For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,926)

नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन

नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन 

पुरुष स्त्री साथ बैठ कर रहे थे भोजन 
कवि लेखकों की नारी रही सदैव रही प्रेरणा 
प्रत्येक क्षेत्र में नारी आगे कमी कोई दिखे न 
फिल्म , गीत, मंजन , साबुन या हो वस्त्र 
जग का हो कोई उत्पाद इन बिन बिके न 
नारी पुत्री, नारी बहना, नारी देवी, नारी माता
कोई धर्म हो कोई जाति हो है अनोखा नाता 
कई रूपों में देती सुख ये सम्मान की अधिकारी 
जन्मते जिस कोख से मानव…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 11:11am — 6 Comments

निमंत्रण

निमंत्रण 

निमंत्रण कैसा भी हो 
सुखद प्यारा लगता है 
मिलते हैं कई लोग 
जग  न्यारा लगता है 
नारी शशक्तिकरण विषय पर 
काव्य पाठ का न्योता  आया 
जाना था पति पत्नी…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 10:32am — 12 Comments

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

हर हर हर हर महादेव !

 …

Continue

Added by shikha kaushik on October 23, 2012 at 9:30pm — 4 Comments

आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता

आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता

असली रावण मंच विराजित जय कारे गायेंगी जनता

दस शीशों से पहचाना था जिस रावण को पुरसोत्तम ने

कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?

कुम्भकरण भर पेट पड़े हैं इन्द्रप्रस्थ के दरबारों में

भांति भांति के इन्द्रजीत हैं गली गली में चौबारों में

चोरों की चौपाल जहाँ हो वहां भला क्या होगी समता

कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?

दूषित मन की अभिलाषाएं अखबारों की ताजा ख़बरें

चौराहे पर स्वेत वस्त्र में लिपटे हैं…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on October 23, 2012 at 5:36pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गज़ल

सुल्तान जो अपना है वो उनका मुसाहिब है

आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है

खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा

दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है

हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on October 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

झाँको

झाँको 

कल फिर से जलेगा रावण

मन शांत और दिन पावन

रौनक छाई चेहरों पे ऐसे

पतझड़ में जैसे आया सावन

रावण को जलाने से पहले

अपनें भीतर भी झांको

उसके कर्मों से प्यारे

अपनें कुकर्म भी आँको

उन्नीस बीस का फर्क दिखेगा

उसके ज्यादा कुछ न मिलेगा

रावण तो था शूरवीर

पंडित था…

Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 23, 2012 at 11:00am — 3 Comments

लखनऊ शहर है ये

हुस्न का है गुलिस्ताँ इश्क की नज़र है ये,

दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,



लोगों को पुकार कर जो कह रहा है प्यार कर,

हो दोस्ती का वास्ता तो अपनी जाँ निसार कर,

दिल के रिश्तों पर लगी विश्वास की मुहर है ये,…

Continue

Added by Anil chaudhary "sameer" on October 23, 2012 at 10:40am — 4 Comments

ग़ज़ल - वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -



वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो | 

ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |



दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |

मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |



मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,

पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |



शराफत का तकाज़ा तो यही है,

रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |



करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे…

Continue

Added by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 12:18am — 16 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वंदन स्वीकार करो माँ

 

शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l  वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll

जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll

 

थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll

हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll

 

माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll

अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll

 

नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll

वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 22, 2012 at 9:18pm — 12 Comments

सीर की हवेली

 

द्रष्टव्य विशालकाय,
हर सदस्य असहाय 
एक दूजे पर भार-
साझेदार, या 
संयुक्त परिवार |
अपनेपन के आभाव में 
घावों में सिमटे 
लटकती तलवार तले,…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 6:54pm — 7 Comments

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !





कैसे सहे जाते हैं होनी के लिखे लेख ?

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !



कैसे निभाते कुल की रीत ; प्रिय पिता से प्रीत ,

शांत कैसे करते हैं कैकेयी उर के क्लेश ?

चौदह बरस ....................





होना था जिस घड़ी श्री राम का अभिषेक ,

उसी घड़ी चले धर कर वो तापस वेश !

चौदह बरस ........................





कैसे चले कंटकमय पथ पर संग सिया लखन ?

काँटों की चुभन पर भरते न आह लेश… Continue

Added by shikha kaushik on October 22, 2012 at 3:32pm — 7 Comments

श्रद्धा सुमन

श्रद्धा सुमन
यश चोपड़ा जी चले गए छोड़ के यह संसार
डेंगू के इक मच्छर ने ले ली उनकी जान
मौत पे किसी का बस नहीं है बेबस है इंसान
श्रद्धा सुमन करता  अर्पित उनको यह सारा संसार
80 बरस  तक सेवा की बालीबुड की जी…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 22, 2012 at 12:26pm — 5 Comments

प्रश्नवाची मन हुआ है

प्रश्नवाची 

मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन 

क्या मुझे अधिकार है ये 

मैं दशानन को जलाऊँ ??



खींच कर 

रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 

आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 

दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 

क्या मुझे अधिकार है

'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??



झूठ, माया-मोह 

ईर्ष्या के असुर नित रास करते 

स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते 

पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज…

Continue

Added by seema agrawal on October 22, 2012 at 11:31am — 15 Comments

अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में

अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में

रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।

केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा

कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।

कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो

हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों  में ।।

मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का

धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।

धर्मों के…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on October 22, 2012 at 9:58am — 5 Comments

किता1

कोई दिल की सुनाना चाहता है।
कोई दिल से गिराना चाहता है।।
इसे कुछ भी समझना आप,लेकिन,
मुहब्बत तो जमाना चाहता है।।
सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on October 22, 2012 at 12:14am — 3 Comments

दुर्मिल सवैया छंद

नहि भेद लिखे कछु वेद कवी सब गाल बजावत मंचहि पे
निज वेशहि की परवाह करें बस ध्यान धरें धन संचहि पे
अब ब्रम्ह बने सूतहि जब है सब ज्ञान बखान विरंचहि पे
कलि कौतुक देख हसे सुर है गुरु बैठत है अब बेंचहि पे

कलिकाल धरा विकराल बढ़ा सुत मातु पिता नहि मानत है
धन की महिमा सब ओर सखे धनही सबका पहिचानत है
घर की नहि नारिहि मान करे ललचाय पराय अमानत है
सनदोह सहोदर मोह नही अब दारहि का सब जानत है


चिदानन्द शुक्ल "सनदोह"

Added by Chidanand Shukla on October 21, 2012 at 9:00pm — 16 Comments

आज का ये ही दौड़ है

आज का ये ही दौड़ है कहता ये वक्त है

है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है



उसी की ही आरती है , उसी का गुणगान है ,

घुमा फिर के बातों में बस उसी का बखान है .

इस बात का बयां , चेहरा करता अभिव्यक्त है .

है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है .



उसी की ही सेवा है, उसी का सुमिरन है .

उसपे ही "सागर" का निसार सारा जीवन है .

प्राणप्रिये के प्रेम में , जो तन-मन से आसक्त है .

है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है .



उसी में ही श्रधा है…

Continue

Added by praveen singh "sagar" on October 21, 2012 at 1:00pm — 1 Comment

जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,

झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,

ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .

बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,

ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं…

Continue

Added by shalini kaushik on October 21, 2012 at 1:00pm — 4 Comments

रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको

रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको

जो गिरता हूँ तो उठाना मुझको

 

मैंने मोहब्बत ही सबसे की है

गर हो खता खुदा बचाना मुझको

 

तुम्हारी हरेक शर्त मंजूर है मुझे

हाथ पकड़ के कभी बिठाना मुझको

 

बड़ी ही नाज़ुक है यादें हमारी

दीवारों पर यूँ न सजाना मुझको

 

दिल के कमज़ोर होते हैं इश्क वाले

बुरी नज़र से सबकी बचाना मुझको

 

साथ माँ-बाप का किसे अच्छा नहीं लगता 

मेरी मजबूरीयों से ए-रब बचाना…

Continue

Added by नादिर ख़ान on October 21, 2012 at 10:30am — 2 Comments

विचित्र किन्तु...: 'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम

विचित्र किन्तु ...:

'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !

 

इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है? 

 

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service