For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – December 2010 Archive (11)

ग़ज़ल : ग़ज़ल पर ग़ज़ल क्या कहूँ मैं

बहर : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 31, 2010 at 4:34pm — 4 Comments

विशेष रचना : षडऋतु-दर्शन --- * संजीव 'सलिल'

विशेष रचना :

                                                                                   

षडऋतु-दर्शन                 

*

संजीव 'सलिल'

*… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 27, 2010 at 11:54pm — 4 Comments

मैं कौन हूँ ,

मैं कौन हूँ?

ये सोच कर ,

विचार कर ,

परेशान हो गया ,

मेरी सोचने की क्षमता,

बेकार हो गई !



मैं कौन हूँ  ?

मन बोला मैं पंडित ,

मेरी बातो में दम हैं ,

इस धरती पर ,

सबसे बुद्धिशाली ,

मैं सबसे गुणी ,

मगर जो ,

हश्र रावण का हुआ ,

वो सोच मैं बेजार हो गया !



मैं कौन हूँ  ?

मगर मन भटकता रहा ,

अपने बल पे गरूर था ,

डरते हैं लोग सारे ,

अच्छो अच्छो को ,

पस्त कर डाला ,

मगर जो ,

हश्र…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on December 27, 2010 at 3:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल



अज़ीज़ बेलगामी



ग़म उठाना अब ज़रूरी हो गया

चैन पाना अब ज़रूरी हो गया



आफियत की ज़िन्दगी जीते रहे

चोट खाना अब ज़रूरी हो गया



गूँज उट्ठे जिस से सारी काएनात

वो तराना अब ज़रूरी हो गया



जारहिय्यत  के दबे एहसास का

सर उठाना अब ज़रूरी हो गया



अब करम पर कोई आमादा नहीं

दिल दुखाना अब ज़रूरी हो गया



साज़िशौं, रुस्वायियौं को दफ'अतन…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 26, 2010 at 2:00pm — 7 Comments

सोचना जरूरी है

ऐसे समय में

जब आदमी अपनी पहचान खो रहा है

बाजार हो रहा है हावी

और आदमी बिक रहा है

कैसी बच सकेगी आदमियत

यह सोचना जरूरी है।



टीवी पर दिखती रंग बिरंगी तस्वीरें

हकीकत नहीं है

और न ही पेज 3 पर के चेहरे

आज भी बच्चे

दो जून की रोटी के लिये

चुनते हैं कचरे

और करते हैं बूट पालिष

अरमानों को संजोये

हजारों लडकियां

पहुंच जाती हैं देह मंडी के बाजार में

और यही हकीकत है।



पूरी दुनिया की भी यही तस्वीर है

जब बाजार हो रहा है… Continue

Added by sanjeev sameer on December 26, 2010 at 12:29pm — 8 Comments

मैने सॅंटा को देखा है ..

मानो…

Continue

Added by Lata R.Ojha on December 26, 2010 at 1:30am — 4 Comments

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



कौन चला वनवास रे जोगी?



संजीव 'सलिल'

**



कौन चला वनवास रे जोगी?

अपना ही विश्वास रे जोगी.

*

बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो

मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.

*

भू -मंगल तज, मंगल-भू की

खोज हुई उपहास रे जोगी.

*

फिक्र करे हैं सदियों की, क्या

पल का है आभास रे जोगी?

*

गीता वह कहता हो जिसकी

श्वास-श्वास में रास रे जोगी.

*

अंतर से अंतर मिटने का

मंतर है चिर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 11:36pm — 7 Comments

घनाक्षरी : जवानी --संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी :

जवानी

संजीव 'सलिल'

*

१.

बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे, व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.

आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं, सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..

बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे- मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.

'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए- नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..

२.

लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े, झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.

सुरों में निवास करे,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

GAZAL ग़ज़ल by अज़ीज़ बेलगामी

 

ग़ज़ल

by

अज़ीज़ बेलगामी

 

हम समझते रहे हयात गयी

क्या खबर थी बस एक रात गयी



खान्खाहूँ से मैं निकल आया

अब वो महदूद काएनात…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 19, 2010 at 4:00pm — 22 Comments

कविता :- माफ करना स्वस्तिका

कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका

हमें माफ करना स्वस्तिका

हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना

अब हमें तुम्हारे…

Continue

Added by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 4:51pm — 14 Comments

लघु कथाएँ

पत्थर



वह रोज उसे ठोकर मारता |

आते जाते |

मगर वह टस से मस नहीं हुआ |

एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |

अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |

हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |



पानी



बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "

"आप वसीयत कर दे "

"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "

"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:55pm — 6 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service