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December 2013 Blog Posts (225)

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ

.

कभी ख़ुद से रफ़ाक़त हो।

ज़रा शिकवा-शिकायत हो॥

.

ख़ुशी के साज़ खो जाएँ,

बड़ी बोझिल तबीयत हो।

.

अदाओं में हो बेअदबी,

निगाहों में हिक़ारत हो।

.

कसकती हों कहीं टीसें,

कहीं बेजा हरारत हो।

.

सरे-बाज़ार लुट जाएँ,

ज़रा ऐसी तिजारत हो।

.

दुआ के चार बोलों में,

अनुष्टुप हो न आयत हो।

.

डगर लंबी,सफ़र तन्हा,

यही अपनी विरासत हो।

.

ग़ज़ल में ढल सकें आँसू,

फ़क़त इतनी इनायत… Continue

Added by Ravi Prakash on December 27, 2013 at 2:19pm — 14 Comments

शब्द

शब्द भावों के गले मिलने लगें |

ह्रदय हर किसी के.. मथने लगें |

गुदगुदाते ...लताड़ते से...कभी...

सहलाते से जीवन संवारने लगें ||



राह अभिव्यक्ति की चलने लगें |

शब्द घेरे में जब ..सिमटने लगें |

शब्द मात्रा..रस..छंद..अलंकार में ..

स्मृतियाँ महाकाव्य सी रचने लगें ||



प्रताड़ना से घिरे शब्द भर्त्सना पाने लगें |…

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Added by Alka Gupta on December 27, 2013 at 10:00am — 10 Comments

नवगीत/ नए साल की आहट पाकर

इन गुलाब की पंखुड़ियों पर

जमी

ओस की बुँदकी चमकी   

नए साल की आहट पाकर

उम्मीदों की बगिया महकी

 

रही ठिठुरती

सांकल गुपचुप

सर्द हवाओं के मौसम में

द्वार बँधी 

बछिया निरीह सी

रही काँपती घनी धुँध में

 

छुअन किरण की मिली सबेरे

तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी

 

दर-दर भटक रही

पगडंडी

रेत-कणों में

राह ढूँढती

बरगद की

हर झुकी डाल भी

जाने किसकी

बाँट…

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Added by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 9:30am — 24 Comments

क्या हो अगर शख़्स वो भगवान हो जाए

वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए 

ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए



इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी 

हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए



झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे 

इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए 



फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर 

वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए



साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये…

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Added by ajay sharma on December 26, 2013 at 11:30pm — 7 Comments

डर.... एक सोच

अपनी आँखों को जब मैं

बंद करने कि कोशिश करता हूँ

सोने के लिए

तभी तरह-तरह के विचार आते हैं

मानो जैसे अब

मेरे रास्ते बंद हो गए हैं

मैं कायर सा

डरपोक सा

बैठ गया हूँ



तभी कुछ सुनायी पड़ता है

आवाज

किसी की 

कहीं से आ रही है

कुछ कहने कि

समझने कि

कोशिश



इतना डरपोक न बन

हिम्मत कर

तू फिर से

मेहनत करके

एक नया नाम, इज़ज़त, शोहरत

कमा सकता है

इतना सोचते-सोचते

पता नहीं…

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Added by SAURABH SRIVASTAVA on December 26, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल - आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये !!

पीड़ितों के बीच से तलवार लेकर आ गये 

आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये |

मैं समझता था हर इक शै है बहुत सस्ती यहाँ

एक दिन बाबा मुझे बाज़ार लेकर आ गये |

माँ के हाथों की बनी स्वेटर थमाई हाथ में

आप बच्चे के लिए संसार लेकर आ गये |

क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या

फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |

दोस्तों से अब नहीं होती हैं बातें राज़ की

चन्द लम्हे बीच में दीवार लेकर आ गये |

--…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 26, 2013 at 8:31pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दोहे : शुभ-नूतन की बाट // -सौरभ

प्रतिपल नव की कल्पना, पल-व्यतीत आधार  

सामासिक दृढ़ भाव ले,  आह्लादित संसार  



सिद्धि प्रदायक वर्ष नव : धर्म-कर्म-शुभ-अर्थ

मंशा कुत्सित दानवी, लब्धसिद्धि हित व्यर्थ



शाश्वत मनस स्वभाव…

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Added by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 4:20pm — 42 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक तरही ग़ज़ल- शिज्जु

2122 1122 22/112

आँधी से उजड़ा शजर लगता है

वो बुलन्द अब भी मगर लगता है

 

सिर्फ किरदार नये हैं उसके

इक पुराना वो समर लगता है

 

बेकरानी में कहीं गुम शायद

इक बियाबान में घर लगता है

 

वो कहीं शिद्दते- तूफ़ाँ तो नही

रास्ता छोड़ अगर लगता है

 

पत्थरों को जो मुजस्सम करे वो

तेरे हाथों में हुनर लगता है

 

काँच का दिल है ज़बाँ पे पत्थर

बच के जाऊँ मुझे डर लगता…

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Added by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 12:00pm — 34 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दो तरही गज़लें: राणा प्रताप सिंह

फाइलातुन फइलातुन फइलुन/फैलुन

 

मुझ पे इलज़ाम अगर लगता है

आपके ज़ेरेअसर लगता है

 

तुझमे खूबी न जिसे आये नज़र

वो बड़ा तंगनज़र लगता है

 

इक दिया हमने जलाया था कभी

अब वही शम्सो क़मर लगता है

 

ढूंढ आये हैं ख़ुशी हम घर घर

ये हमें आखिरी घर लगता है

 

यूँ तो है बात बड़ी छोटी पर

बात करते हुए डर लगता है

 

एक तेरे ही नहीं होने से

ये ज़हां ज़ेरोज़बर लगता…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 11:39am — 28 Comments

दर्द (तीन मुक्‍तक)

(1)

 

दर्द ए दिल से पहचान यारो मेरी बहुत पुरानी है

आँखो के अश्‍को की यारो देखो अलग कहानी है

थे पास जब वो मेरे जीवन की अलग रवानी थी

नहीं आयेगी जीवन में बीती शाम जो सुहानी है

 

(2)

मेरे भी दर्द ए दिल को काश कोई  जान लेता

आँखो में छुपे अश्‍को को भी काश जान लेता

कितना दर्द यारो हमें बिछुडने का अपनो से

मेरे दर्द भरे शब्‍दे से ही काश कोई जान लेता

 

(3)

किसने किसको दर्द दिया  ना जान पाया मैं

कैसे…

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Added by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:00pm — 18 Comments

आज मौन उपवास रहा है ..........

अब तक  तेरे पास रहा है
नतीज़तन वो  ख़ास रहा है

हिचकी , हिचकी केवल हिचकी
वोआज मौन उपवास रहा है

छुयन का उसकी असर ये देखो
पतझड़ में मधुमास रहा है

मेरा ख्वाब है उसके दिल में
मुझको  ये  अहसास रहा है

कभी है गहना हया ये उसकी
कभी "अजय" लिबास रहा है

मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Added by ajay sharma on December 25, 2013 at 11:00pm — 11 Comments

चितवन

चितवन

1

सांझ की पड़ी चितवन कटारी

उतर आयी रात आंगन

बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास

रात की रानी महके

हरसिंगार की झूमर लहके

तारों की बरात लिये

आया कोई पुच्छल तारा

देख सुहानी रात मतवाली

पैरों बाँध घुँघरू

बिरहनी संग यह कैसा परिहास

2

बहक रहा चाँद

लहरों पर थिरक रही चाँदनी

सागर तट पर नाच रहा पवन

बाँध के पैजन

चट्टानों के गृह सखी

चल रहा सम्मोहन

बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास

3

दूर गगन से

कोई…

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Added by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:44pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कुंडलिया ( गिरिराज़ भंडारी )

कुंडलिया -

सबके अन्दर जी रहा , मेरा , मै का भाव

वही डिगाता है सदा , आपस  का सदभाव

आपस  का  सदभाव , मिटाये ऐसी  दूरी

रिश्ते का सम्मान , हटा दे  हर  मजबूरी

टूटे  रिश्ते जुड़ें , सामने  कहता  रब  के   …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 9:00pm — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आँखों देखी 7 – बर्फ़ की गहरी खाई में

                                                      आँखों देखी 7 – बर्फ़ की गहरी खाई में 

         दक्षिण गंगोत्री स्टेशन के अंदर रहते हुए एक डरावना ख़्याल हम सबको अक़्सर परेशान करता था. हम सभी जानते थे कि पूरा स्टेशन लकड़ी (प्लाईवुड) से बना है और इनसुलेशन के लिये दीवारों के दो पर्तों के बीच पी.यू.फोम भरा हुआ है जो ज्वलनशील पदार्थ होता है. यदि किसी कारणवश स्टेशन के अंदर आग लगी तो चिमनीनुमा एकमात्र प्रवेश/निकास मार्ग से होकर बाहर निकलना शायद असम्भव हो जाए. यदि बाहर निकल भी…

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Added by sharadindu mukerji on December 25, 2013 at 7:00pm — 21 Comments

एक गज़ल ....

बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Added by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 6:30pm — 32 Comments

ज्वार भाटा (अन्नपूर्णा बाजपेई)

वो हिरनी सी चंचल आंखे

कभी मुसकुराती हुई 

खामोश है अब ...... 

एक ज्वार भाटा आकर  

बहा ले गया है सब ...

  वो रिक्त आंखे

अब नहीं देखती

कोई सपना मधुर

क्योंकि उनसे छीना है

किसी ने हक़

स्वप्न देखने का । 

वे  अब नहीं ताकती

किसी की राह

क्योंकि वे खामोश है

शायद पत्थर हो गई है........ 

किसी ने छीना है 

उनसे जीने की खुशी

उनकी मुस्कुराहट

उनकी चंचलता  

किसी व्याघ्र…

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Added by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

तीर चलते हैं मगर

तीर चलते हैं मगर तरकश नजर नहीं आता

चाहत में निगाहों को सफर नजर नहीं आता



अंजाम जान के भी पलकों में घर बनाते हैं

क्यूँ दिल टूटने का उन्हें हश्र नजर नहीं आता



आसमान को छूने की तमन्ना करने वालो

क्यों ज़मीं पर तुम्हें टूटा पंख नजर नहीं आता



लगा दिया इल्जाम बेवफाई का उनके सर

क्यूँ आँख से गिरा अश्क नजर नहीं आता



जिस तकिये पे मिल कर गुजारी थी रातें

उस भीगे तकिये का दर्द नजर नहीं आता



सुशील सरना



मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 25, 2013 at 12:30pm — 14 Comments

मौत के साथ आशिकी होगी (अरुन 'अनन्त')

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,

उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,

आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,

नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,

आखिरी वक्त है अमावस का,
कल से हर रात चाँदनी होगी.

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:30pm — 25 Comments

चुपके से

कल तक थी जाने कहाँ

आज आ रही है पास वो

देख नहीं पाये जो

जीवन के रंगों को

ले रही उन्‍हें भी

अपने आगेाश में वो

ना सुना नाम कभी

ना जाना पहचान ही

चुपके से चली आयी वो

तोड़ने उनकी सॉसे को

इल्‍जाम कभी लेती नहीं

अपने दामन पर वो कभी

है इल्‍जाम उनहीं पे

खत्‍म करती जिसका

जीवन वो

जीवन में नहीं रंग उतने

नाम उनका उतना हैं

आ जाती है चुपके से वो

जाने कब जीवन…

Continue

Added by Akhand Gahmari on December 25, 2013 at 11:00am — 14 Comments

"अश्क गजलों से भी तो झरते हैं"

प्यार जिससे भी आप करते है
जिसकी खातिर सदा संवरते हैं

ख़्वाब में सामने भी आये तो
कुछ भी कहने में आप डरते हैं

जितना ज्यादा हैं सोचते उनको
वैसे वैसे ही वो निखरते हैं

इस सियासत के दांव पेंचों में
कितने मासूम हैं जो मरते हैं

आशिकी का यही उसूल रहा,
करती नजरें है आप भरते हैं

आँख रोने को जरूरी तो नही
अश्क गजलों से भी तो झरते हैं

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Anurag Singh "rishi" on December 25, 2013 at 9:38am — 9 Comments

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