For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

August 2013 Blog Posts (253)

सॉनेट/ साँझ ढली

साँझ ढली तो आसमान से धीरे-धीरे

रात उतर आई चुपके-चुपके डग भरती

स्याह रंग से भरती कण-कण वह यह धरती

शांत हुआ माहौल और सब हलचल धीरे

 

कल-कल करती धारा का स्वर नदिया तीरे

वरना तो, सब कुछ शांत, भयावह रूप धरे

जीव सभी चुप हैं सहमे, दुबके और डरे

कुछ अनजानी आवाज़ें खामोशी चीरे

 

मन सहमा जब भीतर यह काली पैठ हुई

लोभ और मोह कितने उसके संग उपजे

भ्रम के झंझावातों में पग पल-पल बहके

साथ सभी छूटे, आभा सारी भाग…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:00pm — 38 Comments

पिघलना चाहता है

बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है

ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है

 

रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी

जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है

 

तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को

ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है

 

जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो  

जरा सी आंच  तो दे दो पिघलना चाहता है

 

भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर

जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है

बशर=…

Continue

Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 25, 2013 at 9:44pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गज़ल ----" इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है "

2122     2122     2122

पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से      

क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से

मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल  

हर किसी को पूछना है तिश्नगी से         

इस क़दर तारीक़ियों…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 9:00pm — 36 Comments

बढ़े चलो - बढ़े चलो

बढ़े चलो - बढ़े चलो

स्वप्न सच किये चलो

जो भी आये राह में

लिये चलो - लिये चलो...



अड़्चनों - रुकावटों

चुनौतियों का सामना

दृढ़ प्रतिज्ञ बनके तुम

किये चलो - किये चलो...



अनुभवों से सीख लो

कमियों को सुधार लो

सबको ऐसी प्रेरणा

दिये चलो - दिये चलो...



आकलन से कम मिले

तो भी मुस्कुराओ और

बाकी पाने के लिये

लगे रहो - लगे रहो...



हार हो कि जीत हो

कि धूप हो कि छांव हो

तुम सदैव एक से

बने रहो - बने…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 25, 2013 at 8:34pm — 19 Comments

फना...

तन्हाई की हांडी में,
दर्द उबलता रहा-
उबलता रहा...!!

गम के अलाव जलाते रहे जिस्म मेरा...
मेरी ख्वाहिशें सिमट गई-
घुटन की चादर में...

एहसास मेरे दम तोड़ गए-
मुझमें ही कहीं...!!

फिर भी कुछ कमी थी-
मेरे फना होने में शायद...
तभी इक टुकड़ा तेरी मोहब्बत का,
आ गिरा मेरे दिल के आँगन में...!!


मौलिक/अप्रकाशित

Added by Manav Mehta on August 25, 2013 at 8:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल - इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं !

(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )


इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |

दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |

रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |

मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |


- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 25, 2013 at 7:00pm — 24 Comments

कल का किस को पता है

कल का किस को पता है

 

 

तुम कहते थे न

"कल का किस को पता है?"

और मैं इस पर हर बार ...

हर बार हँस देती थी,

इतिहास का वह सम्मोहक टुकड़ा

उढ़ते भूरे सफ़ेद बादल-सा

सैकड़ों कल को ले कर बीत गया,

कब आया, कब बूंद-बूंद रीत गया।

 

असंगत तर्कों के तथ्यों का विश्लेषण करती

सूक्ष्मतम मानसिक वृतियों से भयभीत,

आए-गए अब अपने अकेले में

मैं भी दुरहा दिया करती हूँ...

"कल का किस को पता…

Continue

Added by vijay nikore on August 25, 2013 at 5:00pm — 12 Comments

!!! बने हम भोर-संध्या से!!!

!!! बने हम भोर-संध्या से!!!

विभा अब ढूंढ़ती किससे,

पढ़ाएं प्रेम की

पाती!

चपल सी आ गयी आभा,

चमकते शब्द

उपवन से।

पढ़ें पंछी, चहक चिडि़यां

धुनों में

गा रहे भौंरे।

कहे कोयल सुने सविता,

चमक कर

आ गयीं किरनें।

धरा पर छा गई मस्ती,

पवन इठला रही

उड़कर।

सुमन-शबनम मिली खिलकर,

गुलाबों की हसीं

बढ़कर।

बुलाती रोज दिनकर को,

हंसाती खूब

सर्दी में।

तराने ढ़ूढ़ते झरने,

उछलती

कूदती लहरें।

मिली मछली…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 12:43pm — 16 Comments

!!! प्यार में सौगात सावन !!!

!!! प्यार का सौगात सावन !!!

2122 2122 2122 212

प्यार का मौसम सुहाना, शोख सावन भा गया।

पड़ गए झूले सखी री, कजरी गायन भा गया।।1

मेघ बरसे भूमि सरसे, मोर - पंछी नाचते।

बाग उपवन खूब झूमे, वायु सनसन भा गया।।2

फूल-शबनम मिल खिले हैं, खुशुबुओ का साथ है।

मस्त तितली उड़ रही है, भौंरा गुनगुन भा गया।।3

मन बड़ा संशय भरा है, राह पिउ की देखती।

फिर झरा छप्पर-घरौंदा टीन टनटन भा गया।।4

क्यों? उदासी प्रेम पाती,…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 12:00pm — 16 Comments

जिस तरह

मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,

फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।

अपने से अलग उसे करूं किस तरह,

समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।

उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,

नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।

उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,

देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।

अलग करना भी चाहू किस तरह,

वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।

मौलिक अप्रकाशित - रमेशकुमार चैहान

Added by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 8:49pm — 6 Comments

आज तेरा पयाम आया है

2 1 2 2   1 2 1 2   2 2



आज तेरा पयाम आया है

जैसे फिर माहताब आया है



देख लो सज गये दिवारो दर

घर मेरे कोई शाद आया है



अबके हो फैसला मेरे हक़ में

हांथ में इन्तखाब आया है



इल्म की रौशनी जली मुझमें

यूँ लगा आफ़ताब आया है



हो गये लाख़ रंग हसरत के

मेरा जोड़ा शहाब आया है

पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,

इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग



अमित कुमार दुबे मौलिक व…

Continue

Added by अमित वागर्थ on August 24, 2013 at 8:19pm — 14 Comments

दरख़्त

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मु…

Continue

Added by ARVIND BHATNAGAR on August 24, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

'भ्रमर गीत'

जन्माष्टी के उपलक्ष में निवेदित रचना-

 

विमुग्ध हो फूल का रसपान कर

ज्यों त्यागते हों भ्रमर !



भाँति तेरे कृष्ण भी,

बंशी सुनाते,

चुरा कर चित्त कुब्जा में रमें

छोड़ दी मेरी खबर ।

पीत पर लहराता है तू भी,

निज मित्र के पट पीत सम,

तू भी काला श्याम सा

कपटी कुचाली प्रीति डोरी तोड़ पल में

मन रिझाता है ।

भृंग की भनक संदेश है क्या?



पर...

गोपियां सुनतीं व्यथा कह उससे,

द्वन्द्व, मन का घटातीं,

प्रेम जो…

Continue

Added by Vindu Babu on August 24, 2013 at 6:30pm — 5 Comments

हँसते मौसम कभी आते जाते रहे

2 1 2 2   1 2 2 1   2 2 1 2



हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे

गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे



यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल

हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे



कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ

जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे



दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर

हम ही थे जो उसे आजमाते रहे



तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ

मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे



चल दिये हैं सफ़र में…

Continue

Added by sanju shabdita on August 24, 2013 at 5:00pm — 25 Comments

सुखद स्मृतियाँ

दुमहले के ऊँचे वातायन से

हलके पदचापों सहित  

चुपके से होती प्रविष्ट

मखमली अंगों में समेट

कर देती निहाल

स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती

घुल जाता मेरा अस्तित्व

पानी में रंग की तरह

अम्बर के अलगनी पर

टांग दिए हैं वक्त ने काले मेघ

चन्द्रमा आवृत है , ज्योत्सना बाधित

अस्निग्ध हाड़ जल रहा

सीली लकड़ियों की तरह

स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं

सुखद स्मृतियाँ.....

.. नीरज कुमार…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 24, 2013 at 3:30pm — 23 Comments

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

२१२२   १२२     २१२२ 

इक नजर इक नजर से मिल रही है

बात जग को भला क्यूँ खल रही है

वो हसी  चाल कोई चल रही है

रोज हल्दी वदन पे मल रही है

सर्द मौसम तन्हाई का अलम है

चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है

इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी

उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है

हो रहा बस अलावों का जिकर् ही

आग कब से दिलों में जल रही है

बाहुपाशो में बंधे हैं वदन दो

अब घड़ी मौत की भी टल रही…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on August 24, 2013 at 2:30pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
भाई जी ईद मुबारक!!!---(लघुकथा )

"मीता देखो अभी वक़्त है फैसला बदल लो, ईद का दिन है कहीं कुछ भी हो सकता है.. फ्लाईट से चलते हैं.."

"नहीं पहले प्रोग्राम के अनुसार ही चलते हैं",  मीता अपने पति से बोली, "देखो आते वक़्त जम्मू से श्री नगर के रास्ते की कितनी खूबसूरत यादें हमारे कैमरे में बंद हैं ! जाते वक़्त भी जो जगह छूट गई थी.. उनकी तस्वीरें भी कैद करुँगी,  ईद के दिन कश्मीर कैसा लगता है.. देखना चाहती हूँ.. देखो कैसा दुल्हन की तरह सजा है.. लोग बड़े बूढ़े बच्चे स्त्रियाँ कितने सुंदर लिबास में सजे धजे घूम रहे हैं, इस…

Continue

Added by rajesh kumari on August 24, 2013 at 12:00pm — 22 Comments

तुम सोई

तुम सोई

सपनों में खोई

अधर मंद मुस्काते हैं

ये सपने

चुपके से आकर

आखिर क्या कह जाते हैं।

 

बागों में

चंपा महकी है

मंद हवा

बहकी बहकी है

घनी रात को, तारे आकर

रूप नया दे जाते हैं।

 

रंग भरे

यह श्वेत चांदनी

कण कण में

इक मधुर रागिनी

नींद भरे बोझिल ये नयना

सुध बुध सब हर जाते हैं।

.

 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:00am — 42 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आँखों देखी – 4 डॉक्टर का चमत्कार

आँखों देखी – 4 डॉक्टर का चमत्कार

 

भूमिका :

 

           मैं प्राय: लोगों से कहता रहता हूँ कि जिसने अंटार्कटिका का अंधकार पर्व अर्थात तथाकथित शीतकालीन अंटार्कटिका नहीं देखा है उसके लिये इस अद्भुत महाद्वीप को जानना अधूरा ही रह गया, भले ही उसने ग्रीष्मकालीन अंटार्कटिका कई बार देखा हो. ऐसा इसलिये कि दो महीने तक लगातार सूरज का उदय न होना हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है. एक छोटे से स्टेशन के अंदर…

Continue

Added by sharadindu mukerji on August 24, 2013 at 1:51am — 12 Comments

" अम्मा ने कहा था"( लघु कथा )

उषा आज फिर देर से आई । मै कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक  आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है ,…

Continue

Added by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 6:00pm — 36 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service