For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,920)

पिटवा कर छोड़ा

पिटवा कर छोड़ा

प्रो. सरन घई

 

सामने मेरे घर के महल बना कर छोड़ा,

मेरे हिस्से का भी सूरज खा कर छोड़ा।

बहुत पुकारा मैनें मत छीनो मेरा हक,

मगर जालिमों ने मेरा हक खा कर छोड़ा।

 

सब को धूप, हवा सबको, सबही को पानी,

इसी आस को लिये मर गई बूढ़ी नानी,

फटे चीथड़ों में इक घर में देख जवानी,

फिरसे इक अबला को दाग लगाकर छोड़ा।

 

मचा गुंडई का डंका यों मेरे शहर में,

फ़र्क न बचा कज़ा या दोजख या कि क़हर…

Continue

Added by Prof. Saran Ghai on December 27, 2011 at 10:05pm — 5 Comments

अंतिम क्षण (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

अंतिम क्षण 


अंतिम क्षण मेरे जीवन के

कितने सुहाने होंगे
कोई न होगा साथ हमारे
हम तन्हा…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 11:30am — 3 Comments

कुछ हाइकू

 

 

ऐसा शहर

 ठिठुरती जिन्दगी

सड़कों पर

 

तार-तार है

नज़र अ़दाजी से

इंसानियत

 

जमती साँस

बच पाती अगर

आस किरण

 

एक कतरा

खुशहाली से भरा

उन्मुक्त हँसी

Added by Neelam Upadhyaya on December 27, 2011 at 10:48am — 3 Comments

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों........

मन की कोमल घाटी में तुम शूलों से चुभ जाते हो,

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।

.

मेरे उजड़े उपवन की भी कली कली मुसकाई थी,

बीत गये वो दिन मेरे अधरों पर आशा आई थी।

पत्र टूटता शाखों से मैं चाहूँ धरती में मिलना,

किंतु वायुरथ से तुम मेरे जीवाश्म उड़ाते हो।

उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।

.

तन मन आशा यहाँ तलक मेरा हर रोम जला डाला,

एक अगन ने मेरा जीवन काली भस्म बना डाला।

पीड़ा का अम्बार लगाकर दिवा रात्रि…

Continue

Added by इमरान खान on December 26, 2011 at 2:30pm — 2 Comments

कस्बे में ठण्ड

सूरज के विरुद्ध

षड्यंत्र रच 

आततायी कोहरे को 

निमंत्रण किस ने दिया 

कोई नहीं जानता 

ठण्ड खाया क़स्बा 

पथरा गया है 

हरारत महसूस होती है 

ज्वर हो तो ही 

अलाव तापते लोग 

दिखाई नहीं देते 

बस खांसते,खंखारते हैं 

बंद कमरों में 

सक्षम आदेश बिना ही 

अनधिकृत कर्फ्यू

जारी हो गया 

कस्बे में 

जमाव बिंदु से नीचे पहुंचे

पारे ने 

नलों का पानी…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 26, 2011 at 8:46am — 6 Comments

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही

हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |

हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||

.

वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,

उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |

.

मजबूरी का बनके पासबां मैं ,

अरमान अपने ही लूटता हूँ |

.

अपना गम छुपाने के लिए अब,

मैं हाल औरों से पूछता हूँ |

.

मैं आज नफरत के दौर में भी,

तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |

.

हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,

दिन में कई बारी टूटता हूँ ||

Added by Nazeel on December 24, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

यादें

वक़्त के साहिल से

विचारों  के जाल

अतीत में फेंक कर ,

निकाल लेता हूँ

कुछ डूबती  हुई

यादें .....…

Continue

Added by AK Rajput on December 24, 2011 at 10:00am — 8 Comments

इलेक्शन

 **************************************           
            इलेक्शन
***************************************

वो इलेक्शन में खड़ा होने लगा है 

लालच का बीज फिर से बोने लगा है 


बनके मंत्री न दौरा किया वो कभीं 
हाथ जोड़के सर को झुकाने लगा है 


पहले ना थी उसको…
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 23, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

मेरा मन और मुस्कान

मेरे भीतर एक आकाश

कई सूर्य ,कई चन्द्र ,कई आकाशगंगाएं

तारों की झिलमिलाहट

उष्णता, शीतलता, धवलता,  कलुषता भी

संवेग, आवेग, आवेश का फैलाव

तो

प्यार, प्रेम, सुख और 

आनंद की लहर भी…

Continue

Added by mohinichordia on December 22, 2011 at 2:00pm — 5 Comments

अकेला

वो तो बड़ा अकेला था,

उसको सबने लूटा था,
खुशियों की छाव में भी,
उसने गम ही समेटा था,
वो तो बड़ा अकेला था....
हँसी और किलकारी थी
चहु ओर फुलवारी थी,
सभी ओर तो सावन था,
उसने तो मरू ही देखा था,
वो तो बड़ा अकेला था...
हाथों में तो रोटी थी,
जो उसके जैसी रोती थी,
गम की ठंडी हवा में भी,
सुख को उसने जीर्ण चादर लपेटा…
Continue

Added by Yogyata Mishra on December 22, 2011 at 12:45pm — 5 Comments


प्रधान संपादक
छन्न पकैयावली

छन्न पकैया-छन्न पकैया,छन्न के ऊपर बिंदी

भाषायों की पटरानी है, अपनी माता हिंदी.(१)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, बात नहीं ये छोटी

भरे देश के जो भंडारे, उसको दुर्लभ रोटी. (२)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पके की हंडिया

भारत जिंदा रहा अगर जो, तभी बचेगा इंडिया. (३)

.

छन्न पकैया-छन्न पकैया, कैसा गोरख…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on December 21, 2011 at 7:03pm — 12 Comments

अँधेरा

क्या समझू उसे

जो समझ न आता है

सिर्फ छाता चला जाता है...

दिन का जाना समझू 

या दिन का आना 

स्थिरता है या अस्थिरता

है एक अनसुलझी पहेली

जिसे कोई समझ न पाता है....

ये तो वो है जो

सिर्फ छाता चला जाता है..

कही तो लेकर आता है 

खुशियों की सुबह

और गम का सन्नाटा 

कही छा जाता…

Continue

Added by Yogyata Mishra on December 21, 2011 at 11:17am — 2 Comments

हिंदी हाइकु: एक परिचय

  

हाइकु मूलतः एक कविता है। और, कविता होने की पहली शर्त है- रचना की काव्यात्मकता, कथ्य की मौलिकता और अभिव्यक्ति की सहजता। लेकिन हिंदी में हाइकु को केवल छंद के रूप में लिया गया है। इसमें इन तीनों चीज़ों का अभाव है। हिंदी में जो हाइकु लिखे जा रहे हैं वे 17 अक्षरों की क्रीड़ा मात्र बनकर रह गए हैं।   

हाइकु जापानी भाषा की 17 वर्णों वाली विश्व की सबसे छोटी छंदबद्ध कविता है, जो सीधे मर्म को छूती है। हृदय में उमड़े हुए भावों को 5-7-5 के बंद में बाँधकर हाइकु कह दिए…

Continue

Added by Dr. Umeshwar Shrivastava on December 20, 2011 at 10:00pm — 7 Comments

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .



कितने ही अपमान के बिष घट पीना पड़ता है.

जीने की जब चाह नहीं तब जीना पड़ता है.

तिरस्कार का कितना ही विष हमने रोज़ पचाया.

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 8:05pm — 1 Comment

ना हमको कहो अपंग.

देख लो मन में भरी उमंग.

देख लो जीने का भी ढंग.

की जैसे उड़ती हुई पतंग.

नस नस में उठती नयी तरंग.

फिर ही कहते हो हमे अपंग.



कभी देखा है ऐसा रंग.

कभी पाया है ऐसा संग.

कभी है मन में बजी  मृदंग

कही क्या खा आए  हो भंग.

कहो फिर कैसे कहा अपंग.



माना है हम शरीर से तंग.

मगर हैं दिल से बड़े दबंग.

भरा है मन में जोश उचांग

लो पहले खेल हमारे संग.

हार जाओ तो कहो तड़ंग.

जीत पाओ तो कहोअपंग.

भले ही घुमओ नंग धड़ंग.

मगर ना हमको कहो…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 7:17pm — 1 Comment

वक़्त

ज़िन्दगी हमे मोहताज़ नहीं बनाती है,

वो तो बस आईना दिखाती है,

मोहताज़ तो इंसान होता है,

हम ज़िन्दगी का नाम लगा देते है......

वक़्त कुछ ना है,

बस हमारी आत्मा की कमजोरी है....

आत्मा कही कमज़ोर होती है,

हम कहते है वक़्त निकल गया...

ये सिर्फ कहना है हमारा,

ऐसी सोच पर तरस आता है....

हम हाथ पैर वाले होकर

ये स्वीकारते हैं कि,

एक बिना साँस वाला वक़्त

हमे मोहताज़ बनाता ह...

Added by Yogyata Mishra on December 20, 2011 at 1:02pm — 1 Comment

कुछ ऐसा किया है तुमने

आज फ़िर कुछ ऐसा किया है तुमने,
मन में तूफ़ान सा उठा दिया है तुमने.
मुश्किल से बनाया था ये आशाओं का महल,
जिसे पल भर में ही गिरा दिया है तुमने. ..... दर्पण

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on December 20, 2011 at 12:14pm — No Comments

हर खुशी मिल गई मेरे दिल की...

बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।

वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।

फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।

उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।

कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।

अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।

फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।

Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments

वृद्ध और वृक्ष



यह कविता अब से १० वर्ष पूर्व मैंने इस प्रेरणा के साथ लिखी है कि मानव अपने थोड़े से सुकृत्य का बखान कर अपनी तमाम बुराइयों को उसके अंदर ढँक लेना चाहता है परन्तु कोई हस्तक्षेप उसको आइना दिखाकर एकदम से धरातल दिखा देता है| इसी परिपेक्ष्य में इस कविता को देखना चाहिए और जिस भाव से ये पंक्तियाँ लिखी गई हैं उसी भाव से यदि पाठक तक पहुँच जाएँ तो इन पंक्तियों का लेखन सार्थक होगा|…


Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments

वो प्यार भरे पल

वो पल सबसे अच्छे थे

जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।

खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ

उन सांसों की सरगम से

मन को भिगो लेती हूँ

वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है

उन स्मृतियों से आँखों को

नम…

Continue

Added by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service