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ओढ़ ली बातियों ने चुनर दीप की .....गीत//डॉ. प्राची

ओढ़ ली बातियों ने चुनर दीप की, लौ लगी झूमने ले मिलन की लगन।

आस की रात है, प्रीत की बात है, सुलगी-सुलगी दिलों में मिलन की अगन....



प्यार के स्वप्न की सप्त रंगी किरण

आ जमीं पर उतर के रंगोली सजा,

हाल दिल का है क्या, फूल उनसे कहें

महकी खुशबू सुना दे मेरी हर रज़ा,

ओ दुआओ पिया की उतारो नज़र, अपने आशीष से आज कर दो सगन....

ओढ़ ली....



मुस्कुराहट के झिलमिल चिरागो ज़रा

हर तरफ चाँदनी सा उजाला भरो,

आज वाचाल होने दो खामोशियाँ

बात नयनों ही नयनों में… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 30, 2016 at 11:12am — 3 Comments

हे गणपति! हे विघ्न विनाशक.....वंदना गीत//डॉ. प्राची

हे गणपति! हे विघ्न विनाशक! वंदन तुम स्वीकार करो।

राह कठिन चहुँ ओर अँधेरा, प्रभु तम का संहार करो।



हैं पग के उद्देश्य सभी शुभ

तुम मंज़िल इनको देना,

जो रोकें रस्ता मंज़िल का

उन विघ्नों को हर लेना

तुम असीम हम प्राणी सीमित, प्रभु तुम ही उद्धार करो।हे गणपति...



बिछी बिसातें चौसर की और

मंगल हुए अमंगल हैं,

अपने गढ़ते चक्र-व्यूह और

अपनों से ही दंगल हैं,

सुलझे गुत्थी शह-मातों की, हर उलझन से पार करो। हे गणपति...



जीवन -जैसे जटिल… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on September 4, 2016 at 2:30pm — 6 Comments

रुनझुन फिर पायल होने दो.... गीत//डॉ प्राची

बरसो तुम जीभर मरुथल में, अब खुद को बादल होने दो।

अपनी एक छुअन से मेरा पोर-पोर संदल होने दो।



जब खुशियों की सेज बिछी थी

तब आँखों में स्वप्न भिन्न थे,

रूठे-रूठे से हम थे या-

सौभागों के पृष्ठ खिन्न थे,

वक्र चाल हर तिरछे ग्रह की अब बिल्कुल निष्फल होने दो। अपनी एक....



अपनी-अपनी ज़िद को पकड़े

तन्हाई से खूब लड़े हैं,

लहरों की आवाजाही बिन

तट दोनों खामोश पड़े हैं,

पानी में कुछ तो हलचल हो, लहरें अब चंचल होने दो। अपनी एक....…



Continue

Added by Dr.Prachi Singh on May 7, 2016 at 5:30am — 4 Comments

बहुत मुमकिन है दिल की उलझनों का रुख बदल जाए... ग़ज़ल//डॉ. प्राची

1222,1222,1222,1222



अभी है वक्त हाथों में, कहीं ना ये निकल जाए

जरा लहज़ा बदल लें तो, जो बिगड़ा है सम्हल जाए



नज़र भर कर हमें देखो, फिर अपने दिल से सच पूछो

बहुत मुमकिन है दिल की उलझनों का रुख बदल जाए



हमें भी दिल की सब बातें तुम्हें खुल कर बतानी हैं

अभी ठहरो उजाला है ज़रा सी साँझ ढल जाए



लहर से तट का हर पत्थर किया करता है अठखेली

यहाँ डग सोच कर भरना, कहीं ना पग फिसल जाए



तुम्हें अपना समझ बैठेगा इसमें अक्स मत देखो

बहुत मासूम… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 27, 2016 at 2:15pm — 7 Comments

आहों को हम रख लेते हैं...गीत//डॉ. प्राची

तुमको बहुत मुबारक मंज़िल, राहों को हम रख लेते हैं।

खुशियों की सौगातें तुम लो, आहों को हम रख लेते हैं।



कसमें वादे तोड़ चले तुम,

हमको तन्हा छोड़ चले तुम,

जोड़ी थीं जो राहें तुमने

उनको खुद ही मोड़ चले तुम,

तूफ़ाँ देख मुङो तुम, पर मझधारों को हम रख लेते है....



हर इक रंग तुम्हीं से लेकर

सतरंगी थे ख्वाब सँवारे,

तुम क्या बिछुड़े,अब तो अपने

साथी हैं केवल अँधियारे

सुबह सुनहरी तुम ही रख लो, रातों को हम रख लेते हैं....



गीली मेहँदी, महके… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 25, 2016 at 10:28am — 9 Comments

उफ़ अपनी चाहत का पन्ना बन बैठा रद्दी अखबार

चाहा था रामायण होता अपने सपनों का संसार

उफ़! अपनी चाहत का पन्ना, बन बैठा रद्दी अखबार



श्रद्धानत हो शीश झुकाते

उस पर तुलसी पत्र चढ़ाते,

मन मंदिर में प्रेम भाव ले

पुष्पों का शृंगार सजाते,

मन के भाव ज़रा भटके तो, रिश्तों में खटका व्यवहार...



शंखनाद सी गूँजा करती

थी मन में आवाज़ तुम्हारी,

संयम नेह झलकता था तब

बात तुम्हारी थी हर प्यारी,

चीखमचिल्ली चुभती बातें, करतीं बस अब तो चीत्कार...



कुछ हम भूले कुछ तुम भूले

गठबंधन के… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 22, 2016 at 11:44am — 6 Comments

चाहत की रस्म हमने निभाई कुछ इस तरह...ग़ज़ल// प्राची

2212,121,122,1212

पल में हुई मैं खुद से पराई कुछ इस तरह

थामी उन्होंने हाय! कलाई कुछ इस तरह



नस-नस में सिहरने हैं, निगाहों में है सुरूर

साँसों में उनकी याद समाई कुछ इस तरह…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 20, 2016 at 3:47pm — 5 Comments

जो कर सको तो दुआ करो (ग़ज़ल ) ..डॉ० प्राची

११२१२, ११२१२, ११२१२, ११२१२ 

मुझे ज़िन्दगी की तलाश है, मुझे ख़्वाब में न मिला करो।

न करो कभी कोई वायदा, जो करो तो फिर न फिरा करो।



वो जो चीर दे कोई पाक दिल, न ही तंज ऐसे कसा करो।

बड़ी मुश्किलों से भरा हो जो, न वो जख़्म फिर से हरा करो।…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 11, 2016 at 2:48pm — 5 Comments

सपनों को सजा कर देखूँ (ग़ज़ल)// डॉ. प्राची

2122, 1122, 1122, 22



खुद को मिट्टी में चलो फिर से मिला कर देखूँ।

आख़िरी बार सही, रिश्ता निभा कर देखूँ।



उसने सीने में ही बारूद छिपा रक्खा है,

कैसे चिंगारियाँ नफरत की बुझा कर देखूँ?



दर्द अब रूह तलक मुझको न झुलसा डाले,

उफ़! ये लावा मैं कहाँ आज बहा कर देखूँ?



ज़िन्दगी मौत की दहलीज़ पे लाई, फिर भी-

दिल ये कहता है कि सपनों को सजा कर देखूँ।



मुख जो मोड़ा था हकीकत से, हुआ क्या हासिल?

कर के हिम्मत ज़रा नज़रें तो मिला कर… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 6, 2016 at 1:21pm — 4 Comments

हार कर भी जीत जाने का भला क्या अर्थ है? ....ग़ज़ल// डॉ. प्राची

राज़ हर दिल में छुपाने का भला क्या अर्थ है ?

गैर पर हासिल लुटाने का भला क्या अर्थ है ?



हो बहुत विद्वान तुम, पर ये न समझोगे कभी

हार कर भी जीत जाने का भला क्या अर्थ है ?



प्यार में तकरार होना कर लिया मंज़ूर, पर

अजनबी सा पेश आने का भला क्या अर्थ है ?



देह मन का साथ छोड़े, स्वर जुदा हों सत्य से,

इस तरह रिश्ते निभाने का भला क्या अर्थ है ?



सच कहो जब खिलखिलाए एक अरसा हो गया,

जश्न खुशियों का मनाने का भला क्या अर्थ है ?



जम चुके… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 30, 2016 at 11:32am — 6 Comments

भ्रम भुला दो तुम ज़रा...ग़ज़ल// डॉ. प्राची

2122,2122,2122,212



ताज है या एक सूली ये बता दो तुम ज़रा।

इश्क के हर राज़ से पर्दा उठा दो तुम ज़रा।



होश में हूँ अब तलक इस बात पर हैराँ हो क्यों?

इश्क है गर नीँद तो मुझको सुला दो तुम ज़रा।



फूल की हर सेज पर तो चल चुके अब तक बहुत,

है चुभन गर इश्क तो, काँटे बिछा दो तुम ज़रा।



मेरी हस्ती आज भी मुझमें बची ज़िंदा कहीं,

इश्क है मिटना अगर, मुझको मिटा दो तुम ज़रा।



मेरी इन वीरानियों में चित्र कोई बन सके,

ख्वाब कुछ रंगीन पलकों पर सजा दो… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 28, 2016 at 1:26pm — 6 Comments

होली मनाना आपका.....ग़ज़ल // डॉ. प्राची

है अदा या फिर सितम होली मनाना आपका।

रात के बारह बजे जी भर सताना आपका।



रंग ले आना छिपाकर नित नई तरकीब से

हाय! चालों में उलझ हल्ला मचाना आपका।



टैग तय कर टोलियों में, बालटी के ड्रम लिए

क्या गज़ब अंदाज़ है, टोली में जाना आपका।



जीन्स टी-शर्टों की कतरन काट करना चीथड़े

बन लफंडर साथ फिर ऊधम मचाना आपका।



हम भला कोरे रहें ये आपको मंज़ूर कब

पर कहो अच्छा है क्या हमको भिगाना आपका?



बन के बन्दर लौटकर दर्पण में खुद को देखकर

साल के… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 23, 2016 at 3:00pm — 8 Comments

होली पर एक प्रेम गीत....//डॉ. प्राची

माही तेरा रंग गुलाबी, सब रंगो में सबसे से गहरा



रंग भरी ले कर पिचकारी

क्यों करता नटखट अठखेली,

हाय! मेरी चूनर रंग डाली

चुहल करे हर एक सहेली,

पायल की रुनझुन में गुपचुप, मगर लाज का गूँजा पहरा।



इस अबीर का रंग है पक्का

लग जाए फिर ये ना छूटे,

बंधन ऐसा प्रेमपाश का

जुड़ जाए फिर ये ना टूटे,

शब्द-शब्द अंतर से उतरा, पर आँखों में आ कर ठहरा।



माही के रंगो में सोनी

सोनी के रंग रंगा माही,

ढले एक दूजे के ढंग में

जन्मों के जैसे… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 21, 2016 at 8:27pm — 2 Comments

हँसी दो चार दिन की है...(ग़ज़ल) //डॉ. प्राची

1222.1222.1222.1222



हैं बस दो-चार दिन आँसू, हँसी दो-चार दिन की है।

सँजोयें क्या भला, जब ज़िन्दगी दो-चार दिन की है?



भले हो काँस्य या कञ्चन ये कारागार टूटेगा

यहाँ पर श्वास केवल बंदिनी दो-चार दिन की है।



अँधेरी रात से लड़ने को इक दीपक सहेजें खुद

मिली जो रहमतों की रौशनी, दो-चार दिन की है।



पिये हर घूँट में नदिया, वही लहरों में इतराए

समंदर की भला कब तिश्नगी दो-चार दिन की है?



मेरी आँखों में गर देखो, तो पत्थर दिल पिघल जाए

मुझे… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 15, 2016 at 12:41pm — 8 Comments

उसे ज़िन्दगी की वो ताल दे (ग़ज़ल)...//डॉ.प्राची

11212 ,11212 ,11212 ,11212



हो भले कठिन मेरी हर डगर, मुझे चाहे कोई भी हाल दे।

मेरा हर कदम यूँ सधा पड़े, कि जहान जिसकी मिसाल दे।



न किसी किताब के प्रश्न हों, न जवाब उनकेे कहीं मिलें

मेरी नज़्र ही हो जवाब हर, तू उसे ज़रा वो सवाल दे।



वो घुला है मुझमे कुछ इस कदर, कि न हो सके कोई वापसी

मेरा चीर दिल, मेरे होश ले, मेरी जान चाहे निकाल दे।



मैं चलूँ चले, मैं थमूँ थमे, जो हँसू हँसे, मेरे साथ ही

मेरा प्यार छू ले हर इक ज़हन, मेरी शख्सियत में कमाल… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 10, 2016 at 7:46am — 6 Comments

खुला आकाश तेरा है ..... (विश्व महिला दिवस पर) //डॉ. प्राची

ये माना रात गहरी है, सुनहरा पर सवेरा है।

सलाखें तोड़ दे बुलबुल, खुला आकाश तेरा है।



तुझे जो रोकती है वो

हर इक ज़ंज़ीर झूठी है,

ज़रा झंझोड़ हर बंधन,

कहाँ तकदीर रूठी है ?

उड़ानों पर तेरा हक़ है, ये पिंजर कब बसेरा है?

सलाखें तोड़.....



ज़माने के तराजू पर

न अपने पंख अब तू तोल,

'खुले अम्बर' की परिभाषा

जो सच समझे, वही तू बोल।

ये तेरा चित्र है जिसका, तेरा दिल ही चितेरा है।

सलाखें तोड़.....



तुझे छूना है चन्दा को

तुझे… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2016 at 9:53pm — 11 Comments

इतनी बड़ी भी ख्वाहिशें अच्छी नहीं होतीं (ग़ज़ल)......डॉ. प्राची

2212,2212,2212,22



अपनों के गम पर आतिशें अच्छी नहीं होतीं।

यूँ पीठ पीछे साजिशें अच्छी नहीं होतीं।



घर-बार रिश्तेदार सब हों दाँव पर, जिसमे

इतनी बड़ी भी ख्वाहिशें अच्छी नहीं होतीं।



कुछ बाँट पाओ बोझ तो साथी को आए चैन

दिन रात बस फरमाइशें अच्छी नहीं होतीं।



गर नीँव ही हो खोखली रिश्ते बचें क्या ख़ाक

मन में सुलगती रंज़िशें अच्छी नहीं होतीं।



सागर पुकारे प्यास रख, तो दौड़ती है वो

बहती नदी पर बंदिशें अच्छी नहीं… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 3, 2016 at 12:36pm — 9 Comments

ऐसे हालात का इल्ज़ाम मुझे मत देना। (ग़ज़ल)....डॉ. प्राची

2122.1122.1122.22



तुम सजा सा कोई ईनाम मुझे मत देना।

प्यार का रुसवा सा अंजाम मुझे मत देना।



तुम पुकारो भी नहीं, और न कभी मैं आऊँ

ऐसे हालात का इल्ज़ाम मुझे मत देना।



अपना साया ही डराए मुझे तन्हाई में

इतनी सूनी भी कोई शाम मुझे मत देना।



तुम अगर ज़ह्र भी दो, हँस के उसे पी लूँ, पर

बेवफाई का गम-ए-जाम मुझे मत देना।



तेरी साँसों से जुड़ी हैं मेरी साँसे हमदम

रुखसती का कभी पैगाम मुझे मत देना।



मेरी पहचान बना दी है तमाशा… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 1, 2016 at 6:02pm — 7 Comments

उड़ रही हो तो ज़रा पंख क़तर जाती हूँ (एक ग़ज़ल)....//डॉ. प्राची

2122.1122.1122.22



मेरी हस्ती ही मिटा दे! यूँ अखर जाती हूँ।

उसकी नफरत का ज़हर देख सिहर जाती हूँ।



कश्ती कागज़ की हूँ पतवार कहाँ हासिल है,

बह चले धार जिधर संग उधर जाती हूँ।



आ! बिछा दे, मेरी राहों में ज़रा अंगारे

जितना जलती हूँ मैं उतना ही निखर जाती हूँ।



ज़िन्दगी देख मुझे खुश, यूँ पलट कर बोली-

"उड़ रही हो तो ज़रा पंख क़तर जाती हूँ !"



बुतशुदा काँच हूँ पत्थर के शहर में साकी,

जोड़ लो कितना भी, हर बार बिखर जाती हूँ।



आस… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 28, 2016 at 12:30pm — 7 Comments

तुम्हे जीतने की अदा चाहती हूँ (ग़ज़ल)...... //डॉ. प्राची

122 122 122 122



कहो तो बता दूँ कि क्या चाहती हूँ।

तुम्हारे लिए हर दुआ चाहती हूँ।



दबी सी रही ज़िन्दगी नीँव जैसी

कि अब आसमां में उठा चाहती हूँ।



निभाओ मेरा साथ या छोड़ जाओ

कहाँ तुमको खुद से बँधा चाहती हूँ।



ज़ुबाँ से मुकरना कोई तुमसे सीखे

मैं सब कागजों पर लिखा चाहती हूँ।



न दिल पर तुम्हारे कोई बोझ आए

कहाँ एक भी वायदा चाहती हूँ।



गँवाया बहुत कुछ तेरी राह चल कर

दुबारा सभी कुछ मिला चाहती हूँ।



सज़ा बिन… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 23, 2016 at 4:30pm — 18 Comments

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