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Dr.Prachi Singh's Blog – February 2017 Archive (4)

प्रेम कहाँ पूरा होता है.... गीत / डॉ० प्राची

इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,

प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।



लहर-लहर लहरें इतराकर

जी भर चंचलता तो जी लें,

हो वाचाल अगर अंतः तो

कैसे फिर होठों को सी लें,

तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।

प्रेम...



बारी-बारी इक दूजे में

आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,

मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और

ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,

रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।

प्रेम...…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments

बस लहर थामे रहे व्यवहार .....गीत/प्राची

जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल

मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...



ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ

खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ

अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...



हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए

आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए

गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...



आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी

आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी

प्यार का विश्वास…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments

हैपी चौकलेट डे ....//डॉ० प्राची

Happy Chocolate Day

एक चौकलेटी गीत के साथ



बंद करो इस लुका-छिपी को

दिल का हर इक राज बताओ,

चौकलेट्स लिये तोहफ़े में

आओ पास अभी आ जाओ।



कुछ मुस्काकर कुछ इतराकर

परतें चलो सुनहरी खोलें,

इक दूजे का मीठापन रख

आज जुबाँ में मिसरी घोलें,



छोड़ो मन की भूल-भुलैया

आओ जल्दी हाथ मिलाओ। चौकलेट्स...



जो मैं बोलूँ वो तुम समझो

मैं भी समझूँ जो तुम बोलो,

पास बैठ कर, हँस कर रो कर

दिल की सारी गाँठें खोलो,



कितना… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 9, 2017 at 8:52am — 5 Comments

मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है // डॉ० प्राची

फिर बिसरी यादों के पन्ने खोल रहा है,

मन शायद अपना अस्तित्व टटोल रहा है।



गुमसुम गुपचुप ठिठकी सी खिड़की ने अपनी

छोड़ी सकुचाहट भर ली जी भर अँगड़ाई,

रेशम पर बिखरे फूलों ने सिलवट-सिलवट

आहिस्ता से रीत मोहब्बत की दोहराई,



सुध-बुध बिसराए मुस्कानें ओढ़े तन पर

करवट-करवट क्यों मदमाता डोल रहा है?

मन शायद...



रुकी-रुकी पलकों पर दी सपनों ने दस्तक

रुँधे कण्ठ ने आस गीत गाए फिर गुनगुन,

फिर बाँधे मन्नत के धागे मंदिर-मंदिर

कोमल एहसासों के… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 2, 2017 at 1:13pm — 10 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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