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"मेरे स्कूटर की पिछली सीट"

मेरे स्कूटर…
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Added by Ambrish Singh Baghel on September 7, 2011 at 12:25pm — No Comments

ग़ज़ल - हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं - वीनस केशरी

हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं

वही नसीहतें देते मिले गरीबों को
जो मुल्क बेच के खाए - पिए अघाए हैं

भला- बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ
सही, सही है गलत को गलत बताए हैं

यही किया है हमेशा कि अपने दिल की सुनी
यही हुआ है हमेशा कि चोट खाए हैं

- वीनस केशरी

Added by वीनस केसरी on September 7, 2011 at 2:00am — 4 Comments

"प्यार"

दुनिया क इस मेले में ,
हम सभी बंधे है विश्वासों में .
रिश्तो की बुनियाद टिकी है विश्वासों में,
कमी  न हो कभी रिश्तों के विश्वासों में.
रिश्तो का नीव होती है भरोसे में ,
रिश्तो का प्यार छिपा है अपनों में.…
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Added by Smrit Mishra on September 6, 2011 at 3:00pm — No Comments

परमसत्ता

 

मौन निःशब्द  रात्रि 

चारों ओर सन्नाटा 

नंगे पेड़ों पर गिरती बर्फ 

रुई के फाहे सी

रात को और भी गंभीर बनाती

शायद तुम्हारे ही आदेश से |

गरजते समुद्र की उफनती लहरें …

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Added by mohinichordia on September 6, 2011 at 2:07pm — No Comments

सृजनहार

 

हवा के पंखो पर चढ़कर 

आती है तेरी खुशबू 

नदियों के जल के साथ बहकर 

कभी प्रपात बनकर, निनाद करती 

अमृत सी झरती

आती है तेरी मिठास |

सूरज बनकर आता है कभी 

सात घोड़ो के रथ पर सवार…

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Added by mohinichordia on September 6, 2011 at 11:30am — 1 Comment

मैं शिक्षक हूँ.......... (शिक्षक -दिवस पर विशेष )

शिक्षा ही सबसे उत्तम धन,और ना धन कोई दूजा है.
शिक्षक होते वन्दनीय, और गुरु -श्रद्धा ही पूजा है.
जिस समाज में शिक्षक का,सम्मान नहीं होता है.
उस समाज में उन्नति और, उत्थान नहीं होता…
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Added by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 12:30am — 5 Comments

"हसरत"

तेरे मुस्कुराहटों पर कुर्बान सारा जीवन,
तेरी चाहतो पर निसार सारा जीवन;
कभी न छोड़ना तू मेरा साथ,
वरना कुछ ना बचेगा मेरे हाथ;
तू कहे तो ला दे दूँ मैं सारी खुशियाँ,
तू कहे तो मिटा दूँ मैं अपनी जिंदगियां;
मेरा दामन थोड़ा तंग है,…
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Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:53pm — No Comments

"अजीब दास्ताँ "

तेरे साथ रहना भी है मुश्किल,
दूर तुमसे जीना भी है मुश्किल;
कैसी ये मजबूरी है मेरे मन की,
क्योकि यही दस्तूर है मेरे किस्मत की;
चाहता तो मैं भी हूँ तोडना इस बंदिशों को,
पर ये बेरहम जमाना रोकता है मेरे मन को;
तेरी इज्ज़त की खातिर चुप रहूँगा मैं सदा,
चाहे तू मिले न मुझे इस जहां;
बस तुझसे एक वचन चाहता हूँ,
तेरा हँसता हुआ चेहरा ही देखना चाहता हूँ:

Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:52pm — No Comments

"अंजान राहें"

जिन्दगी का सफ़र कितना लम्बा है,

ये मालूम न था;

यादों की महफ़िल कितनी बड़ी है,

ये मालूम न था;

चाहता तो मैं भी तुम्हे था,

पर दिल में तेरे क्या है,

ये मालूम न था;

जब पता चला तो होश मैंने खो दिए,

तुझे पाने के लिए ,मेरे दिल ने रो दिए;

दीदार- ए-बिन तेरे रहना है मुश्किल,

पर तुझको पाना भी है मुश्किल;

चाह कर भी मैं तुझको अपना बना नहीं सकता,

पर तेरे बिना रह भी तो नहीं सकता;

दुआं मांगता हूँ खुदा से यही,

खुश…

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Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:49pm — No Comments

कविता - जीव - गणित

कविता -  जीव - गणित
घाट
घाट की सीढियां
सीढ़ियों पर काबिज़…
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Added by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 9:45pm — 14 Comments

Aik Ghazal ke do Sher

हमारी सोच का पंछी अभी उड़ान मे है
ज़ॅमी से दूर बहुत दूर  आसमान मे है

न कल के ख्वाब न पुरखों की आनबान मे है
तेरा वजूद अगर है तो वर्तमान मे है .....

Added by fauzan on September 5, 2011 at 7:37pm — 3 Comments

गुरु

गुरु 

एक यैसा शब्द ,
जिसे सुनते ही ,
हाथ जुड़ जाते हैं ,…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 5, 2011 at 5:06pm — 4 Comments

उनके आदर्शो को याद कर ,

उनके आदर्शो को याद कर ,

आइये हम सब मिलकर ,
झूठ ही सही जीवन में उतर लें ,
आज शिक्षक दिवस मना लें ,
ये औपचारिकता ही सही पर ,
वाह-वाही उठाले एक गोष्टी कर ,
उनके आदर्शो को याद कर ,
आइये हम सब मिलकर , 
.
आज सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन ,
उनके आदर्श व आचरण पे चर्चा के दिन ,
आज के शिक्षक जो लगे हैं ,
पैसे के लिए आदर्श में नंगे हैं ,
आचरण उनकी देख समझकर…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 5, 2011 at 2:00pm — 11 Comments

इग्नू में भोजपुरी भाषा में सर्टिफिकेट कार्यक्रम

दिनांक 1 सितम्बर, 2011 को इग्नू के "भोजपुरी भाषा, साहित्य संस्कृति केंद्र" द्वारा पाठ्यक्रम निर्माण सम्बन्धी प्रथम वैठक आयोजित की गई, भोजपुरी भाषा में 'सर्टिफिकेट कार्यक्रम' से सम्बंधित पाठ लेखकों की इस बैठक में देश के विभिन्न कोने से भोजपुरी भाषा से सम्बंधित साहित्यकार, चिन्तक, व्याकरणाचार्य, संपादक, भाषाविद आदि विद्वानों ने हिस्सा लिया | डॉ.गुरचरण सिंह (कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, सासाराम), डॉ. जयकांत सिंह जय( बी.आर.आंबेडकर विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर), डॉ, विनय कुमार सिंह (बनारस हिन्दू…

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Added by Santosh Kumar on September 5, 2011 at 1:30pm — No Comments

वादा करो

हमसे वादा  करो तुम आओगे
रस्म-ए-उल्फत तो अब निभाओगे
ज़िन्दगी भरा वफ़ा न की लेकिन
आखरी शव है अब निभाओगे…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 5, 2011 at 10:41am — 3 Comments

ग़ज़ल

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

 

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

 

घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.

 

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 4, 2011 at 11:53pm — 27 Comments


मुख्य प्रबंधक
हाइगा : एक प्रयास

(चित्र गुगल से साभार)

हाइगा एक परिचय :- हाइगा साहित्य की जापानी विधा है जो १७ वी शताब्दी में शुरू की गई थी, हाइगा मूलतः दो जापानी शब्द से मिलकर बना है,

हाइगा = हाइ + गा ,

हाइ (हाइकु) = कविता ,

गा   = रंग चित्र या चित्रकला

अर्थात, हाइगा, हाइकु  और रंग चित्र के संयोजन से सृजित किया जाता है, उस समय रंग…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2011 at 9:00pm — 25 Comments

tatha kathit budhhijeevi

I have recently read an article, in indian express wrote  by shekhar gupta .  My view about the article is that   :- 
बहुत अच्छा लगा क़ी अभी भी देश में कुछ लोग तो बाकि हें जो  हमारे नेताओं को अच्छा मान रहे हें , नेताजी के बारे में लिख रहे हें क़ी one good thing about party politics is that politicians cannot wrap themselves in the Tricolour. Because they are, at least presumably, accountable to that flag: in the form of Parliament, the judiciary, and to we, the people.… Continue

Added by Rajendra Kumar Sharma on September 4, 2011 at 4:33pm — 4 Comments

काव्य सलिला: अनेकता हो एकता में -- संजीव 'सलिल'



*

विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है.

'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?



तुम रहो तुम, मैं रहूँ मैं, और हम सब साथ हों.

क्यों जरूरी हो कि गुड़-गोबर हमेशा साथ हों?



द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.

दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..



मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.

अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..



अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.

तन नहीं मन…

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Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2011 at 4:17pm — 2 Comments

"इश्क में"

पहले कभी ऐसा तो था नहीं मैं,

दीवाना तुमने मुझको बना दिया;

सोचा कभी नहीं बदलूँगा मैं,

तेरे इश्क ने मुझको बदल दिया;

इश्क क्या चीज़ है मालूम न था,

तेरे मुहब्बत ने मुझको दीवाना बना दिया;

क्यों करते हो मुझ पर भरोसा…

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Added by Smrit Mishra on September 4, 2011 at 12:30pm — 1 Comment

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