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Sarita Sinha's Blog – April 2012 Archive (5)

याद तुम्हारी....

स्नेही मित्रों,  सुना है, 8 मई को मदर्स ' डे मनाया जाता है...यानि कि साल का एक दिन माँ के नाम...इस की शुरुआत कब और क्यूँ हुई, ये मुझे नहीं पता , न जानना चाहती हूँ..बस अचम्भा इस बात का होता है कि मदर्स ' डे की शुरुआत करने वाले ने यह नहीं बताया कि साल के बाकी दिनों में माँ के लिए कौन से जज़्बात रखने हैं...

अगर किसी और दिन माँ को याद करना हो या अपने उद्गार व्यक्त करने हों तो कही उस के लिए कोई सज़ा तो निर्धारित नहीं है...फिलहाल मुझे…

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Added by Sarita Sinha on April 27, 2012 at 8:00pm — 18 Comments

मेरे दरिया तुम्हें कहाँ कहाँ न ढूँढा बादल ने.....

हम तो बादल हैं ...........

बरसे कभी नहीं बरसे.....

सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,

झूमे खेले लहर की गोदी में,

जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,

तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज…

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Added by Sarita Sinha on April 19, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

हमें माफ़ कर दो आफरीन.....

प्रिय आफरीन, 
हम तुम्हे पहले से कहाँ जानते थे. वो तो जब तुम्हारे अपने  पापा ने तुम्हारी जान लेने की कोशिश की तब अख़बार वालो ने हमें तुम्हारे बारे में बताया...पूरे पाँच दिन तुम ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लडती रही , लेकिन अफ़सोस .....हार गयी.....हमारा तुमसे कोई रिश्ता कहाँ है, लेकिन इन पांच दिनों में, एक एक पल हम तुम्हारे लिए बेचैन रहे , और आज ...जब तुम चुपचाप जिंदगी से लड़ते लड़ते, हार कर अपनी दुनिया में लौट गयी.....बता…
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Added by Sarita Sinha on April 12, 2012 at 10:00am — 24 Comments

किसका किसका हिसाब बाक़ी है

किसका किसका हिसाब बाक़ी है,

जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......

नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,

हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....

दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,

तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....

सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,

तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....

मेरे गुनाहों की…

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Added by Sarita Sinha on April 11, 2012 at 6:11pm — 15 Comments

अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आयेगा..

मसीहा मर गया कब का लटक के सूली पे ,
कि छूटी जान इस जहाँ के चालबाजों से,
कोई पागल नहीं है वो कि फिर से आयेगा  ,
कम अज़ कम कब्र में तो चैन से सोने दो उसे ...
.…
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Added by Sarita Sinha on April 6, 2012 at 2:30pm — 9 Comments

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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