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दिनेश कुमार's Blog (89)

ग़ज़ल -- सुब्ह से शाम हम कमाते हैं

सुब्ह से शाम हम कमाते हैं

तब भी मुश्किल से घर चलाते हैं



ये विरासत में हमको सीख मिली

हम तो मेहनत की रोटी खाते हैं



शाम होते ही हम परिन्दों से

लौट कर अपने घर को आते हैं



जिनके सर पर खुदा का हाथ है वो

आँधियों में दिये जलाते हैं



रोज़-ए-महशर की छोड़ कर चिन्ता

रिन्द मयखाने रोज़ जाते हैं



मुझको दुनिया सराय लगती है

लोग आते हैं लोग जाते हैं



हम तो फुरसत में दिल के छालों को

शे'र के पर्दों में छुपाते… Continue

Added by दिनेश कुमार on February 20, 2015 at 7:04am — 27 Comments

ग़ज़ल -- राम नहीं रावण देखा है

राम नहीं रावण देखा है

कलियुग का सज्जन देखा है



माली के ही हाथों उजड़ा

ऐसा भी उपवन देखा है.



काँप गया हूँ भीतर तक मैं

जबसे ये दर्पण देखा है



ढूँढ़ रही है बूढ़ी आँखें

क्या तुमने बचपन देखा है ?



हमने घर के बँटवारे में

रोता ये आँगन देखा है.



दिल का मोर खुशी को तरसे

इसने कब सावन देखा है



दूर कहीं अब धरती के संग

हम ने नील गगन देखा है



धनवानों का अक्सर मैंने

निर्धन अन्तर्मन देखा… Continue

Added by दिनेश कुमार on February 15, 2015 at 7:47pm — 17 Comments

ग़ज़ल -- दिल है सीने से लापता शायद

दिल है सीने से लापता शायद

इश्क़ मुझको भी हो गया शायद



जिन्दगी उलझनों का नाम हुई

ले रहा इम्तिहाँ ख़ुदा शायद



बिन कहे वो मिरी करे इमदाद

ज़ेह्न में उसके कुछ पका शायद



हर घड़ी वो जो मुस्कुराता है.

जख़्म उसका कोई हरा शायद



झूठ को झूठ अब भी कहता मैं

मुझ में बाक़ी है बचपना शायद



रात भर करवटें बदलता हूँ

बोझ पापों का बढ़ गया शायद



कौन करता लिहाज़ अपनों का

जह्र रिश्तों में अब घुला शायद



नर्म लहज़े में आप… Continue

Added by दिनेश कुमार on February 9, 2015 at 12:40pm — 33 Comments

ग़ज़ल -- कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती

जो दिल कहे वो ज़रूरत नहीं हुआ करती

कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती



तुम्हें गुरेज़ नहीं है यही सबब तो नहीं

बिना फरेब सियासत नहीं हुआ करती



ज़बान दे के पलटना उन्हें मुबारक हो

मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती



मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ

कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती



जो चंद पैसों में ईमान बेच देते हैं

उन्हें किसी से रिफ़ाक़त नहीं हुआ करती



वो नामचीन हुए कल जो तिफ्ले-मकतब थे

कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ… Continue

Added by दिनेश कुमार on January 28, 2015 at 7:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल -- नफ़रत नहीं तो उस से मुझे प्यार भी नहीं। ( इस्लाह हेतु )

221-2121-1221-212



नफ़रत नहीं तो उस से मुझे प्यार भी नहीं.

मेरे लिए वो शख़्श मगर अजनबी नहीं।



दुनिया में बुतपरस्त फ़क़त मैं नहीं ख़ुदा.

तेरे जहाँ में आशिक़ों की कुछ कमी नहीं।



कुछ तो मेरा नसीब ही सहरा की धूप है.

उस पर तुम्हारे प्यार की बौछार भी नहीं।



सहरानवर्द दिल है मिरा आप के बग़ैर.

जब से गए हैं आप मेरी ज़िन्दगी नहीं।



प्यालों को तोड़ कर दिल ए बेज़ार कह उठा.

जामे अजल नहीं तो कोई मयकशी नहीं।



इतना न ग़ौर से मुझे… Continue

Added by दिनेश कुमार on January 9, 2015 at 7:00pm — 20 Comments

तरही गजल

1212-1122-1212-112

" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "

मिला सुकून जो दिल को तो अब मलाल नहीं



बिना क़सूर ही मैं बज़्म से निकाला गया

गज़ब के पूछा किसी ने कोई सवाल नहीं



मैं अपने खुद के ही दम पर जहाँ में जी लूँगाा

जो हौंसला हो अगर कुछ भी फिर मुहाल नहीं



वफ़ा की राह पे चल कर किसी को कुछ न मिला

मगर मैं ज़िन्दा हूँ अब तक ये क्या कमाल नहीं



तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था

थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं…



Continue

Added by दिनेश कुमार on January 2, 2015 at 8:22pm — 20 Comments

ग़ज़ल -- मुझ पे कब इख्तियार मेरा है ....

मुझ पे कब इख्तियार मेरा है
यूँ नए साल का सवेरा है.

ख़ैरियत लोग मेरी पूछें जब
ज़ेह्न ने दर्द ही उकेरा है .

इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो
चाँद के पार भी बसेरा है.

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.

धर्म ईमान कुफ़्र की बातें
मुझ पे वाइज़ असर ये तेरा है .

नाम तुझ पर 'दिनेश' जँचता नहीं
तेरी किस्मत में जब अंधेरा है .

दिनेश कुमार
( मौलिक व अप्रकाशित )

Added by दिनेश कुमार on January 1, 2015 at 8:00am — 14 Comments

तरही ग़ज़ल -- मोगरे के फूल पर .....

ग़ज़ल



बुजदिलों के शह्र में मर्दानगी सोई हुई..

जुल्मतों की शब मुसलसल, रोशनी सोई हुई ।



बच्चियों पर बढ़ रहे अपराध सीना तानकर ...

हर किसी की आँखों में शर्मिंदगी सोई हुई ।



शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....

मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।



मुज़रिमों का हौसला अब दिन-ब-दिन बढ़ता गया ....

देश के सब मुन्सिफ़ों की लेखनी सोई हुई ।



चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....

एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई… Continue

Added by दिनेश कुमार on December 29, 2014 at 10:32pm — 21 Comments

गजल -- देखकर मासूम बच्चों की हँसी

ग़ैर तरही गजल



देखकर मासूम बच्चों की हँसी

आज कुछ मन की उदासी कम हुई



गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी

तुझसे मन उकता गया है शायरी



मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी

हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी



कल मेरे दिल को बहुत सदमा लगा

मेरी गजलें उसने बेगानी कही



गुजरा बचपन जैसे कल की बात हो

तेज़ है रफ़्तार कितनी वक़्त की



रेत पर लिक्खी इबारत की तरह

कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी



आप इसको जो भी चाहे नाम… Continue

Added by दिनेश कुमार on December 19, 2014 at 4:18pm — 18 Comments

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