For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2018 Blog Posts (128)

शान-ए-अवध

जल रहे चिराग हैं, जिंदा यहां तख़्त-ओ-ताज है

बह रही गोमती, रोशन यहां के घाट हैं

यह लखनऊ की धरती

यह लखनऊ की शाम है

तहजीब यहां अब्दो आब है,खिलते हर दिल में ख्वाब हैं

दुश्मन को भी कहते आप हैं,दोस्त भी अमें यार हैं

गंज की शाम है, बागों में भी बाग हैं

यह लखनऊ की धरती

लखनऊ की शाम है।

रूमी दरवाजा वो शान है, आज भी तहजीब उसकी आन है ।

इमामबाड़ा हिंदू मुस्लिम एकता की पहचान है

बेगम की कोठी में जलते चिरो चिराग,नक्खास पर सजती बाजार…

Continue

Added by peeyush kumar on January 6, 2018 at 9:51pm — 7 Comments

सुबह की धूप

 खुद को भूली वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर धकेलती तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का स्व जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की…

Continue

Added by नयना(आरती)कानिटकर on January 6, 2018 at 6:45pm — 3 Comments

ग़ज़ल..रात भर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर

212 212 212 212

आँख आँसू बहाती रही रात भर

दर्द का गीत गाती रही रात भर

आसमां के तले भाव जलते रहे

बेबसी खिलखिलाती रही रात भर

बाम पे चाँदनी थरथराने लगी

हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर

रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे

आरजू छटपटाती रही रात भर

प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम

आशकी कसमसाती रही रात भर

आह भरते हुये राह तकते रहे

राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर …

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2018 at 5:30pm — 31 Comments

घर के काज (लघुकथा)

जनवरी की कड़ाके की ठंड। घना कोहरा। सुबह क़रीब पांच बजे का वक़्त। सरपट भागती ट्रेन की बोगी में सादी साड़ियां, पुराने से सादे स्वेटर और रबर की पुरानी से चप्पलें पहनी चार-पांच ग्रामीण महिलाओं की फुर्तीली गतिविधियां देख कर नज़दीक़ बैठा सहयात्री उनसे बातचीत करने लगा।

"ये चने की भाजी कहां ले जा रही हैं आप सब?"

"दिल्ली में बेचवे काजे, भैया!" एक महिला ने भाजी की खुली पोटली पर पानी के छींटे मारकर दोनों हाथों से भाजी पलटते हुए…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2018 at 7:30am — 4 Comments

ग़ज़ल - मुकम्मल भला कौन है इस जहां में

बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

ग़ज़ब की है शोखी और अठखेलियाँ हैं।

समन्दर की लहरों में क्या मस्तियाँ हैं।

महल से भी बढ़कर हैं घर अपने अच्छे,

भले घास की फूस की आशियाँ हैं।

मुकम्मल भला कौन है इस जहाँ में,

सभी में यहाँ कुछ न कुछ खामियाँ हैं।

ज़िहादी नहीं हैं ये आतंकवादी,

जिन्होंने उजाड़ी कई बस्तियाँ हैं।

ये नफरत अदावत ये खुरपेंच झगड़े,

सियासत में इन सबकी जड़ कुर्सियाँ हैं।

समन्दर के जुल्मों सितम…

Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on January 5, 2018 at 10:27pm — 16 Comments

खुली खिचड़ी(लघु कथा)



मामले की सुनवाई के उपरांत सजा तय हो चुकी थी।अब ऐलान होना शेष था।न्याय-प्रक्रिया के चौंकानेवाले तेवर के मद्दे नजर लोगों में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि घोटाले के इस मामले में आखिर क्या सजा होती है।बाकी के हश्र सामने थे,वही ढाक के तीन पात जैसे।और न्याय की देवी आज -कल में फँसी हुई थी,क्योंकि कभी किसी वकील की मर्सिया-सभा हो रही होती, तो कभी कुछ और कारण होता।

-फिर कल?

-‎हाँ, अब कल सजा सुनाई जायेगी।

-‎वो क्यों?

-‎पता नहीं।हाँ मुजरिम ने कुछ कम सजा की गुहार लगायी है।…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 5, 2018 at 8:00pm — 13 Comments

कुछ कहते-कहते ...

कुछ कहते-कहते ...

विरह निशा के श्यामल कपोलों को चूम

निशब्द प्रीत

अपनी निष्पंद साँसों के साथ

कुछ कहते-कहते

सो गयी

व्यथित हृदय

कब तक बहलता

पल पल

टूटती यादों के खिलौनों से

स्मृति गंध

आहटों के राग की प्रतीक्षा में

नैनों में

वेदना की विपुल जलराशि भरे

पवन से

कुछ कहते-कहते

सो गयी

खामोशियाँ

बोलती रहीं

शृंगार सिसकता रहा

थके लोचन

विफलता के प्रहार

सह न सके…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 5, 2018 at 5:38pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पहाड़ी नारी  (लम्बी कविता 'राज')

पहाड़ी नारी  

कुदरत के रंगमंच का    

बेहद खूबसूरत कर्मठ किरदार   

माथे पर टीका नाक में बड़ी सी नथनी

गले में गुलबन्द ,हाथों में पंहुची,

पाँव में भारी भरकम पायल पहने

कब मेरे अंतर के कैनवास पर

 चला आया पता ही नहीं चला

 पर आगे बढने से पहले ठिठक गई मेरी तूलिका 

 हतप्रभ रह गई देखकर

एक  ग्रीवा पर इतने चेहरे!!!

कैसे संभाल रक्खे हैं  

हर चेहरा एक जिम्मेदारी के रंग से सराबोर

कोई पहाड़ बचाने का

कोई जंगल बचाने…

Continue

Added by rajesh kumari on January 4, 2018 at 7:30pm — 21 Comments

वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

212 1222 212 1222

बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है

महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है

-

चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है

मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है

-

इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 

आज मेरे सपने में यार आने वाला है

-

जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना

माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है

-

उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है

इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है

-…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 5:30pm — 28 Comments

गुड़ खाये गुलगुले से परहेज

पहली जनवरी की सुबह कुहरे की चादर लपेटे, रोज से कुछ अलग थी। सामने कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल, गौरव की दिनचर्या की शुरूआत मॉर्निंग वॉक से ही होती है, सो आज भी निकल गया हाथ मे एक टार्च लिए।

गली के चौराहे पर रोज की तरह शर्मा जी मिल गए। गौरव ने उनको हैप्पी न्यू ईयर बोला। पर शर्मा जी शुभकामना देने के बजाय भड़कते हुए बोले-

"अरे गौरव भाई! कौन से नव वर्ष की बधाई दे रहे हैं आप? आज आपको कुछ भी नया लग रहा है। क्या?"

क्यों? आपके…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:30pm — 12 Comments

बंधन की डोरियां - डॉo विजय शंकर

कुछ डोरियां

कच्चे धागों की होती हैं ,

कुछ दृश्य होती हैं ,

कुछ अदृश्य होती हैं ,

कुछ , कुछ - कुछ

कसती , चुभती भी हैं ,

पर बांधे रहती हैं।

कुछ रेशम की डोरियां ,

कुछ साटन के फीते ,

रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,

आकर्षित तो बहुत करते हैं ,

उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,

पर काटे जाते हैं।

इस रेशम की डोरी

की लुभावनी दौड़ में ,

ज़रा सी चूक ,

बंधन की डोरियां

छूट गईं या टूट गईं ,

रेशम की डोरियां …

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 4, 2018 at 9:30am — 10 Comments

चूना लगा (लघुकथा)

"आप मुझसे कब तक प्रेम करेंगे?" समुद्र तट पर पति के साथ प्यार भरे लम्हों में बहुत भावुक होते हुए पत्नी ने कहा।
पति ने उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद निकाल कर समुद्र के पानी में डाला और बोला - "इस आँसू की बूंद को जब तक तुम खोजकर नहीं निकालतीं, मैं तब तक तुमसे प्रेम करूँगा ..!"
यह देख समुद्र की भी आँखों में पानी आ गया और उसने कहा - 
"कहाँ से सीखते हो रे तुम लोग ... पत्नी को इतना चूना लगाना…
Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:24am — 7 Comments

लजाते हो क्यूँ तुम-गीत

जो हमसे मोहब्बत नहीं है तो हमको

बताओ कि हमसे लजाते हो क्यूँ तुम?

निगाहें मिला कर निगाहों को अपनी

झुकाते हो हमसे छिपाते हो क्यूँ तुम?

कभी फेरना पत्तियों पर उँगलियाँ,

कभी फूल की पंखुड़ी पर मचलना

अचानक सजावट की झाड़ी को अपनी

हथेली से छूते हुए आगे बढ़ना

ये शोखी ये मस्ती दिखाते हो क्यूँ…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 4, 2018 at 8:00am — 7 Comments

नए साल के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

विपदा  से  हारो  नहीं,  झेलो  उसे  सहर्ष

नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।



नभ मौसम सागर सभी, कृपा  करें  अपार

जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।



इंद्रधनुष के  रंग सब, बिखरे हों हर बाग

नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।



खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार

हो  सब  में  सदभावना, जीने  का  आधार।४।



विदा  है  बीते  साल को, अभिनंदन नव वर्ष

ऋद्धि सिद्धि सुख…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

जहर कुछ जात का लाओ तो कोई बात बने ।

आग मजहब से लगाओ तो कोई बात बने ।।

देश की शाख़ मिटाओ तो कोई बात बने ।

फ़स्ल नफ़रत की उगाओ तो कोई बात बने ।।

सख़्त लहजे में अभी बात न कीजै उनसे।

मोम पत्थर को बनाओ तो कोई बात बने ।।

अब तो गद्दार सिपाही की विजय पर यारों ।

याद में जश्न मनाओ तो कोई बात बने ।।

जात के नाम अभी…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on January 4, 2018 at 12:39am — 8 Comments

बदल रहा है बचपन(लघुकथा)

सड़क पर एक बच्चा हाथों में पत्थर लिए चल रहा था| मासूम हाथों में पत्थर देख एक राहगीर ने पूछा,' कहाँ जा रहे हो बेटा?" 
उस मासूम ने जवाब दिया,' उनको मारने?'
" किसको!" उस राहगीर ने आश्चर्यचकित हो पूछा|
' जिन्होंने हम पर हमला किया है|'
'किसने हमला किया है बच्चे?'
'उन लोगों ने|' 
'तुम आखिर क्या करोगे उनका?'
'मार दूंगा|'
'पर क्यों?'
'क्योंकि वे हमें मार रहे हैं|"
'तुम यहाँ क्यों आये…
Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 3, 2018 at 10:31pm — 3 Comments

बंद(लघु कथा)



भुइंया लोग विजय-पर्व मना रहे थे।यह उनकी पुरातन परंपरा का हिस्सा था।उनके पूर्वजों ने कभी अपने पूर्वाग्रह ग्रस्त मालिकों को बुरी तरह पराजित किया था। तब से यह दिन भुइंया समुदाय के लिए उत्साह और उत्सव का पर्याय बन गया था। 'जई हो,जई हो',की तुमुल ध्वनि गूँजने लगी।यह उनके उत्सव के उत्कर्ष की स्थिति थी।ढ़ोल, नगाड़े,तुरही सब के बोल चरम पर थे। झंकार ऐसी कि मुर्दे भी स्पंदित हो जायें, नृत्य करने लगें। पर,यह क्या?अचानक भगदड़ -सी होने लगी।किसी के सिर से लहू के फव्वारे निकल पड़े।कहीं से किसी ने पत्थर…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 10:00pm — 2 Comments

ईमान(लघु कथा)

  • ईमान

    ---

    -नहीं,वह नहीं आता अब।

    -‎नहीं आतता या मना किया तूने?

    -‎हाँ, मैंने ही मना किया।

    -‎क्यूँ?

    -‎क्या मतलब?

    -‎अरे! आते-जाते रहता तो कुछ भेद पता चलता रहता।

    -‎क्या?

    -‎सत्ता पक्ष से हैं न। अंदर की बातें,और क्या?

    -‎पर मुझे उससे क्या?

    -‎मुझे तो फायदा होता न री करमजली।

    -‎सही कहा तुमने ---करमजली हूँ मैं।

    -‎बात मत पकड़ री छमिया! आजकल कुर्सी सुगबुगा रही है, उलट-फेर की संभावना है।

    -‎तो फिर?

    -‎आने दे मुंडे मौलवी को।राज पता…
Continue

Added by Manan Kumar singh on January 2, 2018 at 10:30pm — 9 Comments

मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते - सलीम रज़ा

2122 2122 2122 212

.

मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए

ग़ैर से क्या  हो गिला अपने  बेगाने हो गए

-

चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए

-

पतझड़ों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी

आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए

-

मुस्कराहट उनकी  कैसे भूल पाएगें  कभी

इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए

-

आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां

उनके न  आने  के  ये…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:00pm — 18 Comments

हाइकू

फिर आ गया

नववर्ष लेकर

नयी उमंग ।

 

नयी सौगात

उम्मीद की किरण

नव वर्ष में ।

 

जन जीवन

चमकें उल्लास में

नव वर्ष में ।

 

यादों का रेला

खामोश समंदर

बहा जो पाता ।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 2, 2018 at 2:44pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
19 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
9 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service