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Pankaj Joshi's Blog – July 2015 Archive (5)

तहजीब (लघुकथा)

कागज़, कलम, और स्याही स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगे हुए थे। कोई भी एक दूसरे के सामने झुकने को तैयार नहीं था। उनका झगड़ा देखकर कवि चुप न सका:

"क्या तुम लोगों को इस बात का भी आभास है कि बिना मेरी उँगलियों के सहारे तुम सब अस्तित्व हीन हो ! "

"किस अस्तित्व की बात कर रहे हो कविवर? अगर मैं न रहूँ तो तुम अपनी भावनाओ को किस चीज़ पर उकेरोगे?" कागज ने चेताया।

"अगर में रोशनाई न बिखेरूं तो लोग कागज पर क्या ख़ाक पढ़ेंगे?"  पीछे से स्याही की आवाज आई I

"मेरे बगैर तुम्हारी…

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Added by Pankaj Joshi on July 21, 2015 at 5:00pm — 5 Comments

बरसात

मॉनसून का मौसम इस वर्ष भी ना के बराबर ही रहा प्रदेश में , तेज चटक धूप ने धरती को चीर कर रख दिया था , भूमि बंजर हो गई थी । ठीक वही हालात अनन्या के भी थे ।

छोटी उम्र में शादी , दूसरे दिन पति के स्वर्गवास होने का दंश भी ससुराल वालों ने उसके मत्थे मड़ दिया । बापू आये और बिटिया को वापस घर ले गये ।

कुछ ही वर्षों में बिटिया के वैधव्य के गम में पिता भी चल बसे । घर का सारा बोझ उसने अपने कन्धे पर ले लिया ।

एक बार सावन में अपनी सखियों के साथ बारिश में…

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Added by Pankaj Joshi on July 15, 2015 at 4:38pm — 6 Comments

एक था टाईगर (लघुकथा)

एक दिन वह अपने जर्मन शेफर्ड को सुबह घुमाने ले गई तो गलती से एक व्यक्ति के घर पर बंधा पामेरियन भी था , पामेरियन भौंका तो टाइगर ने जंजीर को तेजी से छुड़ाते हुए पास में बंधे एक पामेरियन को दबोच लिया ।

"टाइगर इधर आओ छोड़ो उसको " बिटिया चिल्लाई 

वहां खड़े और लोग भी पामेरियन को बचाने में जुट गये। और उस लड़की को  भला बुरा कहने लगे:

"जब आप से कुत्ता नहीं सम्भलता तो इसे पालते क्यों हो ?

तभी किसी ने टाइगर के सर पर तेजी से लोहे की रॉड से…

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Added by Pankaj Joshi on July 6, 2015 at 3:00pm — 4 Comments

सिगरेट की राख सी जिंदगी

कम्पनी में गबन के आरोप में वह आज पांच साल की कैद काट कर वह जेल से छूटा तो सीधे दिव्या के घर पहुँचा । दिव्या नहीं मिली । वह काम पर गई थी । उसने उसके मोबाइल पर उसी जगह मिलने का समय दिया जहाँ वह अक्सर मिला करते थे ।

"मुझे भूल जाओ तुम । अब मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है ।" सिगरेट सुलगाते ही उसकी आवाज सुनाई दी ।

"पर यह सब तो मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिये किया था ? " सुनते ही उसका दिल रो पडा जैसे ।

"मेरी ख़ुशी या अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये ....! मेरी ख़ुशी तो…

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Added by Pankaj Joshi on July 5, 2015 at 5:30pm — 6 Comments

गुमनाम लखौड़ी पत्थर

अवध के नवाब ने बड़े चाव से अंग्रेजों के लिये रेजिडेसी बनाने के लिये पहला लखौड़ी का पत्थर रखा तो उसको शायद यह भान ही ना होगा कि यह इमारत आने वाली सदी में अपने खानदान के आखिरी वारिस के लिये कांटो का ताज बनवा रहा है ।

पूरा अवध प्रांत अंग्रेजों ने वापस हासिल कर लिया । बदले में उनको रेजीडेन्सी में क्रांतिकारियों द्वारा खेले खूनी खेल की गवाह वह खण्डर इमारत भी मिली।

असफल क्रान्ति ने नवाब को अंग्रेजों ने कलकत्ता फिर इंग्लैंड निर्वासित…

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Added by Pankaj Joshi on July 2, 2015 at 6:00pm — 6 Comments

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