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June 2016 Blog Posts (172)

चेहरा ...

चेहरा ...

एक चेहरा एक पल में

लाखों चेहरे जी रहा

कौन जाने कौन सा चेहरा

हंस के आंसू पी रहा

एक चेहरा लगता अपना

एक क्यों बेगाना लगे

कौन दिल की बात कहता

कौन होठों को सी रहा

कत्ल होता रोज इक चेहरा

रोज इक जन्म हो रहा

एक जागे किसी की खातिर

आगोश में इक सो रहा

एक चेहरा ख्वाब बन के

ख़्वाबों में बस जाता है

एक चेहरा अक्स बन के

नींदें किसी की पी रहा

एक चेहरा अपनी दुनिया

चेहरों में बसाता है

एक चेहरा दुनिया…

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Added by Sushil Sarna on June 16, 2016 at 2:59pm — 6 Comments

इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं

२१२२  २१२२  २१२२  २१२

इक दफा ये मर्ज लग जाये तो छुटकारा नहीं  

इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं 

यार तुमने जिन्दगी को गौर से देखा नहीं  

दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मनी  रेखा नहीं 

तपती साँसों की तपिश कुछ सच बयानी कर रही 

धड़कने कहती हैंं दिल की प्‍यार है धोखा नहीं 

इश्क का अहसास कैसे ज़िंदगी में आ गया 

शेख जी कुछ राय देंगे मैंने कुछ सोचा नहीं 

इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो 

देख…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 16, 2016 at 2:30pm — 5 Comments

गीत - दिए जो तूने मुझको गम

दिए जो तूने मुझको गम,

हुए जुदा खुद से हम,

रुख़ ये तूने मोड़ा क्यूँ,

दिल मेरा तोड़ा क्यूँ...

तेरी यादों मे जिया, ज़ख़्म दिल का है सिया,

तेरी यादों मे जिया, ज़ख़्म दिल का है सिया,

आँखों से बहते रहे अश्क, दर्द का प्याला पिया....

दिए जो तूने मुझको गम,

हुए जुदा खुद से हम....

बातें तेरी अनकही,

पास तू भी है नही,

बातें तेरी अनकही,

पास तू भी है नही,

करले कुछ वक़्त यार तू अब, प्यार झूठा ही सही....

दिए जो तूने मुझको…

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Added by M Vijish kumar on June 16, 2016 at 9:30am — No Comments

हमारे पास भी

हमारे पास  भी 
 
कहने को तो बहुत कुछ है हमारे पास भी 
ये बात अलग है कि कहते बनता नहीं 
ऐसा भी नहीं कि कहना नहीं जानते 
शब्द भंडार भी है अपार 
जानते हैं खूब वाक्य विन्यास 
फिर भी ऐसा कुछ है निःसन्देह  
रोक लेता है जुबान को 
लफ्ज़-ए - ब्यान को 
 
ठीक वैसे ही  जैसे 
सतीतत्व- प्रमाणिकता बनाम   
विश्वास भरोसे संवारती जानकी
अग्नि -परीक्षा के लिए…
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Added by amita tiwari on June 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments

विकास-यात्रा /लघुकथा

"ओ रे बुधिया , अब ये फूस हटाना ही पड़ेगा अपनी टपरी से "

" ई का कह रहे हो बुड्ढा , अब हम सब बिना छत के रहें का ? "

" नाहीं रे , कुछ टीन टपरा जोड़  लेंगे  "

"  काहे जोड़ लेंगे  टीन-टप्पर , क्यु कहे तुम  फूस हटाने को ?"

" खेत से आवत रहें तो गाँव के जोरगरहा दुई जन  को कुछ कहते सुनत रहे , ओही से कहे है "

" का सुन लिये रहे हो ?"

" कहत रहे कि फुसहा घर गाँव के विकास में…

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Added by kanta roy on June 15, 2016 at 8:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल

2122_1212_22

दर्द ओ इजतराब जैसा हूं
ग़मो की इक किताब जैसा हूं

धूप का इक लिबास है तन पर
और मैं आफताब जैसा हूं

खार हर हाथो में कि शाखों पर
मैं झुलसता गुलाब जैसा हूं

कुछ न हासिल मेरी मुहब्बत को
मैं कि दरिया चनाब जैसा हूं

रेत है प्यास औ मेरी आहें
बेसदा कोई खाब जैसा हूं

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by dileepvishwakarma on June 15, 2016 at 1:46pm — 5 Comments

वो इक बार दिल में हमें दाखिला दें

बहर- 122*4



सभी आज शरमों हया हम मिटा दें

हमें है मुहब्बत उन्हे हम बता दें





सजोंये सदाचार है जो अभी तक

अनोखा मेरा गाँव तुमको दिखा दें





नज़र लग न जाये बड़ी खूबसूरत

ये तस्वीर उनकी कहीँ हम छुपा दें





न हो दुश्मनी साथ मिलकर रहे हम

कोई फूल यारो हम ऐसा खिला दें





डिग्री साथ होगी हमारी विदाई

वो इक बार दिल में हमें दाखिला दें



यही आरजू है हमारी खुदा से

हमें हर जनम में उन्ही का बना… Continue

Added by maharshi tripathi on June 15, 2016 at 1:06pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - डूब भी जाये कोई , पार उतारा लिख दो ( गिरिराज भंडारी )

2122   1122    1122   22 /112

.

तुम जो चाहो तो ये गिर्दाब, किनारा लिख दो

डूब भी जाये कोई , पार उतारा लिख दो

 

कैसे उस चाँद को धरती पे उतारा लिख दो

कैसे आँगन में हुआ खूब नज़ारा लिख दो

 

खटखटाने से कोई दर न खुले, तो दर पर 

बारहा मैने तेरा नाम पुकारा लिख दो

 

जंग अपनो से भला कैसे कोई कर लेता

ख़ुद को जीता, तो कहीं मुझको ही हारा लिख दो 

 

हो यक़ीं या कि न हो तुम तो लिखो सच अपना   

दश्ते…

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Added by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:30am — 59 Comments

चीखते नारों से क्या होगा ?

    बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

    1222 1222 1222 1222

            ग़ज़ल

सड़क पर बजबजाते चीखते नारों से क्या होगा

हवा में फुस्स हो जायें जो, गुब्बारों से क्या होगा ?

 

लडाई है बहुत बाकी बहुत कुछ कर गुजरना है

नही है हौसला दिल में तो नक्कारों से क्या होगा ?

 

जिन्हें हमने अता की है,  हकूमत देश की यारों

उन्ही में बदगुमानी है तो उद्गारों से क्या होगा ?

 

पड़े है एक कोने…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2016 at 8:39am — 18 Comments

ग़ज़ल ( यक बयक हादसा घट गया )

ग़ज़ल (  हादसा घट गया )

--------

212 -212 -212

यक बयक हादसा घट  गया ।

राहे उल्फत से वह हट गया ।

ज़ुल्म में ही था शामिल करम

था गुमाँ मुझको वह पट गया ।

जाऊं सदक़े सियासत तेरे

हर कोई क़ौम में बट गया ।

नाव भी डगमगाने लगी

हो रहा है गुमाँ तट गया ।

ऐसा लगता है फ़हरिस्त से

नाम शायद मेरा कट गया ।

खाये पत्थर गली में तेरी

सर मेरा यूँ नहीं फट गया…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2016 at 7:33am — 21 Comments

गंगा में बह रहे हैं फूल

आज तुम असमंजस में क्यूँ हो

देखकर गंगा में बहते फूलों को

जब तुम ही नहीं हो अब सुनने को

अब अपाहिज हुए अनुभूत तथ्यों को

अंधेरे बंद कमरे में कल रात

बड़ी देर तक ठहर गई थी रात

अकुलाती, दर्द भरी, रतजगी

आस्था रह न गई

ख़्यालों के अनबूझे ब्रह्माण्ड में

छटपटाती छिपी हुई कोई गहरी पहचान

भोर से पहले रात की अंतिम-दम चीखें

अन्धकार भरे अम्बर में जीवन्त पीड़ा

ऐसे में हमारे निजी अनुभूत तथ्यों ने

लिख कर…

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Added by vijay nikore on June 15, 2016 at 1:55am — 18 Comments

गरीब होने का सुख /लघुकथा

 ईंट का आखिरी खेप सिर से उतार कर पास रखे ड्रम से पानी ले हाथ-मुँह धो सीधे उसके पास आकर खड़ा हो गया ।

" सेठ , अब जल्दी से आज का हिसाब कर दो "

" कल ले लेना इकट्ठे दोनों दिन की मजूरी ।"

" नहीं सेठ , आज का हिसाब आज करो , कल को मै काम आता या नहीं , भरोसा नहीं "

" मतलब "

" इस हफ्ते पाँच दिन काम किया ना , बहुत कमा लिया ,इतना ही काफी है । अब अगले हफ्ते ही काम पर आऊँगा ।"

" बहुत कमा लिया , हूँ ह ! इतनी-सी कमाई में क्या - क्या करोगे ?"

" क्या-क्या नहीं…

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Added by kanta roy on June 14, 2016 at 12:30pm — 22 Comments

लघु - कवितायें - 01 - डॉo विजय शंकर

तालाब की दुर्गन्ध
दूर दूर तक फ़ैली थी ,
वो कुछ मछलियों
के भाग जाने का
हवाला दे रहे थे।
**********************
लोग जितने नासमझ होगे
उतनी आप की बात मानेंगे।
लोग जितने टूटेंगे ,
आप उतने मजबूत होंगे।
आप जितनी रोटियां बाटेंगे ,
लोग उतने आपके होंगे।
***********************
राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 11:03am — 20 Comments

बीज प्रेम के रोपते...

दोहा छंद....
बादल-बदली-बूंद से, हवा हुई जब नर्म.
ज्येष्ठ ताप-बैसाख ने, जोड़ें रिश्ते मर्म.१
 
हवा दिशाओं को करे, अनुप्राणित रस सिक्त.
बादल उनको जी रहा,  वर्षा  करती  रिक्त.२
 
सावन में वर्षा नहीं,  नहीं हरित व्यवहार.
नीम वृक्ष के गांव में, चिंचियाता बॅंसवार.३
 
सावन में…
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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments

गीतिका (आनंदवर्धक छंद)

2122 2122 212

दो कदम आगे बढ़ा कर देखिये

अब जरा नजदीक आकर देखिये।1



जो सुलगती है रही तबसे यहाँ

आग वह फिर से जला कर देखिये।2



सोलहों आने खरा अपना कनक

जो लगे अब भी तपा कर देखिये।3



खनखनाता मैं रहा कितना कहूँ

अब नहीं फिर से बजा कर देखिये।4



देख लेंगे लोग बस डरते रहे

जी करे नजरें बचा कर देखिये।5



चल चुके अबतक बहुत जाने-जिगर

पग कभी मुझसे मिला कर देखिये।6



हो रहे हैं बेखबर फिर बेवजह

फासले कुछ तो मिटाकर… Continue

Added by Manan Kumar singh on June 14, 2016 at 7:03am — 11 Comments

चाय की पत्ती (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"भाभी, चाय खौल चुकी है, कहाँ खोई हुई हो तुम!" देवरानी ने गैस चूल्हा बंद करते हुए जिठानी से कहा।

"ओह, मैं चाय की पत्ती के बारे में सोच रही थी!"

"क्यों?"

"मैं भी यहाँ चाय की पत्ती ही तो हूँ!"

"क्या मतलब?"

"बिना शक्कर के सबको चाय कड़वी ही तो लगती है, मिठास मिले तो सबको मीठी चाय भाये!"

"लेकिन चाय मीठी हो या फीकी, रिश्ते मधुर बनाने में एक पहल तो करती ही है, बस यह ध्यान रहे कि कहां फीकी चलेगी और कहां मीठी!"

"सही कहा तुमने, लेकिन नौकरी पेशा औरत को जब मध्यमवर्गीय…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 13, 2016 at 4:00pm — 12 Comments

मायाजाल ...

मायाजाल ...

ये मकड़ी भी

कितनी पागल है

बार बार गिरती है

मगर जाल बुनना

बंद नहीं करती

बहुत सुकून मिलता है उसे

अपने ही जाल के मोह में

स्वयं को उलझाए रखने में

वो स्वयं को

वासनाओं के जाल में

लिप्त रखना चाहती है

शायद वो जानती है

जिस दिन भी वो

अपना कर्म छोड़ देगी

वो अपनी पहचान खो देगी

पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी

लेकिन इस तरह का मोक्ष

कभी उसकी पसंद नहीं होता

उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है…

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Added by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 3:35pm — 12 Comments

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये

२१२२  ११२२   ११२२   २१२  

आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये 

क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये 

हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना 

अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये 

अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर 

एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये 

दिल  हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा 

मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये 

जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू 

हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 1:57pm — 12 Comments

हे! जगदीश! सुनो विनती

'मत्तगयन्द सवैया'



हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।

व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।

कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?

आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।



'दुर्मिल सवैया'



जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।

तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।

शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।

हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर…

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Added by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 1:00pm — 6 Comments

(देवी गीत) दे शरण मुझे, कर वरण मुझे हे माँ

दे शरण मुझे,

कर वरण मुझे हे माँ



है जगत तेरी बस छाया

सब कुछ तुझ में है समाया

इस भूल-भुलैया दुनिया में

सब समझ मुझे अब आया



मैं याचक हूँ

नत मस्तक हूँ

कर चरण मुझे

दे शरण मुझे हे माँ



दे शरण मुझे,

कर वरण मुझे हे माँ



हे जग जननी हे माता

त्रैलोक्य तुम्हें है ध्याता

नाम तुम्हारा हे जग माता

तव, कष्ट सभी हर जाता



मैं मूढ़ मति, बिगड़ी है गति

कर स्मरण मुझे

दे शरण मुझे हे माँ



दे शरण… Continue

Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:36pm — No Comments

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