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February 2015 Blog Posts (174)


सदस्य कार्यकारिणी
बाजरे की बालियाँ...... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

खेत की, खलिहान की औ गाँव की ये मस्तियाँ

कितनी  दिलकश हो गई है  बाजरे की बालियाँ

 

वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 5, 2015 at 11:00pm — 27 Comments

एक सपनों की दुनियाँ में ---- डॉ ० उषा चौधरी साहनी

यूँ ही बस यूँ ही लगता है , 
कभी इस दुनियाँ से निकल जाऊं , 
दूर  बहुत दूर चली जाऊं , 
किसी और दूसरी दुनियाँ में खो जाऊं, 
सपनों  दुनियाँ में चली जाऊं , 
आँखें मूँद लूँ ,  सपने देखूं , 
खूब ढेर  से  सपने देखूं , 
वो चाहे झूठे  ही क्यों न हों , 
कितने ही झूठे , पर देखूं , 
हँसू , खुद पर हँसू , इतराऊँ , 
मुस्कुराऊँ , धीरे से मुस्कुराऊँ, 
अपने में ही  खो जाऊं…
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Added by Usha Choudhary Sawhney on February 5, 2015 at 10:30pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
किसी का कभी गम लिया होता..(ग़ज़ल 'राज')

122  122   122  2

कभी जिन्दगी को जिया होता

ख़ुदा का अदा शुक्रिया होता

 

मुकम्मल नई इक ग़ज़ल होती

अगर अश्क़ हँस के पिया होता

 

फ़लक चूमता ये कदम तेरे

कोई काम ऐसा किया होता

 

बिखरती न गिरती दुआ रब की

अगर चाकदामन सिया  होता

 

कई रास्ते  खुल गए होते

किसी का कभी गम लिया होता

 

कहाँ काटता यूँ अकेलापन

किसी को सहारा दिया होता

 

है क्या जीस्त खानाबदोशों की

ठिकाना न…

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Added by rajesh kumari on February 5, 2015 at 7:42pm — 18 Comments

न मैखाना शहर में है

बता दो याद अब उनकी मिटायें हम कहॉं जाकर

लिखा जो प्‍यार के किस्‍से सुनायें हम कहॉं जाकर



बजाकर जो कभी पायल जिगर के पास आती थी

नज़र उसको लगी मेरी बतायें हम कहाँ जाकर



न मैखाना शहर में है न उसका घर पता मुझको

जरा कोई बताये दिल लगायें हम कहाँ जाकर



न पीया जाम क्‍यों मैने अगर पूछो न तुम मुझसे…

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Added by Akhand Gahmari on February 5, 2015 at 6:30pm — 8 Comments

भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।

2122 2122 2122 212



भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।

मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।



आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।

उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।



क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।

इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।



तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।

उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।



ख़्वाब नींदों को चुरा सकता नहीं इस शर्त पर।

शब को'दीपक'आप भी इक दिन सहर कर…

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Added by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 3:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल :फ़क़ीरों को डराओ मत

1222-1222-1222-1222

दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत

रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत               रियाज़त=परिश्रम

 

तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर

शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत            तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी

                                                  

ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी

दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत

 

मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त…

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Added by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:00pm — 13 Comments

गाँव को तहजीब में यारो नगर मत कीजिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    212

******************************

कोशिशें  पुरखों  की  यारों बेअसर मत कीजिए

नफरतों को फिर दिलों का यूँ सदर मत कीजिए

******

मिट गये  ये तो  नरक  सी जिंदगी हो जाएगी

प्यार  को  सौहार्द  को यूँ दरबदर मत कीजिए

******

कर रहे हो  कत्ल  काफिर बोलकर मासूम तक

नाम  लेकर  धर्म का  ऐसा कहर  मत कीजिए

******

वो  शहीदी  कैसे  जिनसे  है  फसादों   की  फसल

उनको ये इतिहास में लिख के अमर मत कीजिए

*******

दुश्मनी …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:34pm — 22 Comments

भूख....(लघुकथा)

“ हे. भगवान..बस! एक पोते की कामना थी,  वो भी पूरी नहीं हो पाई इस बार. तीन-तीन पोतियों की लाइन लग गई ” अपनी बहु के कमरे से बाहर, खले की ओर जाते हुए मन में बडबडा ही रही थी, कि

“ माँ!! मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना हो बता दो ” बेटे ने पूछा

“ हाँ! बेटा.. गुड़ ले आना, वो बूढी गाय न जाने कब जन जाए, अब की बार बछिया ले आये तो आगे भी घर का दूध मिल जाया करेगा “

      जितेन्द्र पस्टारिया

   (मौलिक व् अप्रकाशित)    

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2015 at 10:54am — 24 Comments

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)

राधॆश्यामी छन्द:(मत्त सवैया)

=====================

रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कञ्चन काया भी पाई थी !!

दिल बार बार यॆ कहता था, वह इन्द्रलॊक सॆ आई थी !!

गर्दन ऊँची तनी हुई थी,त्रिभुवन जीत लिया हॊ जैसॆ !!

या त्रिलॊक सुंदरी का उसकॊ,रब वरदान दिया हॊ जैसॆ !!



तालाब किनारॆ बैठी थी वॊ,अधलॆटी सी कुछ सॊई थी !!

ऊहा-फॊह मची थी भीतर,अपनी ही धुन मॆं खॊई थी !!

मतवाली नार नवॆली वॊ,स्वयं स्वयं सॆ कुछ बात करॆ !!

ठहरॆ ठहरॆ गहरॆ जल मॆं, चुन चुन कंकड़ आघात करॆ !!…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2015 at 2:30am — 9 Comments

कुछ तो आपस मे बनी रहने दे .............

कुछ तो आपस मे बनी रहने दे
आसमाँ तेरा सही मेरी ज़मीं रहने दे

बिछड़ के होगा तुझे अफ़सोस इस खातिर
अपनी आँखों में नमी रहने दे

मिल गया तू मुझे , तो फिर क्या होगा
मेरे मौला ये कमी रहने दे

मेरे ईमान की आँखें बे-नूर हो जाएँ
तरक़्क़ी तू मुझे ऐसी रोशिनी रहने दे

गैरों पे यक़ीन करना पड़े , "अजय"
तू मुझसे ऐसी दुश्‍मनी रहने दे

अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित

Added by ajay sharma on February 4, 2015 at 11:27pm — 9 Comments

खिला प्यार का रंग (दोहे)

ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,

खलिहानों से आ रही, पीली  पीली  गंध |

 

जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,

मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |

 

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |

 

कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,

अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |

 

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2015 at 12:30pm — 21 Comments

" जवान बच्चे " (लघुकथा)

"कम्मो।जरा इधर तो आ, तूने अचानक काम पर आना कयों बंद कर दिया?" मिसेज माधवी ने बालकनी की खिड़की से ही गली में गुजरती अपनी काम वाली बाई को आवाज लगाई।

"जी मेम साहब। वो क्या है कि अब हम आप के यिहाँ काम नही करेगें।" कम्मो भी गली से ही लगभग चिल्लाती हुयी बोली।

"क्यों कहीं और ज्यादा पैसे मिलने लगे या पैसो की जरूरत नही रही।" मिसेज माधवी की आवाज में कटाक्ष था।

"नही मेमसाहब, बस ऐसे ही...... बच्चे जवान हो गये ना।"

"तेरे बच्चे ?"

"नही नही मेमसाहब ! मेरे नहीं, आपके बच्चे…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 4, 2015 at 11:30am — 15 Comments

कोई मुझे नेता बना दे---डॉo विजय शंकर

काश कोई मुझे नेता बना दे ,

अपने हाथों से उठाये

और भीड़ में गिरा दे |

फिर देखना , कैसे उठता हूँ मैं ,

हाय कोई एक बार तो गिरा दे ,

कोई तो मुझे नेता बना दे |

मेरा प्रोफाइल देख ले,

रिज्यूमे भेज देता हूँ ,

फोटो भी लगा देता हूँ,

क्या-क्या किया है , बता देता हूँ ,

ऐसा क्या है , मैं कर नहीं सकता ,

लोग हैरत में आ जायेंगें ,

जो कर के दिखा सकता हूँ |

बस एक बार , एक बार ,

मुझे उठाओ , एक बार मुझे उछालो ,

फिर देखना , क्या क्या… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 4, 2015 at 10:05am — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक मुट्ठी गालियाँ...... (मिथिलेश वामनकर)

2122—2122—2122—212

 

रात  भर  संघर्ष  कर  जब  थक  गई ये  आँधियाँ

एक दस्तक दी हवा ने, खुल  गई सब  खिड़कियाँ

 

जो गया ,  जाना उसे  था , कौन  जो  ठहरा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2015 at 3:00am — 41 Comments

न्याय (लघुकथा)

दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |

.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on February 4, 2015 at 12:30am — 18 Comments

ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२ २


हो गयी है कोफ़्त जीने से
जा निकल भी ऐ जां सीने से


है सराबों का सफ़र ताउम्र
पूरा हो कैसे सफीने से


जिस्मो दिल हों ज़ख़्मी अब बेशक
रखना खुद को तुम करीने से


ख़त किताबों में मुड़ा पाया
लग गए वो लम्हे सीने से


है लिखें तकदीर में जो ज़ख्म
ये नहीं मिटते मै पीने से


हुश्न हो या इश्क हो गुमनाम
हो चुके रिश्ते भी झीने से


मौलिक व अप्रकाशित


गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on February 3, 2015 at 8:30pm — 11 Comments

रक्षाबंधन (लघुकथा)

“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”

“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”

“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी…

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Added by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:15pm — 27 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
" व्यर्थ का अचंभा " अतुकांत -- गिरिराज भंडारी

व्यर्थ का अचंभा

***************

अचंभित न होइये

आपके ही माउस के किसी क्लिक का परिणाम है

आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आई ये फाइल

गलती कंप्यूटर से हो नहीं सकती ,

कंप्यूटर ही गलत , बिग़ड़ा चुन लिया हो तो और बात

अगर ऐसा है तो,

इस ग़लत चुनाव का कारण भी आप ही हैं

कंप्यूटर सदा से निर्दोष है, और रहेगा

 

फाइल खुलने में देरी- जलदी हो सकती है

कंप्यूटर की शक्ति, प्रोसेसर , रेम , हार्डडिस्क के अनुपात में

लेकिन ये तय है…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:36pm — 19 Comments

रिश्ते

कैसे होते हैं ये रिश्ते

कभी दूर, कभी पास

कभी अपने, कभी पराये

कभी सच्चे, कभी झूठे

कभी नादाँ, कभी ग़मगीन

कभी उम्रदराज़, कभी कमसिन

कभी हठीले, कभी गर्वीले

तो कभी कभी सिफारशी भी होते हैं ये रिश्ते

कभी कभी गुमनाम भी होते हैं रिश्ते

कभी कभी बदनाम भी हो जाते हैं रिश्ते

कभी एक दुसरे को कसूरवार भी ठहराते हैं रिश्ते

कभी कभी निभ जाते और कभी कभी निभाने भी पड़ते हैं रिश्ते

कभी अपनी खातिर और कभी दूसरों के लिए वक़्त मांगते हैं रिश्ते

कभी खुद…

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Added by Anurag Goel on February 3, 2015 at 1:00pm — 12 Comments

लिव इन रिलेशनशिप (लघुकथा)

एमबीबीएस की स्टूडेंट मुस्कान तीन सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी। जिसकी खबर लगते ही पूरे घर में हंगामा हो गया।

"मेरी पोती होकर तुम ऐसा काम कर रही हो मैंने कितनी मेहनत से समाज में अपनी इज्जत बनाई है........"

"नाजायज संबंध रखने वाली मेरी बेटी तो कतई नहीं हो सकती। बदचलन कहीं की। हमारे प्यार और विश्वास का ये शिला दे रही हो। अभी बनाता हूँ तुम्हें डॉक्टर.........."

"पापा, बहुत हो गया आप लोगों का ड्रामा! रवि एक बहुत अच्छा इंसान है हम दोनों एक…

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Added by विनोद खनगवाल on February 3, 2015 at 9:30am — 9 Comments

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