For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,924)

मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने…
Continue

Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments

आत्मविस्मरण

आत्मविस्मरण

 

विद्युत सी तरंग ,

कम्पन का भूकंप ,

स्पर्श नहीं आग !

मन से तन तक जाग !

सांसों में उच्छ्वास,

एक एहसास ...

 

होश नहीं,

जान बही !

कम्पित होठों की प्यास,

एक एहसास ...

 

हाथों में नर्म बारूद,

बारूद मुख  में,

विस्फोट नस नस में !

बढ़ी प्यास,

एक एहसास ...

 

रिक्तता उभय ओर,     

पूर्णता पे जोर,

साँसों का…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments

कुछ हायकू

 

क्या लोकपाल?

अनिश्चय से भरा

शोर शराबा

 

लोक या पाल

लोकपाल का शोर

थम पाएगा?

 

मुश्किल भरा

लोकपाल का रास्ता

चुनावी रिश्ता

 

फिर चुनाव

फिर शुरु हो रहे

चुनावी शोर

Added by Neelam Upadhyaya on December 28, 2011 at 12:30pm — No Comments

एक ग़ज़ल....

कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.

साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.

जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.

अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.

इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.


[14/04/2007]

Added by डॉ. नमन दत्त on December 28, 2011 at 8:30am — 3 Comments

पिटवा कर छोड़ा

पिटवा कर छोड़ा

प्रो. सरन घई

 

सामने मेरे घर के महल बना कर छोड़ा,

मेरे हिस्से का भी सूरज खा कर छोड़ा।

बहुत पुकारा मैनें मत छीनो मेरा हक,

मगर जालिमों ने मेरा हक खा कर छोड़ा।

 

सब को धूप, हवा सबको, सबही को पानी,

इसी आस को लिये मर गई बूढ़ी नानी,

फटे चीथड़ों में इक घर में देख जवानी,

फिरसे इक अबला को दाग लगाकर छोड़ा।

 

मचा गुंडई का डंका यों मेरे शहर में,

फ़र्क न बचा कज़ा या दोजख या कि क़हर…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on December 27, 2011 at 10:05pm — 5 Comments

अंतिम क्षण (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

अंतिम क्षण 


अंतिम क्षण मेरे जीवन के

कितने सुहाने होंगे
कोई न होगा साथ हमारे
हम तन्हा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments

कुछ हाइकू

 

 

ऐसा शहर

 ठिठुरती जिन्दगी

सड़कों पर

 

तार-तार है

नज़र अ़दाजी से

इंसानियत

 

जमती साँस

बच पाती अगर

आस किरण

 

एक कतरा

खुशहाली से भरा

उन्मुक्त हँसी

Added by Neelam Upadhyaya on December 27, 2011 at 10:48am — 3 Comments

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों........

मन की कोमल घाटी में तुम शूलों से चुभ जाते हो,

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।

.

मेरे उजड़े उपवन की भी कली कली मुसकाई थी,

बीत गये वो दिन मेरे अधरों पर आशा आई थी।

पत्र टूटता शाखों से मैं चाहूँ धरती में मिलना,

किंतु वायुरथ से तुम मेरे जीवाश्म उड़ाते हो।

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।

.

तन मन आशा यहाँ तलक मेरा हर रोम जला डाला,

एक अगन ने मेरा जीवन काली भस्म बना डाला।

पीड़ा का अम्बार लगाकर दिवा रात्रि…

Continue

Added by इमरान खान on December 26, 2011 at 2:30pm — 2 Comments

कस्बे में ठण्ड

सूरज के विरुद्ध

षड्यंत्र रच 

आततायी कोहरे को 

निमंत्रण किस ने दिया 

कोई नहीं जानता 

ठण्ड खाया क़स्बा 

पथरा गया है 

हरारत महसूस होती है 

ज्वर हो तो ही 

अलाव तापते लोग 

दिखाई नहीं देते 

बस खांसते,खंखारते हैं 

बंद कमरों में 

सक्षम आदेश बिना ही 

अनधिकृत कर्फ्यू

जारी हो गया 

कस्बे में 

जमाव बिंदु से नीचे पहुंचे

पारे ने 

नलों का पानी…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 26, 2011 at 8:46am — 6 Comments

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |

हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||

.

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,

उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |

.

मजबूरी का बनके पासबां मैं ,

अरमान अपने ही लूटता हूँ |

.

अपना गम छुपाने के लिए अब,

मैं हाल औरों से पूछता हूँ |

.

मैं आज नफरत के दौर में भी,

तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |

.

हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,

दिन में कई बारी टूटता हूँ ||

Added by Nazeel on December 24, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

यादें

वक़्त के साहिल से

विचारों  के जाल

अतीत में फेंक कर ,

निकाल लेता हूँ

कुछ डूबती  हुई

यादें .....…

Continue

Added by AK Rajput on December 24, 2011 at 10:00am — 8 Comments

इलेक्शन

 **************************************           
            इलेक्शन
***************************************

वो इलेक्शन में खड़ा होने लगा है 

लालच का बीज फिर से बोने लगा है 


बनके मंत्री न दौरा किया वो कभीं 
हाथ जोड़के सर को झुकाने लगा है 


पहले ना थी उसको…
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 23, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

मेरा मन और मुस्कान

मेरे भीतर एक आकाश

कई सूर्य ,कई चन्द्र ,कई आकाशगंगाएं

तारों की झिलमिलाहट

उष्णता, शीतलता, धवलता,  कलुषता भी

संवेग, आवेग, आवेश का फैलाव

तो

प्यार, प्रेम, सुख और 

आनंद की लहर भी…

Continue

Added by mohinichordia on December 22, 2011 at 2:00pm — 5 Comments

अकेला

वो तो बड़ा अकेला था,

उसको सबने लूटा था,
खुशियों की छाव में भी,
उसने गम ही समेटा था,
वो तो बड़ा अकेला था....
हँसी और किलकारी थी
चहु ओर फुलवारी थी,
सभी ओर तो सावन था,
उसने तो मरू ही देखा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
हाथों में तो रोटी थी,
जो उसके जैसी रोती थी,
गम की ठंडी हवा में भी,
सुख को उसने जीर्ण चादर लपेटा…
Continue

Added by Yogyata Mishra on December 22, 2011 at 12:45pm — 5 Comments


प्रधान संपादक
छन्न पकैयावली

छन्न पकैया-छन्न पकैया,छन्न के ऊपर बिंदी

भाषायों की पटरानी है, अपनी माता हिंदी.(१)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, बात नहीं ये छोटी

भरे देश के जो भंडारे, उसको दुर्लभ रोटी. (२)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पके की हंडिया

भारत जिंदा रहा अगर जो, तभी बचेगा इंडिया. (३)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, कैसा गोरख…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on December 21, 2011 at 7:03pm — 12 Comments

अँधेरा

क्या समझू उसे

जो समझ न आता है

सिर्फ छाता चला जाता है...

दिन का जाना समझू 

या दिन का आना 

स्थिरता है या अस्थिरता

है एक अनसुलझी पहेली

जिसे कोई समझ न पाता है....

ये तो वो है जो

सिर्फ छाता चला जाता है..

कही तो लेकर आता है 

खुशियों की सुबह

और गम का सन्नाटा 

कही छा जाता…

Continue

Added by Yogyata Mishra on December 21, 2011 at 11:17am — 2 Comments

हिंदी हाइकु: एक परिचय

  

हाइकु मूलतः एक कविता है। और, कविता होने की पहली शर्त है- रचना की काव्यात्मकता, कथ्य की मौलिकता और अभिव्यक्ति की सहजता। लेकिन हिंदी में हाइकु को केवल छंद के रूप में लिया गया है। इसमें इन तीनों चीज़ों का अभाव है। हिंदी में जो हाइकु लिखे जा रहे हैं वे 17 अक्षरों की क्रीड़ा मात्र बनकर रह गए हैं।   

हाइकु जापानी भाषा की 17 वर्णों वाली विश्व की सबसे छोटी छंदबद्ध कविता है, जो सीधे मर्म को छूती है। हृदय में उमड़े हुए भावों को 5-7-5 के बंद में बाँधकर हाइकु कह दिए…

Continue

Added by Dr. Umeshwar Shrivastava on December 20, 2011 at 10:00pm — 7 Comments

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .



कितने ही अपमान के बिष घट पीना पड़ता है.

जीने की जब चाह नहीं तब जीना पड़ता है.

तिरस्कार का कितना ही विष हमने रोज़ पचाया.

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 8:05pm — 1 Comment

ना हमको कहो अपंग.

देख लो मन में भरी उमंग.

देख लो जीने का भी ढंग.

की जैसे उड़ती हुई पतंग.

नस नस में उठती नयी तरंग.

फिर ही कहते हो हमे अपंग.



कभी देखा है ऐसा रंग.

कभी पाया है ऐसा संग.

कभी है मन में बजी  मृदंग

कही क्या खा आए  हो भंग.

कहो फिर कैसे कहा अपंग.



माना है हम शरीर से तंग.

मगर हैं दिल से बड़े दबंग.

भरा है मन में जोश उचांग

लो पहले खेल हमारे संग.

हार जाओ तो कहो तड़ंग.

जीत पाओ तो कहोअपंग.

भले ही घुमओ नंग धड़ंग.

मगर ना हमको कहो…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 7:17pm — 1 Comment

वक़्त

ज़िन्दगी हमे मोहताज़ नहीं बनाती है,

वो तो बस आईना दिखाती है,

मोहताज़ तो इंसान होता है,

हम ज़िन्दगी का नाम लगा देते है......

वक़्त कुछ ना है,

बस हमारी आत्मा की कमजोरी है....

आत्मा कही कमज़ोर होती है,

हम कहते है वक़्त निकल गया...

ये सिर्फ कहना है हमारा,

ऐसी सोच पर तरस आता है....

हम हाथ पैर वाले होकर

ये स्वीकारते हैं कि,

एक बिना साँस वाला वक़्त

हमे मोहताज़ बनाता ह...

Added by Yogyata Mishra on December 20, 2011 at 1:02pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10
Chetan Prakash commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आदाब,  समर कबीर साहब ! ओ.बी.ओ की सालगिरह पर , आपकी ग़ज़ल-प्रस्तुति, आदरणीय ,  मंच के…"
Apr 10
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, प्रस्तूत रचना पर उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत-बहुत आभार। सादर "
Apr 9

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service