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December 2011 Blog Posts (79)

निभा पाओगे

निभा पाओगे 

लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे

तुम अंधेरों में रहोगे जो न जलाओगे
मेरी तकदीर में लिखा था जलो सबके लिए
दर्द के किस्से…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments

दहेज़ में,,,,,,,,

हंसना मना है,,,,,,,,



सामान एक से एक, आला दहेज़ में मिला !

बहरी बीबी गूंगा, साला मिला है दहेज़ मॆं !!१!!



एक आंख नकली है,एक टांग सॆ भी लंगड़ा,

है रंग चॊखा भुजंग काला, मिला है दहॆज़ मॆं !!२!!



नागिन कॊ मात दॆती हैं मॆरी तीनॊं सालियां,

ससुरा भी नशॆड़ी मतवाला,मिला है दहॆज़ मॆं !!३!!



मॆज़बानी मॆं पहलॆ दिन, दारू ठर्रा मिली थी,

बिदाई मॆं एक पटियाला, मिला है दहॆज…
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Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments

माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,

.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |



अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |

पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |

.

चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…

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Added by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments

कितने ख्वाब सजाएगी

झील हर इक कतरे को झूठ बताएगी

मछली निज आँसू किसको दिखलाएगी

 

लब पर कुछ झूठी मुस्काने चिपकाकर

कब तक वो अपने दिल को बहलाएगी

 

उसकी किस्मत में जीवन भर रातें है

वो भी आखिर कितने ख्वाब सजाएगी

 

हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी

किस्मत हमको कभी नही मिलवाएगी

 

 

 

................................,... अरुन श्री !

Added by Arun Sri on December 14, 2011 at 11:30am — 4 Comments

कविता : - मांद से बाहर

कविता : -  मांद से बाहर !
 
चुप  मत रह तू खौफ से  
कुछ बोल 
बजा वह ढोल 
जिसे सुन खौल उठें सब  …
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Added by Abhinav Arun on December 14, 2011 at 10:30am — 18 Comments

सर्दी का आगाज़

एक सुबह ना जाने क्या हुआ

ऐसा लगा की सुबह तो रोज़ होती है ,

पर आज अलग कुछ बात है

इन हवाओं में घुली है शरारत,

जैसे इन्होने छोड़ी है शराफ़त

ज़रूर कोई छुपा हुआ राज़ है

निकला जो घर से , तो देखा फूलों को मुस्कुराते हुए…

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Added by Rohit Dubey "योद्धा " on December 13, 2011 at 9:30pm — 3 Comments

अल्पजीवी

नियम ये कैसा 

आज के युग का
जिधर भी देखो 
लोग अल्पजीवी बने पड़े हैं
न ख्याल में है उम्र बाकी 
न उनकी कोशिश हो उम्र लम्बी
अभी जो मैंने घुमाई नज़रें
मृत्यु शैया पे दोस्ती तड़प रही थी
मर के कुछ लोग हैं अब भी ज़िंदा
कुछ लोग जीते जी मर चुके हैं
मेरे यार…
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Added by Vikram Pratap on December 13, 2011 at 11:00am — 2 Comments

बिहार (यश - गान )

 
जय - जय बिहार की भूमि, तुम्हें शत नमन हमारा.
तेरी महिमा अतुलनीय , यश तेरा निर्मल - न्यारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
फली - फुली सभ्यता - मानवता , तेरी ही गोदी में.
बिखरी है चहुँओर सम्पदा , इस पावन माटी में.
जली यहीं से ज्योति ज्ञान की, चमका विश्व ये सारा.
तुम्हें शत नमन हमारा - तुम्हें शत नमन हमारा.
राजनीति या धर्मनीति हो, शास्त्रनीति या शस्त्रनीति हो.
उद्गम - स्थल यहीं…
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Added by satish mapatpuri on December 11, 2011 at 11:05pm — 1 Comment

काशी नामचा - एक - अथ श्री व्यास महोत्सव कथा !

काशी नामचा - एक - अथ श्री व्यास महोत्सव कथा !
र्षांत चल रहा है | कुछ छुट्टियां अवशेष  हैं | सो पिछले हफ्ते  छुट्टी पर था | पिछली  छः से दस दिसंबर २०११  तक  उत्तर प्रदेश शासन की ओर…
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Added by Abhinav Arun on December 11, 2011 at 2:59pm — 6 Comments

तीन त्रिपदियाँ

ना कहीं उजला नज़ारा.

ना कहीं अंधेर है......!
सब समय का फेर है!! (1)
---------
साथ सोचो क्या चलेगा?
सब यहीं रह जायेगा!
मुफ्त में बँट जायेगा!!! (2)
--------
आस का पंछी गगन में.
दूर कितना जायेगा!
लौट ही तो आएगा!! (3)
----------
AVINASH BAGDEY.

Added by AVINASH S BAGDE on December 11, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

आँखों में बसे हो तुम...

आँखों में बसे हो तुम...

प्रीतम…

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Added by shambhu nath on December 10, 2011 at 3:16pm — 1 Comment

आस के पास

आस ही सांस है

और सांस ही जीवन है

और जीवन ही संसार है 

यानि सांस ही आस है

सांस ही आस है

या आस ही सांस है?

या फिर आस ही सांस है

या फिर सांस ही आस है

गर सांस  ही आस है

तो आस ही जीवन है

और आस ही संसार है

Added by sitaram singh on December 10, 2011 at 3:12pm — No Comments

ओ मेरे पिता



देखा है मेने अपने पिता को, अपने कंधो पर मेरी स्कुल बैग टांगे,

जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।

हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना

लड़ता रहा वो मजबूरो और असाहायों के लिए

सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है

मेने  अपने पिता के आगे,

आज मुझ को घमंड है की  तुम हो मेरे पिता

हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण

जो आज एक वजूद बनकर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को

हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता…

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Added by LOON KARAN CHHAJER on December 9, 2011 at 5:30pm — No Comments

हिंदी रंगमंच

हिंदी रंगमंच की समस्या बहुत है इस पर शोध की ज़रूरत है .मोटे तौर पर देखा जाये तो यह भी कहा जा सकता है की रंगमंच के  लिए   जो  माहोल बनाना चाहिए था वो बना नहीं जो स्तिथि है वोह भी भयकर है .एक तो लोगो की दिलचस्पी फिल्मो से होते हुए टीवी से चिपक गई है . जो लोग इस विधा से जुड़े है उन्हें कोई मदद नहीं …

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Added by sitaram singh on December 8, 2011 at 1:12pm — No Comments

एक ग़ज़ल

जब कभी भी आजमाया जायेगा  

आदमी औकात पर आ जायेगा

शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला 

वो यकीनन बुत बनाया जायेगा 

क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी 

भोर का तारा दिखाया जायेगा 

जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया 

चाँद थाली में सजाया जायेगा 

गर वो वादों पर यकीं करने लगे 

उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा 

फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके

कत्लगाहों में बसाया जायेगा

ये जहां तो इक मुसलसल मांग…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments

हिंदी रंगमंच

कभी कभी नाट्य रचनाओ की कमी का उलेख भी किया जाता है. हिंदी में नाट्य लेखन की कमी तो है ,पर इतना नहीं की इससे मंचन पर बहुत असर हो रहा हो .इस दिशा में दिल्ली का साहित्य कला परिषद् ने कुछ अच्छे कदम उठाये है और हर साल कुछ अच्छे नाटक लिखे गए है और प्रकाश में आये भी है कुछ कहानिओ का नाट्य रूपांतर भी हुए है और उसका अच्छा मंचन भी हुआ है इसमें उदय…

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Added by sitaram singh on December 7, 2011 at 1:29pm — No Comments

बाबासाहेब डा.अम्बेडकर



बाबासाहेब डा.अम्बेडकर ( जन्म दिवस 14 अप्रैल- निवार्ण दिवस 6 दिसंबर)

प्रभात कुमार रॉय

बाबासाहेब डा.अम्बेडकर एक अत्यंत प्रखर देशभक्त और राष्ट्रवादी थे। भारत की राजनीतिक एकता को मूर्तरुप देने का जैसा शानदार कार्य सरदार पटेल ने अंजाम दिया, उसी कोटि का अप्रतिम कार्य राष्ट्र की सामाजिक एकता के लिए डा.अम्बेडकर द्वारा किया गया। अपनी चेतना के उदय से अपनी जिंदगी के…

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Added by prabhat kumar roy on December 7, 2011 at 12:02pm — 2 Comments

बातें पुरानी फूल की

क्यों मिली है कुछ पलों को बागवानी फूल की

उम्र   भर  कहते  रहेंगे हम   कहानी फूल की



वो मेरे सीने से लगकर हाले-दिल कहते रहे

फूल  सी बातें सुनी हमने  जुबानी फूल  की



मनचले भवरे चमन  के  पास मंडराने लगे

चुभ रही है आँख में सबके जवानी फूल की



खौफ-ए-गुलचीन-ओ-खिज़ा के साए में हसती रहे

मैं समझ पाया न तबियत की रवानी फूल की



आज चाँदी की चमक से बागवान अँधा हुआ

पाँव के नीचे कटेगी अब जवानी फूल की



उजड़े हुए बाग-ए-मुहब्बत को हैं…

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Added by Arun Sri on December 7, 2011 at 10:32am — No Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक ९ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

------------- अंक - 10 (अंतिम अंक) --------------

सुबह के तीन बजे रंजन की स्थिति में कुछ -कुछ सुधार होने लगा. ईलाज में लगे डॉक्टरों को थोड़ी सी राहत मिली. बेटे की हालत में सुधार देखकर प्रबल बाबू ने आँखें बंद कर उस ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया,…

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Added by satish mapatpuri on December 6, 2011 at 8:30pm — 2 Comments

लोकतंत्र के दास !!!

संसद की सब कुर्सियां,  पूछ रही ये बात.

लोकतंत्र की हत्या में, किस-किस का है हाथ?
 
बेशर्मी से कर रहे, जन-धन का उपयोग.
जनता का चेहरा लिए, संसद में कुछ लोग.
 
मुखर सियासत हो गई, संसद भई उदास .
मालिक सारे  बन गए, लोकतंत्र के दास 
 
 
--अविनाश बागडे

Added by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:00pm — 1 Comment

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