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रात..........

लिटाया तकिये पे हौले से थपकियाँ देकर .

और परियों की कहानी भी सुना डाली हैं...

उनींदी रात ये जगार की एक जिद सी लिए बैठी है...

चाँद आये तौ मैं कह दूंगा सुला दौ इसको...

तमाम ख्वाब मेरे खिडकियों पे बैठे हैं....…
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Added by Sudhir Sharma on December 10, 2010 at 11:19pm — 4 Comments

GHAZAL - 8

                       ग़ज़ल



मेरी  मौत  के  बाद  मेरा  गम,  तुझको  बहुत सताएगा |

मेरे  दिल  का  ये  भोलापन,   तुझको   बहुत   रुलाएगा ||


आज  शरारत  मेरी  तुझको,  शायद  बोझिल  लगती हैं ,

कल   मेरी   ख़ामोशी   का   वो,…
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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 10, 2010 at 9:00pm — 1 Comment

कविता :- माफ करना स्वस्तिका

कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका

हमें माफ करना स्वस्तिका

हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना

अब हमें तुम्हारे…

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Added by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 4:51pm — 14 Comments

आँखों में सपने सजाये हुए - सजाये हुए ,

आँखों में सपने सजाये हुए - सजाये हुए ,
आज द्वार पे तेरे हम आये हुए ,
दरस तू देदे एक झलक दिखा दे ,
मन की अर्ज यार पूरा तू कर दे ,
सच आँखों में सूरत बसाये हुए - बसाये हुए ,
आँखों में सपने सजाये हुए - सजाये हुए ,
तुमसे ही जीवन ये पार लगेगी ,
तेरे ही चाहत में जीवन कटेगी ,
तू तो साथी मेरे सुख दुःख के यारा ,
रखूँगा पलकों में छुपाये हुए - छुपाये हुए ,
आँखों में सपने सजाये हुए - सजाये हुए ,

Added by Rash Bihari Ravi on December 10, 2010 at 4:16pm — 1 Comment

आखरी पन्नें-4 दीपक शर्मा' कुल्लुवी'





गतांक से आगे
आखरी पन्नें-4 दीपक शर्मा कुल्लुवी
कितना बदल गया



मेरा शहर कितना बदल गया

मेरे वास्ते अब क्या रहा

मेरा शहर कितना बदल -----

न वोह मंजिलें न वोह रास्ते

जो कभी थे मेरे…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 10, 2010 at 3:00pm — 1 Comment

तेरा रूप गोरी मनमोहक ,

तेरा रूप गोरी मनमोहक ,

मेरे मन को बहकाये ,



मैं दूर ना रहना चाहूँ ,

ये पास मुझे ले आये ,

तेरी बाते अच्छी लगती हैं ,

ये मन को चहकाये ,

तेरा रूप गोरी मनमोहक ,

मेरे मन को बहकाये ,

चलना चाहूँ साथ तेरे ,

रहे हाथो में तेरा हाथ मेरे ,

होती रहे दिलकश बाते ,

आँख यूं ही मुस्काये ,

तेरा रूप गोरी मनमोहक ,

मेरे मन को बहकाये ,

इस जहाँ में तेरे सिवा ,

कोई नहीं हैं मेरे लिए ,…

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Added by Rash Bihari Ravi on December 10, 2010 at 1:30pm — 2 Comments

तुम्हारे बिना

दिल की तन्हाईयों से ज़िन्दगी के रास्ते नहीं कटते,
तुम्हारे बिना हमारी तनहा रातें नहीं कटते.

तुमने तो अपने दिल को रख दिया है उस शहर में,
जिसके रास्ते हमारी मंजिल तक नहीं पहोचते.

अपने दिलं के रास्तों को ऐसे बंद मत करो,
क्यूंकि उसी की राह से हमारी भी सांसें है गुज़रते.

इतना रूठ कर कहा जाओगे हमसे,
आप के रास्ते तो हमारी ही मंजिल पर आकर रुकते.

Added by aleem azmi on December 9, 2010 at 6:00pm — No Comments

शाइरी

खुशी मेरी छीन ली उसने ,
मुस्कुराना भुला दिया ..
गम दे दिया मुझे ,
ज़िन्दगी भर रुलाने के लिए ........

कैसे जीते वो बिचड़ के लोग
ये हमने जाना है ..
कैसे जिंदा है वो लोग ये हमने जाना है ..
हमने तो अपने कातिल को देखा तक नही ........

Added by aleem azmi on December 9, 2010 at 5:47pm — No Comments

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती

याद है वो पल जब सब साथ रहते थे

पर अब मुलाकात नहीं होती ..

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती



ये शिकायत नहीं सिर्फ हाल है..

कुछ जिंदगी भर साथ रहने का इरादा बनाते थे

हम सब ये करेंगे, हम सब वो करेंगे..जाने क्या क्या बताते थे..

कुछ ऐसे हैं जी लिखचीत को समझते हैं यारी

कभी लगती ये आदत उनकी कभी लगती बीमारी

कोई कभी मिल जाते हैं रस्ते में

मुस्कुराकर छूट जाते हैं सस्ते में

मिलते हैं कुछ जब जमती हैं महफ़िल… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm — 5 Comments

गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,

गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,

इंसानियत किसे कहते ये नहीं जाना ,

हैं मुझे आप सब को इतना बताना ,

सुनिए ये किस्सा अजब इसका नाता हैं ,

आई थी एक झोका आंधी की यैसी यारो ,

रातों की नींद गई ,

दिन का भी चैन हमारा ,

गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,

जिससे मैंने समझा अपना ,

रिश्ता न था कोई अपना ,

मन में बसा कर उसको ,

गले से लगा कर उसको ,

अपना बनाया उसको निकला बेगाना ,

गमो से हमारा रिश्ता यारों हैं पुराना ,

इंसानियत के नाम… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on December 9, 2010 at 1:54pm — 1 Comment

GHAZAL - 6

 

 

                                     ग़ज़ल

 

मैंने  दुनिया  की  दुश्मनी  देखी,  दोस्त  तू  भी  मुझे  भुला देना |

तेरे दिल को ये हक है चाहे तो,  मेरा   नाचीज़  दिल  जला  देना ||



तुझको हमराज़-हमनशीं कर के, मैंने खुशियों के ख्वाब देखे थे,

मुझसे गर भर गया हो…

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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 9, 2010 at 12:30am — 2 Comments

इन्सान और फ़रिश्ता

जिसको करने में फ़रिश्ते भी शायद डरते हैं .
हम इन्सान उसको दिल लगाकर करते हैं.
हमको पता है ज़िन्दगी का मौत ही हासिल है.
फिर ज़िन्दगी के वास्ते हम क्यों गुनाह करते हैं?
किस्तों में मिट रही है पुरखों की मर्यादायें.
पर हम इसे विकास की एक नई सुब्ह कहते हैं .
किसने बदल दिया है इस मुल्क की आबोहवा?
लैला का नाम सुनकर जहाँ कैश सहमते हैं .
कायर के हाथ खंजर जब से लगा है पुरी.
परवरदिगार तब से हैरान से रहते हैं.
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on December 8, 2010 at 3:00pm — 3 Comments

मेरा सपना तोड़ दिया

फूलों से थी चाहत मुझे

गुलदानों का सपना था

तूने बागों में छोड़ दिया

मेरा सपना तोड़ दिया



यादों से मैंने चुन चुन के

रिश्ते अपने सोचे थे

पल भर में तूने मेरा

दुनिया से नाता जोड़ दिया



खतरों से टकराकर में

आगे बढना चाहता था

देख के मेरे ज़ख्मों को

खतरों का रुख ही मोड़ दिया



प्रीत को अपनी लिख लिख के

में गीत बनाना चाहता था

बीच में मीत मिला कर के

मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया



चारों ओर अँधियारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm — No Comments

शरद पूर्णिमा विभा

शरद पूर्णिमा विभा



सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,

आज कलानिधि दिखे गगन में

शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,

अम्बर और अवनि आँगन में



शक्ति, शांति का सुधा कलश,

उलट दिया प्यासी धरती पर

मदहोश हुए जन जन के मन,

उल्लसित हुआ हर कण जगती पर



जब आ टकरायीं शुभ्र रश्मियाँ,

अद्भुत, दिव्य ताज मुख ऊपर

देदीप्यमान हो उठी मुखाभा,

जैसे, तरुणी प्रथम मिलन पर



कितना सुखमय क्षण था यह,

जब औषधेश सामीप्य निकटतम

दुःख और व्याधि…
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Added by Shriprakash shukla on December 7, 2010 at 9:00pm — 1 Comment

आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '



न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको

संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........



ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे









कमीं रह गयी



ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी

अपनीं… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 3:25pm — 3 Comments

बात

कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं

हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं

ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं

सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं

Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm — No Comments

एक मिसाल परोपकार की

भारत के लोगों में परोपकार की धारणा बरसों से कायम है। भले ही परोपकार के तरीकों में समय-समय पद बदलाव जरूर आए हों, लेकिन अंततः यही कहा जा सकता है कि लोगों के दिलों में अब भी परोपकार की भावना समाई हुई है। इस बात को एक बार फिर सिद्ध कर दिखाया है, बेंगलूर के आईटी क्षेत्र के दिग्गज अजीम प्रेमजी ने। उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपनी जानी-मानी कंपनी विप्रो की दौलत में से करीब 88 सौ करोड़ रूपये एक टस्ट को दिया है, जो काबिले तारीफ है। ऐसा कम देखने को मिलता है, जब कोई बड़ा उद्योगपति अपनी कमाई का एक बड़ा… Continue

Added by rajkumar sahu on December 7, 2010 at 12:15pm — 1 Comment

आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

आखरी पन्नें (१) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '



इन आखरी पन्नों में ज़िन्दगी का दर्द है

कुछ हमनें झेला है कुछ आप बाँट लेना

मेरे क़त्ल-ओ-गम में शामिल हैं कई नाम

ज़िक्र आपका आए न बस इतनी दुआ करना

.......

आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है हो सकता है यह केवल एक ही पन्नें में ख़त्म हो जाए य सैंकड़ों हजारों और पन्ने इसमें और जुड़ जाएँ क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 7, 2010 at 11:55am — 2 Comments

जिंदगी..©



जिंदगी..©

जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..

बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..

माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..

इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..

ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..

अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..

कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)



Photography for both pictures :- Jogendra… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on December 7, 2010 at 11:26am — 1 Comment

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