For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

January 2014 Blog Posts (190)

खोटा सिक्का

खोटा सिक्का

चले थे खुद को भुनवाने

दुनिया के इस बाजार में.

पर खोटा सिक्का मान

ठुकरा दिया ज़माने ने

सोचा ! मुझमें ही कमी थी

या, फिर वक्त का साथ न था

समझ न पाये ,और चुप रह गए

पर चैन न आया

और चल पडे दुनिया को

जानने और पहचानने

देखा ! तो जाना ,

दुनिया कितनी अजीब है

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान तुल रहा 

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on January 17, 2014 at 1:00pm — 9 Comments

धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में (गीत).

धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में 
धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में
 
क्रांतिकारियों ने जो बलिदान है दिया 
निज देश पे हर बात को कुर्बान कर दिया 
हम छांव में खड़े थे वो चले थे धूप में 
धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में
 
बयानबाजियों से कभी हल नहीं कोई 
उंगली उठा के दूजे पे सफल नहीं कोई 
फर्क प्रजातंत्र  में न रंक ओ भूप में 
धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on January 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments

क्षणिकाएँ

क्षितिज

 

दूर छोर पर

एकाकार होते 

सिन्दूरी आसमान

और हरी धरती

 

उस रेखा का कोई रंग नहीं

 

 

एक स्थिति

 

खाली बाल्टी

और उसमें

नल से

बूँद-बूँद टपकता पानी

 

मैं देख रहा हूँ

किंकर्तव्यविमूढ़

संघर्ष

 

तपते दिनों के बाद

सर्द हवाओं का मौसम

 

कब से बारिश नहीं हुई

बहुत से सपने सूख…

Continue

Added by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:29am — 22 Comments

सावन का मौसम आया है............

हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी

आँखों से नज़र आ जायेगा ,

सावन का मौसम आया है ऄ

कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं

कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं

ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी

सावन का मौसम आया है

झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे

मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे

दुनिया सारी जल  जायेगी  

सावन का मौसम आया…

Continue

Added by ajay sharma on January 16, 2014 at 11:30pm — 8 Comments

मज़दूर

(एक)

 

तुम क्या चुकाओगे

मेरी मेहनत की कीमत

मेरी जवानी

मेरे सपने

मेरी उम्मीदें

सब-कुछ तो दफ्न है

तुम्हारी इमारतों में।

 

(दो)

 

जब चलती हैं  

झुलसा देने वाली गर्म हवाएँ

कवच बन जातीं है

यही सूरज की किरणें

हमारे लिए ।

 

मुसलधार बारिश

जब हमारे बदन को छूती है

फिर से खिल उठता है  

हमारा तन

ऊर्जावान हो…

Continue

Added by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

मेरा अपना गांव (रोला छंद)

मेरा अपना गांव, विश्‍व से न्यारा न्यारा ।

प्रेम मगन सब लोग, लगे हैं प्यारा प्यारा ।।

काका बाबा होय, गांव के बुजुर्ग सारे ।

हर सुख दुख में साथ, सखा बन काम सवारे ।।



अमराई के छांव, गांव के छोरा छोरी ।

खेले नाना खेल, करे सब जोरा जोरी ।।

ग्वाला छेड़े वेणु, धेनु धुन सुन रंभाती ।

मुख पर लेकर घास, उठा शिश स्नेह दिखाती ।।





मोहे पनघट नाद, सखी मिल करे ठिठोली ।

गारी देवे सास, करे बालम बरजोरी ।।

चारी चुगली खास, कथा सा सुने सुनावे ।

सभी… Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:54pm — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
लोकतंत्र का मुखौटा पहने (अतुकांत)

लोग कहते हैं

ज़माना बदल गया

मै कहता हूँ-

फ़क़त चेहरे बदले हैं,

व्यक्ति परक समाज तब भी था

अब भी है,

रियासतों,

शाही आनो-शान के बीच,

इंसानों के लहू से लिखी गई,

इतिहास की इबारत,

जो आज भी सुर्ख़ है

 

नाम बदले

मगर हालात न बदले

हुक्मरान बदले

मगर

जनता पहले भी ग़ुलाम थी

अब भी ग़ुलाम है

अंग्रेज़ों के पहले भी

अंग्रेज़ों के बाद भी

बेबसी ने ग़ुलाम…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:30pm — 12 Comments

जाग रे मन !!!

जाग रे मन !

कब तक यूं ही सोएगा

जग मे मन को खोएगा

अब तो जाग रे मन !!

1)

सत्कर्मों की माला काहे न बनाई

पाप गठरिया है  सीस  धराई  

जाग रे !!!!

2)

माया औ पद्मा कबहु काम न आवे

नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे

जाग रे !!!!

3)

दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई

प्रीति की रीति अबहूँ  न निभाई

जाग रे !!!!!

4)

सारा जीवन यही जुगत लगाई

मान अभिमान सुत दारा पाई

जाग रे…

Continue

Added by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 5:30pm — 10 Comments

जीबन :एक बुलबुला

गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते

जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है

बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में

सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है

जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते

ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है

समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है

समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है

जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये

मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है

मदन मोहन सक्सेना

मौलिक व…

Continue

Added by Madan Mohan saxena on January 16, 2014 at 1:53pm — 6 Comments

तुम पथिक आए कहाँ से (नवगीत) - कल्पना रामानी

तुम पथिक, आए कहाँ से,

कौनसी मंज़िल पहुँचना?

इस शहर के रास्तों पर,

कुछ सँभलकर पाँव धरना।

 

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

 

देख थी हैरान कुदरत,

सूर्य का बेवक्त ढलना।

 

जो युगों से थे खड़े

वे पेड़ धरती पर पड़े थे। 

उस कुटिल तूफान से, तुम  

पूछना कैसे लड़े थे।

 

याद होगा हर दिशा को,

डालियों का वो…

Continue

Added by कल्पना रामानी on January 16, 2014 at 10:30am — 26 Comments

किनारा इस सरिता का

तू बहादुर बेटी है पंजाब की

तू शान आन और बान है हमारे घर की

तू झाँसी की रानी है

तुझे क्या डर अकेले

दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती हो

हाँ

ऐसे ही तो कहते थे ना हमेशा

जब कहती थी

मेरे साथ कहीं चलने को

आज समझा रहे थे मुझे

पगली क्यों रोती है ?

तेरे अंग संग हूँ हमेशा

तेरे साथ अपनी दोनों भुजाएं

अपने दो बेटे छोड़ आया हूँ

तुम्हे जरुरत नहीं

किसी का मुँह ताकने की

दोस्त जो नहीं पूछते मत कर चिंता

जो साथ हैं उनका कर…

Continue

Added by Sarita Bhatia on January 16, 2014 at 10:01am — 10 Comments

एकलव्य का अंगूठा

संस्कृति का क्रम अटूट

पांच हज़ार वर्षों से

अनवरत घूमता

सभ्यता का

क्रूर पहिया.

दामन में छद्म ऐतिहासिक

सौन्दर्य बोध के बहाने

छुपाये दमन का खूनी दाग,

आत्माभिमान से अंधी

पांडित्य पूर्ण सांस्कृतिक गौरव का

दंभ भरती

सभ्यता.

मोहनजोदड़ो की कत्लगाह से भागे लोगों से

छिनती रही

अनवरत,

उनके अधिकार, 

किया जाता रहा वंचित,

जीने के मूलभूत अधिकार से,

कुचल कर  सम्मान

मिटा दी…

Continue

Added by Neeraj Neer on January 16, 2014 at 9:58am — 11 Comments

कर लो कुछ विचार (दोहावली)

दिल पर रख कर हाथ तुम, कर लो कुछ विचार ।

देश धर्म के रक्षण पर, करते निज उपकार ।।



समय अभाव सभी कहे, समय साथ ना कोय ।

साथ समय का जो चले, निर्धनता ना होय ।।



समय बहुमूल्य रत्न है, मिले सदा बेमोल ।

पर्स रखे जो वक्त को, मगन रहे दिल खोल ।।



हल्ला भ्रष्‍टाचार का, करते हैं सब कोय ।

जो बदलें निज आचरण, हल्ला कैसे होय ।।



घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।

रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।



मिट रहा अपनापन अब, नही बचा चितचोर…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:04am — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बहुत गुमसुम सी लगती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  1222   1222

बहुत गुमसुम सी लगती है

 

ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं

यहाँ के हादसों का सच,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:30am — 32 Comments

लेकिन....

तुम क्या जानो जी तुमको हम 

कितना 'मिस' करते हैं...



तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है 

सुन तो लो, ये नही एक बहाना है 

ख़ट-पद करके पास तुम्हारे आना है 

इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...



इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये 

घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे 

बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो 

लगता नही कि इस डायन से पीछा…

Continue

Added by anwar suhail on January 15, 2014 at 9:01pm — 5 Comments

तुम्हारी प्रेरणा

आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,

अब उन्हें मुझे पूरा करना है।

माना बहुत दूर है किनारा मेरा,

पर उस तक मुझे पहुँचना है।  



कुछ भूल रहा था मेरा हृदय,

कुछ ध्यान भटक गया था।

थी घोर निराशा मुझे घेरे हुए,

जिसमें जीवन अटक गया था।

तुमने मुझे आगे बढ़ाकर कहा,

नहीं,अभी तुम्हें ऐसे रूकना है।

आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,

अब उन्हें मुझे पूरा करना है।



मेरे टूटे हुए विश्वास को जगाया,

तुमने आशा से प्रकाशित किया।

दूर कर मेरे हृदय की निराशा…

Continue

Added by Savitri Rathore on January 15, 2014 at 8:47pm — 21 Comments

समझ ये क्यूँ नहीं आती..

है क्यूँ खामोश दरिया ये जो कल तक शोर करता था,
उदासी झील की शायद इसे देखी नहीं जाती.
तेरी खामोशियों के लफ्ज जब कानों में पड़ते हैं.
ये सांसें रोक लूं पर धडकनें रोकी नहीं जातीं.
अँधेरी रात से मिलना उजाले की भी ख्वाहिश है,
मगर किस्मत यहाँ ऐसी कभी शय ही नहीं लाती.
तमन्ना रह गई हर बार उसके पास जाने की,
कभी हम खुद नहीं जाते कभी वो ही नहीं आती.
मेरा जब नाम उसके लब को छूता है तो मत पूछो,
धडकता…
Continue

Added by atul kushwah on January 15, 2014 at 8:30pm — 9 Comments

वंदना

वंदना

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ

करूँ मै भी सेवा तेरी उम्र भर

मुझमे भी ऐसा कोई ‘भाव’ दे माँ

हे शारदे माँ , .......

चलूँ मै भी हरदम सत्यपथ पर

कभी भी न मुझसे कोई चूक हो माँ

हे शारदे माँ ,...........

दिखें जो दुखी-दीन आगे मेरे

कुछ सेवा उनकी भी मै कर सकूं माँ

हे शारदे माँ ,...............

जिह्वा जो खोलूँ तू वाँणी मे हो

चले जो कलम तो तू शब्द दे माँ

हे शारदे…

Continue

Added by Meena Pathak on January 15, 2014 at 5:00pm — 13 Comments

नित्यानंदम स्तयं निरूपम (विजय निकोर)

नित्यानंदम स्तयं निरूपम  !

 

श्यामल गंभीर रात्रि

सुनता हूँ संवेदनमय स्वर

"विचारों में गुँथे, वेदना से बिंधे

अस्वीकृत एकाकी मन

तू उदास न हो"

 

टूटे संबंधों के

वीरान प्रवहमान प्रसारों में

कल की पुरानी किसी की

प्यार भरी हँसी, स्नेहमयी आँखों में

देखो, शायद सुख-शांति मिल जाए

देखो उन आँखों में, इतना न देखो

कि तुम्हें अनजाने

अज्ञात दर्द कोई और मिल जाए

 

मानवीय…

Continue

Added by vijay nikore on January 15, 2014 at 2:30pm — 20 Comments

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ

शायद खिलने वाली हैं...



तुमने कल की सारी बातें

जल्दी जल्दी चुन चुन कर,

अपनी जेबों में भर ली हैं

कितनी बेतरतीबी से,

कुछ तो खोकर भूल गयी हैं,

पर कुछ गिरने वाली हैं...



उस दिन कितनी कोशिश करके

हमने धूप बिछायी थी,

अल्फ़ाज़ों की कुछ शाखों से

कुछ पत्ते भी टूटे थे,

उन पर ठहरी खामोशी की

बूँदें झरने वाली हैं...



अलसाये नाज़ुक होठों की

हिलती डुलती टहनी पर,

कोहरे वाले मौसम में भी

पीली… Continue

Added by अजय कुमार सिंह on January 15, 2014 at 2:04pm — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
50 minutes ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service