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Naveen Mani Tripathi's Blog (306)

ग़ज़ल - याद शब् भर कई दफ़ा आई

2122 1212 22

कोई खुशबू भरी हवा आई ।

याद शब् भर कई दफ़ा आई ।।



दर्द दिल का नही मिटा पाया।

जब से हिस्से में बेवफा आई ।।



कौन कहता है नासमझ है वो ।

दुश्मनी वक्त पर निभा आई ।।



उम्र गुजरी जिसे मनाने में ।

आज लेकर वही हया आई ।।



कुछ तो नीयत में फासले होंगे ।

वो अदब में नजर झुका आई ।।



चन्द लम्हे थे जिंदगी खातिर ।

बेरहम हो के फिर क़ज़ा आई ।।



है अलग बात भूल जाने की ।

काम उसके मेरी दुआ आई ।।



ये… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 5, 2016 at 4:36pm — 2 Comments

ग़ज़ल - मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया

ग़ज़ल



1121 2122 1121 2122

था नसीब का तकाजा वो बना ठना न आया ।

मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया ।।



कई जख़्म सह गए हम ये निशान कह रहे हैं ।

तेरी बदसलूकियों पे , मुझे रूठना न आया।।



ये वफ़ा की थी तिज़ारत,मैं समझ सका न तुझको ।

है सितम का इन्तिहाँ ये , मुझे टूटना न आया ।।



हुए हम भी बे खबर जब,वो नई नई थी बंदिश।

वो ग़ज़ल की तर्जुमा थी , हमे झूमना न आया ।।



था सराफ़तों का मंजर ,वो झुकी हुई निगाहें ।

बड़ी तेज आंधियाँ थीं ,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2016 at 1:00am — 2 Comments

ग़ज़ल - जाती तेरे मिज़ाज से क्यूँ बेरुख़ी नहीं

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बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।

फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।





आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।

दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।





बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।

गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।





कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।

शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।





माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।

उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।





तेरा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 1:00am — 6 Comments

दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए

‌2212 2212 2212

.

दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए ।

तुम बेखुदी में बस जफ़ा पढ़ते गए ।।



पूछा किया वो आईने से रात भर ।

आवारगी में हुस्न क्यूँ ढलते गए ।।



आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।

देखा चिराग़े अश्क भी जलते गए ।।



नादानियों में फासलो से बेखबर ।

बस जिंदगी भर हाथ को मलते गए ।।



तालीम ले बैठा था जब इन्साफ की ।

क्यूँ मुज़रिमो के फैसले बदले गए ।।



जिसकी बेबाकी के चर्चे थे बहुत ।

तहज़ीब को अक्सर वही छलते गए…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 22, 2016 at 7:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल - ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं

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हमारे जख़्म के गहरे निशान और भी हैं ।

ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं ।।



न रोक आज परिंदों की आजमाइश को ।

फ़ना के बाद कई आसमान और भी हैं ।।



समझ सको तो मेरी बात मान लो वरना ।

मेरी किताब में लिक्खी जुबान और भी हैं ।।



जरा सँभल के चलो ये मुकाम ठीक नही ।

यहां तो लोग भी रखते इमान और भी हैं ।।



न जाइयेगा कभी इश्क के समन्दर में ।

वहाँ तो दर्द के बढ़ते उफान और भी हैं ।।



जो हुक्मरां है उसे… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 19, 2016 at 2:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल - हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले

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हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले ।

देखा तो मयकदा में कई मयकदे मिले ।।



साकी शराब डाल के हँस कर के यूं कहा।

आ जाइए हुजूर मुकद्दर भले मिले ।।



कैसे कहूँ खुदा की इबादत नहीं वहां ।

रिन्दों के साथ में भी नए फ़लसफ़े मिले ।।



यह बात और है की उसे होश आ गया ।

वरना तमाम रात उसे मनचले मिले ।।



जिसको फ़कीर जान के लिल्लाह कर दिया ।

चर्चा उसी के घर में ख़ज़ाने दबे मिले ।।



मुझ से न पूछिए कि…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2016 at 3:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212



बिकते रहे ईमान हुकूमत की फेर में ।

मरते गए जवान हिफ़ाज़त की फेर में ।।



नापाक पाक है ये खबर आम हो गई ।

बरबादियाँ तमाम नसीहत की फेर में ।।



कुछ दर्द को बयां वो सरेआम कर गया ।

मिटता रहा ये मुल्क शराफ़त की फेर में ।।



आ जाइए हुजूर ये हिन्दोस्तान है ।

गद्दार बिक रहे हैं रियासत के फेर में ।।



ऐटम की धमकियों का असर कुछ नही हुआ ।

हम भी पड़े हुए हैं हिमाकत की फेर में।।



सुन ले मेरे रकीब जमाना बदल गया… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 7, 2016 at 9:25am — 2 Comments

ग़ज़ल - जिंदगी है ढ़लान पर भाई

2122 1212 22

आज मुद्दा ज़ुबान पर भाई ।

गोलियां क्यूँ जवान पर भाई ।।



उठ रहीं बेहिसाब उँगली क्यूँ ।

इस लचीली कमान पर भाई ।।



कुछ वफादार हैं अदावत के।

तेरे अपने मकान पर भाई।।



बाल बाका न हो सका उनका।

खूब चर्चा उफान पर भाई ।।



मरमिटे हम भी तेरी छाती पर।

चोट खाया गुमान पर भाई ।।



बिक रही दहशतें हिमाक़त में ।

उस की छोटी दुकान पर भाई ।।



गीदड़ो का फसल पे हमला है ।

बैठ ऊँचे मचान पर भाई ।।



यार… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 27, 2016 at 12:34am — 4 Comments

ग़ज़ल - मेरी ग़ज़ल पे निशाना है बात क्या करना

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बड़ा खराब ज़माना है बात क्या करना ।

मेरी ग़ज़ल पे निशाना है बात क्या करना ।।



नहीं है नज्म की तहजीब जिस मुसाफिर को ।

उसी से दिल का फ़साना है बात क्या करना ।।



अजीब शख़्स यूँ पढ़ता उन्हीं निगाहों को ।

किसी को वक्त गवाना है बात क्या करना ।।



बिखर गए है तरन्नुम के हर्फ़ महफ़िल में ।

नजर नज़र से मिलाना है बात क्या करना ।।



हुजूर जिन से दुपट्टे कभी नही सँभले ।

उसे भी घर को बसाना है बात क्या करना ।।



दिखी है… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 25, 2016 at 6:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल - आँख जब भी कभी लड़ी होगी

बहरे ख़फ़ीफ़ मुसद्दस् मख़बून

फाइलातुन मुफाइलुन् फेलुन



2122 1212 22



उन अदाओं में तिश्नगी होगी ।

कोई खुशबू नई नई होगी ।।



यूं ही नाराजगी नही होती ।

बात उसने भी कुछ कही होगी ।।



होश आया कहाँ उसे अब तक ।

कुछ तबीयत मचल गई होगी ।।



बेकरारी का बस यही आलम ।

बे खबर नींद में चली होगी ।।



कर गया इश्क में तिज़ारत वह ।

शक है नीयत नहीं भली होगी ।।



वो बगावत की बात करता है ।

खबर शायद सही पढ़ी होगी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2016 at 11:54am — 12 Comments

ग़ज़ल - कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।

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चिलमन तमाम वक्त हटाया करेंगे आप ।

तश्वीर महफ़िलों में दिखाया करेंगे आप ।।



चुप चाप आसुओं को छुपाया करेंगे आप ।

कुछ बात मशबरे में बताया करेंगे आप।।



मुझको मेरे नसीब पे यूं छोड़िये जनाब ।

कब तक खिंजां का साथ निभाया करेंगे आप।।



तहज़ीब मिट चुकी है जमाने के आस पास ।

बुझते मसाल को न जलाया करेंगे आप।।



यह बात सच लगी कि मुकद्दर नही है साथ ।

मेरे ज़ख़म पे ईद मनाया करेंगे आप ।।



आजाद आसमा के परिंदे हैं बदजुबान… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 3:44pm — 2 Comments

दोहे

बलात्कार पर कर रहे मोदी बिल को पेश ।

दलित नही महिला अगर होगा हल्का केस ।।



ब्लात्कार में भेद कर तोड़ा है विश्वास ।

अच्छे दिन अब लद गए टूटी सबकी आस ।।



कितना सस्ता ढूढ़ता कुर्सी का वह मन्त्र ।

मोबाइल के दाम में बिक जाता जनतन्त्र ।।



सड़को पर इज्जत लुटे मथुरा भी हैरान ।

न्याय बदायूं मांगता सब उनके शैतान ।।



नए सुशासन दौर में जनता है गमगीन ।

सौगातों में ला रहे वही सहाबुद्दीन ।।



छूटा गुंडा जेल से जिसका था अनुमान ।

जंगल… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 10, 2016 at 12:28am — 6 Comments

ग़ज़ल : गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा

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गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा ।

मतवाली की चाल शराबी तौबा तौबा ।।



कातिल शम्मा रात जला कर लूटे हस्ती।

नयी अदा में बात नबाबी तौबा तौबा ।।



अंदाजों से हुस्न बयां वो आधा है अब ।

हुई हया से आँख हिजाबी तौबा तौबा ।।



खंजर दिल पे मार गई है हक से यारों ।

पढ़ती है वो रोज तराबी तौबा तौबा ।।



खैरातों में इश्क बटा कब उस के दर पे ।

निकली वह भी खूब हिसाबी तौबा तौबा ।।



अंगड़ाई न ले तू खुले दरीचों से अब…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 5, 2016 at 9:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल : टूटती सारी हदें सड़कों पे अब

212 22 12 22 12

टूटती सारी हदें सड़कों पे अब ।

लुट रहीं हैं इज्जतें सड़को पे अब ।।



ऐ मुसाफिर देख जंगल राज ये ।

फिर खड़ी है जहमतें सड़कों पे अब ।।



हैं बहुत दागी यहां की खाकियां ।

बिक रही है हरकतें सड़को पे अब ।।



हो चुके हैं राज में गुंडे बहुत ।

लग रहीं हैं महफ़िलें सड़कों पे अब ।।



दिख रही इंसानियत की बेबसी ।

हर तरह की सोहबतें सड़कों पे अब ।।



बाप जिन्दा लाश बनकर रह गया ।

मिट गयीं सब अस्मतें सड़को पे अब ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 3, 2016 at 5:30am — 4 Comments

ग़ज़ल: शूलियों पर चढ़ चुकी सम्वेदनायें

212 22 12 22122



शूलियों पर चढ़ चुकी सम्वेदनायें ।

बाप के कन्धों पे बेटे छटपटाएं ।।



लाश अपनों की उठाये फिर रहा है ।

दे रही सरकार कैसी यातनाएं ।।



है यही किस्मत में बस विषपान कर लें ।

दर्द की गहराइयां कैसे छुपाएँ ।।



सिर्फ खामोशी का हक अदने को हासिल ।

डूबती हैं रोज मानव चेतनाएं ।।



हम गरीबों का खुदा कोई कहाँ है ।

मुफलिसी पर हुक्मरां भी मुस्कुराएं।।



वो करेंगे जुर्म का अब फैसला क्या ।

जो नचाते सैफई में…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 1, 2016 at 9:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल - लिखता मिला मज़ार पे अरमान आदमी

2212 121 1221 212

खोने लगा यकीन है अनजान आदमी ।

जब से बना है मौत का सामान आदमी ।।



बाज़ार सज रहे हैं नए जिस्म को लिए ।

बनकर बिका है मुल्क में दूकान आदमी ।।



ठहरो मियां हराम न खैरात हो कहीं ।

माना कहाँ है वक्त पे एहसान आदमी ।।



दरिया में डालता है वो नेकी का हौसला ।

देखा खुदा के नाम परेशान आदमी ।।



मजहब तो शर्मशार तेरी हरकतों पे है ।

कुछ मजहबी इमाम भी शैतान आदमी ।।



मतलब परस्तियों का जरा देखिये सितम ।

बेचा…

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Added by Naveen Mani Tripathi on August 30, 2016 at 2:30am — 5 Comments

ग़ज़ल - निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए

(बलोचिस्तान के ताज़ा हालात पर )



2212 1 21 12 212 12

कुछ मुद्दतो के बाद सही फैसले हुए ।

निकले तमाम हाथ तिरंगे लिए हुए ।।



मत पूछिए गुनाह किसी के हिजाब का ।

देखा कसूरवार के शिकवे गिले हुए ।।



हालात पराये है किसी के दयार में ।

है वक्त बेहिसाब बड़े हौसले हुए ।।



तकसीम कर रहा था हमारा मकान जो।

शायद उसी के घर में कई जलजले हुए ।।



पत्थर न फेंकिए है शहीदों का कारवां ।

कैसे हिमाकतों से लगे सिलसिले हुए ।।



कातिल तेरा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 27, 2016 at 1:33am — 9 Comments

ग़ज़ल - मेरे दर्दे गम की कहानी न पूछो

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मेरे दर्दो गम की कहानी न पूछो ।

मुहब्बत की कोई निशानी न पूछो ।।



बहुत आरजूएं दफन मकबरे में ।

कयामत से गुजरी जवानी न पूछो ।।



मुझे याद है वो तरन्नुम तुम्हारा ।

ग़ज़ल महफ़िलों की पुरानी न पूछो ।।



हुई रफ्ता रफ्ता जवां सब अदाएं ।

सितम ढा गयी कब सयानी न पूछो ।।



बयां हो गई इश्क की हर हकीकत ।

समन्दर की लहरों का पानी न पूछो ।।



सलामी नजर से नज़र कर गयी थी ।

वो चिलमन से नज़रें झुकानी न पूछो…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2016 at 10:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल - वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले

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तेरी बज्म में कुछ सुनाने से पहले ।

मैं रोया बहुत गुनगुनाने से पहले ।।



न बरबाद कर दें ये नजरें इनायत ।

वो दिल मांगते दिल बसाने से पहले ।।



है इन मैकदों में चलन रफ्ता रफ्ता ।

करो होश गुम कुछ पिलाने से पहले ।।



तेरे हर सितम से सवालात इतना ।

मैं लूटा गया क्यूँ जमाने से पहले ।।



बदल जाने वाले बदल ही गया तू ।

मुहब्बत की कसमें निभाने से पहले ।।



ख़रीदार निकला है वो आंसुओं का ।

जो आकर गया…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 22, 2016 at 9:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल

सुना है दिल लगाने में बहुत मशहूर है दिल्ली ।

मुझे कह कर गई है वो अभी तो दूर है दिल्ली ।।



जहाँ हर शाम ढलती हो मैकदों को सजाने में ।

कहा अक्सर ज़माने ने नशे में चूर है दिल्ली ।।



चली आती है ख़्वाबों में हजारों दास्ताँ लेकर ।

तुम्हारे जुर्म से होने लगी बेनूर है दिल्ली ।।



सड़क के हादसों के नाम पर लूटी गयी है वो ।

दफ़न कुछ आबरू करके बड़ी मगरूर है दिल्ली।।



सितमगर की कहानी पूछती शरहद की वो लाशें ।

न जाने किस मुरव्वत में लगी मजबूर है दिल्ली… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 19, 2016 at 10:51pm — 1 Comment

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