For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2012 Blog Posts (167)

गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड

बिनम्र भाव से बोले रावण

क्या मुझे जलाने आए हो

ज्ञानी पंडित भी साथ न लाए हो

मेरी मुक्ति कैसे होगी ?

मेरी मुक्ति नहीं होती

तभी तो बच जाता हूँ

सबसे अधिक बार जलने का

गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड बनाता हूँ

 

दीपक…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 9, 2012 at 11:00am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

ऐ मेरे प्रांगण के राजा

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े 

झंझावत जो सह जाते थे 

जीवन के वो बड़े बड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

बरसों से जो दो परिंदे 

इस कोतर में रहते थे 

दर्द अगर उनको  होता 

तेरे ही  अश्रु बहते थे 

उड़ गए वो तुझे छोड़ कर 

अपनी धुन पर अड़े अड़े

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

इस जीवन की रीत यही है 

सुर बिना संगीत यही है  

उनको इक दिन जाना था 

जीवन  धर्म निभाना था 

राजा जनक भी खड़े…

Continue

Added by rajesh kumari on October 9, 2012 at 9:16am — 21 Comments

ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ..

ना गर्मी में ताप है, ना सर्दी में शीत,

जाने कैसा दौर है, कोई नियम ना रीत |



गूंगे बहरे पा रहे अंधों से सम्मान,

ग़ालिब भूखे पेट है तुलसी नंगी पीठ |



जब पैसा साहित्य का बन जाता है धर्म, 

ग़ज़लें बर्तन मांजती पानी भरते गीत |



आंसू पीकर सो गए बच्चे सब लाचार,

हार गए फिर वायदे, गयी…
Continue

Added by ajay sharma on October 8, 2012 at 10:00pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४० (आह हस्रत तिरी कि ज़ीस्त जावेदाँ न हुई)

आह हस्रत तिरी कि ज़ीस्त जावेदाँ न हुई

यूँकि ये मरके भी आज़ादीका उन्वाँ न हुई

 

तू जो इक रात मेरे पास मेहमाँ न हुई

ज़िंदगी आग थी पे शोलाबदामाँ न हुई  

 

ज़िंदगी तेरे उजालों से दरख्शां न हुई   

ये ज़मीं चाँद-सितारोंकी कहकशाँ न हुई

 

बात ये है कि मिरी चाह कामराँ न हुई

एक आंधी थी सरेराह जो तूफाँ न हुई

 

दौरेमौजूदा में आज़ादियाँ आईं लेकिन

लैला-मजनूँकी तरह और दास्ताँ न हुई

 

याद तुझको न करूँ…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 9:00pm — 2 Comments

छः दोहे

(चार चरण : विषम चरण १३

मात्रा व जगण निषेध / सम चरण ११ मात्रा)

 

आदिशक्ति है नारि ही, झुक जाते भगवान.  

नारी सबकी मातु है, सब जन पुत्र समान..

 

शक्तिरूप में ही वही, नहीं अल्प अभिमान. 

परमेश्वर के रूप में, पिय को देती मान..

 

ताने सहकर नित्य ही, बनी रहे अनजान. 

सदा समर्पित भाव से, सबका रखती ध्यान..

 

जान बूझ बंधन बँधे, बचपन बाँधे पित्र.

यौवन में पिय बाँधते, जरा अवस्था पुत्र.. 

 

ईश्वर ही नर…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:13am — 13 Comments

पाँच बरवै

(चार चरण : विषम चरण

१२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा सम चरणों का अंत गुरु लघु से )

 

प्रात जागती नारी, नहिं आराम.

साथ नौकरी करती, है सब काम..

 

प्यार शक्ति दे तभी, उठाती भार.

नारी बिन यह दुनिया, है लाचार..

 

प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि.

पूजित नारी जग में, जिससे सृष्टि..

 

त्याग  तपस्या  सेवा, तेरे  नाम.

शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम..

 

सत्ता मद में गर्वित, नर है आज.

अखिल विश्व…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:00am — 21 Comments

हमने शेरों को

हमने शेरों को ठिकाने दिये हैं
आज गीदड़ हमें डराने लगे हैं

जिनके हाथों में रहनुमाई दी थी
बस्तियाँ हमारी वो जलाने लगे हैं

जिन्हे धर्म का मतलब नहीं पता
लोग क़ाज़ी उन्हें बनाने लगे हैं

लूट-खसोट, धोखा जिनका ईमान
वो तहज़ीब हमको सिखाने लगे हैं 

जो आए तो थे ख़बर हमारी लेने
हौंसला देख ख़ुद लड़खड़ाने लगे हैं

Added by नादिर ख़ान on October 7, 2012 at 11:30pm — 10 Comments

प्यार कब मिला

चाहा था दिल ने जिसको वो दिलदार कब मिला
सब कुछ मिला जहाँ में मगर प्यार कब मिला

तनहा ही ते किये हैं ये पुरखार रास्ते
इस जीस्त के सफ़र में कोई यार कब मिला

बाज़ार से भी गुज़रे हैं हाथों में दिल लिए
लेकिन हमारे दिल को खरीदार कब मिला

उल्फत में जां भी हंस के लुटा देते हम मगर
हम को वफ़ा का कोई तलबगार कब मिला

तनहा ही लड़ रहा हूँ हालाते जीस्त से
हसरत को जिंदगी में मददगार कब मिला

Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 6, 2012 at 10:54pm — 8 Comments

शब्द-तर्पण: माँ-पापा संजीव 'सलिल'

शब्द-तर्पण:

माँ-पापा

संजीव 'सलिल'

*

माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.

माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..

*

माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.

धूप सूर्य, चाँदनी चाँद,  चौपाई माँ, दोहा पापाजी..

*

बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.

कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..

*

माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.

नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 6, 2012 at 3:01pm — 9 Comments

======ग़ज़ल========



======ग़ज़ल========

बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम

वजन- १२२ १२२ १२२ १२२




छुड़ा हाथ अपना वो जाने लगे हैं

मनाने में जिनको जमाने लगे हैं



लिया था ये वादा गिराना न आँसू

वो यादों में आ कर रुलाने लगे हैं…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2012 at 2:00pm — 6 Comments

लगेंगी सदियाँ पाने में ......

लगेंगी सदियाँ पाने में ......

न खोना प्यार अपनों का लगेंगी सदियाँ पाने में ,
न खोना तू यकीं इनका लगेंगी सदियाँ पाने में .
 
नहीं समझेगा तू कीमत अभी बेहाल है मन में ,
अहमियत जब तू समझेगा लगेंगी सदियाँ पाने में…
Continue

Added by shalini kaushik on October 5, 2012 at 11:56pm — 4 Comments

ग़ज़ल-यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है

यहाँ से दूर कोई आसमानों में टहलता है

अगर उसको बुलायें हम तो पल में आके मिलता है।।



वो कैसा है कहां है किस जगह दुनियां में मिलता है,

तेरे अन्दर,मेरे अन्दर वही आकर मचलता है।



अगर पूछे कोई जीवन क्या है,तो ये कहेंगे हम,

तरलता है,सरलता है,विफलता है,सफलता है।



हज़ारों ख़्वाहिशों के जंगलों में ले गयीं जैसे,

तुम्हारी आँखों में देखें तो सिमसिम कोई खुलता है।



ज़मीं ने जिसको अपनी बाँहों में भरकर मुहब्बत की,

किनारे काटने को फिर वही…

Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on October 5, 2012 at 8:00pm — 12 Comments

वलवले

शोर कैसा भी हो, मेरे दिल को, अब भाता नहीं |

चहचहाना भी परिंदों का, सुना जाता नहीं ||

दावा करते थे, मेरा होने का,पहले जो कभी | 

नाम मेंरा उनके लब पर, आज-कल आता नहीं ||

हूँ चमन में,आज भी, पर दिल में, जंगल आ बसा |

अब तो आफत क्या, क्यामत से भी, घबराता नहीं ||

आँख करके बंद, चलने में हूँ, माहिर हो गया |

स्याह रातों में भी, दीवारों से, टकराता नहीं ||

क्यूँ 'शशि तू ज़िन्दगी…
Continue

Added by Shashi Mehra on October 5, 2012 at 7:22pm — 1 Comment

आंखें करे शिकायत किनसे

आंखें करे शिकायत किनसे

वही व्‍यथा क्‍यों ढोते हैं

बीज वपन तो करता मन है

वे नाहक क्‍यों रोते हैं

 

पलकों की बंदिश में हरदम

क्‍यों वे रोके जाते हैं

और तड़पते देह यज्ञ…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on October 5, 2012 at 3:55pm — 7 Comments

ग़ज़ल

इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों आप सभी के जानिब

बहर है--> मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ

वजन है--> २२१-२१२१-१२२१-२१२



हिंदी का रंग आज यूँ रंगीन हो गया

भारत बदल के जैसे अभी चीन हो गया



मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया

दिल टूटने…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 5, 2012 at 2:00pm — 12 Comments

सुनयना [लघु कथा ]

अपने नाम को सार्थक करती हुई कजरारे नयनों वाली सुनयना अपनी प्यारी बहन आरती से बहुत प्यार करती थी |किसी हादसे में आरती के नयनों की ज्योति चली गई थी लेकिन सुनयना ने जिंदगी में उसको कभी भी आँखों की कमी महसूस नही होने दी | हर वक्त वह साये की तरह उसके साथ रहती,उसकी हर जरूरत को वह अपनी समझ कर पूरा करने की कोशिश में लगी रहती |एक दिन सुनयना को बुखार आ गया जो उतरने का नाम ही नही ले रहा था ,उसके खून की जांच करवाने पर पता चला कि उसे कैंसर है ,उसके मम्मी पापा के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई ,लेकिन सुनयना…

Continue

Added by Rekha Joshi on October 5, 2012 at 1:13pm — 10 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३९ (हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं )

कैद कब तक रहोगे अपनी ही तन्हाइयों में

ढूंढें मिलते नहीं ज़िंदा बशर परछाइयों में

 

हक़का रिश्ता ज़मींसे है, ये खंडहर कहते हैं

सब्ज़े होते नहीं अफ्लाक की बालाइयों में  

 

खुशबूएं जम गईं गुलनार के पैकर में ढलके

कल की बादे सबा क्यूँ खोजते पुरवाइयों में

 

हम हैं जंगल के फूल तख़लिएमें खिलते हैं

ज़र्द पड़ जाते हैं गुलदस्ते की रानाइयों में

 

फूल वा होते हैं, निकहत बिखर ही जाती है

फर्क कुछ भी नहीं है प्यार और…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 5, 2012 at 11:46am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
स्वप्नों के महल

डाली हरसिंगार की झूम उठी

मनमोहक फूलों के बोझ से

बल खाती हुई छेड़ जो रही थी

उसे ईर्ष्यालु सुगन्धित पवन

झर रहे थे पुहुप आलौकिक

दिल ही दिल में मगन

हर कोई चुन रहा था

सुखद स्वप्न बुन रहा था

अलसाई उनींदी पलकों

के मंच पर

ये द्रश्य चल रहा था

मेरा भी मन ललचाया

एक पुष्प उठाया

अंजुरी में सजाया

तिलस्मी पुष्प आह !

ताजमहल रूप उभर आया

अद्वित्य ,अद्दभुत

मेरे स्वयं ने मुझे समझाया

ये तेरा नहीं हो सकता

तुमने गलत…

Continue

Added by rajesh kumari on October 5, 2012 at 11:30am — 11 Comments

तीन मुक्तक ......//माँ

 

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है
आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 
कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है …
Continue

Added by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:00am — 15 Comments

न जाने कब छुआ था कागज़ का बदन स्याही से मैंने

न जाने कबसे,

जारी है ये वहशत/

ये खिलवाड़ लफ़्ज़ों से,

न जाने कब छुआ था,

कागज़ का बदन स्याही से मैंने?



उसके जाने के बाद तो नहीं!

उसके मिलने से पहले भी नहीं!

वहशत है तो,

आगाज़ खुशियों से हुआ होगा/

शायद तब...जब

उसने नज़रों से छुआ होगा/

लब्ज़ बस रास्ते ही होंगे,

मंजिल बस वो होगी,

अहसास बेताब होंगे/

हसरतें मचतली होंगी/

दिल बहकता होगा,

धडकनें संभलती होंगी/

बहुत वक़्त बीत गया है

बहुत सफ़र बीत गया है

याद भी नहीं मुझे

न…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on October 4, 2012 at 10:32pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
15 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service