For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Arun Sri's Blog – December 2011 Archive (5)

एक मुट्ठी धूप

तुम्हे शिकायत है

इस गहरे अँधेरे से ,

पर क्या तुमने कोशिश की

एक दिया जलाने की ?

या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर

बनाया कोई सुरक्षा घेरा

कुछ जलते दीयों को

हवा से बचाने के लिए ?

 

नही न ?

 

कोई बात नहीं !

अभी सूखा नही है

समय का फूल !

 

चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ,

उछाल दें पर्वतों पर ,

घाटियों में भी !

खिला…

Continue

Added by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments

कितने ख्वाब सजाएगी

झील हर इक कतरे को झूठ बताएगी

मछली निज आँसू किसको दिखलाएगी

 

लब पर कुछ झूठी मुस्काने चिपकाकर

कब तक वो अपने दिल को बहलाएगी

 

उसकी किस्मत में जीवन भर रातें है

वो भी आखिर कितने ख्वाब सजाएगी

 

हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी

किस्मत हमको कभी नही मिलवाएगी

 

 

 

................................,... अरुन श्री !

Added by Arun Sri on December 14, 2011 at 11:30am — 4 Comments

बातें पुरानी फूल की

क्यों मिली है कुछ पलों को बागवानी फूल की

उम्र   भर  कहते  रहेंगे हम   कहानी फूल की



वो मेरे सीने से लगकर हाले-दिल कहते रहे

फूल  सी बातें सुनी हमने  जुबानी फूल  की



मनचले भवरे चमन  के  पास मंडराने लगे

चुभ रही है आँख में सबके जवानी फूल की



खौफ-ए-गुलचीन-ओ-खिज़ा के साए में हसती रहे

मैं समझ पाया न तबियत की रवानी फूल की



आज चाँदी की चमक से बागवान अँधा हुआ

पाँव के नीचे कटेगी अब जवानी फूल की



उजड़े हुए बाग-ए-मुहब्बत को हैं…

Continue

Added by Arun Sri on December 7, 2011 at 10:32am — No Comments

कैसे कहता ?

आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना

नई राह पर,

हाँथ मिलाया, गले मिले फिर

एक दूजे का हाल सुना,

कुछ मौसम की बात हुई

कुछ अपने परिवारों की

आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,

उन रिश्तों का जिक्र हुआ

जो अर्थहीन होने वाले है,

और कुछ खुशियों की बात हुई,

फिर उसने मुझसे पूछ लिया

"क्या अब भी लिखते हो" ?

मै चुप था

सोच रहा था सच न बताऊँ,

और नहीं बताया !

 

कैसे कहता ?

मन में बनते गीत दबा…

Continue

Added by Arun Sri on December 4, 2011 at 1:41pm — 3 Comments

बिखरना मत

तू कभी मुश्किलों से डरना मत
या मेरी राह से गुजरना मत

दर्द जीवन में मिले तो उसको
समेट लेना मगर बिखरना मत

सुलाया खंजरों के बिस्तर पर
और कहते है आह भरना मत

मैंने ये तो नही कहा तुमसे
न रहूँ मैं तो तुम संवारना मत

मै बहकने लगूं कभी भी अगर
तुमको मेरी कसम संभलना मत

आतिश-ए-इश्क से भरा हूँ मैं
मोम है तू मगर पिघलना मत


............................................ अरुन श्री !

Added by Arun Sri on December 1, 2011 at 12:48pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service