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April 2015 Blog Posts (226)

बिटिया थोड़ी छोटी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

 

अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती

गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती

नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती

नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती

मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती

माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती

 

थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

 

मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना

रात को देर से आना फिर…

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Added by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 1:04pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुक्ति बोध (लघु कथा ...'राज')

   

 रोहित का आठवाँ  जन्मदिवस है मम्मी पापा उत्साहित हैं, कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते उसके जन्म दिवस की पार्टी की तैयारी में,  तन मन  से लगे हैं  ये सोचकर की शायद उनका लाडला नार्मल हो जाए उसके चेहरे पर एक बार मुस्कराहट वापस आ जाए|

पापा ने बड़े प्यार सेपूछा ”बोलो बेटा क्या लोगे ? जो भी तुम इस बर्थ डे पर मांगोगे मैं तुम्हे वही लाकर दूंगा"

” पापा मुझे एक तोता ला दो”|

सुनते ही जैसे पापा को  पंख लग गए तुरंत एक तोते का पिंजरा ले आये| मम्मी पापा दोनों की ख़ुशी…

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Added by rajesh kumari on April 8, 2015 at 10:28am — 32 Comments

बात गज़ब की करते हो -- डॉo विजय शंकर

हालात बदलने की बात करते हो

आदमी बदल देते हो

हालात बदल नहीं पाते ,

या बदलना नहीं चाहते हो।

खुद को तरक्की पसंद कहते हो

तरक्की की बात करते हो

काम करने के पुराने तरीके

नहीं बदलते हो ,

आदमी बदल देते हो ।

उसने बहुत सहा , अब तुम सहो ,

इसी को सामाजिक न्याय कहते हो ,

गज़ब करते हो बिना हींग फिटकरी के

रंग चोखा करते हो ॥

तरक्की की बात करते हो

खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥

अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं

पर बात गज़ब की करते हो… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 9:42am — 27 Comments

एक गज़ल,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

---------------------------------------------------



बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!

आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)



टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,

पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)



घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,

पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)



श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,

लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)



खूब रॊतीं थी…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 8, 2015 at 3:30am — 12 Comments

बहुत कुछ दांव पे लगाया है .....

१ २ २ २ १२ १ २२२
बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥
किसे कहते कि बेवफा है वो ,
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,
अचानक सामने जो आया है ॥
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,
हमारे के लिए बनाया है ॥
हुआ है एहसास जन्नत का ,
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥
कहाँ होशो-हवास की बातें ,
किसी पे जब शबाब आया है ॥
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥
मौलिक /अप्रकाशित

Added by Nazeel on April 7, 2015 at 9:30pm — 15 Comments

नवगीत : चंचल नदी

चंचल नदी

बाँध के आगे

फिर से हार गई

बोला बाँध

यहाँ चलना है

मन को मार, गई

 

टेढ़े चाल चलन के

उस पर थे

इल्ज़ाम लगे

उसकी गति में

थी जो बिजली

उसके दाम लगे

 

पत्थर के आगे

मिन्नत सब

हो बेकार गई

 

टूटी लहरें

छूटी कल कल

झील हरी निकली

शांत सतह पर

लेकिन भीतर

पर्तों में बदली

 

सदा स्वस्थ

रहने वाली

होकर बीमार…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 1:44pm — 28 Comments

एक हिंदी ग़ज़ल/आ चली आ सितम

बह्र-212 212 212 212

बाअदब नजरे पेश

---------------------

चीज है क्या ज़रा देख लूँ बेरहम।

दर्द की है कसम आ चली आ सितम। (१)

****

नूर तो आँख का ले गये हो चुरा,

चाँदनी रात का दे रहे क्यों भरम। (२)

****

हो रही नग्न है नाचती ये ख़ुशी,

क्या नजर चाहती देखना ये हरम। (३)

****

देश को बेचतें आज भी लोग जो,

मोल दे दो उन्हें बेच देगें धरम। (४)

****

माँगते हम नहीं भीख तुमसे कभी,

राह चलते गिरें सम्हलें क्या शरम।… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 1:30pm — 27 Comments

चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी

चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी 

डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी

रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना 

राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी

खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में 

कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी

जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर 

बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी

चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने 

इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली…

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Added by Nidhi Agrawal on April 7, 2015 at 1:30pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है - ग़ज़ल

221 2121 1221 212

लोगों के दरमियान उड़ाई हुई तो है

हाँ ये खबर जफ़ा की, बनाई हुई तो है

 

हों तेरे दिल में रश्क़ो हसद तो हुआ करे

आखिर ये आग तेरी लगाई हुई तो है

 

सच ही कहा ये आपने आज़ार देखकर

इक चोट मेरे दिल ने भी खाई हुई तो है

 

गलियों में ये पड़े हुए खाशाक* देखिये                *कूड़ा करकट

इस शह्र में कहीं पे सफाई हुई तो है

 

चटखी हैं उँगलियाँ वो भुजायें फड़क गईं

शामत किसी की “आप” में आई हुई तो…

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Added by शिज्जु "शकूर" on April 7, 2015 at 12:11pm — 28 Comments

ग़ज़ल : पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

बह्र : 221 2121 1221 212

 

रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है

पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

 

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

 

बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं

महलों के आसपास खुदाई हुई तो है

 

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए

छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है

 

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 11:52am — 20 Comments

खुदा तेरी ज़मीं का..............

1222 1222 1222 122



खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है

करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है



किसी दिन मिलके तुझमें, बन मै जाऊँगा मसीहा

अना की जंग लड़ता मस्त कतरा बोलता है



बिछड़ना है सभी को इक न इक दिन, याद रख तू

नशेमन से बिछड़ता जर्द पत्ता बोलता है



हुनर का हो तू गर पक्का तो जीवन ज्यूँ शहद हो

निखर जा तप के मधुमक्खी का छत्ता बोलता है



बहुत दिल साफ़ होना भी नही होता है अच्छा

किसी का मै न हो पाया,ये शीशा…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:00am — 16 Comments

तुम नदी के तरह समर्पण तो करो

मैंने हमेशा,तुमको

एक शान्त ,स्थिर,

धैर्य चित्त रखते हुये 

एक समुद्र की तरह चाहा है

मगर क्या तुमने किया 

खुद को नदी की तरह 

मुझको समर्पित

कदाचित नहीं ।।



नदी ,समुद्र में कूद जाती है

खुद का अस्तित्व मिटाकर

मगर अमर हो जाती है

समुद्र की मुहब्बत बनकर

हमेशा के लिये 

और बहती रहती है 

युगों युगों तक समुद्र 

के हृदय में ।।



मैं समुद्र हूँ 

तुम नदी हो

मैं तुम्हें मनाने भी चला आऊँ

मगर मेरे…

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Added by umesh katara on April 7, 2015 at 8:00am — 10 Comments

दस दॊहॆ,,,(व्यसन मुक्ति)

दस दॊहा,,,(व्यसन मुक्ति)

==================

धुँआ उड़ाना छॊड़दॆ, मत भर भीतर आग !

सड़ जायॆंगॆ फॆफड़ॆ, हॊं अनगिनत सुराग़ !!(१)



जला जला सिगरॆट तू, मारॆ लम्बी फूंक !

रॊग बुलाता है स्वयं, कर कॆ भारी चूक !!(२)



बीड़ी सिगरिट फूँक कर, करॆ दाम बर्बाद !

मीत न आयॆं पूछनॆं,जब तन बहॆ मवाद !!(३)



कैंसर सँग टी.बी. मिलॆ,जैसॆ मिलॆ दहॆज़ !

खूनी खाँसी अरु दमा,अंत मौत की सॆज़ !!(४)



मजॆ उड़ाता है अभी, गगन उड़ाता छल्ल !

खूनी खाँसी जब उठॆ, रक्त बहॆगा भल्ल…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 7, 2015 at 1:55am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल-- 21122---21122---2112 (मिथिलेश वामनकर)

21122---21122---2112 

 

हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस

बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस

 

हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी …

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Added by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 12:56am — 31 Comments

ग़ज़ल :- तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

ख़ुद अपना घर जलाकर हँस रहा है



बड़े लोगों की बातें भी बड़ी हैं

लगा,जैसे समन्दर हँस रहा है



सलीक़ा मन्द रो देते हैं जिस पर

तू ऐसी बात सुन कर हँस रहा है



बुराई का बुरा अंजाम होगा

फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है



नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर

कोई बर्बाद होकर हँस रहा है



समझ लेना क़यामत आ गई है

अगर देखो,सुख़न्वर हँस रहा है



मिरी बर्बादियों पर ख़ुश है इतना

वो दिल पर हाथ रखकर हँस रहा… Continue

Added by Samar kabeer on April 7, 2015 at 12:00am — 30 Comments

भारत -मेरी कल्पना

सुबह हो हमारी अपनों के बीच रहकर हो 
हमारे ख्वाब और कोलाहल वाले नभचर हों 
चहचहाती चिड़ियों के आनंदित लम्हें हों 
सुगन्धित वायु से परिपूर्ण सब पुष्प सुनहरे हों 
हमारी जिद है ,भारत की सुबह बनाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |
लहलहाते हुए सब खेत और खलिहान गाते हों 
न फ़िल्मी दुनिया के सब अपमान गाते हों 
एकसाथ मिलकर हमसब राष्ट्रगान गाते हों 
सुबह उठकर सभी अपने प्रभु गुणगान गाते…
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Added by maharshi tripathi on April 6, 2015 at 11:00pm — 9 Comments

"मास्टरी"

"मास्टरजी तुम्हारा काम बच्चो को पढ़ाना है, इन छोरो के साथ नेतागिरी करना नही।" चौधरी भान सिंह के बेटे की आवाज सुनकर नारेबाजी करते नौजवान कुछ क्षण के लिये शांत हो गये।

गाँव मे नशे के खिलाफ खड़े होने वाले कुछ नौजवानो के साथ आ मिले दो पीढ़ियों से गाँव में मास्टरी कर रहे काशीनाथजी ने उसे किनारे किया और पीछे खड़े भानसिह से मुस्कराकर बोले। "चौधरी साहब। नशाखोरी की लत गाँव के बच्चो को निक्कमा बना रही है, हमारा फर्ज बनता है कि हम इस जंग में इन नौजवानो का साथ दे।"

"मास्टरजी। अपना फर्ज तो तुम कभी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2015 at 10:08pm — 12 Comments

कभी यूं भी-क्षणिकाएँ - 5 --- डॉo विजय शंकर

1. न कहीं जाना था

न जल्दी में थे हम

तुमने रोका नहीं

दूर हो गए हम………



2. जलने वाले

पीठ पीछे जलते हैं

जल के रौशनी भी

अपनों के लिए ही करते हैं ………



3. चले गये

मेरी जिंदगी से वो

किताबों के कमजोर कवर

जल्दी उत्तर जाते हैं

गुम हो जाते हैं ..............







4. अपनापन तो

कहीं भी होता है

वहां भी , जहां अपना

कोई भी नहीं होता है ………



5. ख़्वाब अधूरे नहीं ,

पूरे थे ,

अफ़सोस… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 12:00pm — 16 Comments


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ग़ज़ल -- चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है ( गिरिराज भंडारी )

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

22  22  22  22   22  2

***********************************

याद मुझे वो अक्सर ही आ जाती है

चूल्हे वाली गुड़ की चाय लुभाती है

 

आग चढ़ी वो दूध भरी काली मटकी

वो मिठास अब कहाँ कहीं मिल पाती है 

 

वो कुतिया जो संग आती थी खेतों तक

उसके हिस्से की रोटी बच जाती है

 

छुपा छुपव्वल वाली वो गलियाँ सँकरीं

दिल की धड़कन , यादों से बढ़ जाती है

 

डंडा पचरंगा खेले जिस बरगद…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 6, 2015 at 11:44am — 27 Comments

ग़ज़ल -- मुसीबत में ही याद आते हैं राम

122-122-122-121

ये महँगाई जो बढ़ रही बेलगाम
हमारा तो जीना हुआ है हराम

तिज़ारत में हासिल महारत जिसे
उसे गुठलियों के भी मिलते हैं दाम

न जाने सभी की ये फितरत है क्यूँ
मुसीबत में ही याद आते हैं राम

रखे जो सदा हौसला और उमीद
उसी के ही दुनिया में बनते हैं काम

इसे सिर्फ़ वोटों से मतलब 'दिनेश'
सियासत कहाँ करती फ़िक्रे अवाम

मौलिक व अप्रकाशित

Added by दिनेश कुमार on April 6, 2015 at 8:20am — 23 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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