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July 2018 Blog Posts (108)

स्वप्न,यथार्थ और प्रेरणा (कहानी )

पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |

मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |

“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा

“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…

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Added by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments

इश्क के दरिया मे उतरता चला गया (ग़ज़ल)

इश्क मे दरिया मे उतरता चला गया l

जितना डूबा दिल निखरता चला गया ll

हमने तो की कोशिशे की जुदा न हो l

फिर भी     कैसे  बिछड़ता चला गया ll

उसने लहज़ा      बदल दिया       तभी l

नज़रों    से       उतरता      चला गया ll

उसकी बातों   मे     फिसल गये सभी l

मैं भी  फिर     बहकता     चला गया ll

वो    जितना    सुलझते       चले    गये l

उतना  ही   मैने   उलझता   चला गया ll

इश्क भी आसा न था करना यहाँ "यश" l

काँटों   पर…

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Added by yogesh shivhare on July 2, 2018 at 7:54am — 5 Comments

ग़ज़ल

खेल कैसे बनाते मिटाते रहे
जिंदगी को वो हम से चुराते रहे

भीड़ के संग़ रिशता बनाते रहे
पास कुछ तो रहे दूर जाते रहे

रंग बदले जमाने कई बार हैं
ये मगर साथ दुनिया दिखाते रहे

रौशनी साथ कुछ तो निभाना मिरा
अब तलक ये अँधेरे सताते रहे

देख कर मुझ को वो मुस्कराता हुआ
क्या कहें ग़म धुएं से उड़ाते रहे
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Mohan Begowal on July 1, 2018 at 10:13pm — 4 Comments

बूँद जो थी अब नदी हो गयी

२१२२   २१२२   १२

बूँद जो थी अब नदी हो गयी

दिल्लगी दिल की लगी हो गयी

 

जिंदगी का अर्थ बस दर्द था

तुम मिले आसूदगी हो गयी

 

आ गया जो मौसमे गुल इधर

शाख सूखी थी हरी हो गयी

 

बिन तुम्हारे एक पल यूँ लगा

जैसे पूरी इक सदी हो गयी

 

जिंदगी गुलपैरहन सी हुई 

आप से जो दोस्ती हो गयी 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Neeraj Neer on July 1, 2018 at 6:32pm — 7 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५९

2122 2122 2122 212

जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे

मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे



जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे

पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे



मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में

लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे



बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ

वो परिंदे मर गये जो…

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Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:30pm — 9 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५८

1212 1212 1212 1212



दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं

कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं



सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं

ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं



सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं

जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं



वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं

वफ़ा की आग क्या…

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Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल...यादों के सरमाये-बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मीर पर आधारित ग़ज़ल

कमबख्त कहाँ से आये इतनी रात गये

उनकी यादों के साये इतनी रात गये

आज उभर के आया है इक दर्द पुराना

बेलौस हवा सहलाये इतनी रात गये

कश्ती कागज की गहरे यादों के दरिया

अब नींद कहाँ से आये इतनी रात गये

गीली मिटटी की सौंधी सौंधी सी खुशबू

अंतस में आग लगाये इतनी रात गये

किस प्रियतम के लिए हुआ बैचैन पपीहा

जो घड़ी घड़ी चिल्लाये इतनी रात गये

दूर उफ़क़ से आती हैं ग़मगीन…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2018 at 4:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल बह्र फेलुन×5+फा



शैतानों की देखो दावत करता है

पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।

*******

कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से

क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।

*******

क्या होता है हाथों की रेखाओं में

मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।

*******

काली काली बदली जब भी छाये तो

दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।

********

भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में

फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।

*******

अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर

वो तो…

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Added by Mohammed Arif on July 1, 2018 at 4:22pm — 13 Comments

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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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