For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,924)

कविता : लद गया जमाना शराफत का भाई.....

लद गया जमाना शराफत का भाई
 साधू के भेष में  घुमने लगे कसाई.
        अब तो बिकने लगा इमान कौड़ीयों के भाव में.
        झूठ की हुकूमत हो गयी सच्चाई के गावं में.  
बेआबरू होखे दर-दर भटके बिश्वास.
रिश्तों-नातों से हमदर्दी ने ले ली बनवास.
         बड़ों से बड़प्पन मिटा छोटों से मिटा लिहाज़.
        नारी के कोमल ह्रदय से मिट गया पावन लाज.
चारों तरफ बेशर्मी की घनघोर घटा है छाई.
लद गया जमाना शराफत का…
Continue

Added by Noorain Ansari on October 20, 2011 at 9:06am — 4 Comments

कंदील नहीं मिलते

कभी रास्ते कभी निशाने-मंजिल नहीं मिलते.

 सफीने डूब जाते है उन्हें साहिल नहीं मिलते.…

Continue

Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments

लघुकथा - बकाया !

लघुकथा -  बकाया !

डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती…

Continue

Added by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 9:00am — 16 Comments

ग़ज़ल





मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,

छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|

 

जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,

दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की.   |२|



माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,

हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|



जान देकर जो गये अपनी शहीदाने…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:30am — 8 Comments

व्यंग्य - जहां-तहां अन्नागिरी

समाजसेवी अन्ना हजारे ने पिछले दिनों तेरह दिनों तक अनशन करके ‘अन्नागिरी’ को हवा दे दी है। देश में अब तक नेतागिरी, चमचागिरी, बाबागिरी की हवा चल रही थी। अन्नागिरी के हावी होते ही अभी भ्रष्टाचारियों के मूड खराब हो गए हैं, क्योंकि जहां-तहां अन्नागिरी ही छाई हुई है। हर जुबान से बस अन्नागिरी की लार लपक रही है। किसी को अपनी बात मनवानी है तो वह, बस अन्नागिरी करने लग जा रहा है। वैसे हमारे समाजसेवी अन्ना जी ‘अनशन’ के लिए माहिर माने जाते हैं, लेकिन उनके पीछे जो लोग ‘अन्नागिरी’ का सहारा लेने लगे हैं,…

Continue

Added by rajkumar sahu on October 18, 2011 at 1:17am — No Comments

प्यार

ऐ खुदा तुझे मैं मेरे दोस्तों मे शुमार करता हूँ 

ध्यान से सुन तुझे मैं मेरा राज़दार करता हूँ 

 

मुझको दे जाता है वो शख्स हमेशा ही धोखा 

फिर भी भरोसा मैं उसका बार-बार करता हूँ 

 

देगी…

Continue

Added by Vikram Srivastava on October 17, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

व्यंग्य - अस्पताल का मनमोहक सुख

एक बात सब जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं, तब इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और डॉक्टर नब्ज समझकर इलाज करते हैं। अस्पताल जाने के बाद बीमारी छोटी हो या बड़ी, गरीबों के लिए कुछ ही दिन अस्पताल ठिकाना बन पाता है। गरीबों के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप अभी से नहीं है, जमाने से ऐसा ही क्रूर मजाक चल रहा है। हर हालात में गरीब ही बेकार का पुतला होता है, जिसकी ओर देखने की किसी को फुरसत तक नहीं होती, वहीं जब कोई मालदार, अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, उसके बाद गरीबों को हेय की दृष्टि से देखने वाले भी, उनकी…

Continue

Added by rajkumar sahu on October 16, 2011 at 4:49pm — No Comments

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!


जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!


नकहते  गुल  सुबहे  नौ शम्सो  कमर  अंजुम  जिया ! 
नेमतें  क्या  क्या  छुपी  है  यार  के  दीदार  में !!


मुद्दतो  जिस …
Continue

Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

निर्लज हैं मनमोहन तुझे शर्म क्यों नहीं आई ,
बतीस के आधार बाना कर गरीबी ये मिटायेंगे ,
गरीबी से नाम कटेगा खाना फिर ना पाएंगे ,
हमको कहते बतीस में तुम अपना दिन बिताओ ,
क्या होगा अब बतीस अब कोई इन्हें समझाओ ,
लुट के घर ये भर लेते हैं देते महंगाई के दुहाई ,
मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 1:16pm — No Comments

क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन,

क्रेडिट कार्ड

 

सपना दिखता हैं ,

पावर दिलाता हैं ,

खर्चे में तो तो पंख लगता हैं ,

ना हो पैसा फिर कम हो जाता हैं ,

लगे की दोस्तों में इज्जत बढ़ता हैं,

बिल जब आता हैं ,

पागल बनाता हैं ,

क्यों ली क्रेडिट कार्ड ,

समझ ना आता हैं ,

भाई ये इज्जत लेकर ही जाता हैं ,

.

.

बैंक ऋण

 

पहली पहली बार ये ,

झट पट मिल जाता हैं ,

क्यों की अन्दर की बात ,

समझ में ना आता हैं…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 11:30am — 2 Comments

ग़ज़ल :- धमा चौकड़ी करता बचपन

ग़ज़ल :-  धमा चौकड़ी करता बचपन
 
धमा चौकड़ी करता बचपन ,…
Continue

Added by Abhinav Arun on October 15, 2011 at 10:50am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जो बीते... तो बीत गये --- सौरभ

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .

गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --

करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.



निठल्ले आईने पर

सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं

जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं

उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..

 …

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments

कैसा असर दोस्तों?

कैसा असर दोस्तों?

प्यार का है ये कैसा असर दोस्तों.
रब के आगे झुका मेरा सर दोस्तों.
मेरी धड़कन का हर तार गाने लगा,
उसकी धुन में ही चारों पहर दोस्तों.
एक रेला सा  आया  बहा ले  गया,
मेरे जज्बात की हर  लहर दोस्तों.
अब ख्यालों की बस्ती यूँ आबाद है,
चाहे घर हो या हो वो सफ़र दोस्तों.
प्यार की छल छलाती नदी हो गई,
ज़िन्दगी जो थी सूखी नहर दोस्तों.
उनकी आँखों को मै जाम कहने…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments

चमचा



जब से चमचा चलन में आया है |
 कुछ नयापन, वतन में आया है ||
बे-हयाई व बेईमानी को, होश्यारी में जब मिलाया है |
तब कहीं जा के आज का इन्सां, खुद को चमचा कहाने पाया है ||
खूब नुस्खा, यह हाथ आया है, हमने चमचों से दिल लगाया है |
रंग लाई है, उल्फत-ए-चमचा ,हम पे अब,बरकतों का साया है ||
जिसकी…
Continue

Added by Shashi Mehra on October 14, 2011 at 10:01am — 1 Comment

व्यंग्य - मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री

पहले मैं अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर लेता हूं। जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे, उस दौरान शिक्षक हमें यही कहते थे कि प्रधानमंत्री बनोगे तो क्या करोगे ? इस समय मन में बड़े-बड़े सपने होते थे। उस सपने को पाले बैठे, अपन आज बचपन से जवानी की दहलीज में पहुंच गए हैं। हम जैसे देश में न जाने कितने, यह सपना देखते हैं, लेकिन खुली आंख से सपना कहां पूरा होता है ? ये अलग बात है कि कई बार ऐसा होता है, जब व्यक्ति सपना तक ही नहीं देखा रहता और प्रधानमंत्री बन जाता है। बिन मांगे मुराद मिल जाती है और जीवन की…

Continue

Added by rajkumar sahu on October 14, 2011 at 12:11am — No Comments

स्वप्न सुंदरी

हे प्रभु ! मेरी स्वप्न  सुंदरी 

अब तो यथार्थ बन आ जाये 

उसको पाकर जीवन मे मेरा 

मन हर्षित, पुलकित हो जाए 

 

स्वेत वर्ण और केश स्वर्ण हो,

जो देखे चकरा जाये |

सुंदर, कोमल, मधुर, कर्णप्रिय

बोले तो…

Continue

Added by Vikram Srivastava on October 13, 2011 at 6:00pm — 12 Comments

जगजीत सिंह को मेरी खिराज ए अकीदत (श्रद्धांजली)

 क़लम रुक रही है बहर खो रही है,

खड़ी है मुसलसल गज़ल रो रही है।



मुझे यूं ग़ज़ल से मुखातिब कराया,

तरन्नुम से मेरा जहाँ जगमगाया,…

Continue

Added by इमरान खान on October 13, 2011 at 11:31am — 5 Comments

श्रधांजली ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह



ग़ज़लों का बादशाह, नज़्मो का सौदागर गया,

एक उसका जाना, करोड़ो को तनहा कर गया....



किनारे जिसने लगाया दर्दमंदो को सहारा देकर,

कागज़ की उस कश्ती में आज पानी भर गया.....



अपने होठों से छुए जिसने जज़बात हजारों के,

तरन्नुम का वो जादूगर करके आंख तर गया.....



अब न वो गायकी होगी, न वैसी महफिले होगी,

शायरी पसंदों का ख्वाब जैसे कोई बिखर गया...



न शेर कोई लब पर, न ग़ज़ल कोई…
Continue

Added by Harjeet Singh Khalsa on October 12, 2011 at 11:30pm — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जीवन-सार --- (छंद - घनाक्षरी) --- सौरभ

 

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व

साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता

जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत

धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग

मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

***************

हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि

विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा  ||1||

हो खरा…

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments

वो क्यूँ चुप हैं जिन्हें गुमाँ है ...

एक बार मैं ढूंढने को चला वो लोग जिन्हें है ये गुमाँ

सारे जहाँ से अच्छा है हिन्दोस्ताँ....



मैं हूँ विदर्भ का इक किसान

संग पत्नी दो बच्चों की जान

झेला सूखा और अकाल

उस पर पड़ी कर्जे की मार

ना ज़मीन बची ना मकान

करता हूँ ख़ुदकुशी देता हूँ अपनी जान ...

अब मेरा उनसे है सवाल

जो ड्राइंग रूम में बैठकर

बातें करें दें

इंडिया शाइनिंग की मिसाल



वो क्यूँ चुप थे जिन्हें ये गुमाँ है

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ है

वो क्यूँ चुप हैं… Continue

Added by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 6:00pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
14 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service