकती होतीं
सिम्त मेरी भी देखती होतीं
काश आँखें मेरी इन आँखों से
हर घड़ी बात कर रही होतीं
उसकी आँखें जो बोलती होतीं...
देखकर मुझको मुस्कराती वो
अपनी आँखों में भी बसाती वो
जब कभी मुझसे रूठ जाती वो
मुझको आँखों से ही बताती वो
मेरे आने की राह भी तकतीं
नज़रें बस दरपे ही टिकी होतीं
उसकी आँखें जो बोलती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 23, 2021 at 9:47pm — 4 Comments
221 - 1222 - 221 - 1222
ये दर्द मिरे दिल के कब दिल से उतरते हैं
दिल में ही किया है घर सजते हैं सँवरते हैं
आती हैं बहारें तो खिलते हैं उमीदों से
गुल-बर्ग मगर फिर ये मोती से बिखरते हैं
जब टूटे हुए दिल पर तुम ज़र्ब लगाते हो
पूछो न मेरे क्या क्या जज़्बात उभरते हैं
पैवस्त ज़माने से थे जो मेरे सीने में
अब दर्द वही फिर से रह-रह के उभरते हैं
देखे हैं मुक़द्दर तो बिगड़े हुए बनते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 21, 2021 at 10:13pm — 10 Comments
221 - 2122 - 221 - 2122
इन्साफ़ बेचते हैं फ़ैज़ान बेचते हैं
हाकिम हैं कितने ही जो ईमान बेचते हैं
अज़मत वक़ार-ओ-हशमत पहचान बेचते हैं
क्या-क्या ये बे-हया बे-ईमान बेचते हैं
मअ'सूम को सज़ा दें मुजरिम को बख़्श दें जो
आदिल कहाँ के हैं वो इरफ़ान बेचते हैं
घटती ही जा रही है तौक़ीर अदलिया की
जबसे वहाँ के 'लाला' 'सामान' बेचते हैं
उनके दिलों में कितनी अज़मत ख़ुदा की होगी
पत्थर तराश कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 16, 2021 at 10:39am — 8 Comments
1121 - 2122 - 1121 - 2122
जो भुला चुके हैं मुझको मेरी ज़िन्दगी बदल के
वो रगों में दौड़ते हैं ज़र-ए-सुर्ख़ से पिघल के
जिन्हें अपने सख़्त दिल पर बड़ा नाज़ था अभी तक
सुनी दास्ताँ हमारी तो उन्हीं के अश्क छलके
तेरी बेरुख़ी से निकले मेरी जान, जान मेरी
मुझे देखता है जब तू यूँ नज़र बदल-बदल के
जो नज़र से बच निकलते तेरी ज़ुल्फ़ें थाम लेतीं
चले कैसे जाते फिर हम तेरी क़ैद से निकल के
न मिटाओ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 11:59am — 16 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है
अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है
मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे
मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है
मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको
सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है
लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर
चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है
कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 10, 2021 at 6:54pm — 18 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते
फ़क़त इक दाद देने कम ही आते हैं गुज़र जाते
न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा
ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते
हुई मुद्दत नहीं मैं भी 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया
ग़ज़ल पे सरसरी नज़रों से ही वो भी गुज़र जाते
अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो हमें बारीक-बीनी से
न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते
मिले…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 6:10pm — 17 Comments
122 - 122 - 122 - 122
(भुजंगप्रयात छंद नियम एवं मात्रा भार पर आधारित ग़ज़ल का प्रयास)
दिलों में उमीदें जगाने चला हूँ
बुझे दीपकों को जलाने चला हूँ
कि सारा जहाँ देश होगा हमारा
हदों के निशाँ मैं मिटाने चला हूँ
हवा ही मुझे वो पता दे गयी है
जहाँ आशियाना बसाने चला हूँ
चुभा ख़ार सा था निगाहों में तेरी
तुझी से निगाहें मिलाने चला हूँ
ख़तावार हूँ मैं सभी दोष …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 3:13pm — 38 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
हुस्न तो मिट जाएगा फिर भी अदा रह जाएगी
ढल चलेगी ये जवानी पर वफ़ा रह जाएगी
साथ मेरे तुम हो जब तक प्यार की सौग़ात है
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी ये इक सज़ा रह जाएगी
जब तलक माँ-बाप राज़ी बस दुआ मक़्बूल है
दिल दुखा तो फ़र्श पर ही हर दुआ रह जाएगी
ईद का दिन है तेरी रहमत भी है अब जोश में
मेरे जैसों की भी झोली ख़ाली क्या रह जाएगी
कर भलाई के भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 12, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
2122 - 2122
तू शफ़ीक़-ओ-मह्रबाँ है
तुझसा माँ कोई कहाँ है
तेरे आँचल का ये साया
मुझको जन्नत का गुमाँ है
तेरा दामन मेरी दुनिया
और क़दम सारा जहाँ है
रंज हो या हो ख़ुशी बस
तू सदा ही ख़ुश-बयाँ है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी तो
ख़ाक है या फिर धुआँ है
तेरे दामन के ये रौज़न
माँ ये मेरी कहकशाँ …
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 12, 2021 at 2:30pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 212
करते हो इतनी जो ये तकरार तुम
कैसे दिलबर के बनोगे यार तुम
तौलते हो प्यार भी मीज़ान में
प्यार को समझे हो क्या व्यापार तुम
इश्क़ में जब तक न होगी हाँ में हाँ
हो नहीं सकते कभी दिलदार तुम
हम-ज़बाँ हों इश्क़ में - पहला सबक़
सीख कर करना वफ़ा इज़हार तुम
जानेमन जज़्बात को समझे बिना
पा नहीं सकते किसी का प्यार तुम
दिल के…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 7, 2021 at 5:59pm — 13 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ख़ून की जब तक ज़रूरत थी मेरे चाहा मुझे
बा'द अज़ाँ बस दूध की मक्खी समझ फेंका मुझे
उसने जब मंज़िल की जानिब गामज़न पाया मुझे
तंज़ से मा'मूर नफ़रत की नज़र देखा मुझे
हक़-ब-जानिब बढ़ गए जब ये क़दम रुकते नहीं
मुश्किलों ने बढ़के यूँ तो लाख रोका था मुझे
अपने अहसाँ के 'इवज़ वो कर गया ख़ूँ का हिसाब
यारो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 31, 2021 at 10:55pm — 2 Comments
2122 - 1122 - 1122 - 22/112
काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी
देता इफ़लास-ज़दाओं को सहारा मैं भी
रौशनी मेरे सियह-ख़ाने में रहती हर शब
टिमटिमाता जो कोई होता सितारा मैं भी
वो निगाहों में मिरी जैसे बसे रहते हैं
काश नज़रों में रहूँ बनके नज़ारा मैं भी
वो भी मेरी ही तरह दर्द सहे आहें भरे
यूँ ही तन्हा न रहूँ इश्क़ का मारा मैं भी
जिस तरह क़ैस ने सहरा में गुज़ारे थे…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2021 at 5:00pm — 6 Comments
प्राणों का कर गये जो परिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
आज़ादी का ये दिन है ख़ुशियाँ रहें मुबारक
मर कर भी दे गये जो ज़िंदगी तुम्हें मुबारक
सरहद पे रंग भरते वो जवान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर लो
अक्सर घिरे रहे जो बे-हिसाब मुश्किलों में
होकर शहीद भी वो ज़िन्दा हैं धड़कनों में
उन सच्चे सैनिकों का प्रतिदान याद कर लो
अपने शहीदों का तुम बलिदान याद कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 14, 2021 at 3:12pm — 2 Comments
2122 - 1122 - 112/22
(बह्र - रमल मुसद्दस मख़्बून मह्ज़ूफ़)
सर ये जिस दर न झुके दर है कहाँ
हर कहीं पर जो झुके सर है कहाँ
हौसलों से जो भरे ऊँची उड़ान
गिर के मरने का उसे डर है कहाँ
अम्न-ओ-इन्साफ़ जो राइज कर दे
आज के दौर का 'हैदर' है कहाँ
देखते हैं यूँ हिक़ारत से मुझे
हम कहाँ और ये अहक़र है कहाँ
यूँ अज़ीज़ों से किनाराकश हूँ
मुझसे पूछेंगे तेरा घर है कहाँ
फिर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 7, 2021 at 3:41pm — 3 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
आईं हैं जब से रास ये तन्हाईयाँ हमें
अपनी ही अजनबी लगें परछाईयाँ हमें
ख़ल्वत के अँधेरों में था हासिल हमें सुकूँ
तड़पा रहीं हैं कितना ये रानाइयाँ हमें
देखा न जाता हमसे किसी को भी ग़मज़दा
भातीं नहीं किसी की भी रुस्वाईयाँ हमें
जिसको दिया सहारा उसी ने दग़ा किया
कितना सता रहीं हैं ये अच्छाईयाँ हमें
रानाइयों से दूर निकल आए …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 25, 2021 at 4:46pm — 4 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
(बह्र- रमल मुसम्मन् महज़ूफ़)
मसनदों पर आज बैठे हो नहीं बैठोगे कल
फ़र्श पर आ जाओ वैसे भी यहीं बैठोगे कल
देना होगा पूरा-पूरा साहिबो तुमको हिसाब
रू-ब-रू नज़रें मिलाकर यूँ नहीं बैठोगे कल
आज तुम हो होगा कल हाकिम ज़माना देखना
जाग उट्ठा है बशर अब छुप कहीं बैठोगे कल…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2021 at 3:54pm — 8 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम)
जगह दिल में तुम्हारे अब भी थोड़ी सी बची है क्या
मेरे बिन ज़िन्दगी में जो कमी सी थी वही है क्या
अभी तक आरज़ू जो दफ़्न कर रक्खी है सीने में
तड़प उसकी जो सुनता हूँ वो तुमने भी सुनी है क्या
तेरे साँसों की गर्मी से पिघल कर रह गया हूँ मैं
जो हालत हो गई मेरी वही तेरी हुई है क्या
मिले हो जब भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments
2222 - 2222
हो के पशेमाँ याद करोगे
रो कर भी फ़रियाद करोगे
याद करोगे जब भी हमको
अश्क़ अपने बरबाद करोगे
ज़ख़्म लगेंगे जब फूलों से
तुम हमको तब याद करोगे
घर तो बसा लोगे यारो पर
दिल कैसे आबाद करोगे
उतनी दुआएं दूँगा तुमको
जितना मुझे बरबाद करोगे
बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा
जो चाहे इरशाद करोगे
मेरी ख़ातिर छोड़ो भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2021 at 9:00pm — 4 Comments
हमने तो अब ये ठाना है
कोरोना को हराना है
अब साथ न छूटेगा ये
वादा हमें निभाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
जाना हो जब ज़रूरी
सबसे दो गज़ की दूरी
कर हाथ सेनिटाइज़्ड
और मास्क भी लगाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
बाहर से जब भी आओ
अच्छी तरह नहाओ
ज्वर, छींक हो या खाँसी
डाॅक्टर को ही दिखाना है
कोरोना को …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 12, 2021 at 7:02pm — 6 Comments
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