For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2017 Blog Posts (116)

ग़ज़ल-नूर की- ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

2122/1122/1122/22

.

ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.

.

जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है  

ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.   

.

आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,

और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.

.

वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत

अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.

.

टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,  

और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments

"तेरा साथ" कविता (मल्हार)

तेरा मेरा साथ अगर हो जाये  

तो जीना मेरा पुख़्ता हो जाये

धूप कभी गर लगे जो मुझको

छांव तेरी जुल्फों का हो जाये

ना कोई वादा ना कोई कसमें

निभाते चलें बस प्यार की रस्में 

सांस अधूरी धड़कन अधूरी 

जब तुम ना थे तब हम अधूरे

पूरा है अब चाँद फलक पर

अब तू भी पूरा में भी पूरा।       

  रोहित डोबरियाल"मल्हार" 

    मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 24, 2017 at 8:24pm — No Comments

जंगल के फूल -सीमा पांडे मिश्रा "सुशी"

आखिर आज शो का दिन आ ही गया| गाँव की चौपाल पर सुरीली तान छेड़ने वाला रामा बहुत घबराया हुआ था| दोस्त के कहने पर, गायकी के शो में जब चयनित होकर आया तो शहर की चकाचौंध देखता रह गया था| होटल के ए सी रूम में उसकी आवाज़ भी बंद हो गयी|

साथी प्रतियोगियों के लिए अजूबा सा रामा, हीन महसूस करता| बस खुसुर-पुसुर और व्यंगात्मक हँसी| लज्जित, अपमानित होकर मन हीनता के बोध से मुरझा-सा गया| उच्चारण और सुर के लिए जो बातें बताई गईं, समझ से परे थीं| बालों का स्टाइल बनाकर, डिजाइनर कपड़े पहनाए गए| असहज हो…

Continue

Added by Seema Mishra on April 24, 2017 at 5:09pm — 8 Comments

हार गई जिंदगी (लघुकथा)

  

हार गई जिंदगी

चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।

प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।

यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on April 24, 2017 at 5:00pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
“किन्नर” (लघु कथा 'राज')

पांच मिनट के लिए स्टेशन पर गाड़ी रुकी जनरल बोगी में पहले ही बहुत भीड़ थी उसपर बहुत से लोग और घुस आये जिनमे सजे धजे परफ्यूम की सुगंध बिखेरते चार किन्नर भी थे| कुछ लोगों के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान आ गई जैसे की कोई मनोरंजन का सामान देख लिया  हो कुछ लोगों ने अजीब सा मुंह बनाया तथा एक साइड को खिसक लिए जैसे की कोई छूत की बीमारी वाले आस- पास आ गए हों|

“अब ये  अपने धंधे पर लगेंगे” वहाँ बैठे लडकों के ग्रुप में से एक ने कहा| “हाँ यार आज कल तो ट्रेन में भी आराम से सफ़र नहीं कर सकते अच्छी…

Continue

Added by rajesh kumari on April 24, 2017 at 12:08pm — 26 Comments

ग़ज़ल...जहर से भरी वादियों में हवा है

कश्मीर के हालातों को लेकर मन की उपज
122 122 122 122
दवा काम आये न लगती दुआ है
जहर से भरी वादियों में हवा है

यहाँ आदमी मुख़्तलिफ़ है खुदी से
न मुददा है कोई न ही माज़रा है

रुको मत लहू आखरी तक निचोड़ो
अभी जिस्म में जान बाकी जरा है

कहीं उड़ न जाये वफ़ा का परिंदा
अभी और मारो अभी अधमरा है

सरे राह घर है औ धरती बिछौना
भला मुफलिसों की जरुरत भी क्या है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं - ( गिरिराज )

2122   1212   22 /112

मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे  

फिर लगे दूर आसमाँ कर दे

 

प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के

है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे 

 

वो ठिकाना जहाँ उजाला हो

सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे

 

दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं

आ मेरे सामने , बयाँ कर दे

 

ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे

हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे

 

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 11:11am — 23 Comments

"तन्हा" सपना (मल्हार)

तू ही तो मेरा अपना है

लगता यह इक सपना है 

कहता मेरा पागल दिल 

बस तेरे लिए धड़कना है

ना मेरे दिल ना मेरे में कोई बुराई है

लगता है किस्मत में  ही जुदाई है

चल दिल भी तेरा मैं भी तेरा 

यह सपना तू कर दे बस पूरा

अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको,

इस दिल में बड़ी गहराई  है

अब अकेला हूँ मैं यारों …. 

बस साथ मेरी तन्हाई  है 

बस साथ मेरी तन्हाई है 

                    "मल्हार"

  मौलिक व अप्रकाशित

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 22, 2017 at 9:06pm — 4 Comments

बेशर्मी से ... (क्षणिका )...

बेशर्मी से ... (क्षणिका )

अन्धकार
चीख उठा
स्पर्शों के चरम
गंधहीन हो गए
जब
पवन की थपकी से
इक दिया
बुझते बुझते
बेशर्मी से
जल उठा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 22, 2017 at 8:49pm — 11 Comments

खुद आंसू पीते हैं

अहदे नौ में
माएं दूध पिलाती नहीं हैं
गायें भैसें  कसाईयों से बच पाती नहीं हैं
इससे तकलीफ उन्हें नहीं होती है
जो खरीद सकते हैं दूध
सोने की कीमतों पर…
Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on April 22, 2017 at 5:51pm — 10 Comments

ग़ज़ल(दिल बचाया तो तेरा जिगर जाएगा )

फाइलुन -फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन

वक़्ते तन्हाई मेरा गुज़र जाएगा |

तू अगर साथ शब भर ठहर जाएगा |

मुझको इज़ने तबस्सुम अगऱ मिल गई

तेरा मगरूर चेहरा उतर जाएगा |

मालो दौलत नहीं सिर्फ़ आमाल हैं

हश्र में जिनको लेकर बशर जाएगा |

उसके वादों पे कोई न करना यक़ी

वो सियासी बशर है मुकर जाएगा |

देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र

खुद बखुद ही निकल दिल से डर जाएगा |

आप खंजर का एहसान लेते है…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 22, 2017 at 12:00pm — 13 Comments

नज़रें (कविता)मल्हार

नज़र से मेरी नज़र जो मिली तेरी

दिल की धड़कनें कुछ यूँ बढ़ी मेरी

ये दिल जो हो गया है अब तेरा

तू ही बता क्या कसूर इस में मेरा  

गा रहा ये दिल तराने अब तेरे 

बज रहा हो सितार जैसे दिल में मेरे

ख्यालों में डूबा हूं इस कदर अब तेरे

दिन गये चैन-ओ-सुकून वाले अब मेरे

बेवफ़ाई जो कर गयी नज़रें तेरी

किस्मत ही मुकर गयी जैसे मेरी

तुझे न पा सकूँ तो मेरी  क्या कमी है

बस आँखों में जिंदगी भर की नमी है 

मेरे दिल…

Continue

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 21, 2017 at 11:30pm — 2 Comments

पत्ता जब शाख से गिरा होगा(गजल)/सतविन्द्र

गजल
2122 1212 22/112
पत्ता जब शाख से गिरा होगा
दर्द कुछ तो उसे हुआ होगा

अब्र से आस क्या करे कोई
खुद भी प्यासा तड़प रहा होगा

हाथ में जिसके आज पत्थर हैं
कौन कल उसका रहनुमा होगा?

सिर्फ बातें नहीं अमल भी हो
ऊंचा फिर तेरा मर्तबा होगा।

दिल से राणा निकल गया हर शक
सोच लोगे भला,भला होगा

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 21, 2017 at 10:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल -- मौत से वह बहुत लड़ा होगा ।।

2122 1212 22



उसके चेहरे पे कुछ लिखा होगा ।

पढ़ने वालों ने पढ़ लिया होगा ।।



यूँ…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 21, 2017 at 10:00am — 8 Comments

छाँव

खेतों में चलते हैं

हल जब भी

पसीना बहता है

मिट्टी में घुल मिलकर

लहराती फ़सल की देता सौगात है



धूप की तपिश

बरसात होती वरदान

थके कदमों को

बड़े वृक्ष देतें हैं छाँव



कुदरत के बिना

जीना होगा असम्भव

फिर कैसा घमण्ड

कैसा गुरुर



ज़मीन सभी की

पेड़ सभी के

छोटे बड़ों की

क्या होतीं हैं पहचान ?



ज़मीन भी यहीं

आसमान भी

फिर यह कैसी सोच

कि किसी एक को

मिल रहा सरंक्षण आसमान का



जो नहीं… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 21, 2017 at 9:02am — 8 Comments

कलियों का रुदन ....

कलियों का रुदन   .... 

रात भर

कलियों का रुदन होता रहा

उनके अश्रु

ओस कणों में

परिवर्तित हो गए

पर तुम

उनके अंतर्मन की वेदना से

अनभिज्ञ रहे भानु

उनकी सिसकियाँ

सन्नाटों में

तुम्हें पुकारती रहीं

मगर तुम न सुन सके

आहों के वेग से

तुम

अनभिज्ञ रहे भानु

सच तुम

बहुत निष्ठुर हो

भला

तुम्हारे रश्मि दूत भी कहीं

उनके मूक बंधन के

कारण का निवारण बन

सकते…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 20, 2017 at 5:39pm — 2 Comments

उस से मुझको सच में कोई शिकायत भी नही (ग़ज़ल)

2122, 212, 2122, 212



उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,

हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।



इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,

गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।



अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,

ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।



आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,

इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।



जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,

अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।



मौलिक व…

Continue

Added by Hemant kumar on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments

ग़ज़ल नूर की -कहीं सजदा किया, पूजा कहीं पत्थर तेरा,

२१२२/११२२/११२२/२२

.

कहीं सजदा किया, पूजा कहीं पत्थर तेरा,

अपने अंदर ही मगर मुझ को मिला घर तेरा. 

.

मेरी आँखों में उतरना तो उतरना बचकर,

ख़ुद में तूफ़ान छुपाए है..... समंदर तेरा.  

.

यूँ ही पीछे नहीं चलता है ज़माना तेरे,

नापता रहता है क़द ये भी बराबर तेरा.

.

दिल को आदत सी पड़ी है कि ख़ुदा ख़ैर करे,

ढूँढ लाता है कहीं से भी ये नश्तर तेरा.



तर्क  अब इस से ज़ियादा मैं करूँ क्या ख़ुद को

ये अना तेरे हवाले ये मेरा सर ....तेरा.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 10:53am — 14 Comments

क़दम उठाने से पहले विचार करना था

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



(आख़री शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करें और शैर का लुत्फ़ लें)



अगर वफ़ा का चलन इख़्तियार करना था

क़दम उठाने से पहले विचार करना था



ये एक बार नहीं बार बार करना था

बग़ैर नाव के दरिया को पार करना था



हुसूल-ए-इल्म की ख़ातिर भटकते फिरते हैं

ग़ज़ल का फ़न जो हमें बा वक़ार करना था



उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाहत में

शऊर-ओ-फ़िक्र की सरहद को पार करना था



वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता

उसी… Continue

Added by Samar kabeer on April 20, 2017 at 12:04am — 31 Comments

ग़ज़ल -- भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं ( दिनेश कुमार )

122--122--122--12



निगाहों से उसने पिलाया नहीं

मज़ा मुझको महफ़िल में आया नहीं



उदासी भी कब आई रुख़ पर मेरे

भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं



बशर कौन है वो जिसे वक़्त ने

इशारों पे अपने नचाया नहीं



अभी दाद अपनी सँभाले रखो

अभी शे'र मैंने सुनाया नहीं



मैं झूठा हूँ चल ठीक है। ये बता

मुझे आइना क्यों दिखाया नहीं



दिलों के मिलन पर है सब मुनहसिर

कोई अपना कोई पराया नहीं



तू पत्थर है या एक हीरा 'दिनेश'

कोई… Continue

Added by दिनेश कुमार on April 19, 2017 at 6:17pm — 9 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
7 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
9 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Euphonic Amit जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई, बधाई आपको।  "आप के तसव्वुर में एक बार खो जाए फिर क़लम…"
14 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
19 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें भाई चारा का सही वज्न 2122 या 2222 है ? "
21 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
26 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
27 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
35 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
35 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
36 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बारीकी से इस्लाह व ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आ इक नज़र ही काफी है आतिश-ए-महब्बत…"
37 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
51 minutes ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service