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कालचक्र

कालचक्र : आचार्य संदीप कुमार त्यागी

 

ओस कण भी दोस्तों अँगार हो गये ।

घास के तिनके सभी तलवार हो गये॥

 

रौंदते ही जो रहे फूलों को उम्र भर।

देखलो उनके सभी गुलखार हो गये॥

 

था यकीं जिनपर उन्हें सौ फीसदी कभी।

सब फरेबी देखलो मक्कार हो गये ॥

 

टाँकते थे जो हमारे आसमां पर चिंदियाँ।

चीथड़ों में आज वो सरकार हो गये॥

 

कीजियेगा क्या उन्हें देकर सलाम ।

आजकल वो दुश्मनों के यार हो…

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Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 24, 2011 at 9:30pm — 1 Comment

पक्षपात

पक्षपात





दोष लगेगा उस पर

पक्षपात का

गर ज़रा सा भी दुःख

न वो देगा मुझे

मैं भी तो एक ज़र्रा हूँ

उसकी कायनात का

उसी कारवां की

एक… Continue

Added by rajni chhabra on April 24, 2011 at 4:30pm — 7 Comments

व्यंग्य - टेक्नालॉजी का फसाना

सबसे पहले आपको बता दूं कि औरों की तरह मैं भी तकनीक की टेढ़ी नजर से दूर नहीं हूं। तकनीक के फायदे कई हैं तो नुकसान तथा फजीहत भी मुफ्त में मिलती हैं। वैसे मेरे पास न तो विरासत में मिली संपत्ति है और न ही मैंने इतनी अकूत संपत्ति जुटाई है, जिससे जिंदगी बड़े आराम से गुजरे। मेरा तो ऐसा हाल है, जैसे बिना सिर खपाए कुछ बनता ही नहीं, मगर पिछले दिनों से इस बात को लेकर चिंतित हूं कि मैं रातों-रात लखपति क्या, करोड़पति से अरबपति बनते जा रहा हूं। दरअसल, मैंने सोचा कि जब बड़े शहरों में तकनीक की खुमारी छाई हुई है…

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Added by rajkumar sahu on April 24, 2011 at 1:05am — No Comments

कविता : चिकनी मिट्टी और रेत

चिकनी मिट्टी के नन्हें नन्हें कणों में

आपसी प्रेम और लगाव होता है

हर कण दूसरों को अपनी ओर

आकर्षित करता है

और इसी आकर्षण बल से

दूसरों से बँधा रहता है



रेत के कण आकार के अनुसार

चिकनी मिट्टी के कणों से बहुत बड़े होते हैं

उनमें बड़प्पन और अहंकार होता है

आपसी आकर्षण नहीं होता

वो एक दूसरे की गति का विरोध करते हैं

उनमें केवल आपसी घर्षण होता है



चिकनी मिट्टी के कणों के बीच

आकर्षण के दम पर

बना हुआ बाँध

बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2011 at 12:48am — 4 Comments

ग़ज़ल

पत्ते जीवन के कब बिखर जाए क्‍या मालूम
शाम जीवन की कब हो जाए क्‍या मालूम

बन्‍द हो गए है रास्‍ते सभी गुफतगू के
अब वहां कौन कैसे जाए क्‍या मालूम

झूठ पर कर लेते है विश्‍वास सब
सच कैसे सामने आए क्‍या मालूम

दो मुहें सापों से भरा है आस पास
दोस्‍त बन कौन डस जाए क्‍या मालूम

विक्षिप्‍त की दुनिया है बेतरतीव बेरंग
कोई संगकार सजा जाए क्‍या मालूम

Added by रौशन जसवाल विक्षिप्‍त on April 23, 2011 at 8:19pm — 3 Comments

Ghazal-Dil mein chand pal rab ko reejhanaa bhee hotaa thaa.

दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।

हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।

ि

तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।

हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।

वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।

दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।

आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।

पहले अपना मजहबीं इक बाना  भी होता था।।

अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।

किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।

अब न…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments

शिकवा गिला

उसको भी कुछ शिकवा गिला होगा
मेरे संग कुछ और भी जला होगा

राख उडी तो होगी हवा के साथ
इक ज़र्रा उस दामन पे गिरा होगा

सामान तो सब बचा लिया गया होगा
नहीं वो, जो बदन से सिला होगा

मैनें घर जलाया रोशनी के लिए
कौन मुझ जैसा यहाँ दिलजला होगा

आज भी शाम ढल गयी होगी तन्हां
सूरज भी लाली से सना होगा

रुका होगा कुछ सोचकर मेरा यार
दो क़दम घर से ज़रूर चला होगा

रोजी पे गया सो बेखबर होगा
मस्त है जो मखमल पे पला होगा

Added by Raj on April 23, 2011 at 11:22am — No Comments

पानी चुराकर बिजली उत्पादन कर रहा सीएसपीएल

अमझर गांव में संचालित छत्तीसगढ़ स् टील एण्ड पावर लिमिटेड द्वारा पिछले 3 वर्षो से भू-जल की चोरी कर बिजली पैदा किया जा रहा है। भू-जल दोहन की शिकायत पर प्रशासनिक अधिकारियों ने प्लांट में छापामार कर कंपनी प्रबंधन को बोर से पानी चोरी करते…

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Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:49am — No Comments

वसुंधरा का दोहन आखिर कब तक ?

विकास की अंधी दौड़ में हम मं गल और चन्द्रमा पर आशियाना बनाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन इस आपाधापी में पृथ्वी को भूल रहे हैं। आज पृथ्वी के बेहतरी लिए गंभीरता से कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। एक ओर हम वातावरण में कार्बन बढ़ाने वाले स्त्रोत बढ़ाते जा रहे…

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Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:45am — 1 Comment

लेह में गुम हुए परिजनों के इंतजार में पथराई आंखें

महंत गांव की वृद्धा धनकुंवर व गं गाबाई की आंखे भले ही कमजोर हो गई है, लेकिन वे दोनों हर रोज घर के बाहर घंटों बैठकर अपने परिजनों का इंतजार करती है। इनके परिजन लेह में आए जलजले के बाद… Continue

Added by rajendra kumar on April 23, 2011 at 10:33am — No Comments

कविता :-खुली किताब हूँ मैं

कविता :-खुली किताब हूँ मैं…

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Added by Abhinav Arun on April 23, 2011 at 9:00am — 4 Comments

हमारे दिल के ही महमान थे

 हमारे दिल के ही महमान थे   

  कभी तुम भी हमारी जान थे 

 

 बिछड़ते…

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Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on April 22, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

मैं कोई मसीहा नहीं

 ------
मैं कोई मसीहा नहीं
जो चढ़ सकूं 
सलीब पर
हँसते हँसते 
एक  अदना इंसान हूँ मैं
मुन्तजिर हूँ में 
मेरे दर्द के
 मसीहा की



 

Added by rajni chhabra on April 22, 2011 at 1:00pm — 4 Comments

इस मरुस्थल को नदी की धार दो

गीली माटी हूँ, मुझे आकार दो

मेरे जीवन को कोई आधार दो



घाव दो या अश्रुओं का हार दो

जो उचित हो प्रेम में, उपहार दो



फिर धरा पर प्रेम बन बरसो कभी…

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Added by Saahil on April 22, 2011 at 2:30am — 4 Comments

मेरी पहचान



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अन्वेषण स्वयं का 

जैसे 

अनंत शून्य में भटकना 

क्या सत्य है मेरा ,

या कोई मिथ्या 

अंतरद्वंद या छलावा 

मैं बुद्ध नहीं 

महावीर भी नहीं हूँ 

जो संसार के कष्टों से भाग चलूँ |

नहीं बैठ सकता कंदराओं में…

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Added by Shashi Ranjan Mishra on April 21, 2011 at 6:39pm — 10 Comments

जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं.......

जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,

रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.

 

अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,

छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.

 

कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,

अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…

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Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments

मेरे गाँव के जाड़े की रात

सब कुछ शांत है...मौन | दो छूहों पर टिकी छप्पर वाली दालान में रजाई ओढ़े हुए मैं इस सन्नाटे की आवाज़ सुनने की कोशिश करता हूँ | इस रजाई की रुई एक तरफ को खिसक गयी है; लिहाज़ा जिस तरफ रुई कम है उस तरफ से सिहरन बढ़ जाती है | हल्का सा सर बाहर निकालता हूँ तो तैरते हुए बादल दीखते हैं; कोहरा है ये जो रिस रहा है धरती की छाती पर | छूहे की खूँटी पर टंगी लालटेन अब भी जल रही है...हौले हौले | अम्मा देखेंगी तो गुस्सा होंगी; मिटटी का तेल जो नहीं मिल पाता है गाँव में....दो घंटों तक खड़ा रहा था कल, तब जाकर तीन लीटर…

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Added by neeraj tripathi on April 21, 2011 at 1:00pm — 2 Comments

करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..

करना रुखसत मुझे तो यूं करना ..

मेरे शब्दों को साथ कर देना..

मेरे स्वप्नों को हार कर देना..

गीत जो संग संग गाए थे..…

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Added by Lata R.Ojha on April 20, 2011 at 11:00pm — 7 Comments

अनाम होता है

बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है
 
जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है
 
तफसरा ज़िन्दगी  पे देते हैं 
जब भी हाथों में जाम होता है
 
वक़्त धोबी है पूरे आलम का 
आदतन बेलगाम धोता है
 
ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है
 
मुफलिसी के तमाम…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 20, 2011 at 9:30pm — 5 Comments

ये कैसा प्यार ?????

तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए  
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,

मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ. 
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,

तुम शौके बहार बन आए जीवन में 
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......  

तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै 
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं. 
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 20, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

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