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ग़ज़ल: वक़्त की शतरंज पर किस्मत का एक मोहरा हूँ मैं।

2122 2122 2122 212
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वक़्त की शतरंज पर किस्मत का एक मोहरा हूँ मैं। 
ज़िंदगी इतना भी ख़ुश मत हो, अभी ज़िंदा हूँ मैं। 
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मैं ख़ुदा की हाज़िरी में भी न बदलूँगा बयान, 
तुझको हाज़िर और नाज़िर जानकार कहता हूँ मैं। 
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एक ही घर में बसर करना मुहब्बत तो नहीं, 
आज भी तेरी ख़ुशी…
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Added by Balram Dhakar on October 16, 2019 at 10:00pm — 9 Comments

उपेक्षा (लघुकथा )

 प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा  तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”

“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”

“हां दीदी ?”

“पर क्यों ?”

“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments

संबंधों का जाल

अचानक अजीब मनोदशा

अँधेरी हो रही हैं धुँधली आँखें

कुछ नहीं जानता मैं अब भँवर में

कुछ भी नहीं पहचानता हूँ अंत में

यह निसत्बध्ता, यह काया

एकाकार हो रहे हैं  क्या ?

 

साथ बंधी आ रही हैं  कभी  की

रात देर तक करी हमारी बातें

समुद्र की लहर-सी छलकती

अमृत के झरनों-सी हम दोनों की हँसी

आँखों में  ठहरे कभी के अनुच्चरित प्रश्न

पल में तुम्हारा परिचित चिंता में डूब जाना

उफ़्फ़.. इतने वर्षों के बाद भी वही है…

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Added by vijay nikore on August 8, 2019 at 6:14pm — 8 Comments

ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा  - सलीम 'रज़ा' रीवा

ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा 

उजड़ने न देंगे चमन ये हमारा 

वतन के लिए जो मेरी जान जाए

ख़ुदारा यहीं  फिर जनम लें दुबारा 

 …

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Added by SALIM RAZA REWA on August 15, 2019 at 11:30am — 3 Comments

क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ? (५७)

एक गीत प्रीत का 

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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ? 

पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?

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शुष्क अधर क्यों बाल बिखर कर अलसाये हैं शानों पर ?

काजल क्रोधित होकर पिघला जा पहुँचा है कानों पर | 

मीत कपोलों पर जो रहती वह गायब है अरुणाई | 

ऐसा लगता है ज्यों खो दी चंद पलों में तरुणाई…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 20, 2019 at 9:00am — 4 Comments

ओ.बी.ओ.की 9 वी सालगिरह का तुहफ़ा

है उजागर ये हक़ीक़त ओ बी ओ

मुझको है तुझसे महब्बत ओ बी ओ

तेरे आयोजन सभी हैं बेमिसाल

तू अदब की एक जन्नत ओ बी ओ

कहते हैं अक्सर ,ये भाई योगराज

तू है इक छोटा सा भारत ओ बी ओ

सीखने वाले यही कहते सदा…

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Added by Samar kabeer on April 1, 2019 at 11:00am — 40 Comments

एक ग़ज़ल रुबाइ की बह्र में

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़अल

221     1221   1221    12

पाना जो शिखर हो तो मेरे साथ चलो

ये अज़्म अगर हो तो मेरे साथ चलो

दीवार के उस पार भी जो देख सके

वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो

होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी

तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो

पत्थर पे खिलाना है वहाँ हमको कँवल

आता ये हुनर हो तो मेरे साथ चलो

हर शख़्स वहाँ कड़वा…

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Added by Samar kabeer on March 6, 2019 at 5:55pm — 27 Comments

ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)

ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)

देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l

तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l

बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी

सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l

उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां

मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l

उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे

जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l

हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2019 at 7:01pm — 12 Comments

गज़ल - दिगंबर नासवा

मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया

शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया

 

लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया

वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया

 

आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक  

सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया

 

छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए

माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया 

 

भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही 

रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख…

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Added by दिगंबर नासवा on January 23, 2019 at 9:30am — 13 Comments

गज़ल ( इश्क़ उम्मीद है)

2122, 1122, 1122, 22/112

सुर्ख़रू शोख़ बहारों सा चहक जाओगे

इश्क़ के बाग़ में आओ तो गमक जाओगे

गर इरादे हुए हैं बर्फ़ से ख़ामोश तो क्या

गर्मी-ए-इश्क़ में आ जाओ दहक जाओगे

इश्क़ की ताब का अंदाज़ा भला है तुमको

इसकी ज़द में ही फ़क़त आओ लहक जाओगे

रौनक-ए-इश्क़ की ताक़त को न ललकारो तुम

ख़ूब ज़ाहिद हो मगर तुम भी बहक जाओगे

इश्क़ ख़ुश्बू है इसे बांधने की ज़िद न करो

इसमें घुल जाओ तो दुनिया में महक जाओगे

इश्क़ के रंग व…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 23, 2019 at 5:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल : मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

बह्र : 1222 1222 122

तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ

बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ

 

वहाँ दुनिया को तू अपना रही है

यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ

 

उठा कर हाथ से ये लाश अपनी

मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

 

तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा

सभी की आँख में चुभता रहा हूँ

 

नहीं मालूम जाना है कहाँ पर

न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ

 

मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे

तुम्हीं से…

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Added by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:51pm — 8 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)

1222 1222 1222 1222
मदारिस हैं, मसाजिद, मैकदे हैं, कारख़ाने हैं।
हमारी ज़िन्दगी में और भी बाज़ार आने हैं।
ये लावारिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं,
जताने इख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं।
मैं मरना चाहता हूँ और वो कहते हैं जीता…
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Added by Balram Dhakar on January 31, 2019 at 10:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)

ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)

(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)

मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l

कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l

मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा

यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l

कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए

आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l

देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल

जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2019 at 7:43pm — 8 Comments

ग़ज़ल-किनारा हूँ तेरा तू इक नदी है

अरकान-1222  1222  122

किनारा हूँ तेरा तू इक नदी है

बसी तुझ में ही मेरी ज़िंदगी है।।

हमारे गाँव की यह बानगी है

पड़ोसी मुर्तुज़ा का राम जी है।।

ख़यालों का अजब है हाल यारो

गमों के साथ ही रहती ख़ुशी है।।

घटा गम की डराए तो न डरना

अँधेरे में ही दिखती चाँदनी है।।

मुकम्मल कौन है दुनिया में यारो

यहाँ हर शख़्स में कोई कमी है।।

बनाता है महल वो दूसरों का

मगर खुद की टपकती झोपड़ी…

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Added by नाथ सोनांचली on February 4, 2019 at 7:00am — 9 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९३

२२१ २१२१ १२२१ २१२



अपनी गरज़ से आप भी मिलते रहे मुझे

ग़म है कि फिर भी आशना कहते रहे मुझे //१ 



दिल की किताब आपने सच में पढ़ी कहाँ

पन्नों की तर्ह सिर्फ़ पलटते रहे मुझे //२ 



मिस्ले ग़ुबारे दूदे तमन्ना मैं मिट गया

बुझती हुई शमा' सा वो तकते रहे मुझे //३ 



सौते ग़ज़ल से मेरी निकलती थी यूँ फ़ुगाँ

महफ़िल में सब ख़मोशी से सुनते रहे मुझे…

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Added by राज़ नवादवी on February 4, 2019 at 10:13am — 6 Comments

नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२/१२१२

जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी

आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१।

नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे

हर बार मुँह पे प्यार के कालिख मली गयी।२।

अब है चमन ये  राख  तो करते मलाल क्यों

जब हम कहा करे थे तो सुध क्यों न ली गयी।३।

रातों  के  दीप  भोर  को  देते  सभी  बुझा

देखी जो गत भलाई की आदत भली गयी।४।

माली को सिर्फ  शूल  से  सुनते दुलार ढब

जिससे चमन से रुठ के हर एक कली…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2019 at 12:05pm — 6 Comments

ग़ज़ल: सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

1212 1122 1212 22/112

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सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

भुला दिया था जिसे वो क़रीब होता है//१

वो पाक जाम मिटा दे जो प्यास सदियों की

किसी किसी के लबों को नसीब होता है//२

मिली जहाँ में जिसे भी दुआ ग़रीबों की

नहीं वो शख़्स कभी बदनसीब होता है//३

वफ़ा से दे न सका जो सिला वफ़ाओं का

वही जहान में सबसे ग़रीब होता है//४

करे मुआफ़ जो छोटी बड़ी ख़ताओं को

वही तो जीस्त में सच्चा हबीब होता है//५

क़लम की…

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Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 7:00am — 4 Comments

ग़ज़ल (ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा)

(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)

ख़त्म कर के ही मुहब्बत  का सफ़र जाऊंगा l

तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l

जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ

आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l

वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो

छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l

आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में

मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l

लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे …

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 6, 2018 at 10:30am — 20 Comments

जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन - लक्ष्मण धामी"मुसाफिर" ( गजल )

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

अकेला हार जाऊँगा, जरा तुम साथ आओ तो

अमा की रात लम्बी है कोई दीपक जलाओ तो।१।



ये बाहर का अँधेरा तो  घड़ी भर के लिए है बस

सघन तम अंतसों में जो उसे आओ मिटाओ तो।२।



कहा बाती  मुझे  लेकिन  जलूँ  कैसे  तुम्हारे बिन

भले माटी, स्वयं को अब चलो दीपक बनाओ तो।३।



गरीबी, भूख,  नफरत, वासनाओं  का मिटेगा तम

इन्हें जड़ से मिटाने को सभी नित कर बटाओ तो।४।



महज दस्तूर को दीपक जलाते इस अमा को सब

बने हर जन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2018 at 7:36am — 13 Comments

ग़ज़ल -- नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी / दिनेश कुमार

2122---2122---2122---212

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नेकियाँ तो आपकी सारी भुला दी जाएँगी

ग़लतियाँ राई भी हों, पर्वत बना दी जाएँगी

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रौशनी दरकार होगी जब भी महलों को ज़रा

शह्र की सब झुग्गियाँ पल में जला दी जाएँगी

.

फिर कोई तस्वीर हाकिम को लगी है आइना

उँगलियाँ तय हैं मुसव्विर की कटा दी जाएँगी

.

इनके अरमानों की परवा अह्ले-महफ़िल को कहाँ

सुबह होते ही सभी शमएँ बुझा दी जाएँगी

.

नाम पत्थर पर शहीदों के लिखे तो जाएँगे

हाँ, मगर क़ुर्बानियाँ उनकी भुला दी…

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Added by दिनेश कुमार on November 7, 2018 at 10:22am — 15 Comments

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