For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2015 Blog Posts (226)


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -- अंततः विदा पाई (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते

दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते

 

प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on April 12, 2015 at 10:30am — 14 Comments

चंद शेर - प्यार पर -- डॉo विजय शंकर

चलो ये अच्छा हुआ कि प्यार अंधा होता है

वर्ना किस किस से उसे दो चार होना पड़ता ||



पंखुड़ी गुलाब मासूमियत जिसके नाम है

झूठ फरेब धोखा सब उसे देखना पड़ता ||



जिसकी मरने जीने की लोग कसमें खाते हैं

उस प्यार को कभी खुद शहादत में आना पड़ता ||



प्यार जिसके फैसले पे लोग मर मिट जाते हैं

अदालती कटघरे में उसे खड़ा रहना पड़ता ||



दुनियाँ सब देख के अंधी बनी रहती है

प्यार को भी ऐसा ही गुनाह करना पड़ता ||



मौलिक एवं अप्रकाशित

डॉo… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 10:11am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत / नवगीत - क्या ये मेरा वही गाँव है --- गिरिराज भंडारी

क्या ये मेरा वही गाँव है

***********************

क्या ये मेरा वही गाँव है

सूरज अलसाया निकला है

मुर्गा बांग नहीं देता है 

नहीं यहाँ चिड़ियों की चीं चीं

ना कौवे की काँव काँव है

 

क्या ये मेरा वही गाँव है

 

दो पहरी सोई सोई है

दिवा स्वप्न में कुछ खोई है

यहाँ धूल में सनी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:32am — 22 Comments

नवगीत

नवगीत
मन थोड़ा भटका हुआ है!
सपने टूटे,दिल भी टूटा,
रातें रूठीं,दिन भी रूठा,
उम्मीदों का चाँद झाड़ पर
देखो ना अटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!
नयन-गगन में नजर गड़ी,
कैसी फिजा पल्ले पड़ी,
सूख चले अब जलद-नयन,
मानस में खटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!
उठती-सी लहरें उमंगित,
उर-अर्णव कितना तरंगित,
पूरी पूनम थी कल की रात,
प्रात हुआ, झटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!!
@मनन

Added by Manan Kumar singh on April 11, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

शोहरत

पल में शोहरत गर पानी है,बात अनर्गल बोलो तुम !

ताजमहल से शिव-मंदिर के कारिडोर को खोलो तुम !!

धर्म का सारा सोया सिस्टम,यूँ पल में जग जाएगा !

हर पेपर-हर चैनल में तेरा बयान ही आयेगा !!

खुली-बहस होगी तब सब जन अपना पक्ष सुनायेंगें !

कोई यमन औ जयवंती कुछ राग भैरवी गाएंगें !!

संसद की चौपाल पे फिर तेरा बयान छा जाएगा !

खो जायेंगें मुद्दे सारे - ताजमहल लहराएगा !!

मुद्दे की गर बात कही तो, खुद को हाशिये पर पाओगे !

दो कौड़ी की…

Continue

Added by rajkumarahuja on April 11, 2015 at 4:00pm — 4 Comments

हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा

२१२२   २१२२   २१२

 हुस्न का जादू जहाँ चल जायेगा  

रिन्दों का दिल भी बहाँ जल जायेगा 

जुल्फों को अपनी बिखेरेंगे वो जब 

उस घड़ी ये तय है दिन ढल जायेगा 

आ गए वो मौत से पहले मेरी 

वक़्त मेरी मौत का टल जायेगा 

हुस्न की मुझ पे इनायत हो गयी 

ये रकीबों को मेरे खल जायेगा 

उनसे मिलते वक़्त ये सोचा नहीं 

दिल में पौदा प्यार का पल जायेगा 

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Dr Ashutosh Mishra on April 11, 2015 at 10:30am — 3 Comments

आचरण

अर्चक, 

अर्चना करता है !

अर्धांगिनी से,

अराग होकर !

अल्लाह,

दे दे अवकाश मुझे,

इस अवदशा से !

अवर्ण्य हैं,

इनके…

Continue

Added by rajkumarahuja on April 10, 2015 at 6:30pm — 7 Comments

जीवन का आधार प्रीत है ....

जीवन   का   आधार  प्रीत  है ...........

जीवन   का   आधार  प्रीत  है

स्वप्न   का   श्रृंगार   प्रीत  है

जलते   रहना   दीप  लौ   पर

शलभ  की  निस्वार्थ  प्रीत  है

विरह   में   बरसात  की   बूंदें

सावन  का   रूठा   संगीत   है

लहरों  पे  वो  छवि  मयंक की

नयन  बिम्ब  की तरल प्रीत है

मधुर  पलों  का  मौन समर्पण

अधरों  पर  अधरों  की जीत है

भुजबंधन  का  तरुण स्पन्दन

आसक्त पलों की  मधुर प्रीत है

आवारापन वो तिमिर-केश का

मधुप…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 10, 2015 at 1:51pm — 8 Comments

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया

२१२२  २१२२  २१२२  २१२ 

 

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया 

मेरा तो हर ख्वाब टूटा क्या तुम्हारा खो गया 

 

शख्स  जो कहता था मुझसे राह अब उसकी जुदा है 

देख कर मुझको नशे में, बालकों सा रो…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 11:00am — 9 Comments

बदचलन

"ए रांड....." - परीक्षा देकर निकलते ही ऊँची आवाज में सीसा घोलती गाली वर्षा के कानों में पड़ी.. मुड़कर देखा तो संतोष सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुवे अपने मित्रों के साथ उसकी तरफ देख कर ठहाके लगा रहा था. वही जिसके प्यार को पिछले साल ठुकरा दिया था.. अपमान के एहसास से आँखों में आंसू आ गए .. पर वह चुपचाप वहां से चल दी.. क्या कहती ?

घर पहुँच कर देखा .. मुन्नी सो रही थी 

"वर्षा कल का पेपर कैसे देगी.. कोर्ट की तारीख आगे बढ़वा लेती" माँ रसोई से आते आते बोली 

"माँ…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on April 10, 2015 at 9:30am — 8 Comments

मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं

मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं

साहिल से अभी तूफां टकराने हज़ारों हैं



इस उम्र में भी मरता है तुमपे कोई मुझसा

कहते थे कभी हमसे दीवाने हज़ारों हैं



मैंने हैं सजा रक्खे सब दिल में करीने से

जो ग़म के दिये तुमने नज़राने हज़ारों हैं



इस शहर मे भी तेरे हमदर्द तो हैं अपने

अपने तो हैं कम लेकिन बेगाने हज़ारों हैं



कितने हैं…

Continue

Added by charanjit chandwal `chandan' on April 10, 2015 at 8:30am — 1 Comment

कोकिला मुझको जगाती- जवाहर

कोकिला मुझको जगाती, उठ जा अब तू देर न कर

देर पहले हो चुकी है, अब तो उठ अबेर न कर

उठ के देखो अरुण आभा, तरु शिखर को चूमती है

कूजते खगवृन्द सारे, कह रहे अब देर न कर

उठ के देखो सारे जग में, घोर संकट की घड़ी है

राह कोई भी निकालो, सोच में तू देर न कर

देख कृषकों की फसल को, घोर बृष्टि धो रही है,

अन्नदाता मर रहे हैं,  लो बचा तू देर न कर

ईमानदारी साथ मिहनत, फल नहीं मिलता है देखो,   

लूटकर धन घर जो लावे, उनके…

Continue

Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 3:00pm — 2 Comments

शिलाचित्र

मिट्टी के तत्वों से

गल चुके सैंकङों शब्द

कि शिलालेख की अर्थवत्ता खो चुकी.

जब कि,

अक्षम शिलालेख के नीचे

हस्ताक्षर सा शिलाचित्र

वयक्त कर रहा था सबकुछ.



कई-कई पुरूषों के बीच

अपह्रीत नारी, उसकी अस्मिता,

संकुचित देह से जैसे फटकर

निकलते आत्मरक्षार्थ हाथ.



पुरुषत्व के आगे याचनावत् थी नारी.



मिट्टी के तत्वों ने

शब्दों की तरह गलाया नहीं उसे,



इसलिए कि वह शिलाचित्र था

सर्वत्र के धरातल पर

सर्वदा की विषैली… Continue

Added by shree suneel on April 9, 2015 at 2:46pm — No Comments

याद मे

हम छोटे छोटे थे 

जब माँ 

कोयले की राख़ से 

गोले बनाती थी 

हम भी बैठे बैठे 

गोले बनाते थे 

ये वाला मेरा 

ये वाला तेरा 

मेरा गोला ज्यादा मोटा 

तेरा वाला पतला गोला 

धूप मे गोले 

फैला दिये जाते 

सूरज अपनी तपन से 

हवा अपने वेग से 

गोले को सूखा देते 

शाम को अम्मा 

उन्हे उठाती 

तब भी हम लड़ते 

ये तेरा वाला 

ये मेरा वाला 

अंगीठी मे एक एक करके 

गोले जलाये…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2015 at 1:30pm — 2 Comments

आधुनिकता

अपनी मांसल देह का, करे प्रदर्शन नार !

कम कपड़ों में घूम रही, देखो बीच बजार !!

आधुनिकता के नाम पर, देखो ये करतूत !

वस्त्र हैं इसने तज दिए, बस चिंदी संग- सूत !!

लिव-इन-रिलेशन में रहे, देखो नारी आज !

कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!

यों-ही मिले परसाद, रिलेशन महिमां गाओ !

इक से मन भर जाए, तो झट दूजा ले आओ !!

स्वतंत्रता की होड़ में,विवेक गया है छूट !

नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट !!

आज नए इस…

Continue

Added by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 11:30am — 14 Comments

कुत्ते की बेइज्जती

कुत्ते की बेइज्जती   

------------------------------------                                                                                                                                                                                                                                                    

एक बार सब मिलकर

हाथ जोडो

और कुत्ते की वफादारी को बेइज्जत

करना छोडो                                                                

कुत्ता जो एक टूक रोटी…

Continue

Added by umesh katara on April 9, 2015 at 8:13am — 16 Comments

तेरे बिन ........

हवा क्यूँ है ?

ये सूरज क्यूँ है ?

क्या करूँगा मैं किरणों का

ये सूरज निकलता क्यूँ है ?

ना जमीं मेरी है

ना आसमां मेरा

बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !

ये चमन क्यूँ है

ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक

ये तितलियाँ... ये भंवरे

घर गये क्यूँ नहीं अब तक

पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?

हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक

धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक

जब तू ही नहीं

तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक…

Continue

Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 9, 2015 at 7:33am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - लफ्ज़ सजाना पड़ता है.... (मिथिलेश वामनकर)

22—22—22—22—22—2

 

पलकों से हर लफ्ज़ सजाना पड़ता है

आँसू पीकर गीत बनाना पड़ता है  

 

मंहगाई में  झूठा रौब जताने को…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 1:30am — 16 Comments

न जाने किये कौन से रतजगे हैं /// हिंदी गजल (प्रयास जारी}

 

  मुतकारिब मुसम्मन सालिम

 122   122   122   122

 

न जाने  किये कौन से रतजगे हैं      

मुझे आप से तुम वो कहने लगे है

 

पिया है अमिय रूप वह जो तुम्हारा

पड़ा हूँ ,  सभी रोम रस में पगे हैं

 

हुआ  पाटली नैन  का जोर जादू

खड़े  इंद्र  गन्धर्व सब तो ठगे हैं

 

जिन्हें काम का देवता लोग कहते 

तुम्हे  देखकर काम उनके जगे हैं

 

हुआ है अभी  यह नया नेह बंधन

कि  लगते मुझे वे सगों से…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 8, 2015 at 8:20pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है -- गिरिराज भंडारी

221    212 1   1221     212 

 

बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है

सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है

 

कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही

चक्की में ज़िन्दगी  की पिसाई हुई तो है

 

बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली

लेकिन जो सच थी बात, उठाई  हुई तो है

 

देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक

तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है  

 

सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा

उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 8, 2015 at 3:30pm — 32 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
31 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
48 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
50 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service