For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2012 Blog Posts (147)

माँ का प्यार (लघु-कथा)

माँ मुझे बचपन में मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही रोटियां दिया करती थीं. इंटरवल में सारे बच्चे जल्दी जल्दी खाना ख़त्म करके खेलने चले जाते थे. और मै अपना खाना ख़त्म नहीं कर पता था. तो डब्बे में हमेशा ही कुछ न कुछ बच जाता था, और मुझे रोज़ डांट पड़ती थी. मेरी बहन भी घर आ के शिकायत करती थी कि उसे छोड़ के इंटरवल में मै खेलने भाग जाता हूँ.

.

एक दिन मेरी बहन मेरे साथ स्कूल नहीं गई. मै ख़ुशी ख़ुशी घर आया और माँ को बताया की मैंने आज पूरा खाना खाया है. माँ को यकीन नहीं हुआ, उन्होंने…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 20, 2012 at 4:00pm — 20 Comments

कहाँ छिपी हो पवन सी ?

कहाँ छिपी हो

पवन सी ?

हो मुझ में 

जैसे कि

बदरी पवन में.

आती है बदरी

दिखाई भी देती है वो.

पर सत्य है ये कि

आती है सिर्फ पवन

नीर कि बूंदों को ले कर.

पर दिखती नहीं .

दिखाई तो सिर्फ देती है

बदरी ....

मैं - तुम

बदरी - पवन .

 

~ Dr Ajay Kumar Sharma

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 20, 2012 at 10:56am — 1 Comment

धूल

सदियों से शोषित-दमित समाज में -

तुम्हारे पास स्पष्ट समझ है

एकदम साफ रास्ता है -

लूट के घिनौने यंत्र को बरकरार रखने में !

लूट के लिए खून बहा देने में !

लूट के खिलाफ उठी हर आवाज को कुचल डालने में !

हैरत तो यह है कि,

कितनी आसानी से सफल हो जाते हो तुम,

अपने नापाक इरादों में !

सच ! तुमको कितना मजा आता है -

अस्मत लुटी औरतों की दर्दनांक मौत में !

लोगों को आपस में ही लड़ा डालने में !

उनके बीच में ही संदेह का बीज पनपा…

Continue

Added by Rohit Sharma on April 19, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

मेरे दरिया तुम्हें कहाँ कहाँ न ढूँढा बादल ने.....

हम तो बादल हैं ...........

बरसे कभी नहीं बरसे.....

सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,

झूमे खेले लहर की गोदी में,

जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,

तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज…

Continue

Added by Sarita Sinha on April 19, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

मुक्तिका

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

*

लफ्ज़ लब से फूल की पँखुरी सदृश झरते रहे.

खलिश हरकर ज़िंदगी को बेहतर करते रहे..



चुना था उनको कि कुछ सेवा करेंगे देश की-

हाय री किस्मत! वतन को गधे मिल चरते रहे..



आँख से आँखें मिलाकर, आँख में कब आ बसे?

मूँद लीं आँखें सनम सपने हसीं भरते रहे..



ज़िंदगी जिससे मिली करते उसीकी बंदगी.

है हकीकत उसी पर हर श्वास हम मरते रहे..



कामयाबी जब मिली…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2012 at 7:30am — 5 Comments

इश्क से अनजान

इश्क की कोमल भावनाओ से 

अछूती है मेरी कविताये 

इन्हें अभी एहसास नहीं 
किसी के प्रथम छुअन का 
तडप नहीं अभी इन्हें 
किसी के इंतजार की 
धडका नहीं शब्दों मे 
कोई नाम अभी 
शर्म से बोझिल हुई नहीं 
अभी काव्या मेरी 
किसी के होने से 
रचा…
Continue

Added by दिव्या on April 18, 2012 at 2:30pm — 19 Comments

संघर्ष अभी जीवित है ...वो मरा नहीं

पिता जी, 

संघर्ष अभी जीवित है 

वो मरा नहीं 

अब भी आपके सपने 

उसकी आँखों में ही है 

वो आँसुयों में बहे नहीं 

यद्यपि 

वह  टूटा नजर आ रहा 

परंतु , पिता जी 

अभी संघर्ष जीवित है 

वो मरा नहीं 

अभी भी उसमे अरमान है 

अनंत आकाश में उड़ने की ख्वाहिश  है 

जो आप ने उसे दिखाये थे 

यद्यपि 

वह  थक कर रुक गया…

Continue

Added by arunendra mishra on April 18, 2012 at 12:30am — 4 Comments

दो शब्द जीवन साथी से

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ आभार ?

 

क्या लिखूं ?

जिसमें समा जाए -

-नहाई देह की खुशबू

सुबह मेरी जो महकाती रही है !

-और होंठो की मधुर मुस्कान

जो बिखरी मेरे होंठो पे ऐसे खिलखिलाकर ,

भर गई मेरे ह्रदय में   

उष्णता अनमोल !

मरुथल में खिले जैसे

कुछ हँसी के फूल !

योग्य संभवतः नही पर

धन्य हूँ पाकर

दिए तुमने हैं जो उपहार !

सखी !

बस शब्द से कैसे

प्रकट तेरा करूँ…

Continue

Added by Arun Sri on April 17, 2012 at 7:30pm — 11 Comments

मैं उसे जन्म दूँगी

मनु और राकेश इंजीनियरिंग कोलेज में साथ - साथ पढ़ते थे. न जाने कब एक दूसरे को चाहने लगे पता ही नहीं चला. प्यार बिजली की तरह होता है जो दिखता तो नहीं महसूस होता है. प्यार की परिणिति विवाह के पवित्र सूत्र बंधन में हुई. यद्दपि कि प्रारंभ में परिवार, रिश्तेदारों और समाज के काफी विरोध का सामना इन दोनों को करना पड़ा , और विरोध स्वाभाविक भी था. खुद के परिवार में ऐसा हो जाये तो लोग खामोश रहते हैं अगर अन्य जगह ऐसा प्रकरण सामने आये तो फिर क्या कहने. सात पीढ़ियों तक के गुणगान किये जाते हैं. प्रेम विवाह…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 17, 2012 at 6:00pm — 18 Comments

पुरानी किताब

काश

कि उसी वक्त देख लेता

पलट कर पन्ने

उस किताब के ,

जो तुमने वापस कर दी

भीगी आँखों के साथ !

और मैंने उसे इंकार समझा

अपने प्रणय निवेदन का !

.

और जब आज

हम दोनों ने थाम रखे है

दो अलग अलग सिरे

जिंदगी के !

तो अनायास ही

हाथों में आई वो किताब !

थरथरा गया अस्तित्व !

जैसे कोई रेल गुज़री हो

किसी पुराने पुल से !

बिखर गए किताब के पन्ने !

और…
Continue

Added by Arun Sri on April 17, 2012 at 11:59am — 23 Comments

“ प्यार तो हो गया”

मिल बैठ कर परिजनों ने बात नही की थी

पर नज़रें मिलीं थी आपसे

शहनाईयां नही बजी थी

पर तार दिलों के झनझनाए थे

दिए-बत्तिय़ों की चकाचौंध नही हुई थी

पर जज़्बातों की शम्मां रौशन हुई थी

महफिलें नहीं सजीं थी

पर दो जनों की मुलाकात…

Continue

Added by minu jha on April 17, 2012 at 11:38am — 5 Comments

''औरत''

तू क्या-क्या ना सहती आई है l

 

कभी गंगा कहते हैं तुझको   

कभी होती है देवी से उपमा    

मन बिशाल ममता की मूरत

और सहनशक्ति में धरती माँ 

रूप अनोखे हैं अनगिन तेरे 

युग की गाथा में लक्ष्मी बाई है l

 

तू क्या-क्या ना सहती आई है l

 

तू ओस में डूबी कमल पंखुडी

रजनीगन्धा और हरसिंगार 

सुरभित पुरवा के आँचल सी 

घर में खिलती बन कर बहार

माटी सी घुल-घुल कर भी तू    

ना कभी चैन से जीने पाई है…

Continue

Added by Shanno Aggarwal on April 17, 2012 at 4:00am — 6 Comments

कविता

कविता -

कवि कहते हैं,

होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति.

वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का

नख से शिख तक.

कलात्मकता निहित हो,

उसके सुखमय आलिंगन में !

परन्तु,

कविता एक परम्परा भी है,

मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है.

जहां यह सब नहीं होता.

कविता कल्पना में नहीं

थाने के लाॅकअप में भी हो सकता है,

जहां थानेदार की बूट लिखती है कविता, हमारे कपाड़ पर.

जहां गर्दन तोड़कर लुढ़का दी जाती…

Continue

Added by Rohit Sharma on April 16, 2012 at 8:03pm — 6 Comments

"कोई मूरत ही नहीं"

बन के काफ़िर जिसको पूजें कोई मूरत ही नहीं,

झेल ली है इतनी मुश्किल कुछ ये आफ़त ही नहीं;

*

साथ मेरे रह न पाया अजनबी ही तू रहा,

साफ़ कहना था तुम्हें मुझसे मुहब्बत ही नहीं;

*

सब के…

Continue

Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 16, 2012 at 6:00pm — 10 Comments

मां

मां !

मैंने खाये हैं तुम्हारे तमाचे अपने गालों पर

जो तुम लगाया करती थी अक्सर

खाना खाने के लिए.

मां !

मैंने भोगे हैं अपने पीठ पर

पिताजी के कोड़ों का निशान,

जो वे लगाया करते थे बैलों के समान.

मां !

मैंने खाई हैं हथेलियों पर

अपने स्कूल मास्टर की छडि़यां

जो होम वर्क पूरा नहीं करने पर लगाया करते थे.

पर मां !

मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ

आखिर कयों लगी है मेरे हाथों में हथकडि़यां ?

जानती हो…

Continue

Added by Rohit Sharma on April 16, 2012 at 1:36pm — 15 Comments

ये दुनिया की रस्मे

ये दुनिया की रस्मे

ये रीति- रिवाज

नहीं काम की चीज कुछ भी

आज....................



ख़त्म हो रहा है

मोहब्बत का रिश्ता…

Continue

Added by Sonam Saini on April 16, 2012 at 1:00pm — 9 Comments

माँ की महिमा

मोहपाश

माँ की महिमा

माँ नहीं तो न घर न गाँव है 

माँ ही ममता की छाँव…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 16, 2012 at 10:08am — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : कवच

पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है | दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ़ २५ वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार होकर दुनिया छोड़ गया था | एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुड़िया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे | गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी…
Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 8:00pm — 51 Comments

चक्रव्यूह (कहानी)

आज भी तापमान ४.५ डिग्री सेंटीग्रेड है पर काम पर तो जाना ही है. डर किस बात का है, खुला आसमान अपना ही तो है , आंधी -बारिश  , धूप-छांव, घना कोहरा हो या ओस टपकाता आसमान, काम तो करना ही है, यह कोई नई बात थोड़े ही है.छोटू के लिये लाना है स्वेटर, उसकी माँ के लिए गर्म शाल, छुटकी के लिए टोपी , खुद अपने लिए कम्बल और अम्मा के लिए दवाईया, अम्मा बेचारी रात भर खाँसती रहती है. घर की छत भी टपक  रही है, उसकी भी मुरम्मत करवानी है. पूरी बरसात टपकती रहती है और सर्दियों में बर्फीली…
Continue

Added by MAHIMA SHREE on April 15, 2012 at 2:00pm — 38 Comments

अभिव्यक्ति - आखिरी वक़्त मुझे माँ ने दुआ दी होगी !

अभिव्यक्ति - आखिरी  वक़्त मुझे माँ ने  दुआ दी होगी…

Continue

Added by Abhinav Arun on April 15, 2012 at 9:30am — 29 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service