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‘राष्ट्रपति को भा गई छत्तीसगढ़ की आत्मीयता’

छत्तीसगढ़ ने ‘धान का कटोरा’ के तौर पर देश-दुनिया में पहचान रखी है। प्रदेश की प्राचीन संस्कृति व लोककला यहां की प्रमुख विरासत है। छग में दूसरे राज्यों तथा अन्य देशों से जब भी कोई पहुंचते हैं तो वे सहसा ही यहां के लोगों की आत्मीयता से अभिभूत हो जाते हैं। वनांचल क्षेत्रों की आदिवासी संस्कृति व परंपरा जानकर हर कोई वाह-वाह किए बगैर नहीं रहता और यहां की यादों को अपनी संस्मरण में उतार लेते हैं। छत्तीसगढ़ के लिए अक्सर कहा जाता है - ‘छत्तीसगढ़िया-सबसे बढ़िया’। यह उक्ति आज की बनाई हुई नहीं है, बल्कि बरसों से… Continue

Added by rajkumar sahu on June 24, 2011 at 5:16pm — No Comments

कविता : माँ की गाली

कभी माँ थी मैं तुम्हारी
आज केवल
एक स्त्री देह रह गई
क्योंकि तुमने
गुस्से में ही सही
दूसरों को गाली देने के लिए ही सही
‘माँ’ शब्द को
अपशब्दों से जोड़कर
नए शब्दों को
पैदा करना सीख लिया है

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 24, 2011 at 3:05pm — 1 Comment

परीक्षा, फर्जीवाड़ा और छत्तीसगढ़

ऐसा लगता है, जैसे छत्तीसगढ़ की परीक्षाओं का, फर्जीवाड़ा और विवादों से चोली-दामन का साथ है। तभी तो प्रदेश में होने वाली अधिकांश परीक्षाओं में किसी न किसी तरह से धब्बा लगा ही जाता है। छग में शिक्षा नीति जिस तरह लचर है, उसी का खामियाजा होनहार छात्रों व उनके अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश के लिए परीक्षाओं में फर्जीवाड़ा की बात कोई नई नहीं रह गई है, यही कारण है कि छग से दूसरे राज्यों में जाकर पढ़ने वाले प्रतिभावान छात्रों को ‘हेय’ की दृष्टि से देखा जाता है, यह किसी भी सूरत में विकास पथ पर आगे…

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Added by rajkumar sahu on June 24, 2011 at 2:00am — No Comments

"वो" और "मैं"...!!

((जब-जब 'खुद' को देखना चाहा... खुद को दो हिस्सों में बंटा पाया... कभी "वो" जो जीती ज़िन्दगी... तो कभी "मैं" जिसे जीती ज़िन्दगी... कुछ शब्द सिर्फ 'मेरे' बारे में... मेरी 'नज़र' में... मुझे जानने के लिये... मुझे समझने के लिये...))… Continue

Added by Julie on June 23, 2011 at 9:54pm — 9 Comments

खाना नहीं पर गाना जरूर

अगर दुनियां में आज लोग दुखी हैं तो उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार में उन जैसे लोगों को मानता हूँ जो खाते कम गाते ज्यादा हैं



आप बहुचर्चित food shows का उदाहरण ले सकते हैं जिसमें आपको आसानी से एक महिला या पुरुष दिख जायेगा जो खाना चखने के दौरान अजीब अजीब आवाजें निकालना शुरू कर देता हैं

उनके चटकारे देखकर, देखने वाले मनुष्य को अपना अच्छा खासा स्वादिष्ट भोजन भी कम स्वादिष्ट लगने लगे इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं



किसी महापुरुष से सुना था के मनुष्य इस बात से दुखी नहीं के उसके घर… Continue

Added by Bhasker Agrawal on June 23, 2011 at 7:30pm — 4 Comments

सूखी हुई ख्वाहिशें

ज़िन्दगी का दरख्त
हो गया है ज़र्जर
समय की दीमक ने
कर दी हैं जड़ें खोखली
तनाव के थपेड़ों ने
झुलस दी है छाल
ख्वाहिशों के पत्ते
अब सूखने लगे हैं
और झर जाते हैं
प्रतिदिन स्वयं ही
परिस्थितियों की आँधियाँ
उडा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

Added by sangeeta swarup on June 23, 2011 at 12:34pm — 5 Comments

कभी ज़िंदगी से भी मिलो

कभी ज़िंदगी से भी मिलो --



ज़िंदगी ...... किसी क़ीमत पर हारती ही नही --…

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Added by Prabha Khanna on June 22, 2011 at 10:00pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
आओ साथी बात करें हम

आओ साथी बात करें हम

अहसासों की रंगोली से रिश्तों में जज़्बात भरें हम..

 

रिश्तों की क्यों हो परिभाषा

रिश्तों के उन्वान बने क्यों

हम मतवाला जीवनवाले

सम्बन्धों के नाम चुने क्यों

तुम हो, मैं हूँ, मिलजुल हम हैं, इतने से बारात करें हम..

आओ साथी बात करें हम.........

 

शोर भरी ख्वाहिश की बस्ती--

--की चीखों से क्या घबराना

कहाँ बदलती दुनिया कोई

उठना, गिरना, फिर जुट जाना

स्वर-संगम से अपने श्रम के, मन…

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Added by Saurabh Pandey on June 22, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

पापा की सीख

                                                …

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Added by monika on June 22, 2011 at 1:30pm — 3 Comments

''फिर क्या होगा ?''

गर कोई पाठशाला न हो फिर क्या होगा

हम जैसों का इस जहाँ में फिर क्या होगा ?



मेरा गजलें लिखना तो है कोई जुर्म नहीं

मगर बिन इल्म लिखीं तो फिर क्या होगा ?



किस्मत ले आई है हमें भी इक कक्षा में  

पाठ समझ ना आये तो फिर क्या होगा ?



हुस्ने मतला का हुस्न हमसे बर्बाद हुआ

अगला मतला पतला हुआ फिर क्या होगा ?



रुक्न को समझने में रुकी हुई है अकल

फायलातुन, मुफाइलुन का फिर क्या होगा ?



रदीफ, काफिया की है हालत बड़ी नाजुक

मत्ला औ मकता… Continue

Added by Shanno Aggarwal on June 22, 2011 at 3:30am — 4 Comments

कभी मुझे इस दुनिया में रहने का ढब न आएगा ...

कौन किसी के अश्रु पिएगा, कौन घाव सहलाएगा ...

पत्थर दिल वालों की नगरिया में तू धोखा खाएगा ...



माँगेगा दो बोल प्रेम के, तुझे भिखारी समझेंगे ...

जो कुछ… Continue

Added by Prabha Khanna on June 21, 2011 at 9:54am — 9 Comments

मानसरोवर ----२

नियति का नीयत नियत होता, यह है कायर का कहना.



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



यदि मनुज चाहे तो उसका, भाग्य बदल सकता है.



पत्थर के सीने से भी, निर्मल जल बह सकता है.



महाशक्ति है पौरुषबल, जो बदल डालता ब्रम्ह्लेख.



अमित बार सुर काँप उठे, मानव का अनुपम तेज देख.



सर्व शक्तिमान है मानव, है उचित पराश्रित रहना ?



नियति भरोसे जीवन -यापन, जीवन से है छल करना.



नियति गौण मानव -जीवन में, कर्म पक्ष की महता… Continue

Added by satish mapatpuri on June 21, 2011 at 2:00am — 1 Comment


मुख्य प्रबंधक
ब्लॉग / रचना कैसे पोस्ट करें ...

साथियों ! नये सदस्यों के सहयोग हेतु ब्लॉग में रचना कैसे पोस्ट करे चित्र के माध्यम से समझाया गया है | यदि पुनः कोई प्रश्न इस सम्बन्ध में हो तो नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स मे लिखकर पूछा जा सकता है |…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2011 at 7:00pm — 4 Comments

धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव

Wednesday, June 15, 2011

धरती- चंद्रमा का लुका-छिपी महोत्सव (एल. आर. गाँधी)



आज पूर्णिमा की रात इस शताब्दी की बहुत विचित्र रात है !

आज की रात शशि....अवनी संग लुका- छिपी का खेल खलेंगे.

लो शशि छुप गए और धरा दबे पाँव अपने प्रेमी को ढूंढ रही है. रवि चुप चाप इस खेल को निहार रहे हैं . तीनो आज रात सदियों के बाद लम्बी छुट्टी पर उत्सव मना रहे हैं… Continue

Added by l.r.gandhi on June 20, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

कुछ ऐसा सोचें

चलो आज कुछ ऐसा सोचें। 

रोज़ नहीं हम जैसा सोचें

नींद उड़ा दे जो रातों की

सपना कोई ऐसा…

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Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:14pm — 1 Comment

टूटने का दर्द

टूटने का दर्द होता एक समान ...........रिश्ता नामवर हो या के अनाम

चुभन तो मिट जाती है हर शूल की....शालती राहती उम्र तमाम....

घाव तो भर जाते है हर चोट के.... रह जाते है मगर निशान....

बेवफ़ाई तो भूल चुके उनकी मगर....भूल ना सके उनके अहसान

कद्र वो क्या समझते हमारी वफा का...जफ़ाओ का जो रखते सामान

क़ातिल तो फकत क़ातिल होता है...उसका न कोई धर्म न ईमान

                                              ##### प्रदीप सिंह चौहान "अनाम"

Added by प्रदीप सिंह चौहान on June 20, 2011 at 1:11pm — 1 Comment

शिक्षा का व्यवसायीकरण



फैलती मैकडोनल्ड की संस्कृति
कौशल किशोर
‘शिक्षा के व्यवसायीकरण के प्रभाव’ विषय पर बीते 14 जुलाई को लखनऊ के बली प्रेक्षागृह में रीगल मावन सृजन संस्थान की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद अरुणेश मिश्र ने की तथा संचालन…
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Added by manu manju shukla on June 20, 2011 at 11:03am — No Comments

मत अभिमान करो ...

मत अभिमान करो ...

समय पक्षधर बना आज,

उसका सम्मान करो ...



कल साँसों की संचित पूँजी चुकने वाली है ...…

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Added by Prabha Khanna on June 20, 2011 at 9:00am — 9 Comments

मेरी त्रिवेनियाँ ....

 

1 . ये किसने इनके हाथ में ज़िन्दगी की कठिन किताब पकड़ा दी है 
      नुकीले सबक चुभ जाते हैं और आंसू बहता रहता है
 
      ये मजदूर माँ कब तक बच्चों से मजदूरी करवाती रहेगी !! 
 
 
2 . सोचता रहा सारा…
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Added by Veerendra Jain on June 19, 2011 at 11:46pm — 7 Comments

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