For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

November 2018 Blog Posts (98)

"आजकल"

आजकल कोई बुलाता भी नहीं।

आजकल मैं भी कहीं जाता नहीं

आजकल हर ओर है बदली फिज़ा

आजकल गायब है चेहरे से गीज़ा॥

 

आजकल कुछ भी सुहाता ही नहीं।

आजकल मैं गुनगुनाता भी नहीं

आजकल बदले हुए हालात हैं

आजकल मैं मुस्कुराता भी नहीं॥

 

आजकल बेकार है सब कोशिशें।

आजकल हैं लग रही बस बंदिशें

आजकल अपने ही छलते हैं यहाँ

आजकल हैं सब बहुत बस परेशां॥

 

आजकल वादों की ही भरमार है।

आजकल गैरों के सर पे हाथ…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 30, 2018 at 4:00pm — 2 Comments

सावन आया है

फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन

 

गुपचुप उसपर मन आया है

लगता है सावन आया है

 

महका है हर कोना-कोना

अम्बर से चन्दन आया है

 

देखो नभ पर छाये बादल

दूल्हा ज्यों बनठन आया है 

 

भीग रही है प्यासी धरती

ज्यों बीता यौवन आया है

 

रह-रह नाच रही हैं बूँदें

राधा का मोहन आया है

 

झूला झूल रही हैं सखियाँ

सज रक्षा बंधन आया है

 

कागज़ की नैया ले आओ

याद मुझे बचपन आया…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on November 30, 2018 at 9:00am — 9 Comments

'लुभावने या डरावने दिन?' (लघुकथा)

"हम तो अपनी सरकारी नौकरी से मज़े में हैं! तुम सुनाओ, कैसी चल रही है तुम्हारी प्राइवेट टीचरी?"

"बढ़िया! मेरे ख़्याल से तुमसे भी बेहतर चल रहा है सब कुछ!"

"वो कैसे?"

"तुम्हारी नौकरी में तुम केवल सरकार और जनता को उल्लू बनाते हो या चूना लगाते हो! ... हम तो अपनी नौकरी में मैनेजमेंट को और माता-पिता-पालकों को और छात्रों को भी, क्योंकि वे हमें उल्लू बनाते हैं या चूना लगाते हैं! 'टिट-फॉर-टेट' और 'टेक इट ईज़ी' का ज़माना है न!"

"कुछ समझ में नहीं आया! हमने तो सुना है कि प्राइवेट…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 30, 2018 at 12:30am — No Comments

अब और न हिन्दू न मुसलमान कीजिये

221 1221 1221 212

गर हो सके तो मुल्क पे अहसान कीजिये ।।

अब और न हिन्दू न मुसलमान कीजिये ।।

भगवान को भी बांट रहे आप जात में ।

कितना  गिरे हैं सोच के अनुमान कीजिये ।।

मत  सेंकिए  ये रोटियां नफरत की आग पर ।

अम्नो सुकूँ के वास्ते फ़रमान कीजिये ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2018 at 11:30pm — 5 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

2122    2122    2122   212

एक ताज़ा ग़ज़ल

जो भी जग में साथ हैं सब छूट जाने के लिए

क्यों हो तेरा ज़िक्र फिर दिल को दुखाने के लिए

दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी

भेजा है क़ासिद को मेरा हाल पाने के लिए

इसलिए महसूस तेरी बेरुखी होती नहीं

मुझमें कुछ बाकी नहीं तुझको सुनाने के लिए

रात गहरी कट गई फिर भी न पाई रोशनी

आ गई बरसात मेरा दिल जलाने के लिए

आज कल मायूस होकर घूमता हूं दर बदर

इक खिलौना बन गया हूँ…

Continue

Added by मनोज अहसास on November 29, 2018 at 10:24pm — 5 Comments

हौं पंडितन केर पछलगा *उपन्यास का एक अंश )

चौदहवीं की रात I निशीथ का समय I चाँद अपने पूरे शबाब पर I जायस के कजियाना मोहल्ले में एक छोटे से घर की छत पर गोंदरी बिछाए वही लम्बी सी पतली लडकी लेटी थी I उसकी सपनीली आँखों से नींद आज गायब थी I उसकी आँखों के सामने मुहम्मद का भोला किंतु खूबसूरत चेहरा बार-बार घूम जाता I कभी-कभी ऐसी नाटकीय घटनायें हो जाती हैं कि हम बेक़सूर होकर भी दूसरे की निगाहों में कसूरवार हो जाते हैं I उस लड़के ने मुझे उस हंगामे से बचाया I मेरा हाथ थामा I मुझे पानी से निकाला I हाथ थामने के मुहावरे का अर्थ सोचकर उसे उस सन्नाटे…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2018 at 10:02pm — 2 Comments

इस तरह जिन्दगी तमाम करें

इस तरह जिन्दगी तमाम करें
लोग आ कर हमें सलाम करें
झूठ का अब न एहतराम करें
इस तरह का भी इंतिजाम करें
तू वना खुद को इस तरह शीशा
देख चेहरा सभी सलाम करें
इस तरह वख्श बन्दगी दाता
सुबह से शाम राम-राम करें
आप के हाथ अब नहीं बाजी
आप अब और कोई काम करें
आज तौफिक दे खुदा सबको
देश पर जां लुटा के नाम करें
देख नफरत उदास है “तन्हा”
आस्तां में कहीं कयाम करें
मुनीश “तन्हा”
मौलिक व् अप्रकाशित

Added by munish tanha on November 29, 2018 at 9:30pm — 2 Comments

इश्क़  अजब  है, तोहमत  लेकर आया हूँ।

22 22 22 22 22 2

इश्क़  अजब  है, तोहमत  लेकर आया हूँ।

और  लगता  है , शुहरत  लेकर  आया हूँ।



बदहाली   में   भी   सालिम   ईमान  रहा,

मैं  दोज़ख़  से   जन्नत   लेकर   आया  हूँ।



मिट्टी,  पानी,   कूज़ागर   की   फ़नकारी,

और  इक  धुंधली  सूरत  लेकर  आया हूँ।



कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,

मैं   दादी  की   वसीयत  लेकर  आया  हूँ।



आज 'गली क़ासिम'  से होकर गुज़रा था,

साथ  में   थोड़ी  जन्नत   लेकर  आया  हूँ।…



Continue

Added by रोहिताश्व मिश्रा on November 29, 2018 at 4:30pm — 3 Comments

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

लो

आज मैं बड़ा हो गया

अपनी नेम प्लेट

लगाकर

बूढ़ी नेमप्लेट

हटा कर

.................

ज़िंदगी

हार गयी

ज़िंदगी से

खून से

खून की दरिंदगी से

..............................

असंभव को

संभव कर दिया

ज़िंदगी को

मरघट की

राह बता कर

............................

वृद्धाश्रम में

माँ -बाप को छोड़

बड़ा उपकार किया

संतान ने

दूध का क़र्ज़

उतार…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 29, 2018 at 3:04pm — 10 Comments

नवगीत:रैली, थैली, भीड़-भड़क्का सजी हुई चौपाल

एक नवगीत 

समीक्षा का हार्दिक स्वागत 

रैली, थैली, भीड़-भड़क्का, 

सजी हुई चौपाल



तंदूरी रोटी के सँग है,

तड़के वाली दाल

गली-गली में तवा गर्म है,

लोग पराँठे सेक रहे 

जन गण के दरवाजे जाकर,

नेता घुटने टेक रहे

पाँच साल के बाद सियासत,

दिखा रही निज चाल

वादों की तस्वीरें…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on November 29, 2018 at 1:00pm — 4 Comments

गज़ल -11( बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये)

2122 2122 2122 212

बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये

अब यहाँ फूटेगा बातों का बताशा देखिये//१

संग नेता के कुलाचें भर रही जो भीड़ ये

घर पहुंचकर इसके जीवन की हताशा देखिये //२

हर गली हर मोड़ पे भूखों की लंबी फ़ौज़ है…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 8:00pm — 12 Comments

परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है-गजल

1222 1222 122

न जाने क्या हुई हमसे ख़ता है

हमारा यार जो हमसे खफ़ा है।

यूँ ही बदनाम हाकिम को हैं करते

यहाँ प्यादा भी जब जालिम बड़ा है।

जरा सींचो भरोसा तुम जड़ों में

शज़र रिश्तों का इन पर ही खड़ा है।

उसी ने छू लिया है आसमाँ को

परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है।

नहीं हमदर्द होता आदमी जो

सहारा गलतियों में दे रहा है।

अमा की रात में महताब आया

तुम आये तो हमे ऐसा लगा है।

मौलिक…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2018 at 6:30pm — 10 Comments

गज़ल - 10 ( मौत से एक बार भागा था/ मौत का रोज़ ही शिकार हुआ)



2122 1212 22/112

जब से हमदम सिपहसलार हुआ

सबसे ज़्यादा हमीं पे वार हुआ//1

मौत से एक बार भागा जो

मौत का रोज़ ही शिकार हुआ //2

दिल के आँगन में चाँद उतरा जब

दिल का आँगन सदाबहार हुआ//3

आज फिर आग में जली दुल्हन

आज फिर हिन्द शर्मसार हुआ//4

मैं तो खुद ही मिटा मुहब्बत में

कौन कहता है मैं शिकार हुआ// 5

दूर इक बर्फ की शिला था मैं

तेरे छूने से आबशार हुआ//6

बेक़रारी भले मिली…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 1:00am — 2 Comments

मेरा क़ातिल तो मेरा रहनुमा है

1222 1222 122



खतों का चल रहा जो सिलसिला है ।

मेरी उल्फ़त की शायद इब्तिदा है ।।

यहाँ खामोशियों में शोर जिंदा ।

गमे इज़हार पर पहरा लगा है ।।

छुपा बैठे वो दिल की आग कैसे।

धुंआ घर से जहाँ शब भर उठा है ।।

नही समझा तुझे ऐ जिंदगी मैं ।

तू कोई जश्न है या हादसा है ।।

मिला है बावफा वह शख़्स मुझको ।

कहा जिसको गया था बेवफा है…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2018 at 10:00pm — 4 Comments

चुनौती दे डाली,,,,,,

चुनौती दे डाली ....



खिड़कियों के पर्दों ने

रोशनी के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

जुगनुओं की चमक ने

अंधेरों के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

अंतस की पीड़ा ने

आँखों के सैलाबों को

चुनौती दे डाली,........

विरह के अभयारण्य ने

स्मृतियों के भंडारण को

चुनौती दे डाली

बिस्तर की सलवटों ने

क्षणों की चाल को

चुनौती दे डाली

जीत के आसमान को

हार की ज़मीन ने

चुनौती दे…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

मुस्कराहट आप से है -ग़ज़ल

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

द्वार पर जो दिख रही सारी सजावट आप से है

आज अधरों पर हमारे मुस्कुराहट आप से है  

 

आपकी आमद से मौसम हो गया कितना सुहाना

जो हुई महसूस गरमी में तरावट आप से है

 

यूँ तो मेरी जिन्दगी…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on November 27, 2018 at 9:08am — 9 Comments

टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं

ग़ज़ल

इक ठिकाना तलाशता हूँ मैं ।

टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं ।।

कुछ तो मुझको पढा करो यारो ।

वक्त का एक फ़लसफ़ा हूँ मैं ।।

हैसियत पूछते हैं क्यूं साहब ।

बेख़ुदी में बहुत लुटा हूँ मैं ।।

इश्क़ की बात आप मत करिए ।

रफ़्ता रफ़्ता सँभल चुका हूँ मैं ।।

चाँद इक दिन उतर के आएगा ।

एक मुद्दत से जागता हूँ मैं ।।

खेलिए मुझसे पर सँभल के जरा।

इक खिलौना सा…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2018 at 11:33pm — 10 Comments

कविता - कौओं के पितृ स्थान

कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए

स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई

अनुदान राशि को हड़प ले गये ।

और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए

राजनीति को यूँ अपनाया

कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं

सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।

अन्य पक्षियों को छोड़कर

केवल कौओं की वोटो की गिनती

के मायने जियादा हैं ।



शेर भी लाचार हैं

वे अब शिकार नहीं करते

वे शिकार हो जाते हैं ।

शेरों को हमेशा

कौओं ने सरकश में नचवाया…

Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on November 26, 2018 at 11:00pm — 6 Comments

नया विकल्प ...

नया विकल्प ...

हंसी आती है

जब देखता हूँ

रात को दिन कहने वाले लोग

जुगनुओं की तलाश में

भटकते हैं

हंसी आती है

जब लोग नेता और अभिनेता की तासीर को

अलग-अलग मानते हैं

उनकी जीत के बाद

स्वयं हार जाते हैं

हंसी आती है

उन लोगों पर

जो मात्र हाथों में

किसी पार्टी का परचम उठाकर

स्वयं का अस्तित्व भूल जाते हैं

भूल जाते हैं कि वो

मात्र शोर का माध्यम हैं,

और कुछ नहीं

हंसी आती है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 26, 2018 at 6:45pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७४

२१२२ ११२२ ११२२ २२/ १२२

मैं हूँ साजिद, मेरा मस्जूद मगर जाने ना

घर में साकिन हैं कई, सबको तो घर जाने ना //१

ख़ुद ही पोशीदा है तू ख़ल्क़ में तो क्या शिकवा

कोई क्या आए तेरे दर पे अगर जाने ना //२

दोनों टकराती हैं हर रोज़ सरे बामे उफ़ुक़

मोजिज़ा है कि कभी शब को सहर जाने ना //३

ये अलग बात है तू मुझपे नज़र फ़रमा नहीं

वरना क्या बात है जो तेरी नज़र जाने ना //४

तू मुदावा है मेरे गम का तुझे क्या मालूम

बात यूँ है कि…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 12:04pm — 11 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली..हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"सुन्दर होली गीत के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बहुत अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, उत्तम दोहावली रच दी है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service